Book Title: Mewar ke Jain Tirth Part 02
Author(s): Mohanlal Bolya
Publisher: Athwa Lines Jain Sangh

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Page 211
________________ प्रतापगढ़ का इतिहास प्रतापगढ़ राजस्थान के दक्षिणी भाग में 23.22 और 24.18 उत्तर अंक्षाश तथा 74. 29 व 75. पूर्व देशान्तर के बीच में स्थित है। पूर्व में यह राज्य मालवा क्षेत्र में आता था, इसलिए यहां पर पूर्व में मौर्य मालव, गुप्त व हुणो का राज्य रहा होगा। इसके पश्चात यशोवर्धन और वैस वंशी राजा हर्ष ने इस पर अधिकार किया इसलिए प्रतापगढ़ राज्य भी इसके अधिकार में रहा होगा लेकिन ऐसा कोई उल्लेख व शिलालेख उपलब्ध नहीं है । हर्ष के बाद राज्य में अव्यवस्था फैलगई और भीनमाल के रघुवंशी प्रतिहार ने इस पर अधिकार किया। प्रतापगढ़ के धोटा सी (धोटा वर्णिका) नाम में गांव के उपलब्ध शिलालेख जो संवत् 1003 का है जिसमें प्रतिहार राजा महेन्द्रपाल (दूसरा) का उल्लेख है इससे यह स्पष्ट है कि प्रतापगढ़ की स्थापना सं. 1003 से हुई । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इस राज्य की राजधानी देवलिया (देवगिरी, देवगढ़) रही है, वहाँ पर वर्तमान में प्राचीन महल (हवेली) विद्यमान है। पूर्व में देवलिया राज्य के नाम से प्रसिद्ध था । देवलिया पहाड़ी क्षेत्र रहा है और स्वास्थ्य के आधार पर महारावल प्रतापसिंह को अनुकूल नहीं रहा और वह मैदानी क्षेत्र चाहता था। समतल मैदान का क्षेत्र धोधरिया खेड़ा (डोडारिया का खेड़ा) के स्थान पर प्रतापगढ़ कस्बा बसाया। यहां पर राजधानी स्थिर होने से प्रतापगढ़ राज्य कहलाया। मालवा क्षेत्र पर सर्व प्रथम दिल्ली के सुल्तान शम्सुदीन अल्तमस ने वि. सं. 1283 में आक्रमण किया तदनुपरांत नसिरुदीन ने उज्जैन व अन्य स्थानों को अपने अधिकार में लिये। इसके बाद अलाउदीन फिरोजशाह खिलजी ने वि. सं. 1361, (अल्लाउदीन खिलजी) में, मुहम्मद तुगलक ने वि. सं. 1400 में, मुहम्मद शाह तुगलक ने सं. 1446 में मालवा के कुछ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिए। तुगलक वंश के कमजोर होने पर दिलावर खाँ को स्वतन्त्र रूप से मालवा का सुल्तान सं. 1458 में घोषित किया। इधर मेवाड़ पर महाराणा कुम्भा के राज्य सम्भालने के बाद विभाजित की गई जागीरी से उनका सोतेला भाई सेरसिंह (क्षोमकर्ण) विरोध स्वरूप मेवाड़ छोड़कर मालवा की ओर आकर गुजरात के सुल्तान के साथ मिलकर मेवाड़ के कुछ क्षेत्र पर आक्रमण किये लेकिन सफलता नहीं मिली। इधर महाराणा कुम्भा (मेवाड़) के पुत्र उदा ने अपने पिता की हत्या कर स्वयं ने राज्यभार सम्भाला। ऐसे समय में से क्षोमकर्ण ने उदा से मिलकर मेवाड़ के क्षेत्र पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में क्षोमकर्ण की मृत्यु हो गई । इस प्रकार से प्रतापगढ़ में प्रथम सिसोदिया वंश का झण्डा लगाया। इसके बाद सिसोदिया वंश के ही शासक बने रहे। Education International For Pe Co193hate Use Only .www.jainelibrary.org

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