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परंतु में प्रेमचंद के 'प्रणाम कच्चे देखके मेंने प्रेमचंदजी को कह्या-आप छावणी कों चलो अरु में बी अंबाले जाय के आपको आय मिलागां । प्रेमचंदजी को छावणी को 'टोरके में अंबाले में गया । आहार पाणी कीधो ।
__ एतले मोहोरसिंघ भाइ सूत्रां का जाणकार था अरु उस मत में हमारा रागी था, तिसको बोलाय के कह्या - तुम बूटेराय का रागी हे उसको समझाय के मुखपत्ती बंधाय देवो । नही बंधेगा तो फजीति घणी होवेगी । इम कहेकें मेरे पास भेज्या । मेरे को बोल्या : आपने बडा खोटा काम कीधा छे । अपणी अवरु गवाइ दीनी छे । तिवारे मेंने कह्या - भाइ साहिब ! मैने चौरी यारी तो कोइ कीधी नहि । मुखपत्ती का तागा छोड दीया हे । मेरे को सूत्र में तागा देखाय देवो । में फेर पाय लेवांगा तिवारे मेरी भाइ साथ चरचा होइ । तब भाइ बोल्या - स्वामीजी ! तुमारी बात तो साची हे । परंतु आपकों “परिसे घणे होवेगे । अब तुमकों मुखपत्ती बंधणी योग्य नही । जे मुखपत्ती बंधेगो तो ए लोक ताली वजावेगें । कहेंगे-जुठा था तो फेर बांध लेइ । साचा होता तो काहेकु बांधता मुखपत्ती ? इत्यादिक मेरे को सीखावण देइ आपणे साध पास जाय के कह्या- में तो बुटेराय को घणा कह्या परंतु उसके मानने में एह बात नही आवती । इम कहीने आपणी दुकान पर चला गया ।
उनोनें कह्या- एह पक्का हठ्ठी हे । इसनें नरमाइ करयां नही माननी । अब इसका भेख खोसो तब मानेगा | उनाने आपणे आपणे रागीयां कों तैयार कीधा । सवेरे पडिकमणा करते को चल पकडो । एतले सर्वत्र भाइ चारे सलाह कीनी ।
एह बात सुणके जोण से भाइयाका हमारे साथ राग था । मोहोरसींघ तथा सुरस्ती आदिक उनाने विचारया -एह वात अछी नही । इहां कोइ विघन होवेगा । अरु हम बूटेराय का पक्ष करे तो एह घणे हे । हमारी कुछ पेस नही जाती । तथा हमारे कोंबी पूजेरे २ करके इस खेत्रमें तथा और खेत्रामे हमारी आबरु खो देवेंगे । बूटेरायने इहां
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परिणाम - भाव । २ छोडकर । ३ आबरू - इज्जत । ४ बांध । ५ परीषद । ६ हमारा कुछ चलता नही है । ७ फजीइह करके बदनाम करके ।
मोहपत्ती चर्चा * १८