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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, बड़ीसादडी
___ यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के बड़ीसादड़ी नगर में राजमहल के पास है। बड़ीसादड़ी चित्तौड़गढ़ से 80 किलोमीटर व उदयपुर से 95 किलोमीटर दूर स्थित है।यह मावली रेल्वेलाईन का अंतिम रेल्वे स्टेशन है। इस नगर का नाम इतिहास के पन्ने पर अंकित है नगर
करीब 1000 वर्ष प्राचीन है, महाराणा रायमल ने वि.की चौदहवीं शताब्दी में हलवद (काठियावाड़)के अज्जाजी जो मेवाड़ में आए, उनकी वीरता से प्रसन्न होकर बड़ीसादड़ी की जागीरी सुपुर्द की, यह प्रथम श्रेणी का ठिकाना रहा है।महाराणा प्रताप जब हल्दीघाटी के युद्ध में कठिनाई में आगये थे, उस समय बड़ीसादड़ी के ही झाला मानसिंह ने अपने प्राण देकर महाराणा प्रताप को बचाया। यह बलिदानकर्ता भीशासन काही अंग था।
मंदिर भी करीब सं. 1600 का निर्मित है। समय व प्राकृतिक आपदाओं से क्षति हुई तदुपरान्त 150 वर्ष पूर्व कोठारी परिवार ने मंदिर सम्पूर्ण कर शासक को सुपुर्द किया । शासक ने जैन समाज को बुलाकर सुपुर्द किया । उसी समय 20 (बीसा) व 10 (दशा) ओसवाल दोनों ही परिवार थे। दशा ओसवाल (छोटा साजन) कहा जाने लगा। मंदिर का पट्टा राजराणा द्वारा दिया गया । उपलब्ध नहीं है, तलाश की जानी है।
मंदिर एक ही रेखा में तीन भागों में (एक ही परिसर) विभाजित है और तीनों पर अलग-अलग शिखर हैं। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं - केन्द्र में (बीच में): 1. श्री आदिनाथ भगवान की
(मूलनायक) श्वेत पाषाण की 29" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 शाके 1796 का लेख
है।
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