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साध साधवी दस वीस आइ बेठे । तथा दो चार सय गृहस्थी आय बैठा । उना विषे एक साधु का नाम गंगाराम था । ते पिण आपको पंडित . मानता था । ते बोल्या - बूटेरायजी ! आप सूत्र मानते हो आचार्य का कह्या नही मानते । तब मैंनें कह्या - सूत्र बी मानतेहां अरु आचार्यका का बी मानतेहां । परंतु तुम आपणा मतलब कहो । तिवारे बोले -तुम आपणे गुरु का वचन प्रमाण करो । तिवारे मेंनें कह्या - मेरे को मेरे गुरु का वचन प्रमाण हे । तिवारे बोले- तुम नागरमल्ल का वचन प्रमाण करो । तिवारे मेंनें कह्या - हमारे को उनाका वचन प्रमाण हे । मेरे को नागरमल्लजीनें इम सीखाल्या हे - अरिहंतो मह देवो । जावज्जीवं सुसहुणो गुरुणो जिपन्नत्तं तत्तं । इअ संमत्तं मे गहियं ।। १ ।। ( इति गाथा) ए तीन तत्त्व मेरे को नागरमल्लजीने सीखाले हे । सो मेरे को प्रमाण हे । तथा कुदेव कुगुरु कुधर्म मेरे कों प्रमाण नहि । तिवारे गंगारामजी इम बोल्या- तुम इसके साथ बातां काहें को करते हो । जेकर मुखपत्ती बंध लेवे तो अछी बात है । नही तो इसका भेख खोंस लेवो । इत्यादिक असत विसत बोलणे लगे । तिवारे पट्यालेका भाइ वनातीराम तिना प्रत्ये बोल्या- तुम चरचा करते हो के लडाइ करते हो ? देख्या तुमारा साधुपणा ! आप ठिकाणे जाके बेठो । देख लइ तुमारी चर्चा ।
फेर गंगाराम आपणे साधां प्रते बोल्या - पटीयाले के लोक तो पीछे इसके रागी थे । उस राग के वास्ते कोइ श्रावक इसके 'गल नही पडता । अंबाले के श्रापक बी पीछे इसके रागी थे । पहीली तो श्रावकां को कहांगे- तुम बुटेराय के मुखपत्ती बंधाय देवो । ' तथा इसका भेख खोस लेवो । जेकर श्रावक काम कर देवेंगे तो अछी बात है । नही तो श्रावक तथा विष्नी मेरे घणे रागी हे । सर्व काम चंगा होय जावेंगा | इम सलाह करके आगे अंबाले जाय बेठे ।
हम बी एक दो दिन पटीयाले रहे के पीछे अंबाले गय । प्रेमचंदजी मेरे को बोल्या - इहां बी हमारे को उपसर्ग होवेगा । इस वास्ते हमारे को अंबाले बीच जाणा जोग नहि । चलो अंबाले ते बाहीर २ छावणी में जाय रहियें । तिवारे मेंने कह्या- हमारे को बाहीर २ जांणां अछा नहि ।
१ गले । २ नहींतो । ३ वैष्णव ।
मोहपत्ती चर्चा * १७