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हे । इसकी सरदा महा खोटी हे । प्रतिमा के पुजणे की सरधा हे । तथा मुहपत्ती बंधणे की सरदा नही हे । जे कोइ मुखपत्ती बांधे तीस कों पाखंडी जाणता हे । फेर भाइ ने कह्या-हमारे को इस सरदा की खबर नही हे । मेबी कथा वारता सामायक संध्या करता रह्या हां । परंतु उनानें तो कदे इह चरचा करी नही । तथा मेंने ओर किसे पासो बी सुणी नहीं । अब जाय के पूछांगा । उसने आय के मेरे को पुछ्या-स्वामीजी ! अंबरसिंघने मेरे को इम कह्या हे । एह 'गल्ल सच्ची हे के झूठी हे - जब मैंने विचारया-जो में झूठ बोल्या तो मेरे पलें कुछबी न रह्या । मैंने कह्या भाइ एह 'गल्ला सच्ची हे । परंतु में परुपता नहि । किस वास्ते लोक मत पखी घणो हे । धर्म पखी जीव थोडे हे । इम सुण के भाइ चला गया । मैनें विचारया-अंबरसिंघ की मेरे उपर चढाइ हुइ हे । अब भाग्या बात बणे नहीं । जो वितराग ने ज्ञान में देख्याहे सो बात बणेगी ओरतो मेरा पखी कोइ नहि । परंतु जो मेरी साची सरदा हे तो सासनदेवता मेरा पख करेगा । इस में कुछ संदेह नहि । तु भय मत कर । मेने विचारया-एह भाइ मेरे रागी हे । इनाकी मननी आसा मेरे को देखी चाहिए । सवेरे भाइ आवेगे । उनाको मे पुछ लेवांगा-भाइयो जो तुमारे को आपणे मत की १अ. लोडहे तो तुमारी इछा । जे कर वितरागका धर्म खोजणां है । तो अंबरसिंघ इहां आवणेवाला दीसे हे । उसने मेरे नाल चरचा करणी हे । सों चरचा तुम उसते पहिली मेरे साथ कर लेवो । मेरी मुखपत्ति मुख बांधणे की सरदा नही अरु प्रतिमा के मानने की सरदा हे । मेंने भाइया को पूछया-तब भाइयाने कह्या-हमांने कीसे का कुछ देणां नही सत धर्म अंगीकार करांगे । आप सुखे आपणी सरधांन कहो । जो चंगी होवेगी तो हम अंगीकार करांगे । तब मेने भाइया की चोखी विचार जाणके भाइया को मेंने सूत्रां के पाठ दिखाले । कूजरावाले का भाइ कर्मचंदजी शास्त्री पड्या होया था । घणे बोल विचार का जाणकार था अछा । तथा और बी गुलाबराय आदिक केतलेक भाइ जांणकार थे । उनाके साथ मेरी चार पांच दिन चरचा होइ । पीछे दोनो वातां भाइया में प्रमाण कर लइयां । किसेने समज के तथा ओघे तथा दृष्टीरागे घणाने मेरी सर्दा प्रमाण कर लेइ । “एतले अंबरसिंघ बी कुजरावाले तीन साधु के संघाते आय गया । उसके पास भाइ गये । भाइया प्रते अंबरसिंघ बोल्या-भाइयो ! बूटेराय की महा खोटी सरधान छ । १. बात । २. अभिप्राय । ३. जो । ४. साथ । ५ .इतने में । १अ. कदाग्रह आगे भी ऐसा ही जानें
मोहपत्ती चर्चा *
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