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मन फीर गया । उहां के 'जाणे ? उसके मनमां आपेही विचार आइ तथा कीसे के उपदेशते । उसने मेरे पासो पुछ्या में तो तुमारे पास नही रहणां । मेने कह्या तुमारी इछा । जोणसा रिषजी के टोले विचो निकल के मेरा चेला होया था । सो स्यालकोटते मेरीया दो पोथीया का जोडा उठाय ले गया । ____ अरु लौके गछका श्रीपुज्य रामचंद्रजी था । अछा पढ्यागुण्या होया था । अरु पंडीत बी अछा था । अरु उसकी सरधा प्रतिमा पूजणेकी बी थी । अरु देवयात्रा पूर्व देश तथा गुजरात देश मे बी कर आया था । जोणसा चेला हमारीया पोथीया ले गया था सो पोथीया श्रीपुज्यने उसकें पासों ले के हमारी तर्फ भेज देइया । अरु श्रीपूज्यजीने विचारया-बूटेरायने मूखपत्ती का तागा तोडि दिया हे । अरु मुखपत्ती हाथ मे रखता हे । अरु ऐसें परुपता हे-मुखपत्ति मुख को बंधणी जैन के मुनि कों कीसे सूत्र सिद्धांत में देखी नही । अरु सोमिल संन्यासीने मुखपत्ति बंधी हे सो 'अणमत्ती हे । इसतें एही संभवता हे मुखबंधालिंगहे सो अन्यमत्ती फकीर का हे । तिवारे श्रीपूज्यने विचार करी-जो मुखबंध्यालिंग अन्यमत्तीका हे । तो हम मुखबंधके कथा करते हां सो हमारे को अन्यलिंग धार के कथा करणी योग्य नही । सूत्र सिद्धांत मे घणा उपयोग दीया । परंतु 'कीते मुखपत्ती बंधके कथा करणे का अधिकार देख्या नही । श्रीपूज्यजी ने विचार करी - एह पंचमा काल अरु हुंडा उत्सर्पणी का परभाव हे । तथा महानिसीथ सूत्र मध्ये कह्या हे । श्री महावीरस्वामी ने श्री गौतमजी प्रते कह्या हे - हे गौतम ! मैनु साढाबारसे वरस जाझेरा निर्वाण गयको होय जावेगा । तब आपापणि मत कल्पना कर कर घणे मत मतांतर होय जावेगे । कोइ वीरला समण माहण होवेगा ।
एसा विचार के श्रीपूज्यने जहां जहां उनके यति थे । ताहां ताहां सारे चीठीयां भेज देइया । तुमाने मुखपत्ती बंधके कथा नहि करणी ।
१ कौन जाने । २. अथवा । ३. में से । ४ अन्यमती है । ५. कहीं । ६. कुछ अधिक ।
७. अपनी अपनी मतिकल्पना कर कर ।
मोहपत्ती चर्चा * १५