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बैठ नही रेहेणा । अरु और साधु देख के मारे इहां आवेगे नहि । हमको धर्म-ध्यान का विरह पड जावेगा इस वास्ते बूटेराय कों चल्लके कहीए-3 ए- आप दो घडी के तडके अंबालेते बाहिर जाके पडिकमणा करणां ।
तिनां भाइया ने मेरे पास आय के कह्या स्वामीजी तुम दो घडी रात रहे तब इहांते चले जाणा । अंबालेते बाहिर जाइ पडिकमणा करजोतिवारे हमानें पुछया- भाइयो ! तुमने एह वात कीस वास्ते कही ? ते कहो । तिवारे भाइ हाथ जोड़कें बोले- स्वामीजी ! हम तो आपके परम भक्ते हां । परंतु इहां हमारी कोइ पेश नही जाती । पाछैली बात सर्व कही । तिवारे मेने कह्या - भाइसाहिबजी ! 'नाठ नाठ कें कहां कहां बचेंगें ? परंतु जे कर तुम जाणते हो हम बूटेराय के रागीहां । जीस वखत हमारा भेख खोसणें को आवे । उस बखत तुमने नही आवणा । जेकर हमारा भेख खोसणेगे उस वखत संभाल लेवांगे । राज तो अंगरेजका हे । इनाका तो राज नही । कोइ तो इनको बी पुछेंगां- कीस वास्ते भेख खोसीयाहे ? इनाने क्या खोट करी हे ? तव उहां साच जुठ का निरना होवेंगा । सो देख्या जावेंगा । अब तो कुछ बात कही नही जाती । जिम बणे तिम खरो ।
फेर जाके उनाने आपणे साधां को कह्या - इना बातां ते तो बूटेराय डरते नही । तुम आपणे घरकी तकडाइ करके भेख खोसण को जाणा । एसा न होवे तुमारे 'ताइ उलटी पड जावे । एह वात सुणके तथा विचार के भेख खोसण की तो सलाह हट गई । एह उपसर्गतो दुर होया ।
अब चरचा की सलाह होइ । तब ते साधु तथा उनके श्रावक इकठे होय के चरचा करणे लगे । तब मुखपत्तीकी चरचा चाली । ते तो सर्व कहे जे गोतमस्वामी के मुख को मुखपत्ती बंधी होइ थी । इना विचो बडा पंडीत कहावता था सो रतनचंद कहण लागा - एह वात जुठी हे । मिथ्या बोलते हो । कहिते हो - गौतमस्वामीने मुखपत्ती बंधी हे । गौतमस्वामीने मुखपत्ती नथी बांधी । मुहपत्ती तो पीछे बांधी हे आचार्यने परंतु कुछ गुण जाण के बंधी हे । हमारे को प्रमाण हे । एसा कहण लागा ।
१ भाग भाग कर । २ वूरा
किया हे ? ३ ताकत । ४ तर्फ ।
मोहपत्ती चर्चा * १९