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पूजा करणी है वा नहि करणी ? देवकी प्रतिमा पूजतां जीवां को पुन्यबंध है वा पापबंध है ? इस बात में राग द्वेष छोडकें चार पंडित तथा चार शहर के पंच तथा दो सरकारके आदमी बेठाय लैने । की वास्ते कोइ दंगा लडाइ करे नही । तथा इस कालमै मतांकें गीरधी लोकांने आपण मती कल्पना कें अर्थ पाय लिये है न ।
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सो टबे देखे जावेगे । जौणसे पूर्व आचार्या की टीका के साथ मील जावेगे सो प्रमाण है । प्रजाय होती है सो टीका बीचो होती है इस वास्ते मिलाय लेणां । अर्थ जोणसा अर्थ टीका के साथ मिल जावे सो प्रमाण । दूसरा प्रमाण नही.
इस विधिसें अंबरसिंघने निरना करना होवे तो चरचा थाप लेवो जौणसें दिन चरचा करणी होवे सो दिन वार लिख देवो । जेकर चरचा नही करणी होवे तो तुम अपने धर्म में आनंद हो । हम आपणे धर्म में आनंद है । राग द्वेष में उलटा कर्मबंध का कारण है ।
तिवारे अंबरसिंघने कह्या - हमाने ब्राह्मण नही बठावणे । हम तो आपणी तर्फसें पाधरी बठालागें । तिवारे हमने कह्या- तुम पाधरी बठा लेवो परंतु शब्दशास्त्र के जाणकार जोवे । भामा' कोइ होवे हमने तो यह पूछणा है उनके पासो - इन्हां अक्षरां में प्रतिमा पूजणी है वा नही पूजणी ? जेकर पाधरी कहेगें - इस शास्त्र में प्रतिमा पूजणी लिखि है परंतु एह शास्त्र जूठा हैं । फेर हम कहांगे - जौणसा पुरुष इस शास्त्रकों सच्चा मानता है अरु प्रतिमा नही मानता ते पुरुष जूठा के सच्चा ? एह चरचा उहां होवेगी । जौणसा निरना होवेंगा सो देख्या जावेगा ।
तब उनाने विचारया पाधरी अक्षरां का अर्थ उलटा किम करेंगे ? तथा हमारा टबा तो एक बी टीका 'नाल नहि मिलता । हम कहेंगे-टीका हम नही मानते । तो एह कहेगे - टीका तुम नही मानते तो तुम क्या मानते हो ? जो हम कहांगे- हम टबा मानते हां । तब पंडित कहेगे - टीका बिना टबा कहां ते तुमाने लिख्या ? तब परषदामें हम जूठे पडागे ।
अंबरसिंघ तथा उना के श्रावकानें रात को सलाह करके सवेर को
१ जानकार । २ साथ ।
मोहपत्ती चर्चा * ३०