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फेर रामनगर ते हमाने कुजरावाले को विहार कर दिया । अरु चौमासा उठे पीछे मुलचंदने रामनगर को विहार कीया था । हमारे को मार्ग में मिल्या । हमने उसका बी तागा मुखपत्ती का तोडाय दीया । हम तीनो साधु कुजरावाले में गया । तिवारे प्रेमचंद की पीडते चीठी आइ । लीख्या-स्वामीजी आप पीडमे पधारो । मेरे को आयकें दीक्षा देवो । मेरा भोग कर्म षीण थया जणाय छे । मेरे को अब भारी वैराग चड्या छ । सो में आप तो गया नही । मुलचंद को पींड भेज्या । मुलचंद के जाणे ते पहिली प्रतिमा की साख तथा भाइया की साख करके मेरी 'नीसराय दीक्षा ले लइ । परंतु में किस वास्ते नहि गया ते कारण लिखिये छे ।।
एक भाइ रावलपिंडि विषे था । इसका नाम मोहनलाल था । जब एह सात आठ बरस का हुया । तब उसकी आखां दुषणे आइयां । फोले पड गये से देखणे तें रहे गया । भावि योग मीटे नहि । परंतु घर में सब कुछ था । माता पीता जीवता था । परंतु उसके मन में वैराग उठा । उसको आखां विना साधुपणा तो आवे नहि । परंतु घर छोडि ने उपासरे में रहणे लागा । अरु उसकी बुद्धि बोहोत अछी थी । थोडेइ काल में घणा पाठ तथा अर्थ धार लेवे था । उसके घणे थोकडे कंठ थे । तथा दो चार सूत्र बी कंठ थे । आपणे मत में घणा प्रवीन था । तथा
आहार पाणीका बी कुछ प्रतबंध नहि था । ओसवाल की जात में जिम विधलागेंथी तिम सरीर को भाडा दे देता था । तथा नवकारसी पोरसी पुरिमढ तथा आंबिल तथा इकासणां तथा वरत बेला अठाइ मास अर्ध मास इत्यादिक तप घणा करे था । उसकी मानता घणी थी । परंतु में भी रावलपींडी गया था । तब मेरे पासों कुछक पढ्या बी था । मेरे साथ उसका राग बंधा होया था ।
सो भाइ स्यालकोट में सुदागरमल्ल के पास पढणे शीखणे वास्ते आया था । स्यालकोट के भाइया पासें उसनें सुण्या जे बुटेरायनें साधुपणा छोड दीया । मुखपत्ति छोड दीनी । यति होय गया है । इत्यादिक घणी निंद्या सुणी. | ऊसने कह्या बुटेराय तो एसा पुरुष नही हे जे विना विचारया काम करे । तव ऊसको स्यालकोटीए बोले-पाप कर्म
१ दिग्बन्धन करके । २ लगाव ।
मोहपत्ती चर्चा * १३