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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर - चित्तौड़ किला
___यह पाटबंध मंदिर चित्तौड़गढ़ किले पर गौमुख कुण्ड के पास स्थित है। यह पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर कहलाता है जबकि पार्श्वनाथ भगवान का कोई लाछण प्रतीत नहीं होता अतः इनको जिनेश्ववर भगवान ही कहना उपयुक्त होगा।
इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं
स्थापित है। 1. श्री पार्श्वनाथ (जिनेश्वर भगवान) की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस
पर कोई लेख नहीं है । 2. श्री कीर्तिधर मुनि (मूलनायक के दायें) की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची खड़ी
(काउसर्ग मुद्रा में ) प्रतिमा है । इसके उपर कीर्तिधर उत्कीर्ण है । 3. श्री सुकोशल मुनि (मूलनायक के बायें) की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची खड़ी
(काउसर्ग मुद्रा में ) प्रतिमा है । इसके उपर सुकोशल मुनि उत्कीण है ।
4. श्री सुकोशल मुनि के पास सिंहनी की मूर्ति है । यह सुकोशल मुनि के माता के जीव की है । यह सभी प्रतिमाएं एक ही पाषाण पर बनी हुई है । इनके उपर कन्नड़ भाषा में लेख है जिसमें केवल जिनेश्वर देव की स्तुति की है । बांयी ओर संस्कृत, प्राकृत भाषा में लेख है जिसमें इन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा वि. सं. 1408 में जिनभद्रसूरि का लेख है । इससे स्पष्ट होता है कि चित्तौड़ एवं दक्षिणी भारत का सम्बन्ध रहा है।
संकीर्ण मार्ग के दोनों ओर दीवार के आलिए में 19" x 21" व 11" x 11" पाषाणी पट्ट पर पादुका है – अस्पष्टता व अस्वच्छता के कारण लेख अपठनीय है व ज्ञात नहीं हो सका कि पादुका किसकी है। इसी मंदिर में एक गुफा बनी है जो महाराणा के महल से जुड़ी हुई है, ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा के मार्ग से जनाना (रानियां) आकर पूजन, दर्शन किया करती थी, वर्तमान में यहाँ पद्मिनी का चित्र है। प्राचीनकाल में यह सुकोशल मुनि की गुफा थी।
जिस प्रतिमा (सुकोशल मुनि) का वर्णन किया है, वह प्रतिमा पदमासन में है । जो गुफा पद्मिनी की कहलाती है, वह रानी पद्मिनी का महल शांतिनाथ भगवान के
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