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घणा । तिसने, आपणे 'रिदे की वात मेरे को कह दीनी । मेनें उसकु घणा उपदेस दीया । परंतु उसके परिणाम खडे ना होय । मेरे कों बोल्या - स्वामीजी ! तुम मेरी ममता मत करो । मेरे परिणाम नहि खड़े होते । जो मेरे को भेख में राखोगें तो मेरे ते कोइ अकार्य हो जावेगा तो धर्म की तथा तुमारी निंद्या होवेगी । परंतु में तो निंदनीक होय गया हां । जे कर मेरे परिणाम फेर चडेगे तो आपका चेला आय बनुंगा ।
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इम कही आपणा पोथी पन्ना तथा भेख मेरे कों देके वंदणा नमस्कार करके कुंजरावाले कें उपाने विचो दो घडी के तडके मेरे पासो चला गया । लाहोर जाय के सिखा में नौकरी कर लीनी । एक वरस पीछे छुटी लेके मेरे दर्शन को आया । दस बीस दिन रही फेर चल्या गया । एतीयां बातां तो चरचा थी पहली होय गइयां ।
मेरा चौमासा एकलेका पसरुरमे था । उहां जीवंदेशाह का भाणजा पंद्रा सोला वरस की उमर का था उसका नाम मूलचंद था । उसने चरचा उठ्या पिछे हमारे पास दीक्षा लीधी । हम दोनो ने रामनगर
माया । फेर चोमासा उठे मूलचंद को कुंजरावाले भाइ कर्मचंदके पास बोल विचार सीखणे के वास्ते मै छोड गया । अरु मे पटयाले की तर्फ को गया । उहांते मेरे साथ एक टोल्या का साध अठारा उगणीस वर्स का अछा बुद्धिवंत तथा उसका नाम धर्मचंद था । उसनो मेरे पास दीक्षा लीनी । फेर में उस को साथ लेके कुजरावाले मे आया । तिवारे प्रेमचंद बी नौकरी छोड़ के कुजरावाले मेरे पास आया । जौणसा उसका पोथी पन्ना मेरे पास था सो उसनें माग्या । मैने उसको दे दीया । पोथी पन्ना लेकें मेरे को वंदना नमस्कार करके दादनषांनके पिंड मे चोमासा जाय करया । गृहस्थ भेख में दादनषांनको पिंड में भाइ को प्रतिबोध लीया । अरु मूलचंद नें चोमासा कुजरावले किया । हम दोनो ने रामनगर चोमासा कीया ।
संवत १९०३ के साल चौमासे उठे ते हमने मुखपत्ति का तागा तोड दीया । मगसिर के महीने । रामनगर सहीर पंजाब देसमे हे लहोर ते आसरे ४० कोस उत्तर दिसा की तर्फ हे । चंद्रभागा नदी के कांठे हैं ।
१ हृदय की । २ परिणाम । ३ दो घडी रात बाकी रही तब । ४ सैन्य में ।
मोहपत्ती चर्चा * १२