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कह्या -कल्प पुरा करके अम आवांगे । अमरसिंघने जाण्या- देवीसहाय तथा बूटेरायजी कहा लग बैठे रहेगें ? तिना भाइयांने आय के देवीसहायको कह्या - पूज्यजीतो मासकल्प पूरा करके आवेंगे । तिवा देवीसहायने जाण्या- इनाके भाव चरचा करण के नहीं दीसते । सो हम कहां लग बैठे रहेगे ? हमारे राह बिच लाहोर आवेगां । जेकर अमरसिंघ के भाव चरचा करणे के होय तो पांच सात दिन में आय जावांगा । जेकर उसके भाव नही होवेंगे तो पिण मालुम होय जावेगे । देवीसहाय लाहोर गया । अमरसिंघ को कह्या- तुम चले क्यों आये । चलो चरचा करो । तिवारे अमरसिंघ बी गया ब्रेडीयां मान बडाइकीयां बात करण लगा । हमारे साथ बूटेराय क्याने चरचा करणी है ? उसकी समर्थाइ नही । अनेक बार हमनें जूठा कह्या है । इत्यादिक वचन सुणके देवीसहायने विचारया - इसने क्या चरचा करने है ? एह तो एक राग द्वेष का पिंड है । एसो विचारी आपणे घर कों चल्या गया । अरु हम बी जंडयाले को चले गये । पीछे चार पांच दिनें अमरसिंघ अंबरसर आय गया । सो हमानें सुण्या - अबरसिंघ अबंरसर आय गया है । तिवा हम जंडयालेते अंबरसर आय गय । दो साधु तिवारे तीनांने आपणे साधु जिहां२ थे तिहां २ ते बुलायलै । पचीस तीस कठे आय होय । अरु पोथी पन्नाबी घणा भेलां करया । हमनें विचारया - पोथी पन्ना तो हमारे पासबी घणा है । जेकर चरचा का दिन थाप लेवेंगे तो हमारी तर्फ के भाइ आवेगें जब पोथीयां बी आय जावेगीयां । तथा जोणसा भाइ देवीसहाय चरचा थाप गया है उसको बुलावे तो चरचा होवेंगी ।
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हमारे को कहेण - लगे- रात के पाणीकी तो चरचा हम करते नही । मुखपत्तिकी तथा प्रतिमा की बत्तीस सूत्रां उपर चरेचा हम करांगे- तिवारे हमने कह्या-इस विधिनाल संघको निरणा करणा चाहियें । मेरी अंबरसिंघ की चरचा बत्तीस सूत्रां उपर होवेगी । दो वस्तु की एक मुखपत्तिकी दुजी प्रतिमाजीकी । जैनके साधुने मुखवस्त्र हस्तमें रखना है वा मुखको बंधणा है ? जैनके शास्त्र में जैन के देवकी प्रतिमा लिखि है वा नही लिखि ? जैन के साधुने जैन के देव की प्रतिमा को नमस्कार करणी है वा नही ? जैन के सेवक गृहस्थने जैन देव की प्रतिमा की पुष्पादिक
मोहपत्ती चर्चा * २९