Book Title: Mewar ke Jain Tirth Part 02
Author(s): Mohanlal Bolya
Publisher: Athwa Lines Jain Sangh
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 mn परस्परोग्रहो जीवानाम् किला मन्दिर, चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग-2 Mewar ke Jain Tirth Part II The Jain Pilgrim Centres of Mewar संकलन, लेखन एवं सम्पादन मोहनलाल बोल्या H Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ की धरती शुरवीरों और धर्मवीरों की धरती है.... भामाशाह और राणा प्रताप ने इस धरती की शान बढ़ाई है तो मेवाड़ में स्थापित प्राचीन तीर्थमालाओं, अतिप्राचीन तीर्थो एवं प्रभावक प्रतिमाजीओं ने इस धरती को विश्व की एक अनुठी धरोहर बनाई है... आओ, इस ग्रंथ के जरिए मेवाड़ के तीर्थस्थलों की भावयात्रा कर जीवन को धन्य धन्य बनाएं आचार्य हेमचंद्र त्रि आचार्य विजयहेमचंद्रसूरीश्वर जी म सा. Jain Education. International For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग2 SANILLSXCLUSIC श्री अद्भुत जी तीर्थ, नागदा (उदयपुर) श्री अर्ह श्री आदिनाथायः नमः।। ॥ संकलन, लेखन एवं सम्पादन मोहनलाल बोल्या 37, शांति निकेतन कॉलोनी, बेदला-बड़गांव लिंकरोड़, उदयपुर-313011(राजस्थान) दूरभाष : 0294-2450253, मोबाइल : 94613 84906 For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 प्रकाशक: श्री अठवालाइन्स जैन संघ तथा सेठ फूलचंद कल्याणचंद ट्रस्ट, तपागच्छ संघ, सूरत (गुजरात) संकलन, लेखन एवं सम्पादन : श्री मोहनलाल बोल्या उदयपुर (राज.) सर्वाधिकार सुरक्षित : लेखक के अधीन संस्करण: सन् 2011 मूल्य: 200/-रूपये मुद्रक: कला स्तम्भ जैन मंदिर चित्तौड़गढ़ किला Jan Education International Fon Personal & Private. Use Only Mondiainelibrary.org Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 समर्पण सभी आचार्य प्रवर के जीवन को पढ़ा, देखा व सुना उनकी सौम्य मूर्ति को यह ग्रन्थ समर्पण कलाकopan FolkaGSETOGENO POSTEOHDCORociCONTROUPCOMIRCONORS RADELETEGORIENDOCTOR PRERRICORRECOSPERIEOSE ROWEREONIGION DATED प.पू. सिद्धान्तमहोदधि आचार्यदेव श्वरजी महाराज EROS DE प.पू. मोक्षा मार्ग के सच्चे सारथी आचार्यदेव श्रीमद् विजयभुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज मत SOCCORDE 06 PRASANGECTROGRESO ROHSICOMEOPOROTICORICHES POOROSCORIANDGAON SOMEONE-COMMEDIATE G ORPICORPORIES लाल लाल 302 प.पू. समतासागर पन्यास प्रवर श्री पद्मविजयजी गणिवर्य लाल प.पू. प्राचीन आगम शास्त्रोद्धारक आचार्यदेव श्रीमद् विजय हेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराज For Personal pelle y se Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 प्रस्तावना प्रगटे परम निधान प.पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजयकल्याणबोधिसूरीश्वरजी महाराज छोटा सा पिन्टू, स्कूल से घर आया, सीधा आलमारी के पास गया, अपना गल्ला निकालकर बैठ गया, बड़े आनन्द से रूपये गिनने लगा, ईनाम के, प्रभावना के, भेंट के.... उसके अपने रूपये थे, गिन कर खुश होकर वापस रख दिये। रात को 9.30 बज गये, अन्तिम ग्राहक ने बिदाई की, दुकानदार कुन्दनमलजी ने शटर गिरा कर सारे दिन का मुनाफा गिन लिया। हँसते मुँह घर की ओर चल दिये। 60 साल के मिश्रीमलजी.....बैंक में लॉकर की चाबी लेकर निकल पड़े। बैंक में जाकर सब पूंजी देख कर फिक्स डिपोजिट, नकद, जेवर, शेयर सब कुछ जी भर के जाँच लिया। प्रसन्नतासे वापस लौट आये। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी जन अपने वैभव के प्रति अति जागृत होते है। कोई ऐसा नहीं सोचता कि 'ठीक है, जितने पैसे हैं, उतने ही रहने वाले हैं, निरीक्षण से वृद्धि भी नहीं होगी और उपेक्षा से हानि भी नहीं होगी। एक सत्य यह है कि प्रेम पात्र वस्तु का निरीक्षण किये बिना चैन न आता, तो एक सत्य यह भी है कि मूल्यवान वस्तु की उपेक्षा हमें उससे वंचित कर देती है। ज्ञातव्य है कि भौतिक वस्तु से वंचित रहने में इतना नुकसान नहीं है जितना नुकसान आध्यात्मिक संपति से वंचित रहने में है। हमारी आध्यात्मिक संपति है गुण वैभव एवं गुणवैभव की प्राप्ति हेतुधर्म स्थान। __ पैसा, परिवार, घर, दुकान, गाड़ी इन सब पर हमारा ममत्व भाव है, यह सब हमें मेरा' लगता है। अत: हम इसका पूरे दिल से देखभाल करते रहते हैं। हम इसे अपना कर्तव्य भी समझते हैं। किन्तु ज्ञानी भगवंत कहते है इस ममत्वभाव से ही तू संसार में भटक रहा है। मोह राजा ने अहंकार एवं ममकार के धागेसे ही तुझे कठपुतली बना रखा है। अहं ममेति मन्त्रोदयं मोहस्य जगदान्ध्यकृत । मोहराज का एक ही मंत्र है - मैं और मेरा इसी मंत्र ने समग्र विश्वको अंध बना दिया है। (ज्ञानसार4-2) Foersom & Private Use Only (IV) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसार से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है - हम अहं मम से मुक्त हो जाये किन्तु यह कैसे संभव हो सके। इसका भी एक उपाय है कि हम हमारे ममत्वभाव को प्रशस्त क्षेत्र में केन्द्रित कर आज तक हम रटते रहे घर मेरा, परिवार मेरा, आज से रटण का प्रारंभ करे मंदिर मेरा, भगवान मेरे....... बस, यही रटण हमें शास्वत सुख का स्वामी बना सकता है। आओ, यह अवसर है हमारी आध्यात्मिक संपति के प्रति जागृत होने का, हमारे पूर्वजों सृजन किये हुए अलौकिक वैभव के प्रति उजागर होने का। यदि आप जैन है, सच्चे दिल से जिनशासन के प्रति श्रद्धावान है, आपका अंतर यदि भगवान महावीर का अनुयायी है तो आपको भी इन धर्मस्थानों में आपकी निजी संपति का दर्शन होगा। इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ आपको अपूर्व आनंद प्रदान करेगा। आपका हृदय अहोभाव से परिपूर्ण होगा, मन प्रसन्नता से झूम उठेगा। भौतिक संपति के राग ने मम्मण सेठ को सातवीं नर्क में धकेल दिया और आध्यात्मिक संपति के अनुराग ने शालिभद्र जैसे कई भव्यात्माओं को दिव्य सुख की अनुभूति कराई, कहाँ अनुराग करना चाहिये, यह आप ही तय कर लीजिए । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 ध्यान में रहे, वास्तविक अनुराग उसे ही कहते हैं, जहाँ उपेक्षा का नाम भी न हो, जहाँ अनुराग पात्र को देखे बिना एवं उसकी देखभाल किये बिना चैन ना मिले। हमारी इस आध्यात्मिक संपति का अनुराग एवं अनुपालन ही हमारा श्रेष्ठ सौभाग्य है । शास्त्रकार परमर्षियों ने एक रेड सिग्नल बनाया है जो अपनी आध्यात्मिक संपति की उपेक्षा करता है, वह अपनी भौतिक संपति भी खो बैठता है। तारक तत्वों की आराधना आबादी की हेतु है तो तारक तत्वों की उपेक्षा बर्बादी का अमोद्य कारण है। उदयपुर के श्रद्धारत्न लेखक श्री मोहनलालजी बोल्या ने गाँव गाँव घूम कर हमारी आध्यात्मिक संपति की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी एवं छवियों का यह सुंदर संग्रह किया है। आओ, पहले इसका परिचय करें, फिर प्रेम करें, फिर पालन करें..... और इसके द्वारा प्रसन्नता के स्वामी बने.....परंपरा से परमपद के आसामी बने । जिनाज्ञा विरुद्ध लेखन किया हो तो मिच्छामी दुक्कड़म् आचार्य विजय कल्याण बोधिसूरि. V For Personal &ed se Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 शुभाशीर्वाद प.पू. पन्यास प्रवर अपराजितविजय जी महाराज सा. गणिवर्य धर्मप्रेमीणमोकार मंत्रके उपासकश्रीमोहनलालजीबोल्या, धर्मलाभ आशीर्वाद । आपने पूर्व में उदयपुर एवं राजसमन्द जिले के इतिहास एवं समस्त मंदिरों के इतिहास की कलात्मक विवेचना प्रदर्शित की । जिसमें आपका पुरूषार्थ ही प्रमुख है ।आपके स्वास्थ्य की प्रतिकूलता होते हुए भी आपने पूर्व की पुस्तकों का संकलन व प्रकाशन किया ।अब आप मेवाड़ के अछूते क्षेत्र चित्तौड़गढ़ व प्रतापगढ़ जिले के समस्त मंदिरों की विस्तृत जानकारी के साथ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग-2 का प्रकाशन करने जा रहे हैं, इस हेतु आप साधुवाद के पात्र है आपका यह कार्य अनुमोदनीय है । मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक से भी पूर्व की भांति समाज को नई जानकारियां प्राप्त होगी। भविष्य में आपको जैन साहित्यिक इतिहासकार के नाम से पहचाना जाएगा ऐसी मेरी मान्यता है। आपकापुरूषार्थसार्थकवसफल बने, इसी मंगलकामना केसाथ... ६. अपराति मंगलमनीषा प.पू. श्री निपुणरत्न विजय जी महाराज सा., गणिवर्य श्रीमोहनलालजीबोल्या, सादर धर्मलाभ। आपने पूर्व में उदयपुर नगर, देलवाड़ा के प्राचीन तीर्थ व मेवाड़ के उदयपुर-राजसमन्द जिले के समस्त मंदिरों के इतिहास, प्रतीमा जी के बारे में विस्तृत जानकारी देकर समाज को वास्तविकतासे परिचित करवाया है। पुनः अभी आप चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ जिलों के समस्त मंदिरों व प्रतिमाओं के इतिहास सहित समस्त जानकारी का प्रकाशन करने जा रहे हैं । इससे मेवाड़ के प्राचीनतम तीर्थो की समस्त दुर्लभजानकारियों कासंग्रह हो पाएगा। आपका यह कार्य अनुमोदनीय है ।आपकी नवीन पुस्तक जन-जन के हाथों में पहुंचे व आपका परिश्रम सफल हो, यही मंगलमनीषा... किमर ८०२-- शुभ-संदेश अध्यक्ष - श्री जैन श्वेताम्बर महासभा, उदयपुर श्रीमान्मोहनलालजीसा.बोल्या, 5 सादर जय जिनेन्द्र। आपने इस नवीन पुस्तक के माध्यम से लेखन व प्रकाशन की ओर एक और कदम बढ़ाया है। पूर्व लेखन की भांति इस पुस्तक में भी आपने जैन साहित्य का शोधकर इतिहासको ध्यान में रखकर जैन समाज को सत्य का ज्ञान कराया है। पूर्व में भीआपने कई पुस्तकों केमाध्यम से जैन साहित्य के सम्बन्ध में लेखन प्रकाशित किये हैं। आपकी पुस्तकों को पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुआ इससे मुझे काफी जानकारी प्राप्त हुई। इसी के आधार पर मैं पुराने दस्तावेजों की खोज कर रहा हूँ।आपका स्वास्थ्य अनुकुल नहीं रहने पर भी इतना कार्य कर रहे हैं, इसकी अनुमोदना करते हुए आपआत्मकल्याण में आगे बढ़े इसीशुभकामनाओं के साथ... Bad तेजसिंह बोल्या For so w ate Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 ग्रंथ के द्रव्य सहायक प. पू. प्राचीन आगम शास्त्रोद्धारक वैराग्य देशना दक्षा आचार्य देव श्रीमद् विजय हेमचंद्रसूरीश्वरजीमहाराज गया एवं आचार्यदेव श्रीमद् विजय कल्याणबोधिसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से श्री अठवालाईन्स जैन श्वेताम्बर मू. तपा. संघ तथा सेट फूलचंद कल्याणचंद ट्रस्ट ने ज्ञाननिधि से इस ग्रंथ के लिए महत्वपूर्ण लाभ लिया है.... खूब खूब अनुमोदना for persona VIL (VIlse Only For Personalb elise Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 संपादकीय नगराणां भूषणार्थ देवानां निलयाय च । लोकानां धर्म हेत्व क्रीडार्थ सुरयोषितम् ।। देव मंदिर के प्रसादों की रचना नगर की शोभा, देवों का निवास, लोगों की धर्म वृद्धि और देवांगनाओं की क्रीड़ा के लिए होती है। प्रसाद प्राणी मात्र का आश्रय स्थान, वीर पुरूषों की कीर्ति तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति में कारण भूत तथा सर्व इच्छाओं को देने वाला होता है। गीत नृत्य और वाद्यों से सदैव ही गुंजायमान, दर्शनीय और मनोहर. नाना प्रकार की ध्वजाओं-पतकाओं तथा तोरणों से अलंकृत प्रासादों (मन्दिर) नगर, राजा तथा प्रजा आदि के सर्वकाल सुख शान्ति देने वाले, सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति करने वाले तथा नित्य कल्याण करने वाले होते सुन्दर देवालय, किसी भी देश के गौरव व शोभा को बढ़ाने वाले होते हैं, ये नगर के अलंकार है। इन सुंदर देवालयों की प्राचीनता अक्षण रूप से बनाए रखना आवश्यक है। इन्हीं प्राचीनता के आधार पर जैन धर्म का अस्तित्व है, आज हमारे तीर्थकरों को संदेहात्मक कहा जाता है इसलिए भी आवश्यक है कि , शिलालेखों को सुरक्षित रखा जावे। जिनालय __मेरी अभिलाषा है......देवाधिदेव..............अरिहन्त देव आप तो चिंतामणी तुल्य है, चिन्त्य एवं अचिन्त्य सर्व पदार्थो को प्रदान करने के लिए आप समर्थ है... है..प्रभु...मुझ पर अनुग्रह करें... आपकी वंदना से सुविशुद्ध, सम्यग्बोधि जीवन तथा मृत्यु में समाधिशुद्ध परिणित की आत्मानुभुति तथा परम पद मुझे प्राप्त हो । यही मेरी अभिलाषा.. (मोहनलाल बोल्या) For VIII Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 अनुक्रमणिका क्र.सं. विषय पृ.सं. संदेश |-VI VIII XIII-XIV XV 1-10 11-17 18-19 20-21 22-23 24 25-26 27-28 29-32 33-39 40-41 16. संपादकीय लेखक की कलम से चित्तौड़गढ़ नक्शा मेवाड-चित्तौड़-जैन धर्म तहसील-चित्तौड़गढ़ श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर (सातबीस मंदिर), चितौड़गढ़ किला श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, (सातबीस मंदिर परिसर) श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर (सातबीस मंदिर परिसर) श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर, चितौड़ किला श्री शांतिनाथ भगवान का (चौमुखा जी) मंदिर, चित्तौड़ किला श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, चित्तौड़ किला श्री महावीर भगवान का मंदिर, चितौड़ किला सातबीस मंदिर व अन्य मंदिर से सम्बन्ध में उपलब्ध लेख श्री हरिभद्र सूरि स्मृति मंदिर, चित्तौड़गढ़ श्री महावीर भगवान का मंदिर, चित्तौड़गढ़ शहर श्री चितामणि पार्श्वनाथ का मंदिर श्री आदिनाथ भगवान का (यति जी) मंदिर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, गिलुण्ड श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, घटियावली । श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर सेंती, चित्तौड़गढ़ श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, चित्तौड़गढ़ (रेल्वे स्टेशन) श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, घोसुण्डा श्री अजितनाथ भगवान का मंदिर, सावा तहसील-गंगरार श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, गंगरार तहसील-बेंगू श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, बेगू (शहर) श्री महावीर भगवान का मंदिर, बेंगू (किला) श्री रत्नप्रभसूरि मंदिर श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, बस्सी श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, पारसोली श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, बिछोर (भिचोर) श्री अरनाथ भगवान का मंदिर, नंदवई तहसील-मैंसरोड़गढ़ श्री सुविधिनाथ भगवान का मंदिर, अणुनगरी रावतभाटा श्री केसरियानाथ भगवान का मंदिर, भैसरोड़गढ़ श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, बस्सी (आम्बा) 20. 21. 43-44 45-46 47-48 49-50 51-52 53-54 55-56 57-58 59-60 61-62 63-64 65-66 67-68 69-70 71-72 73-74 Jhin Education International For Person IXald Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 अनुक्रमणिका विषय क्र.सं. पृ.सं. 37. 75-76 77-78 79-80 81-83 84-85 40. 41. 86-88 89 90-92 93-94 95-96 97-98 99-100 100 46. 48. 101-104 105-106 49. तहसील-भदेसर श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, भदेसर श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, भादसोड़ा श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, बानसेन श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, मण्डफिया (सांवलियाँ) श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, आसावरा तहसील-राशमी श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, राशमी श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, जाश्मा श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, पहुँना श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, आरणी श्री नेमिनाथ भगवान का मंदिर, डिण्डोली श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, भीमगढ श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, बारू श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर, रूद तहसील-बड़ीसादड़ी श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, बड़ीसादड़ी श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, निकुम्भ तहसील-डूंगला श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, डूंगला श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, अरनेड़ श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, मंगलवाड़ श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, चिकारड़ा श्री महावीर भगवान का मंदिर, मोरवन श्री कुंथुनाथ भगवान का मंदिर, संगेसरा तहसील-कपासन श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, कपासन श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, कपासन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, हथियाणा श्री वासुपूज्य भगवान का मंदिर, उमण्ड श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, दांता (नानेश नगर) श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, गौराजी का निम्बाहेडा श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, लांगच श्री आदिश्वर भगवान का मंदिर, आकोला श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, आकोला (ताणा) श्री करेड़ा (करहेडक) पार्श्वनाथ भगवान, भूपालसागर (चित्तौड़गढ़) श्री सुपाश्वनाथ भगवान का मंदिर, सिंहपुर 107-108 109-110 111 112 113-114 115-116 58. 61. 117-118 119-120 121-124 125-126 127 128-129 130 131-132 133-134 133-154 155-156 63. 65. 66. For persyal a Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 अनुक्रमणिका क्र.सं. विषय पृ.सं. 68. 157-159 160-161 162-163 164 164 165-166 166 167-168 168 169-170 171 172-173 174 175-176 177-178 179-180 181 तहसील-निम्बाहेड़ा श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) भगवान का मंदिर, निम्बाहेड़ा श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, पीपली चौक, निम्बाहेड़ा श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, पीपली चौक, निम्बाहेडा श्री पादुका मंदिर पीपली चौक, निम्बाहेड़ा श्री जिनकुशलसुरि दादावाड़ी मंदिर, निम्बाहेड़ा श्री सुमतिनाथ भगवान का मंदिर, निम्बाहेड़ा श्री श्रेयांसनाथ भगवान का मंदिर, निम्बाहेड़ा श्री कुंथुनाथ भगवान का मंदिर, कचरिया खेड़ी श्री सुपार्श्वनाथ का मंदिर, रेल्वे फाटक के पास, निम्बाहेड़ा श्री महावीर भगवान का मंदिर, कानेरा (घाटा) श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, मेलाना । श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, केली (निम्बाहेडा) श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, बांगराड़ा (मामादेव) श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, रानीखेड़ा (निम्बाहेड़ा) श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, विनोता (निम्बाहेड़ा) श्री कुंथुनाथ भगवान का मंदिर, सतखण्डा श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, सतखण्डा श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, मेवासा श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, मांगरोल । श्री वासुपूज्य भगवान का मंदिर, अरनोदा श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, लसड़ावन श्री वासुपूज्य भगवान का मंदिर, बाड़ी (निम्बाहेड़ा) पूर्व में प्रकाशित "मेवाड़ के जैन तीर्थ' भाग-1 पुस्तक के संशोधन उदयपुर नगर एवं उदयपुर जिले में निर्मित नूतन जैन श्वेताम्बर मंदिर शास्त्रोक्त जैन प्रतीक चिन्ह प्रतापगढ़ जिला प्रतापगढ़ का इतिहास प्रतापगढ़ मानचित्र तहसील-प्रतापगढ़ श्री महावीर भगवान का मंदिर (दादावाड़ी), प्रतापगढ़ श्री सुमतिनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर (गुमान जी का मंदिर), प्रतापगढ़ श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ 182 183-184 185-186 187-188 189 89. 190 191 90. 91. 192 92. 193 194 195-197 198-200 201-203 204-207 208 209-215 216-217 99. For Personal Tale Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 अनुक्रमणिका क्र.सं. विषय - पृ.सं. 101. 104. 105. 218-219 220-221 222-224 225-226 227-230 231-233 233 234-235 236-237 238-239 240-241 242-244 245-247 248-249 108. 110. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ 102. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ 103. श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, देवगढ़ 106. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, अमलावद 107. श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर, खेरोट श्री ऋषभदेव (आदिनाथ) भगवान का मंदिर, बरडिया 108 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, कनोरा 109. श्री महावीर भगवान का मंदिर, पीलू श्री श्रेयांसनाथ भगवान का मंदिर, रठांजना 111. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, बोरी 112. श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, धमोतर 113. श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, बारावरदा तहसील-अरनोद 114. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, अरनोद 115. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, अरनोद 116. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, रायपुर (अरनोद) 117. श्री आदीश्वर भगवान का मंदिर, सांखथली थाना 118. श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, दलोट श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, सालमगढ़ श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, निनोर 121. श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, निनोर 122. श्री पद्मावती देवी का मंदिर, निनोर 123. श्री कुंथुनाथ भगवान का मंदिर, बड़ी सांखली 124. श्री महावीर भगवान का मंदिर, मोहड़ा तहसील-छोटीसादड़ी 125. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, रमावली 126. श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, छोटीसादड़ी 127. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, छोटीसादड़ी श्री आदिनाथ भगवान का (घर देरासर) का मंदिर, छोटीसादड़ी श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, कारूण्डा 130. श्री नेमिनाथ भगवान का मंदिर, जालोदा जागीर 131. श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर, चान्दोली 132. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, केसुन्दा 133. भावी चौबीसी व वर्तमान चौबीसी के तीर्थंकर चिन्ह 134. संदर्भित पुस्तकों की सूची 119. 250-251 252 253-254 255-256 257-258 259-261 262-263 264-265 265 266-267 268-269 120. 270-272 273-274 275-277 128. 277 129. 278 279-280 280 281-282 283 284 XII Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 लेखक की कलम से भारत की संस्कृति विश्वविख्यात है, भारत में जैन संस्कृति भी बहुत प्राचीन है, संस्कृति के साथ जैन धर्म आदिकालीन है। जहाँ लोग श्रद्धा से ओत-प्रोत हैं, श्रद्धा भारत की आत्मा है। इसी कारण भारत में स्थान-स्थान पर मंदिरों का निर्माण हुआ है। अनेक ऐसे मंदिर हैं जो भूमिगत या खण्डहर हो गये हैं लेकिन उस पर अंकित शिल्प व शिलालेख आज भी अतीत की गाथा बतलाते हैं। भगवान श्री आदिनाथ ने समाजीकरण, भगवान महावीर की अंहिसा, राम की मर्यादा, बुद्ध का मध्यम मार्ग व कृष्ण का कर्मयोग राष्ट्र की आधार शिला के रूप में समाहित की । जैन धर्म का मुख्य प्रभाव स्थल भारत ही है इसी कारण भारत पवित्रतम्य भूमि कहलाई है। इसी भूमि पर सभी तीर्थकर, चक्रवती, बलदेव, वासुदेव व प्रतिवासुदेव उत्पन्न हुए, जिनके प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए तीर्थ, मंदिर व शास्त्रों के निर्माण हुए। मेवाड़ की यह भूमि पूजनीय व पावन है, जहाँ पर जैन धर्म के अतिरिक्त भी मीरा का ध्यान, महाराणा प्रताप की शौर्यता, पद्मनि का जौहर, श्री हरिभद्रसूरि जी के शास्त्र व टीकाएं कर्माशाह दोशी की कर्तव्य परायणता देखने को मिलती है। मेवाड़ के मंदिरों की वास्तुकला जो दिखाई देती है उससे उसकी प्राचीनता की पहचान होती है। जिससे प्राचीनता को सुरक्षित रख सकें। पूर्व में प्रकाशित पुस्तकें उदयपुर के जैन श्वेताम्बर मंदिर, मेवाड़ का प्राचीन तीर्थ देलवाड़ा जैन मंदिर, मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग-1 में उदयपुर, राजसमन्द जिले के सभी मंदिरों को इतिहास के पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है, तथा इन प्रकाशित पुस्तकों में अपने विचार व्यक्त किये हैं उनको स्थाई रखते हुए अब इन विचारों को भी समावेश करता हूँ। परमात्मा का नाम, परमात्मा की मूर्ति व परमात्मा के मंदिर ये सब परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करने के माध्यम हैं। यह सम्बन्ध अन्तर प्रीति से होता है। यदि यह सम्बन्ध हो जाता है तो दुनिया के सारे सम्बन्ध नीरस हो जाते हैं और समग्र जीव-सृष्टि से मैत्री भाव का सम्बन्ध स्थापित होगा। सभी चिन्ताएं समाप्त होगी, सारे भय मिट जाएंगे, मन प्रफुल्लित होगा, प्रसन्नता कभी नष्ट नहीं होगी । लेकिन कभी-कभी मुनष्य यह सोचता है कि वह प्रतिदिन मंदिर जाता है इसलिए ईश्वर से परिचित हो गया है मंदिर तो केवल परमात्मा की दृष्टि में प्रवेश करने का मात्र द्वार है इसलिए वहाँ भक्ति में होना ही परमात्मा की दृष्टि में प्रवेश हो सकते हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक मेवाड़ के जैन तीर्थ (चित्तौड़, प्रतापगढ़ जिलों) के सभी मंदिरों का इतिहास, प्रतिमा का आकार - प्रकार व लेखों का संकलन कर प्रस्तुत किया जा रहा है। मेरी यह भावना है कि मेवाड़ के जैन धर्म की प्राचीनता जन-जन तक पहुँचे व शोधकर्ता इस कार्य को आगे बढ़ाए। अब मेवाड़ के जिला भीलवाड़ा के मंदिर का For Personal & Private Use Only VILL www.jalnelibrary.org. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इतिहास संकलन करना शेष रहता है, यदि सभी का सहयोग रहेगा तो इस कमी को पूरी कर मेवाड़ के सभी जैन मंदिरों का इतिहास सुरक्षित रह सकेगा। प्रस्तुत पुस्तक में उल्लेखित तीर्थो का सर्वेक्षण संकलन कार्य निम्न संस्थाओं, व्यक्तियों से सहयोग प्राप्त हुआ, उनका आभार। 1.श्रीमती सुशीलाबोल्या 2. श्रीमती (डॉ.) विमलाजी दोशी 3.श्री दिलीपजी चौरड़िया 4. श्री श्रीमाल सेठ अचलगच्छीय मूर्तिपूजक श्री संघ, उदयपुर 5. श्री विरेन्द्रकुमारजी सिरोहिया 6. श्री दयालसिंहजी नाहर 7. श्री राजेन्द्र जी दलपतसिंह जी दुग्गड़ 8. श्री भोजराजजी लोढ़ा 9.श्रीमती निशी खमेसरा (मुम्बई) 10. श्रीमती नीरू लोढ़ा 11. श्री हीरालाल जी दोशी, सरंक्षाक-श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघ, चित्तौड़गढ़ 12. श्री कन्हैयालालजी महात्मा-श्री सातबीस देवरीजैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट, चित्तौड़गढ़ 13. श्री राजेन्द्र जी कछाला, चित्तौड़गढ़ 14. प. पू. मणिप्रभ विजय जी म. सा. की प्रेरणा से संघवी श्री चम्पालालजी जीवराजजी, नि. गोदन हाल करसापुर (आंध्रप्रदेश) 15. श्री तेजसिंह बोल्या, अध्यक्ष-श्री जैन श्वेताम्बर महासभा, उदयपुर 16. श्री महावीर साधना एवं स्वाध्याय समिति, अम्बामाता, उदयपुर 17. सर्वेक्षण कार्य में श्री हरकलाल जी पामेचा नि. देलवाड़ा का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ, उनका आभार जिन आज्ञा से विपरित प्रतीत हो तो मिच्छामी दुक्कड़म् (मोहनलाल बोल्या) For XIV rivale Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 61 सागानेर बूंदी मारमी 6 मनल चारला रूब -गंगरार भवन बस्सी आंवलहड़ा पीपलदा. 76 लूनरा उसराल ASोछारी भीलवाड़ा भी ल वा डा. गुड़ला माण्डगढ़ नवारिया सहाड़ा सादस. बिजोलियां 67 सिहानामा पहुना लाडपुरा सोनियाना. भांपी/ पारसोली बूध बिछोर कुवालिया अरणीपी राजगढ़ रेलमगरा राशमी चोगावाड़ी (सिंगारी) काटुदा टुकराई. कोटा भीमगढ़ राजसमंद कांती बेंगू नन्दवाई बोराव 9 दिनडोली श्रीपुरा सिंहपुर पुठोलीमा जनादिता समालया. •चेची भंसरोड़गढ़ धामाना नागपुरा बामनी जाशमा हेरिया/ सेमलपुरा गोराजी का जिम्बाहेड़ा वितमाटा. राजगढ़ 'उमारचा पांडोली चित्तौड़गढ़ चेनपुर मुगांना दांता अणुशक्ति नगर बड़ोदियाककराव भोपालसागर घोसुण्डा सेमेवासा -लाडपुरा राणा हथियाना घटियावली छावनीया सादड़ी पीपलवास NS बोवरना। खारनाई देवपुरा प्रवप सागर पालचा | एकलिंगपुरा निलोद उमद सूरपुरे सावा - सतखाण्डा , गोलाप्रेमपुरा- गुंजली उदपुरा जाओडा कुआखेड़ा बांगराड़ा अकोला अम्बा . बड़ावली जेवाहरनगर करजाली भादसोड़ा बानसेन मांगरोल कनेरा -अरनोदा बारखेड़ा ताणा भा लसहावन ता संगेसरा फलवा मेलाना -नंगावाली निम्बाहेडा केली वानो चिकारड़ा माडोरिया. खोदीप. रानीखेड़ा। निकुम्भ मांडला चरणों डूंगला मानुजा बिनोता कोटडी बड़वाल अलो भाटोलीपिंड "बाड़ी गांधी सागरट मध्य प्रदेश --सेमलिया। कनोरा बड़ीसादड़ी।/कारजू छोटी सादडी शम्परा गिलुङ For Persone X Vite Use Only देवपुरा' बावरीखेड़ा चित्तौड़गढ़ जिले के जैन मंदिरों का मानचित्र काम मडफिया भदेसर असावडा मंगलवाइ पालोद नीमच बोहेडा बंसी मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मुन्जवा । अम्बावती सीतामाता लालपुरा अभयारण्य सीयाखेड़ी मधुरा तालाब प्रतापगढ़ उद य र -खजूरी झालावाड़ ग्यासपुरे पैमाना धमोतर 10 किमी Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 X40701271109##11 श्री पद्मावती माता सौजन्य : श्री जैन श्वेताम्बर महासभा, उदयपुर For Persy XVI 3212203 ate Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मेवाड़ राज्य का इतिहास मेवाड़ राज्य वर्तमान में राजस्थान के दक्षिण में 23.49 डिग्री से 25.28 डिग्री उत्तरी अक्षांश व 73.01 डिग्री से 75.49 डिग्री तक देशांतर के बीच स्थित है। मेवाड़ राज्य का पृथक से एक इतिहास रहा है। मेवाड़ की धरा प्राचीन धरोहर से ओतप्रोत रही है जो आज भी शिलालेख, पट्टे (ताम्रपत्र) व अभिलेखों से प्रमाणित है। मेवाड़ की सीमा विशाल क्षेत्र में स्थित है जिसके लिए मेवाड़ के जैन तीर्थो को पृथक-पृथक भागों में विभाजित किया है जो निम्न पुस्तकों में किया है - 1. उदयपुर नगर के जैन श्वेताम्बर मंदिर एवं मेवाड़ के प्राचीन जैन तीर्थ । 2. मेवाड़ का प्राचीन तीर्थ देलवाड़ा जैन मंदिर 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ (उदयपुर एवं राजसमन्द जिलों के जैन श्वेताम्बर मंदिर का इतिहास) अब आपके हाथों में मेवाड़ के जैन तीर्थ (भाग-2) जिसमें चित्तौड़गढ़ व प्रतापगढ़ जिले के सम्पूर्ण जैन श्वेताम्बर मंदिरो का इतिहास लेखो में संकलन कर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है। चित्तौड़गढ़ मेवाड़ का प्रमुख क्षेत्र एवं राजधानी रहा है। चित्तौड़गढ़ का वर्णन करने से पूर्व मेवाड़ को विस्तृत रूप से देखना होगा। प्राचीनकाल में मेवाड़ की राजधानी मझमिका नगरी रही है जो चित्तौड़ नगर से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित है जो आज भी नगरी के नाम से विख्यात है जिसे आज प्राचीन खण्डहरों में देखे जा सकते हैं। मेवाड़ राज्य में मेर-मेद नामक जाति रहती थी और इसी आधार पर इसको मेदपाट कहा गया है। मेदपाट संस्कृत का शब्द है, इसके बारे में यह भी उल्लेख है मेद जाति के लोग शाकढिपीय ब्राह्मण के नाई थे जो ईरान की तरफ (शकस्तान) से आना बतलाते हैं। मेवाड़ की प्राचीनता के बारे में कई सर्वेक्षण किये गये हैं। इसी नगरी के स्थल पर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण करते हुए अपना डेरा डाला था । चित्तौड़ किले की रात्रिकालीन गतिविधी जानने के लिए "ऊब दीवल का जाबा nhoy dk tkck izdk'K LEHK uxji in Education International For Pe1 ) For Persdal Ddate Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 (प्रकाश स्तम्भ)" का निर्माण करवाया जिसके प्रकाश के माध्यम से गोली-बारूद का प्रयोग करते थे। इस प्रकाश बिन्दू को नष्ट करने के लिए चित्तौड़ शासक द्वारा इसे तोप से उड़ा दिया । दीपक तो नष्ट हो गया पर वह स्तम्भ आज भी खण्डहर के रूप में विद्यमान है। भारतीय इतिहास में यह स्थल महत्वपूर्ण है। सर ए.सी.एल. कार्लाईल ने सन् 1887 में नगरी (मझमिका) का एक सर्वेक्षण कर यह बताया कि यह नगरी भागवत धर्म से भी प्राचीन है तथा खनन से प्राप्त सिक्कों पर ब्राह्नमी लिपि से वि. संवत् तीसरी शताब्दी पूर्व के लेख उत्कीर्ण हैं इस पर मलि सिकाय शिविपदस् (शिविदस) अंकित है, जो मझमिका का सिक्का था इसके अतिरिक्त भी कार्लाईल ने यहाँ के शवघरों से प्राप्त राख, अस्थियाँ, घड़े तथा अन्य सामग्री का अध्ययन किया जिसका वर्णन हिस्ट्री आफ इण्डियन आर्कियोलोजी द्वारा चक्रवती दिलीप में है। इससे यह स्पष्ट है कि चित्तौड़ महाकाव्य के समय का था। नगरी में रहने वाले मूलत: पंजाब के रहने वाले थे, जो बाद में राजस्थान (मेवाड़) में रहने लगे। इसको पुरातत्व विभाग ने स्पष्ट किया है। इसके अतिरिक्त पंतजलि के महाभाष्य में मध्यमिका इण्डो यूनानी आक्रमण का वर्णन चित्तौड़ (मेवाइ) के संबंध में 22 फरवरी 1902 को जोन मार्शल (भारतीय पुरातत्व के निदेशक) ने डॉ. डी.आर. भण्डारकर को सर्वेक्षण कार्य सुपुर्द किया। सन् 1915-16 में मध्यमिका नगरी उत्खनन कर इसके प्राक् व आद्य (प्रारम्भिक व उत्तर इतिहास) का वर्णन किया है। __डॉ. वी.एन. मिश्र ने गम्भीरी नदी के पेटे से 242 पाषाण उपकरणों (हस्त कुल्हाड़ी, छिलनी, फलक) के नमूने एकत्रित किये इसके आधार पर पुरातत्व विभाग ने सिद्ध किया कि पंजाब की हड़प्पा व मोहनजोदड़ो तथा मद्रास (चैन्नई) की हस्त कुल्हाड़ी संस्कृति के मध्य स्थापित की है। (प्री.एण्ड प्रोटो हिस्ट्री ऑफ बेइच वेली पृष्ठ 35-36) व (इण्डियन आर्कोयोलोजिकल रिव्यू 1963-64 पृष्ठ 36) इससे यह पुष्टि होती है कि उस समय पाषाण की संस्कृति विद्यमान थी तथा पाषाण के परिवर्तन से पुरा, मध्य व उत्तरा पाषाण को देखा गया जो कालीबंगा, हड़प्पा संस्कृति के साथ की स्थापित होती है। इस संस्कृति को गणेश्वर व आहाड़ संस्कृति जो स्वतंत्र संस्कृति रही है, जो हड़प्पा संस्कृति के पूर्व की थी। For Personal plate Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i T ग्र न् 44 र त ग त 어 ट की ही आहाड़ संस्कृति के 106 स्थानों से जिसमें से 38 स्थान चित्तौड़ क्षेत्र के पाषाण लिए उसका अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हुआ कि यह संस्कृति 4000 वर्ष से अधिक प्राचीन है। आहाड़ संस्कृति को 4000 वर्ष प्राचीन होने का प्रमाण हेतु सर्वेक्षण ऐतिहासिक विभाग के डॉ. रतनचन्द अग्रवाल ने आहाड़ क्षेत्र का उत्खनन कर सिद्ध किया। इस संबंध में पाषाण, ताम्र धातु के उपकरण, कृषि उपयुक्त उपकरण तैयार करते थे एवं कृषि करने की कला, चित्रकला वास्तुकला में भी प्रवीण थे, अतः मेवाड की संस्कृति प्राचीन एवं विकसित थी इसी प्रकार बड़ली के सर्वेक्षण में प्राप्त 166 सिक्के भी जनपदीय थे तथा बड़ली ग्राम ( अजमेर के पास) से प्राप्त शिलालेख भगवान महावीर के निर्वाण के 84 वर्ष बाद का है। दोनों प्रदेश के मध्य होने के कारण इस प्रदेश मध्यबा कहा जाता था जो बाद में मेवाड़ कहा जाने लगा। इससे यह स्पष्ट है कि नगरी ई. पू. से चौथी शताब्दी के पूर्व में विद्यमान थी । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 पुष्यमित्र व वसुमित्र शुभ ने कालीसिंध के तट पर यूनानियों पर आक्रमण कर पराजित कर एक महायज्ञ का आयोजन किया, जिसको अश्वमेघ यज्ञ कहा गया है। पंतजलि के अनुसार इसका सम्बन्ध यूनान से बतलाया है। इसी प्रकार नगरी से प्राप्त शिलालेख जो 150-200 ई. पूर्व का है व कई भागों में खण्डित है तथा घोसुण्डी लिपि का है। इस पर संस्कृत, मेवाड़ी ब्राह्मीलिपि अंकित हैं तथा अश्वमेघ का भी वर्णन है । (उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है) वि. सं. 282 का नांदशा ग्राम से प्राप्त शिलालेख में भी षष्टिरात्र महायज्ञ करने का उल्लेख है व घोसुण्डी ग्राम से प्राप्त शिलालेख में भी सर्वनाम राजा के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ कराने का उल्लेख है । अन्त में समुद्रगुप्त राजा रहे जिन्हें पराजित कर अपना राज्य बना लिया फिर भी मझमिका का छठीं शताब्दी तक अस्तित्व बना रहा। चित्तौड़ के पास भगवानपुरा ग्राम से राख के रंग की तस्तरी प्राप्त हुई जो हस्तिनापुर के द्वितीय काल में भी प्राप्त हुई, जिसको छठीं शताब्दी ई.पू. से तीसरी शताब्दी ई.पू. की मानी गई है। (आर्कियोलोजिकल रिव्यू 1957-58 के पृष्ठ 43-46 ) मध्यमिका (मझमिका) का उल्लेख महाभारत में सभापर्व में नकुल की दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में आया है इसके अतिरिक्त श्री रामवल्लभ सोमाणी ने बनास के तट पर (मेवाड क्षेत्र में ) श्रुतायुध नामक राजा द्वारा राज्य करते थे। ऐसा मध्यमिका में प्रसंग आया है। विक्रमादित्य के पूर्व 6 - 7वीं शताब्दी में रचित पाणिनीकृत अष्टाध्यायी (व्याकरण) में भी इसका उल्लेख आया है। Jain Educon International For Personal & P3rate use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 महाभारत काल से गुप्तकाल पर्यन्त मध्यमिका के नाम से प्रसिद्ध रही है। प्राकृत भाषा में इसको मझमिका कहा गया है इस अवधि में नगरी में सभी जातियां जैसे जैन, बौद्ध, ब्राह्मण आदि रहती थी और सभी की संस्कृति पल्लवित थी । मेवाड़ का नाम स्कन्द पुराण में भी उल्लेख है। युग पुराण में मेवाड़ की सभ्यता की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। जिसका उल्लेख गम्भीरी नदी व आहाड़ के पास से प्राप्त पाषाण से, इसवाल क्षेत्र को लोहा उत्पादन केन्द्र माना है। चित्तौड़ मेवाड़ का प्रमुख क्षेत्र रहा है। चित्तौड़ के निर्माण काल अनुश्रुति के अनुसार भीम (पाण्डव) कुकड़ेश्वर ने कराया है। जैन धर्म के अनुसार महाराजा सम्प्रति द्वारा हुआ है। सिद्धसेन दिवाकर की दीक्षा नगरी के बाहर एक विशाल मंदिर में हुई। इसकी शिला ई. पू. के दूसरी शताब्दी की है जो ब्राहमी लिपि में है (शिलालेख उदयपुर के संग्रहालय में देखा जा सकता है) और इसी शिला पर बैठकर श्री सूरिजी ने अध्ययन किया तथा वर्तमान में इस स्थान को नारायण - वाटिका कहा गया है। बौद्ध के वैसंतर जातक में मध्यमिका के शिवि राजा संजय के द्वारा अपने दानपत्र वैसंतर के मंत्रियों व प्रजा को एक पहाड़ पर रहने का उल्लेख आया है। इस पहाड़ी को बाद में बीका की पहाड़ी कहा जाता रहा है। वैदिक धर्म के अनुसार इसे महाभारत कालीन बताया है। यह संस्कृति ईसा पूर्व 200 वर्ष तक जीवित थी, बाद में शनै: शनै: इसका ह्रास हुआ। मझमिका ध्वस्त होने से पूर्व ही चित्तौड़ दुर्ग की स्थापना हो चुकी थी। चित्तौड़ दुर्ग का निर्माण चित्रागंन मौर्य द्वारा चौथी शताब्दी में कराया जाने का उल्लेख है। उक्त प्रकार से यह स्पष्ट होता है कि यह दुर्ग चौथी शताब्दी में निर्मित है। जैन धर्म के आधार पर भी प्रमाणिकता निम्न प्रकार है। जैन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण करवाने के बारे में विभिन्न विद्वानों के मतभेद रहे हैं। भारतीय पुरातत्व के जनरल मे. ए. कर्निघम ने लिखा है कि यह जैन स्तम्भ जिसका आकार 75.6' ऊँचा व 30 फीट घेरा व 15' जमीन से ऊपर है, तथा इसके पास एक खण्डहर शिलालेख प्राप्त हुआ जिस पर लेख था - "संवत् 952 वैशाख 30 गुरुवार इसके आधार पर 10वी. शताब्दी का है, इसके आगे यह भी लिखा संभवतया से 1100 का अनुमान है। कई अभिलेखों के आधार पर स्तम्भ का निर्माण बघेरवाल महाजन जीजा या जीजक द्वारा कराया जाने का उल्लेख है। यहाँ तक कि एक अभिलेख में राजा For Personal 84 4 riva Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 कुमारपाल के बनवाने का उल्लेख है। भारतीय पुरातत्व के महान् विद्वान् जेम्स फर्ग्युसन ने अपने ग्रन्थ में लिखा है - श्री अल्लट के स्तम्भ के नाम से प्रसिद्ध कीर्ति स्तम्भ अपनी शैली का अद्वितीय उदाहरण है, एक अन्य उल्लेख के अनुसार इसका निर्माण महाराणा अल्लट के समय में चित्तौड़ की सभा में राजगच्छ के आचार्य प्रद्युम्मनसूरि ने दिगम्बर आचार्य को हरा शिष्य बनाया, इसकी स्मृति में यह जैन-स्तम्भ बनाया, जिसका जिर्णोद्धार कुमारपाल ने कराया। श्री ई.पी. हावेल ने भी अपने ग्रन्थ में इस स्तम्भ को 14वी. शताब्दी का माना है। इसी प्रकार श्री पारसी ब्राउन ने अपने ग्रन्थ में इस स्तम्भ को 14वीं शताब्दी माना है तथा श्री आनंद के कुमार स्वामी व उदयपुर के इतिहासकार श्री गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने चौदहवीं शताब्दी माना है। इस प्रकार श्री वासुदेव अग्रवाल, श्री ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी, माधुरी देसाई, डॉ. उमाकान्त प्रेमचंद शाह, भारत सरकार के टूरिज्म विभाग, श्री सत्यप्रकाश (पुरातत्व विभाग) श्री विजयशंकर श्री वास्तव, श्री जी.एस. आचार्य ने 'राजस्थान परिचय' में श्री कैलाशचन्द्र जैन, श्री अगरचंद नाहटा, मुनि श्री कांतिसागर जी म. आदि की मान्यतानुसार इसका निर्माण काल 12वी. शताब्दी से 15 वी. शताब्दी बताया है तथा बाबू कान्ता प्रसाद जी के अनुसार कीर्तिस्तम्भ को सन् 952 में बघेरवाल जाति व्दारा बनवाया था जिसका लेख कर्नल टॉड को मिला था। इसी प्रकार मुनि ज्ञान विजय जी ने राजा अल्लट द्वारा संवत् 895 में कराया। किसी भी वस्तु का निर्माण काल की प्रमाणिकता का आधार शिलालेख व अभिलेख पर आधारित होता है, इसी आधार पर इसका निर्माण काल 9वीं शताब्दी माना गया इसी सन्दर्भ में जैनाचार्य का वर्णन करे तो भी देवगुप्त सूरि जी विहार करते हुए इस क्षेत्र में संवत् 79 में आये थे तथा संवत् 215 में यज्ञदेव सूरि आये थे। 1. श्री हरिभद्र सूरि - इनका जन्म चित्तौड़ में ही राजपुरोहित परिवार के ब्राह्मण कुल में हुआ। ये प्रखण्ड विद्वान् थे । ये जैन धर्म के विरूद्ध थे लेकिन जैन धर्म का प्रभाव ऐसा पड़ा कि वे जैन धर्म में दीक्षिात हुए और जैन साहित्य की सेवा की। इनके दीक्षित गुरू श्री जिनभद्र सूरि रहे। इनका कार्यकाल 6ठीं शताब्दी माना जाता है। ये प्रमाण शास्त्र के ज्ञाता थे। इन्होने अपने शिष्य हंस व परमहंस को प्रमाण शास्त्र में प्रशिक्षित किया। वे आगम क्षेत्र में प्रमुख टीकाकार थे। इन्होनें For Personif & P5 atese Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. 4. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 अलग-अलग सूत्रों में आवश्यक ( 22000 श्लोक ) दशवैकालिक, जीवामिगम, प्रज्ञापना नंदी ( 2336 श्लोक) और अनुयोग द्वार ( 84000 श्लोक) में संस्कृत टीकाओं की रचना की। इन्होंने जैन शास्त्र की नहीं वरन् बौद्ध दर्शन पर भी टीकाऍ लिखी। इनकी प्रमुख रचना शास्त्रवार्ता समुच्चय, योगदृष्टि समुच्चय, विंशतिविंशका, दंसण सुद्धि (दर्शन शुद्धि), सावंग धम्म प्रकरण (श्रावक धर्म), सावंग धम्म समास (श्रावक धर्म समास ) अनेकान्त जय पताका की रचना की। इसके अतिरिक्त समराइच्चकहा प्राकृत रचना है। इन्होंने 1444 ग्रन्थों की रचना की । श्री सिद्धसेनसूरि - पाँचवी शताब्दी के महान साहित्यकार, प्रवचनकार, चमत्कारी थे। इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ। जैन दर्शन से प्रभावित होकर जैन धर्म में दीक्षित हुए, इनके पास कई प्रकार की विद्या थी, यहाँ तक सरसों के दानों के माध्यम से सेना पैदा करना तथा किसी भी धातु को स्वर्ण में परिवर्तन की विद्या थी। इनकी प्रमुख संरचना बत्तीस दात्रिशिकाओं है। इनकी "कल्याण मंदिर स्त्रोत" नामक पद्य की रचना भी है जिसमें श्री पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति है। आचार्य वीरसेन - ये नवमीं शताब्दी के दिगम्बर विद्वान् टीकाकार आचार्य थे। ये चन्द्रसेन आर्यनन्दी के शिष्य थे। ये भी चित्तौड़ के रहने वाले थे। इन्होंने एकल सिद्धान्तों का अध्ययन किया और साहित्य रचना का कार्य किया। उन्हें सिद्धान्त, ज्योतिष, व्याकरण, न्याय व प्रमाण शास्त्र का गहन ज्ञान था । इनकी प्रमुख रचना धवला व जय धवला है। जिन वल्लभसूरि- ये चैत्यवासी परम्परा के आचार्य थे । इस समय में शिथिलाचार काफी बढ़ गया, इसलिए इन्होंने श्री अभयदेव सूरि से दीक्षित हुए पुनः और शिथिलाचार का विरोध किया। कई शहरों में इस परम्परा के मठ थे और चित्तौड़ में भी मठ था। जिनेश्वरसूरि इस शाखा के अध्यक्ष थे। इन्हीं से दीक्षा ग्रहण कर उनसे व्याकरण, काव्य, न्याय, दर्शन आदि में प्रशिक्षित हुए। इनकी प्रमुख रचना श्रृंगार शतक, चित्रकाव्य, प्रश्नोत्तर शतक, प्रश्नपष्टि शतक, पिण्डविशुद्धि, धर्म शिक्षा आदि जिन स्त्रोत हैं। उस समय यतिगणों का प्रभुत्व For Person6& Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्था भाग 2 था और उन्हें राजाओं द्वारा सम्मानित किया जाता था। इन्होंने इसका विरोध किया और संवत् 1167 में महावीर भगवान का मंदिर बनवाया। श्री जिनदत्तसूरि - ये खरतरगच्छ के आचार्य थे। ये जिन वल्लभ सूरि के शिष्य थे। ये गुजरात राज्य मे धोलका के निवासी थे। इन्होंने केवल 9 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की। इन्होंने पाटन में जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया और इनको चित्तौड़ में ही देवभद्राचार्य ने संवत् 1169 के वैशाख कृष्ण 6 को सूरि पद से अलंकृत किया और जिनदत्त सूरि नाम दिया। खरतर गच्छ की मान्यता के अनुसार आचार्य की पदवी संघ द्वारा प्रदान की जाती है । उल्लेखानुसार श्री कर्माशाह दोशी के पूर्वज श्री लक्ष्मणसिंह भुवनपालसिंह ने संघ के साथ उस समय सं. 1169 वैशाख कृष्णा षष्टि को सूरि पद से अलंकृत किया । इनकी प्रमुख रचना सन्देहदोहावली, गणधर सप्तनिका, पार्श्वनाथ स्तोत्र, उपदेश धर्म रसायन, सर्व जिन स्तुति, वीर स्तुति आदि है। इन्होनें कई गौत्र का निर्माण किया। आचार्य सोमप्रभसूरि - ये बड़गच्छ के आचार्य विजयसिंहसूरि के शिष्य थे। इन्होंने आगम शास्त्र का विशद् अध्ययन किया । इन्होनें 11 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की और 22 वर्ष की आयु में आचार्य पद प्राप्त किया। इन्होंने चित्तौड़ में ही ब्राह्मण पण्डितों से शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त की। इनकी प्रमुख रचना है 'सुमतिनाह चरित (सुमतिनाथ चरित्र) कुमारपाल पडिबोही (कुमारपाल प्रतिबोध) श्रृंगार, वैराग्य, तरंगिनी, सिन्दूर प्रकर आदि । श्री उद्योतनसूरि - वि.सं. 834 में कुवलयमाला एक प्रमुख रचना रचित की। श्री देवभद्रसूरि - इन्होंने 12वीं शताब्दी में चित्तौड़ में भागवत शिवमूर्ति को शास्त्रार्थ में पराजित किया। श्री हरिषेण - इनका जन्म चित्तौड़ में हुआ और इन्होंने धम्म परिक्खा (धर्म परीक्षा) ग्रन्थ की रचना की। 10. श्री हीरानंदसूरि - ये हरिभद्र सूरि के परिवार के ही प. मानचन्द्र के शिष्य थे वे राजस्थानी के महान विद्वान् व कवि थे। महाराणा कुम्भा ने इन्हें गुरू माना और इन्हें कविराज की उपाधि दी। Jain E cation International For Personale private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 11. महाकवि श्री दइढ़ा- इनका भी प्राग्वाट कुल में चित्तौड़ में ही जन्म हुआ। इन्होंने प्राकृत भाषा निबद्ध पंच संग्रह की रचना की। श्री सोमसुन्दरसूरि - इन्होंने देलवाड़ा में कई प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई व कई अन्य रचनाएं लिखी तथा चित्तौड़ के महावीर जैन मंदिर का पुनरूद्धार (जिर्णोद्धार) कार्य किया। मुनि श्री राजसुन्दर - इन्होंने चित्तौड़ में रहते हुए वि.स. 1558 में महावीर स्तवन की रचना की। 14. मुनि श्रीराजशील - खरतरगच्छ के मुनि हर्ष के शिष्य थे तथा इन्होंने चित्तौड़ में रहते हुए “विक्रम खापर चरित्र'' चौपाई की रचना की। श्री पार्श्वचन्द्रसूरि - इन्होंने जैन धर्म की शिक्षा में ही सारा जीवन व्यतीत किया। इनकी अनेक रचनाएं विद्यमान है तथा चित्तौड़ में चैत्य परिपाटि का सृजन किया। मनि श्री गजेन्द्र प्रमोद- तपागच्छीय श्री हेमविमलसूरि के शिष्य मुनि हर्ष प्रमोद के शिष्य थे। ये महाराणा सांगा के राज्य काल में थे उन्होंने चित्तौड़ चैत्य परिपाटी की रचना की। श्री लालचंदलब्धोदय - ये चित्तौड़ के ही निवासी थे। अपने समय के उच्च कोटि के विद्वान थे। जिन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की। सति श्वेता या खेतकर खरतरगच्छीय कवि दयावल्लभ की शिष्या थी - इन्होंने वि.स. 1748 में चित्तौड़ गजल की रचना की। मुनि श्री प्रतिष्ठा सोम - इनकी प्रमुख रचना कथा महोदधि व सोम सौभाग्य काव्य है, जिसमें सोमसुन्दर सूरि के जीवन का वर्णन है। मुनि श्री चरित्ररत्नमणि - चित्तौड़ के महावीर जैन मंदिर की प्रशस्ति 104 श्लोकों में इन्होनें सं. 1495 में बनाई जो हस्तलिखित थी, जो भण्डारकर ओरियन्टल इंस्टीट्यूट पूना में थी जो सन् 1908 में प्रकाशित हुई। ये संस्कृत का सुन्दर काव्य है जिसमें चित्तौड़ की प्रशस्ति का वर्णन किया है। इन्होंने ज्ञान प्रदीप पद्यबद्ध ग्रन्थ भी चित्तौड़ में ही पूर्ण किया। 18 For Cersal Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 21. मुनि श्री जिनहर्ष गणि इन्होंने सं. 1497 में चित्तौड़ चार्तुमास की अवधि में वस्तुपालचरित्र नामक काव्य की रचना की । - 22. मुनि श्री वाचक सोम देव ये सोमसुन्दर सूरि के महान शिष्य विद्वान् थे, इन्हें महाराणा कुम्भा ने कविराज की उपाधि से विभूषित किया। इनकी विद्धता की समानता सिद्धसेन दिवाकर से की जाती है। 23. 24. 25. 26. 27. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मुनि श्री विशालराज - इन्होंने चित्तौड़ में सं. 1497 में ज्ञान प्रदीप ग्रन्थ रचा । मुनि श्री ऋषिराज ये जयकीर्ति सूरि के शिष्य थे। इन्होंने चित्तौड़ में सं. 1512 में नलराज ऊपई (नलदमयंती रास) की रचना की । मुनि श्री ऋषि धनराज - इन्होंने चित्तौड़ नगर में अनंत चौबीसी की रचना की। मुनि श्री रामकीर्ति - ये दिगम्बर साधु थे। इन्होंने समिद्धेश्वर की प्रशस्ति की रचना की। श्री सुन्दरसूरि - इन्होंने देलवाड़ा में संतिकर स्त्रोत की रचना की। इसके अतिरिक्त अध्यात्म कल्पद्रुम त्रिदशतरंगिणी, उपदेश रत्नाकर स्त्रोत, रत्नकोण, पाक्षिक सित्तरी आदि प्रमुख रचना लिखी है । मेवाड़ में स्थापित मंदिरों की संख्या असंख्य कह सकते हैं। केवल चित्तौड़ में ही अनेक मंदिर थे । सन् 1608 के फरवरी माह में जब औरंगजेब ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब करीब 69 मंदिरों को नष्ट किया। इससे यह अन्दाजा लगाया जा सकता है। कि चित्तौड़ व मेवाड़ में कितने मंदिर रहे होंगे। इन सभी तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि मेवाड की संस्कृति 4000 वर्ष से अधिक प्राचीन है, जहाँ पर जैन धर्म विकसित था। दुर्ग का निर्माण चौथी शताब्दी में होना स्पष्ट है । यद्यपि मेवाड़ के शासक शैव के उपासक थे वरन् उनके हाथ जैनी थे अर्थात शासन प्रबन्ध में सभी मुख्य पद व प्रबन्ध जैनियों द्वारा होता था अतः यह कहा जा सकता है कि राजा की आत्मा शैव की थी तो शरीर जैन का था । मेवाड़ भूमि इतनी सौभाग्यशाली रही है जहाँ जैन तीर्थकर श्री नेमीनाथ, श्री पार्श्वनाथ व श्री महावीर के चरण पादुका से पावन हुई है। आवश्यक चूणिकाए के अनुसार भगवान महावीर के प्रथम गणधर भी अपने शिष्यों के साथ मेवाड़ में आने का उल्लेख है । For Personal Prite Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 भूतानाम दयार्थ के जैन शिलालेख से यह स्पष्ट प्रमाणित है कि मेवाड़ भूमि अहिंसा की भूमि रही है | महाराणा अल्लट के बाद राणा वीरसिंह के समय में आहाड़ (आयड़) में जैन धर्म के कई समारोह आयोजित हुए और 500 आचार्यो की एक महत्तवपूर्ण बैठक (संगति) आयोजित हुई तथा लाखों लोग जैन धर्म में (अहिंसा की) दीक्षित हुए जिसमें सैकड़ों विदेशी भी सम्मिलित थे। श्री हरिभद्रसूरि ने 1444 ग्रन्थों की रचना की तथा आशाधर श्रावक जो बहुत बड़े विद्धान थे, उन्होने लील्लाक श्रावक से बिजोलियां में उच्च शिखर पुराण खुदवाया। धरणाशाह के जिनाभिगम सुत्रावली औधनियुक्ति, सटीक, सूर्य प्रज्ञप्ति, कल्प भाष्य आदि की टीका करवाई। चित्तौड़ निवासी श्रावक आशा ने कर्मस्वत विणांक लिखा | डूंगरसिंह (श्री करण) ने आयड़ में औद्यनियुक्ति पुस्तक लिखी । वयजल ने आयड़ में पाक्षिक कृति लिखी । जैन लोगों ने इतिहास रचने में भी सहयोग दिया। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्वेता जिनविजय जी महाराज के ऐतिहासिक संग्रह से कई शोधार्थियों के लिए वरदान स्वरूप महान् कार्य किया है। उक्त सभी बिन्दुओं पर गहन मंथन किया जाए तो सिन्धुवासियों ने मेवाड़वासियों से कुछ सीखा है । विष्णु पुराण, स्कन्धपुराण के पाताल खण्ड के कुछ अंश के रूप में संदर्भित “भट्टहर चरित' जिसका रचनाकाल मेवाड़ का प्राचीनतम गांव भटेवर का विकास माना जा सकता है। मेवाड़ के प्राचीनतम का वर्णन "एशियन सोसाइटी कोलकोता के संग्रहालय में विद्यमान है। इसमें भरत खण्ड देश-विदेशों का एक तीर्थो का तीर्थ है । वृहत संहिता में भी मध्यमिका नगरी का उल्लेख आया है। ___अत: इन सभी बिन्दुओं के आधार पर पौराणिक, सामाजिक, भौगौलिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक दृष्टि में मेवाड़ की सभ्यता प्राचीनतम है तथा मेवाड़ पूर्णकाल से अहिंसा का राज्य था । इसके मूल स्वर शौर्य को जैन धर्म ने अहिंसा की व्यावहारिक अभिव्यक्ति की है। क्या आप जानते हैं :आचार्य तुलसी के सदुपदेश एवं प्रेरणा से नोहर (श्रीगंगानगर) में स्थापित जिन मंदिर का जिर्णोद्धार कराकर जैन संस्कृति को सुरक्षित किया । F p10.na)& Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर (सातबीस मंदिर) चित्तौड़गढ़ किला चित्तौड़गढ़ जयपुर से 325 व उदयपुर से 110 किलोमीटर दूर है। यह राजस्थान का एक जिला मुख्यालय है। जिला मुख्यालय राजस्थान की राजधानी जयपुर व उदयपुर से रेल्वे व बस से जुड़ा है तथा उदयपुर तक वायुयान की भी सुविधा है। चित्तौड़गढ़ रेल्वे स्टेशन से 6 किलोमीटर दूर पहाड़ी के ऊपर स्थित है। चित्तौड़गढ़ (चित्रकूट ) प्राचीनकाल में मेवाड़ की राजधानी रही है जो पूर्व में मझिमिका के नाम से जानी जाती है जिसका विस्तृत वर्णन इसी पुस्तक के मेवाड़-चित्तौड़ जैन धर्म के शीर्षक में वर्णित है।पुनःसंक्षेप में वर्णन इस प्रकार है ___ यह किला चौथी शताब्दी में मौर्यवंशी राजा चित्रांगन मौर्य द्वारा निर्मित है, इसीलिये इसका नाम चित्तौड़ रखा। आठवीं शताब्दी में गुहलवंशी राजा महेन्द्र (बाप्पारावल) ने इस पर विजय प्राप्त कर अपने अधिकार में लिया। बाद में 12वीं शताब्दी में सिद्धराज जयसिह के अधिकार में आ गया। यह अधिकार राजा कुमारपाल का रहा। कुमारपाल द्वारा अपने क्षेत्र के प्राणों की रक्षा करने वाले आलिक कुम्हार के नाम सात सौ ग्रामों का पट्टा दिया जिसमें चित्रकूट भी सम्मिलित होने का उल्लेख है, बाद में राजा कुमारपाल के भतीजे अजयपाल को गुहिलवंशी राजा समरसिंह ने हराकर पुनः वि. सं. 1231 में अपने अधिकार में लिया । गुहिलवंशी राजा की एक शाखा सिसोदिया भी थी, चित्तौड़ उनके अधिकार में रहा। इस आदिनाथ भगवान के मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी का उल्लेख है। लेकिन यह सही प्रतीत नहीं होता क्योंकि यह सर्वेक्षण जानकार सूत्रों के आधार पर ही था जबकि – वि.सं. 1335 फाल्गुन 5 के दिन युवराज अमरसिंह की सानिध्य में इस मंदिर का ध्वजारोहण होने का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार महाराजा समरसिंह ने सं. 1353 में ग्यारह जिन प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करने का उल्लेख है। _ वि.सं. 1566 में जयदेव रचित तीर्थमाला में वि. सं. 1573 में हर्ष प्रमोद के शिष्य गयंदी द्वारा रचित तीर्थमाला में यहां (चित्तौड़) पर 32 जिन मंदिर (विभिन्न गच्छों के) Jain education International For Personal spn11usp only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 विद्यमान थे। इस मंदिर के लिए किवदन्ती है तथा साक्ष्य प्रमाण भी है कि बामनिया तलेसरा गौत्र की उत्पत्ति के इतिहास जो महात्माओं के पास उपलब्ध बही में है जिसका विस्तृत विवरण करेड़ा (भूपालसागर) श्री पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर के लेख में उल्लेखित सम्वत् 1029 में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है। उस समय आचार्य श्री यशोभद्र सूरि ने पांच स्थानों पर एक ही शुभ मुहूर्त पर प्रतिष्ठा कराई थी, अतः इस मंदिर का निर्माण 1029 का माना जाकर एक हजार प्राचीन है। .. __इसको सातबीस मंदिर भी कहते हैं। इसके दोनों ओर कुल 26 देव कुलिकाएं निर्मित हैं इसलिए इसको सातबीस कहा गया है। इसके शिखर व सभामण्डप का गुम्बज कलात्मक बना हुआ है, जिसको कला प्रेमी देखकर मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। गुम्बज में अप्सराएँ उत्कीर्ण हैं। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। लांछण स्पष्ट नहीं है। इस पर सुमतिनाथ भगवान का नाम पेन्ट से लिखा है। 3. श्री सुविधिनाथ भगवान (मूलनायक ( 12 For P r ivate Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 के बाए) की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 'सुविधिनाथ' उत्कीर्ण है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएं एवं यंत्र : श्री वासुपूज्य भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1501 मिगसर वदि 3 का लेख है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर स. 1181 उत्कीर्ण है। यह प्रतिमा की बनावट मेवाड़ में वर्तमान उपलब्ध प्रतिमाओं में से कुछ भिन्न हैं। श्री पद्मप्रभ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1532 ज्येष्ठ शुक्ला 3 का लेख है। श्री सुमतिनाथ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1535 आषाढ़ शुक्ल 6 का लेख है। 5. श्री जिनेश्वर भगवान की 1.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 5' गोलाकार है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5" x 4.5' का है। इस पर संवत् 1904 माह सुद 10 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 4'' x 4' का है। इस पर सं. 2059 भादवा शु० प्रतिपदा का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 5" x 3' का है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। दोनों ओर के आलिए में: 1. श्री गौमुख यक्ष की स्थानीय पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1998 माघ सुदि 2 का लेख है। 2. श्री चक्रेश्वरी देवी की स्थानीय पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1998 माघ सुदि 2 का लेख है। सभामण्डप (रंग मण्डप) में बाहर निकलते समय (बाएँ) – श्री शीतलनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की पुरानी 37" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1484 वैशाख सुदि 2 का लेख है। For Persona.13ause Only Jal Education International Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 पापा जी बाहर निकलते समय दाएं : 1. 2. 2. 3. मंदिर से बाहर निकलने पर बाई ओर से दाई ओर बड़ी देवरी में : 1. 2. 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. 3. श्री मुनिसुव्रत भगवान की श्वेत पाषाण की 29" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं हैं । धातु की प्रतिमाएं : 1. 4. 5. श्री श्वेत पाषाण के 19 " x 19" के पाषाण पर 5" की पादुका है। इस पर सं. 1588 ज्येष्ठ सुदि 5 का लेख है। चारों ओर कुम्भ, कलश, नन्दाव्रत, मतस्य, कछुआ, फरसा आदि उत्कीर्ण हैं। श्री पद्मप्रभ भगवान (मूलनायक ) की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । श्री पार्श्वनाथ भगवान (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 8" ऊँची प्रतिमा है। देवरियों में - 1. श्री आदिनाथ भगवान (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है । श्री जिनेश्वर भगवान की पंचतीर्थी प्रतिमा है । इस पर सं. 1531 वैशाख सुदि 3 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1480 वैशाख सुदि 5 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है । इस पर सं. 1391 माघ सुदि 15 का लेख है । श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । लेख स्पष्ट नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । श्री चन्द्रप्रभ भगवान की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1893 का लेख है। For Pe 14" vate Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । श्री कुंथुनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर स 1596 आषाढ़ सुदि 3 का लेख है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री मुनिसुव्रत भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1586 आषाढ़ सुदि 9 का लेख है । श्री शीतलनाथ भगवान के श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। श्री सुमतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर सं. 1595 का लेख है । श्री शीतलनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर शीतल लिखा है । श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1576 आषाढ़ सुदि 5 का लेख है । श्री शातिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । इस पर सं. 1591 का लेख है । श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । श्री कुंथुनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर स्पष्ट लेख नहीं है। श्री अनन्तनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 10” ऊँची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। For Sumar&rivate Use Only 15 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. 28. 29. 30. 31. 32. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री धर्मनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । श्री महावीर भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1989 फाल्गुन शुक्ला 2 का लेख है । श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। श्री अजितनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 9" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। श्री मुनिसुव्रत भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। श्री श्रेयासनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है । श्री सुमतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । For Personal Private Use Only 16 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 33. श्री जिनेश्वर भगवान श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 34. श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 35. श्री धर्मनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1595 का लेख है। बड़ी देवरी में : 36. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक) पीत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। 37. श्री जिनेश्वर भगवान (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। 38. श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 4" ऊँची प्रतिमा है। धातु की प्रतिमाएं: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा हैं इस पर सं. 1812 का लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी की 4.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1222 आषाढ़ सुदि 2 का लेख है। सम्पर्क सूत्र :(कार्यालय )01472-241971,(किलेपर )242162 किले पर धर्मशाला है जहां आवासीय व्यवस्था है एवं स्टेशन पर धर्मशाला व भोजनशाला संचालित है। वार्षिकध्वजामाघसुदि 2 को चढ़ाई जाती है। वर्तमान में इस मंदिर की देख-रेख श्री सातबीस देवरी जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट चित्तौड़गढ़ द्वारा की जाती है जिसके अध्यक्ष श्रीकन्हैयालालजी महात्मा हैं। Education International For Persen -Ravale Use Only 1/ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर (सातबीस मंदिर परिसर) यह शिखरबंद मंदिर श्री आदिनाथ भगवान के मंदिर के पीछे ही उत्तर दिशा में स्थित है। ऐसा उल्लेख है कि यह मंदिर श्री रतना दोशी द्वारा निर्मित है। श्री रत्ना शाह कर्माशाह के ज्येष्ठ भ्राता थे। इस मंदिर की प्रतिष्ठा श्री विद्या मंडन मुनि ने कराई । यह 15वीं शताब्दीकामंदिर है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान (मूलनायक) की श्याम पाषाण की 19' ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है। 2. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाए) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर सं. 2005 माह वदि 5 का लेख है। 3. श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएं एवं यंत्रः 1. श्री चतुर्विशंति 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर दिनांक 15. 02.09 का लेख है। अष्टमंगल यंत्र 5" x 3' के आकार का है। इस पर स. 2065 का लेख है। For Persona ve Use Only 18 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाहर निकलते समय बाई ओर आलिए में पद्मावती देवी की पीत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है । (बाईं ओर) इस पर सं. 2011 का लेख है। सभामण्डप में दोनों ओर : 1. 2. श्री हरिभद्र सूरि जी की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। (बाईं ओर) इस पर संवत् 2011 वै. शु. 7 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री नीतिसूरि जी म.सा. की श्वेत पाषाण की 25” ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2011 वै.शु. 7 का लेख है। आचार्य नीतिसूरीजी चित्तौड़गढ़ के सभी जिन मंदिरों जिर्णोद्धारक रहे। यह मंदिर सातबीस देवरी जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है तथा सम्पर्क सूत्र व्यवस्था इसी संस्था की है। वार्षिक ध्वजा माह सुदि 2 को चढ़ाई जाती हैं । Ja Education International आचार्य नीतिसूरिजी - ये तपागच्छीय आचार्य थे । इनका जन्म संवत् 1930 पोष सुदि 11 को बाकानेर में हुआ । इनका बचपन का नाम निहालचंद था । इनके माता-पिता का नाम श्रीमती चौथीबाई एवं फूलचंद भाई था । इनकी कम उम्र को देखते हुए व माता-पिता की आज्ञा नहीं मिलने से दीक्षा नहीं दी गई तो इन्होंने स्वयं ने आम के वृक्ष के नीचे संवत् 1949 आषाढ़ सुदि 11 को महरवाड़ में दीक्षा ग्रहण की तब संवत् 1950 कार्तिक वदि 11 को श्री कान्ति विजय जी ने दीक्षा प्रदान की तदुपरान्त संवत् 1996 माह सुदि 11 को आचार्य पदवी से विभूषित हुए और संवत् 1998 में राणकपुर से उदयपुर विहार करते हुए चित्तौड़ में प्रतिष्ठा प्रसंग में विहार करते हुए एकलिंग जी पहुँचे, वहां अचानक स्वास्थ्य खराब होने से माघ वदि 3 को स्वर्ग सिधारे । अग्नि संस्कार उदयपुर में आयड़ में किया गया । बचपन से तपस्या के साथ-साथ एक साधक रहे। आपकी निश्रा में गिरनार तीर्थ का पिछले 100 वर्षो में प्रथम जीर्णोद्धारक हुआ तथा चित्तौड़गढ़ के जिले के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया जिससे वे चित्रकूट जीर्णोद्धारक कहलाये । इनकी चित्तौड़गढ़, उदयपुर (पद्मनाभ मंदिर), अमलावद में मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि उदयपुर में आयम्बिल शाला की स्थापना की उसके बाद श्री हिमाचलसूरिजी ने विकास किया लेकिन उनके नाम का उल्लेख नहीं है । इनके नाम से उदयपुर में जैन नवयुवक नीतिसूरि बैण्ड संचालित है । For Pe 19 vate Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर (सातबीस मंदिर परिसर) यह शिखरबंद मंदिर श्री आदिनाथ मंदिर के पीछे दक्षिण की ओर स्थित है। यह मंदिर 15वीं शताब्दी का निर्मित है। ऐसा उल्लेख है कि यह मंदिर श्री कर्मसिंह ( कर्माशाह दोशी) ने निर्माण कराया, कालान्तर में यह पार्श्वनाथ' भगवान का मंदिर में परिवर्तित हुआ है । (यह लेखक की मान्यता है ) मंदिर के बाहर कलात्मक तोरण बना है । इस मंदिर की प्रतिष्ठा श्री विद्या मंडन मुनि ने कराई । यह 15वीं शताब्दी का मंदिर है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : 1. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की प्रतिमा हैं इस पर संवत् 1847 वैशाख सुद 15 का लेख है । श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की (पांच नाग छत्र का) 11" ऊँची प्रतिमा है। यह प्रतिमा उदयपुर के समीप थूर ग्राम से यहां पदराई गई थी, कथनानुसार इस पर स. 1020 का लेख था, वर्तमान में दिखाई नहीं देता है, संभवत पीछे की ओर हो । प्रतिमा पर RENDIN For Personal P20te Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. 1. 2. धातु का यंत्र : अष्टमंगल यंत्र 5” X 3" के आकार का है। इस पर सं. 2065 का लेख है I निज मंदिर में 3. 4. 5. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 लांछण स्वास्तिक का स्पष्ट है । ऐसा उल्लेख आता है कि सुपार्श्वनाथ के भी नाग का उत्सर्ग आया था इसलिए इनके मस्तक पर सर्प का छत्र कहीं-कहीं देखा जाता है । ain Education International श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। सभामण्डप में श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । (बाईं ओर आलिए में) सभामण्डप में श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । (दाईं ओर आलिए में) श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 15 " ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । श्री धरणेन्द्र देव की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। पट्ट श्वेत पाषाण का 15 " x 8" के आकार पर दो पादुका जोड़ी स्थापित है। इसके किनारे सं. 1820 का लेख है । (बाईं ओर) यह मंदिर सातबीस देवरी जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है । सभी व्यवस्था व सम्पर्क सूत्र संस्था के ही हैं । वार्षिक ध्वजा माघ सुदि 2 को चढ़ाई जाती है । For Persona21 Priyate Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर - चित्तौड़ किला ___यह पाटबंध मंदिर चित्तौड़गढ़ किले पर गौमुख कुण्ड के पास स्थित है। यह पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर कहलाता है जबकि पार्श्वनाथ भगवान का कोई लाछण प्रतीत नहीं होता अतः इनको जिनेश्ववर भगवान ही कहना उपयुक्त होगा। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है। 1. श्री पार्श्वनाथ (जिनेश्वर भगवान) की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । 2. श्री कीर्तिधर मुनि (मूलनायक के दायें) की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची खड़ी (काउसर्ग मुद्रा में ) प्रतिमा है । इसके उपर कीर्तिधर उत्कीर्ण है । 3. श्री सुकोशल मुनि (मूलनायक के बायें) की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची खड़ी (काउसर्ग मुद्रा में ) प्रतिमा है । इसके उपर सुकोशल मुनि उत्कीण है । 4. श्री सुकोशल मुनि के पास सिंहनी की मूर्ति है । यह सुकोशल मुनि के माता के जीव की है । यह सभी प्रतिमाएं एक ही पाषाण पर बनी हुई है । इनके उपर कन्नड़ भाषा में लेख है जिसमें केवल जिनेश्वर देव की स्तुति की है । बांयी ओर संस्कृत, प्राकृत भाषा में लेख है जिसमें इन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा वि. सं. 1408 में जिनभद्रसूरि का लेख है । इससे स्पष्ट होता है कि चित्तौड़ एवं दक्षिणी भारत का सम्बन्ध रहा है। संकीर्ण मार्ग के दोनों ओर दीवार के आलिए में 19" x 21" व 11" x 11" पाषाणी पट्ट पर पादुका है – अस्पष्टता व अस्वच्छता के कारण लेख अपठनीय है व ज्ञात नहीं हो सका कि पादुका किसकी है। इसी मंदिर में एक गुफा बनी है जो महाराणा के महल से जुड़ी हुई है, ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा के मार्ग से जनाना (रानियां) आकर पूजन, दर्शन किया करती थी, वर्तमान में यहाँ पद्मिनी का चित्र है। प्राचीनकाल में यह सुकोशल मुनि की गुफा थी। जिस प्रतिमा (सुकोशल मुनि) का वर्णन किया है, वह प्रतिमा पदमासन में है । जो गुफा पद्मिनी की कहलाती है, वह रानी पद्मिनी का महल शांतिनाथ भगवान के For Perfon 22riyate Use Only www.jainelibrary.alig Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंदिर के पास है, वहां तक गुफा नहीं है, ऐसी परिस्थति में पद्मिनी का चित्र की गुफा बताना व पद्मिनी का चित्र लगाना उचित प्रतीत नहीं होता । इन सभी बिंदुओं के आधार पर श्री सुकोशल मुनि का मंदिर ही कहा जा सकता है। ऐसा भी उल्लेख है, यहां पर महाराणा तेजसिंह की रानी जयतल्लदेवी ने संवत् 1322 में श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर बनवाया था, वर्तमान में नहीं है। इस मंदिर के ऊपर संभवतः शांतिनाथ भगवान का मंदिर हो । अधिकार (कब्जे) के सम्बन्ध में न्यायालय में वाद चल रहा है। इस मंदिर की देखरेख श्री सात वीस देवरी श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट द्वारा की जाती है । वार्षिक ध्वजा माघ सुदी 5 को चढ़ाई जाती है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 सुकोशल मुनि की जीवनी अयोध्या नगरी का राजा कीर्तिधर था उसकी पत्नी सहदेवी थी । राजा कीर्तिधर के मन की भावना यह थी कि पुत्र जन्म लेते ही वे चारित्र धर्म अंगीकार करेंगे। रानी ने पुत्र जन्म दिया, रानी ने एक कुचाल चल कर दासी के द्वारा अज्ञात स्थान पर भेज दिया । जांच करने पर सच्चाई का ज्ञान हुआ । बालक का नाम सुकोशल रखा । धीरे-धीरे रानी का राग पुत्र के प्रति बढ़ता गया और पति के प्रति कम होता गया । एक समय आया कि कीर्तिधर ने चारित्र धर्म अंगीकार किया और राज सिंहासन छोड़ निकल गये । कुछ वर्षो के बाद मुनि कीर्तिधर विहार करते हुए अयोध्या आये और रानी सहदेवी ने देखा तो पुत्र सुकोशल को दूर रखा लेकिन होनी को कौन टालता है । सुकोशल को इसका समाचार मिला, वह दौड़कर उपवन में गया जहाँ पर कीर्तिधर मुनि ठहरे हुए थे । सुकोशल पूर्व में ही आत्म कल्याण की ओर सोचता रहा था । राजार्षि के सम्पर्क में आने से भावना सुदृढ़ हो गयी और उन्होंने भी यहीं कहा कि पुत्र जो गर्भावस्था में था, होने पर चारित्र धर्म अंगीकार करेंगें । 1 Ja Education International मुनि बनने के बाद वे घोर तपस्या में लीन रहे और माता सहदेवी का काल होने क्रोधावश के कारण सिंहनी के रूप में उत्पन्न हुए । एक समय जंगल में कीर्तिधर राजार्षि व मुनि सुकोशल काउसग्ग मुद्रा में तपस्या में थे उस समय सिंहनी उधर निकली, पूर्व भव का दृश्य ध्यान में आया। सुकोशल पर दृष्टि पड़ते ही उसकी वैर वृति सजग हो गई और उस पर आक्रमण करके उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर खाया और रक्तपान किया। For Personal 23 te Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री शांतिनाथ भगवान का (चौमुखा जी) मंदिर - चित्तौड़ किला यह शिखरबंद मंदिर गौमुख कुण्ड की ओर जाते समय दाहिनी ओर स्थित है। यह मंदिर सुकोशल मुनि के मंदिर के ऊपर ही निर्मित है। इस मंदिर को श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर कहा जाता है। उल्लेखानुसार श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर है, वास्तविक स्थिति स्पष्ट नहीं है।चारों दिशाओं में स्थापित प्रतिमाएं अजितनाथ भगवान व श्री जिनेश्वर (शांतिनाथ ) भगवान की श्वेत पाषाण की 9"ऊँची है। इनमें से एक प्रतिमा परसंवत् 1491 कालेख है। ऐसा भी उल्लेख है कि गौमुख कुण्ड के पास मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर है, उसके सामने सुकोशल मुनि, कीर्तीधर मंदिर के अतिरिक्त कुम्भा के मंत्री वेला ने शांतिनाथ भगवान का मंदिर, श्री श्रेष्ठी डुंगर द्वारा निर्मित शांतिनाथ भगवान व श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर का उल्लेख है, उल्लेखानुसार यह स्पष्ट होता है कि चारों प्रतिमाएं उल्लेखित जिन मंदिर की प्रतिमाएं होगी, (ऐसी लेखक की मान्यता है)। इस मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी करने की आवश्यकता है, इतिहासकारों को भविष्य में शोध करनी चाहिए। इस मंदिर की वार्षिक ध्वजा माघ सुदि 2 को चढ़ाई जाती है। इसकी देखरेख सातबीस देवरी श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर किला ट्रस्ट द्वारा की जाती है । For Persona24Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 किया गया है। श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर - चित्तौड़ किला ____ यह घूमटबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ किले के रामपोल के आगे जाकर पुराना राजमहल के पास उत्तर की ओर स्थित है, यह एक छोटा कलात्मकमंदिर संवत् 1232 में बनाने का उल्लेख है। इसका वर्णन अनुच्छेद नं. 3 में करीब 1000 वर्ष प्राचीन है और संवत् 1505 में प्राचीन मंदिर के स्थान पर (संभवतया मुगलों द्वारा नष्ट होने पर )महाराणा कुम्भा के मंत्री श्री वेला ने नूतन मंदिर "श्रृंगार चौरी" बनवाकर श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर की प्रतिमा स्थापित की। जिसकी प्रतिष्ठा श्री जिनसेनसूरि द्वारा सम्पन्न हुई। उस समय इसका नाम अष्टोपदोवतार शांति जिन चित्य था। जिसे "श्रृंगार चौरी'कहते हैं। इसमें कोई प्रतिमा नहीं है प्रतिमा की कला अद्वितीय रही है । भाव मण्डल की ओर पूरी वेदी पर सुंदर KOROLOGटाईल्स लगी है । मंदिर में निम्न प्रतिमाएं श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 31" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर सं. 1501 का लेख है जो श्री सोमसुंदर सूरि द्वारा प्रतिष्ठित है। in Education International For Personal 825/aljuse Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 निज मंदिर के बाहर की ओर: गरूड़ यक्ष की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2017 कार्तिक सुदि 12 का लेख है। 2. निर्वाणी देवी की श्वेत पाषाण की 9' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2017 फागुण का लेख है। किले पर रणवीर द्वारा बनाई दीवार अलाउद्दीन खिलजी के समय मंदिर व भवनों को नष्ट किये गये (वि.सं. 1332) पत्थर द्वारा बनवाई गई। यहां पर एक लेख रत्नसिंह श्रावक ने शांतिनाथ भगवान का मंदिर निर्माण के बारे में उल्लेख है। समधर के पुत्र महणसिंह की भार्या साहिणी की पुत्री कुमारीया श्राविका ने पितामह ढाडा के श्रेयोर्थ देवकुलिका बनाई। ये चैत्यालय कौनसा है, स्पष्ट नहीं है। इसका जीर्णोद्धार सं. 1990 का होने का शिलालेख है। इसका संचालन सातबीस देवरी जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट द्वारा संचालित है। सातबीस मंदिर ट्रस्ट के सम्पर्क सूत्र ही प्रयोग में लिये जाते हैं। वार्षिकध्वजामाघ सुदी 13 को चढ़ाई जाती है। यदि जगत में 'गेस्ट' की हैसियत से रहना आ गया तो मानो पूरा जगत आपका अपना है। Forker2618)Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. करवाकर प्रतिमाएं स्थापित कराई हो । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: 1. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 15" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस 3. Jainucation International श्री महावीर भगवान का मंदिर - चित्तौड़ किला मंदिर किन पर संवत् 1555 जिनदत्त का लेख है । श्री अजितनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15 ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1110 गुणचन्द्र सूरि का लेख है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 - श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । इस पर 1198 - • कनकचन्द्र का लेख है । यह घूमटबंद मंदिर 1000 वर्ष प्राचीन बतलाते हैं और वि.सं. 1167 में | महावीर भगवान का मंदिर बनवाने का उल्लेख मिलता है और मंदिर की मूल वेदी के नीचे की ओर एक लेख (हिन्दी अनुवाद) का पट्ट लगा है उसमें सवंत् 1110 का लेख अंकित है। यह संभव है कि बाद में 15 वीं शताब्दी में जिर्णोद्धार For Personal & Private Use Only 27 EGROCER Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 वेदी की दीवार के बीच में एक शिलालेख लगा हुआ है वह इस प्रकार है - "श्री || 28 || श्री चित्रकुट स्था श्री बिंब प्रवेश प्रशस्ति। अजितवीर विभुं सुमति सदा भविक पद्य विकास दिवाकरणं प्रबल मोह विनाशक मर्हताम् त्रितयमादिकर प्रणतो अस्मय हम एत्रासिम्ब त्रयमध्ये श्री मूलनायक महावीर बिम्बम् विक्रम संवत् 1555 श्री जिनदत्त प्रतिष्ठितम् । वाय पार्श्वस्थ सुमतिनाथ बिम्बम् 1198 वर्षे कनकसुंदर सूरि प्रतिष्ठितम् । दहिन पार्श्व स्थमाजितनाथ बिम्बतु 1110 वर्षे भट्टारक श्री गुणसुंदर सूरि प्रतिष्ठितम् वर्तने । बिम्ब त्रय स्थिरिकण विधिः । श्री विवेकसेन श्रीमदे पराधिपति भारत मार्धन्य छत्रपति महाराणा श्री 108 श्री फतेहसिंह जी विजयराजे श्री चित्रकूट नगरस्थ न्यायाधिकारी जिनयापालक महेता श्री जीवनसिंह जी तस्यादि मेदपाट शिल्पाकाराधिकारी जिन धर्म कर्मठ मुरडिया श्री हिरालाल जी तस्य पुत्र सहायेन ओसवंशे शाखायां चपलोत गौत्रे मात्राभ्याम नंदलाल चिमनलाल नाम्यो 1500 श्रावक हम सहायेन करापिते नविन जिन प्रासादे संवत् 1971 वर्षे माघशुक्ला त्रयादेशी शुक्रवासरे कृत । श्री जिन दायक जिनेश्वर राजे प्रणभ्यस्द्रत्या। श्री नित्य विनय सुगुरू स्मरणय विलेकितो लेखः । इति संवत् 1972 उदयपुर चर्तुमास निवासी श्री मत्यस्य पाट प्रमाण विजयगणि लिखित प्रशस्तिः उदयपुर निवासी शाह मोतीलाल नंदलाल चिमनलाल ने इसको पूर्ण कराया। इस मंदिर की देखरेख श्रीसातबीसजैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट द्वाराकीजाती है। मंदिर की वार्षिकध्वजामाह सुदी 13 कोचढ़ाई जाती है। संवत् की 12वीं शताब्दी के यतियों की प्रभुत्व था और राजाओं द्वारा उनको बहुत सम्मान दिया जाता था। इसका जिनवल्लभसूरि ने विरोध किया और उनके सदुपदेश से श्रेष्ठीगण ने संवत् 1167 में महावीर भगवान का मंदिर बनवाया जहां पर उन्होंने (जिनवल्लभसूरि) ने अष्टसप्तिका, संघ पट्टक, धर्म शिक्षा आदि ग्रन्थों की रचना की। संभवतया यही मंदिर रहा होगा। For Person private Use Only (28) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 सातबीस मंदिर व अन्य मंदिर के सम्बन्ध में उपलब्ध लेख विक्रम की 5वीं शताब्दी से 16 वीं शताब्दी तक जैनी श्रेष्ठि का प्रभुत्व था, गौरवशाली इतिहास रहा है, अनेक मंदिर बनाए।महाराणा के प्रधान व मुख्य पदों पर जैन श्रेष्ठी थे।संवत् 1495 के लेख में 104 श्लोक हैं। इसमें सरस्वती, ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर की स्तुति है तथा मेवाड़ के शासकों व मंदिर निर्माण कराने वाले साधुगणराजकी वंशावलीका वर्णन है। यह मंदिर कहाँ व कौनसा है ? ज्ञात नहीं, 15वीं शताब्दी में महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में प्रधान रामदेव की ससुर वीसल ने यहाँ श्रेयासनाथ भगवान का मंदिर बनवाने का उल्लेख है । कहाँ है ? ज्ञात नहीं। माण्डवगढ़ के महामंत्री पेथड़शाह द्वारा भी यहाँ मंदिर बनवाने का उल्लेख है। यहाँ पर जैन कीर्तिस्तम्भ स्थापित है जो अपनी वास्तुकला की दृष्टि से जैन इतिहास के गौरव गाथा की याद दिलाता है । यद्यपि इसके निर्माण काल के बारे में भिन्न-भिन्न विचार हैं जिसका वर्णन इसी पुस्तक में "मेवाड़ - चित्तौड़ व जैन धर्म' नामक शीर्षक में किया है। चित्तौड़ के प्रधान श्री कर्माशाह दोशी ने शत्रुजय तीर्थ का 16वाँ उद्धार संवत् 1587 में करवाया था। चित्तौड़ कला व सौन्दर्य की दृष्टि में एक अनुपम उदाहरण है। गौमुखी कुण्ड के यहाँ पर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर पाटबंद व शांतिनाथ भगवान का मंदिर होने का उल्लेख है। जिसमें से श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर संवत् 1100 में बनवाने का उल्लेख है तथा प्रत्यक्षदर्शी का कथन है कि सं. 1347 का शिलालेख था। ___ वि.सं. 1324 (1267 ई.) का गम्भीरी नदी के पुल का लेख है जिसमें चैत्र गच्छ के आचार्य रत्नप्रभ का लेख है जिसमें चैत्र गच्छ के आचार्य रत्न प्रभ सूरि के उपदेश से तेजसिंह के आदेश से राजपुत्र कांगा के पुत्र ने किसी भवन का निर्माण कराया था जो एक राजपूत था। Janucation International For Person a l Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 वि.सं. 1335 वैशाख सुदि 5 गुरूवार का लेख श्याम पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर के द्वार के छबड़े का है जो उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है। इस लेख में भर्तपरीय गच्छ के जैनाचार्य के उपदेश से राजा तेजसिंह की पत्नी जयतल्ल देवी ने श्याम पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर बनवाया, ऐसा उल्लेख है लेकिन वर्तमान में विद्यमान नहीं है । एक लेख चित्तौड़गढ़ से प्राप्त हुआ था, वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। उसकी एक प्रति अहमदाबाद के भारतीय मंदिर में संग्रहित है। लेख में 78 श्लोक है, इसमें महाराणा भोज व उसके वशंज का वर्णन है । इसी वंश में नरवर्मा का वर्णन है जिसका अधिकार चित्तौड़ पर प्रशस्ति के अनुसार महावीर भगवान के मंदिर का निर्माण व श्रेष्ठिवर्य के नाम का उल्लेख है तथा नरवर्मा ने भी जिनालय के लिए दो पारूथ मुद्रा देने का वर्णन है। महाराणा समरसिंह के समय में संवत् 1353 के फाल्गुन वदि 5 को चित्तौड़ के चौरासी मोहल्ला में 11 जैन मंदिरों की स्थापना की। शोध का विषय है । इसी प्रकार संवत् 1506 का एक शिलालेख है जिसके महाराणा लाखा, मोकल, कुम्भा का वर्णन है तथा वेला के पिता कोला ने मंदिर की प्रतिष्ठा जिनसागर सूरि के शिष्य जिनसमुद्र सूरि से कराने का उल्लेख है। किले पर निम्न मंदिर स्थापित थे : संवत् 16 वीं शताब्दी तक किले पर तपा खरतर, आचल, चित्रवाल पूर्णिमा मलधार गच्छ के 34 मंदिर स्थापित थे । 1. श्री श्रेयांसनाथ भगवान का मंदिर 2. 3. 4. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 5. 6. 7. 8. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर - श्री ईश्वर श्रेष्ठी द्वारा निर्मित श्री सोम चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर श्री चौमुख चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर श्री सुमतिनाथ भगवान का मंदिर 60 सीढ़ियों युक्त निर्मित चित्रकूटीय महावीर भगवान के मंदिर में दो मंदिर श्री कुमारपाल व क्षेत्रपाल के पुत्र ने बनाया । For Personal 30r e Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 9. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर श्री रत्ना शाह दोशी द्वारा निर्मित है। 10. श्री सुपार्श्वनाथ का मंदिर कर्माशाह दोशी द्वारा निर्मित है। 11. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर जिनदास शाह द्वारा निर्मित है। 12. श्री श्याम पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर राजमाता जयतल्लदेवी श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर (मलधार गच्छीय) 14. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर __ श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर (खरतरगच्छीय) 17. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर (सातफणा) 18. श्री सुमतिनाथ भगवान बहरड़िया धनराज द्वारा निर्मित श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर डागा जिनदत्त द्वारा निर्मित 20. • श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर (लीलावसीह) श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर (नागौरी द्वारा) श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर (अचलगच्छीय) 23. श्री मुनिसुव्रत भगवान (नाणावाल गच्छीय) 24. श्री सीमंधर भगवान का मंदिर (पल्लीवाल गच्छीय) श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर (नाणावाल गच्छीय) श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर (चित्रवाल गच्छीय) श्री सुमतिनाथ का मंदिर (पूर्णिमा गच्छीय) 28. चौमुखी आदि जिन मंदिर (मालविया का) 29. श्री मुनिसुव्रत (जसवाल का) भगवान का मंदिर 30. श्री कीर्तीधर, सुकोशल मुनि का मंदिर । श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर (वेला सेठ) श्री अजितनाथ भगवान का मंदिर (सरणावसीय) जयकीर्ति स्तम्भ 33. श्री शांति जिन मंदिर (श्रेष्ठी डुंगर) 34. श्री सम्भवनाथ जिन मंदिर 26. 32. For Perspre SR ale Use Only (31) Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 चित्रकूटीय महावीर प्रासाद प्रशस्ति : श्री चारित्ररत्न गणि द्वारा रचित जो रायल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में सर भण्डारकर ने स. 1908 में प्रगट की। उक्त सूची सं. 1526 में पं. जयहेम ने रचना की और सं. 1573 में श्री हर्षप्रमोद के शिष्य श्री गायंदी ने रचना की । बड़ीपोल के पास जिन मंदिर के कई अवशेष थे उसमें से कई मूर्तियों के परिकर थे उसमें से एक परिकर मिला जिसमें संवत् तो नहीं मिला लेकिन चेत्रवाल गच्छ के प्रतापी आचार्य भुवनचन्द्रसूरि के शिष्य का वर्णन है जिसे जैनी श्रेष्ठी का सम्मान किया, उनके उपदेश से सीमंधर स्वामी युगमधर स्वामी की प्रतिष्ठा कराई। ऐसा उल्लेख हैं । संवत् 1419, 1505, 1510, 1513, 1531 के लेख आते हैं जिसमें तपागच्छीय आचार्य ने प्रतिष्ठा करने का उल्लेख है । मीरा बाई के मंदिर का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कभी वह जैन मंदिर रहा होगा । शिखर भाग में एक मंगल चैत्य दिखाई देता है। बाईं और व दाई और ऊपर की तरफ तोरण के यहां जिन मूर्तियें दिखाई देती हैं। दाईं और पिछली दीवार में पंचतीर्थी है। अतः वह जैन मंदिर है या जैन मंदिर का पत्थर लगा हो। इसके आगे मोकल राणा के मंदिर हैं जो समधेश्वर मंदिर है । भोजराज द्वारा निर्मित त्रिभुवन नारायण का मंदिर है। मंदिर का जिर्णोद्धार हुआ तब संवत् 1207 का कुमारपाल का लेख है, इस मंदिर के पिछले भाग में जैन मूर्तिओं की कोरणी है। इसके एक के हाथ में मुंहपति है। मंदिर के बाहर बाईं ओर एक दीवार में तीर्थकर भगवान के अभिषेक करते हुए इन्द्र देवता व उनके हाथ में कलश और जिन मूर्ति है, दूसरी दीवार के ऊपर एक जैनाचार्य की मूर्ति है, जिनके हाथ में मुंहपति व दूसरे हाथ में पुस्तक हैं, इनके सामने श्रावक, श्राविका बैठे हैं अर्थात् प्रवचन सुन रहे हैं। इसी प्रकार अन्य जैनाचार्य की मूर्ति भी हैं । 32 For Personal Date Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. भूतल पर उपाश्रय व ज्ञान भण्डार है प्रथम मंजिल पर निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री हरिभद्र सूरि (मूलनायक ) की श्वेत पाषाण की 41 " ऊँची प्रतिमा है। 4. 5. 1. 2. 6. दोनो तरफ : Jain Jucation International श्री हरिभद्र सूरि स्मृति मंदिर, चित्तौड़गढ़ श्री याकिनी महत्तरा ( साध्वी ) धर्ममाता (मूलनायक के ऊपर) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 यह मंदिर पाडनपोल के बाहर (चित्तौड़गढ़ किले पर जाते समय प्रथम दरवाजे के बाहर ) सड़क के किनारे स्थित है। यह नूतन 35 वर्ष पूर्व का निर्मित मंदिर है। इसके संस्थापक श्री जिन विजय जी हैं । श्री हरिभद्र सूरि स्मृति जैन मन्दिर, पाइनपोल चित्तौड़गढ़ श्री जिनभद्रसूरि (मूलनायक के दाए) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। For Persol 133 v श्री जिनदत्त सूरि (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। श्री जिनभद्र की श्वेत पाषाण की 25" ऊँची खड़ी प्रतिमा है । श्री वीरभद्र की श्वेत पाषाण की 25" ऊँची खड़ी प्रतिमा है । CONCOL श्री जिनेश्वर सूरि की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । श्री अभयदेव सूरि की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उक्त सभी प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा संवत् 2029 महासुदि 13 गुरूवार को सम्पन्न हुई और इसी वर्ष का सभी प्रतिमाओं पर उत्कीण लेख हैं। बाहर निकलते समय दाएं: 1. श्री गौरा भैरव की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 चैत्र शुक्ला 13 का लेख है। ___ 2. श्री काला भैरव की पाषाण की 19'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2065 का लेख है। बाहर निकलते समय बाई ओर देवरी में : 1. श्री सिद्धर्षि (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 25" ऊँची प्रतिमा है। इस पर स. 2029 माह सुदि 13 का लेख है। 2. श्री उद्योतन सूरि (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है। इस पर स. 2029 माह सुदि 13 का लेख है। . 3. श्री पुण्य विजय की (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है। इस पर स. 2029 माह सुदि 13 का लेख है। बाहर निकलते समय दाई ओर देवरी में : (क) श्री सिद्धसेन दिवाकर (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है। (ख) श्री जिन वल्लभसूरि (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 25" ऊँची प्रतिमा है। (ग) श्री जिनदत्तसूरि की (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 25" ऊँची प्रतिमा है। इन सभी प्रतिमाओं पर सं. 2029 का लेख है। For Personal 34vals use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. श्री ऋषभदेव जी द्वितीय मंजिल में (श्री महावीर भगवान का मंदिर): श्री महावीर भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2029 माह सुदि 13 का लेख है। श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत श्री मुजिलउतच्वामी जी श्री महावीर स्वामी जी पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2029 माह सुदि 13 का लेख है। 3... श्री ऋषभदेव भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11' ऊँची प्रतिमा है। इस पर स. 2029 माह सुदि 13 का लेख है। धातु की उत्थापित प्रतिमा व यंत्रः 1. श्री शांतिनाथ भगवान की चतुर्विंशति 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर दिनांक _15.02.2009 का लेख है। 2. श्री अष्टमंगल यंत्र 4" x 3' के आकार का है। इस पर स. 2065 का लेख श्री महावीर भगवान की पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 का ज्येष्ठ शुक्ला 6 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 7" गोलाकार है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 4" गोलाकार है। श्री अष्टमंगल यंत्र 5" x 2.5' का है। इस पर सं. 2065 का लेख है। 5. बाहर: श्री मांतगयक्ष की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2029 का लेख है। श्री सिद्धायिका यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 10' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2029 का लेख है। 2. Jan ication International For Persorare le Use Only (35) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीवासुपूज्य स्वामी जी 3. श्री जिनकुशलसूरि की श्वेत पाषाण की 29'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2029 का लेख है। बाहर बाई ओर आलिए में तृतीय मंजिल पर-(श्रीवासुपूज्य भगवान का मंदिर): 1. श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर HAINA 2029 का लेख है। 2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 2029 का लेख है। ___3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 2029 का लेख है। प्रथम मंजिल के बाई ओर - श्री नाकोड़ा भैरव का मंदिर स्थापित है। यहाँ पर श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 31'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2065 चैत्र शुक्ला 13 का लेख है। इसके पास ही श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ का भव्य मंदिर निर्माणाधीन है। वार्षिक ध्वजा माघ सुदि 13 को चढ़ाई जाती है। मंदिर का संचालन श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। इस ट्रस्ट के संस्थापक मुनि श्री जिन विजय जी है। सम्पर्क सूत्र : श्री भगवतीलालजी नाहटा, ___फोन 01472-246149, मो. 9414249118 उक्त प्रतिमाओं के आधार पर टिप्पणी निम्न प्रकार है: 1. श्रीहरिभद्र सूरि जन्म नाम-श्री हरिभद्र जन्म स्थान-चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) माता का नाम – गड्: गाण पिता का नाम – शंकर भट्ट उपनाम – "भव विरह" दीक्षा नाम-मुनि हरिभद्र (आचार्य हरिभद्र सूरि) कुल - अग्निहोत्री ब्राह्मण (पुरोहित परिवार) Use Only For Persopare 36 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 जीवनकाल - विक्रम संवत् 757 से 827 के बीच का निर्धारण श्री जिन विजय के आधार पर विक्रम संवत् 834 में हुआ। जैन परम्परा का इतिहास द्वारा त्रिपुटी के अनुसार श्री हरिभद्र सूरि का स्वर्गवास से 585 में हुआ। अतः आचार्य हरिभद्रसूरि का जीवनकाल 6वीं शताब्दी का निर्धारण होता है। उद्योतनसूरि ने "कुवलयमाला' में आचार्य हरिभद्र सूरि को स्मरण गुरू के रूप में किया है। आचार्य हरिभद्र सूरि षड़ दर्शन के प्रखण्ड विद्वान थे और उन्हें सभी चौदह विद्याओं का ज्ञान था। वे जिन धर्म के विरोधी रहे हैं। उनके शब्दों में हाथी के पैर नीचे कुचल कर मरना स्वीकार था परन्तु जिन्दा रहने के लिए जिन मंदिर में पैर रखना स्वीकार नहीं था। यह उनकी भीषण प्रतिज्ञा थी तथा उन्होंने यह भी प्रतिज्ञा की थी जो कोई उन्हें शास्त्रों में हरा देगा, उसके शिष्य बन जावेंगे। 2. सा. महत्तरा - जैन साध्वी याकिनी महत्तरा (धर्ममाता) अपने उपाश्रय में मधुर कण्ठ से स्वाध्याय घोष प्रवाहित गाथा गा रही थी, उसमें "चक्कि दुर्ग" शब्द का अर्थ समझ में नहीं आ रहा था – मस्तिष्क में काफी दबाव डालकर भी सोचा लेकिन सफल नहीं हुए, अन्त में वे साध्वी जी सम्मुख खड़े होकर उन्होंने उद्घोषणा की आप मेरी आज से धर्म माता हैं और उन्हें इस शब्द की जानकारी देवें। साध्वी जी ने कहा साध्वी को यह अधिकार नहीं था अतः आप उनके गुरू श्री जिनभद्रसूरि के पास जाएं वे ही आपको अर्थ बतलावेंगे और उन्होंने पुनः कहा कि आज से उनकी पहचान याकिनी महत्तरासु होगी। इस प्रकार याकिनी महत्तरा धर्म माता कहलाने लगी। श्री जिनभद्र सूरि - आचार्य श्री हरिभद्र सूरि के गुरू थे। श्री जिनदत्त सूरि - ये हरिभद्र सूरि के विद्यादाता थे। जब हरिभद्र सूरि ने "चक्कि दुर्ग' के अर्थ के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह एक आगम कथा से सम्बन्धित है और उसको पढ़ने के लिए जैन साधु बनना पड़ता है। इसी आधार पर हरिभद्र जी ने कहा कि वे जैन साधु बनने को तैयार हैं, उन्हें वस्त्र दिये जाएं। श्री जिनदत्त सूरि ने उन्हें शुभ मुहूर्त में साधुवेश अर्पण किया और वे जैन मुनि बन गये। शिष्य श्री हंस एवं परमहंस दोनों ही श्री हरिभद्र सूरि के सांसारिक भाणेज थे, दोनों ही विद्वान् थे। वे जैन धर्म के अतिरिक्त बौद्ध धर्म का भी अध्ययन 5. Jeducation International For Personal & Byte Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 करना चाहते थे । हरिभद्र जी के न चाहते हुए उनकी हठ से विवश होकर स्वीकृति प्रदान की और वे बौद्ध के मठ में भिक्षु बन कर प्रवेश कर गये । एक दिन वास्तविकता का ज्ञान होने पर वे भागे लेकिन अन्त में (कहानी लम्बी होने से नहीं लिखी जा रही है) अपने - अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। इस पर क्रोधवश हरिभद्रसूरि ने बदला लेने का प्रण कर लिया। ऐसी परिस्थिति विद्यादाता गुरू ने जैन दर्शन का बोध कराया और बदले में कुछ प्रतिशत ही सफलता प्राप्त कर छोड़ दिया। लेकिन उनके दोनों शिष्यों के अतिरिक्त कोई और शिष्य नहीं था इसी विचारों में तल्लीन रहने लगे। ऐसे समय अम्बिका देवी ने भी हरिभद्र सूरि को कहा कि गुरूकुल वृद्धि का पुण्य तुम्हारे भाग्य में नहीं है, लेकिन सैकड़ों शास्त्र ही तुम्हारे शिष्य बनकर तुम्हें याद करेगा। इस प्रकार उन्होंने 1444 ग्रन्थों की रचना की और यह रचना ही इनके शिष्य माने जा सकते हैं। श्री जिनभद्र - इनका जन्म वीर सं. 1011, दीक्षा सं. 1025 में युग प्रधान पद सं. 1055 में व सं. 1115 में स्वर्गवास हुआ। इन्होंने विशेषाश्यक भाग्य टीका अपूर्ण गाथा 4500, जीतकल्प, सभाष्य विशेषण ग्रन्थ 400, वृहदसंग्रहणी, बृहत क्षेत्रसमास, ध्यान शतक निशीथ भाग्य आदि ग्रन्थों का निर्माण किया। श्री वीरभद्र - ये आठवीं शताब्दी के आचार्य थे। इनके उपदेश से जालोर में भगवान ऋषभदेव का विशाल, मनोहर शिखरबंद मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य उद्योतन सूरि ने की। ये आचार्य तत्वाचार्य के शिष्य थे। उद्योतन सूरि - आचार्य श्री बटेश्वरसूरि श्रमा श्रमण ने इनको चन्द्रकुलीन आचार्य बताया है। इन्होंने "कुवलयमाला' की रचना की यह पहला ग्रन्थ है जिसे जैन अजैन कवियों को स्मरण किया है। इनका नाम भावमयी भाषा में वर्णन किया गया है। जिन वल्लभसूरि - ये चैत्यपरिपाटी के आचार्य थे तथा श्री जिनदत्तसूरि (प्रथम दादा) के गुरू थे। इनकी विस्तृत जानकारी ‘मेवाड़-चित्तौड़ व जैन धर्म' में है। श्री सिद्धसेन दिवाकर - यह महान् विद्वान् थे, इन्होंने चित्तौड़ में रहकर 10. For Perfon 38 niyale Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11. 12. 13. 14. Jain cation International अध्ययन किया। महाराणा विक्रमादित्य को प्रति बोध कर जैन बनाया। इन्होंने अवन्तिका का त्याग कर मेवाड़ को ही अपनी कर्म भूमि बनाई । श्री सिद्धर्षि - 10वीं शताब्दी के महान विद्वान आचार्य थे। ये दुर्ग स्वामी के शिष्य थे, इनके पिता का नाम शुंभकर, माता का नाम लक्ष्मी व पत्नी का नाम धन्या था। ये भीनमाल नगर में रहने वाले थे, इन्होंने दीक्षित गुरू गर्गर्षि था। इन्होंने जैन दर्शन व बौद्ध दर्शन का अध्ययन किया और इन्होंने पाया कि दोनों धर्म के सिद्धान्त अच्छे हैं, उनको अपने आप में जिसका पालन करना चाहिये। यह सोचकर कभी बौद्ध धर्म के भिक्षु के पास तो कभी जैन आचार्य के पास इस प्रकार 21 बार आने जाने के बाद भी निर्णय नहीं ले पाये तो जैन आचार्य ने श्री हरिभद्र सूरि का ग्रन्थ ललित विरतरावत्रि को पढ़ने को दिया। इसका अध्ययन करने के बाद सभी भ्रांतियां दूर होकर जैन धर्म का चयन किया । इन्होंने कई साहित्यों की रचना की। इनके साहित्य की प्रशंसा हर्मन जेकोबी ने भी अपनी पुस्तक में की। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पुण्य विजय जी ये तपागच्छीय मुनि थे। इनका जन्म वि.स. 1952 कार्तिक शुक्ला 5 को कपड़वंज में हुआ । दीक्षा वि.स. 1965 माह वदि 5 को • श्री चतुर विजय ने प्रदान की । ये प्राचीन भाषा के ज्ञाता थे। इन्होंने कई प्राचीन ग्रन्थों का संशोधन कर ख्याति प्राप्त की। कई ज्ञान भण्डारों की सुव्यवस्था की । इनको आगम प्रभाकर कहा जाता है। - श्री जिनेश्वर सूरि-ये खरतरगच्छ के संस्थापक थे। इन्होंने संवत् 1073 में पाटण के दुर्लभराज के समय में अन्य धर्माचार्य के साथ शास्त्रार्थ कर खरे उतरे । इनको खरतर की उपाधि प्रदान की । इसलिए खरतरगच्छ कहलाने लगा । श्री अभयदेव सूरि- ये चेत्यपरिपाटी या चन्द्रकुलीन के महान् आचार्य थे। इन्होंने आगम के 11 अंगो में से अंतिम 9 की टीका लिखी और नवांगी टीकाकार कहलाए तथा सिद्धसेन दिवाकर की सम्मति से गाथा 167 से अधिक 25000 श्लोक तक संस्कृत में टीका बनाई । शौध का विषय है । For Person & PTV 39 Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री महावीर भगवान का मंदिर-चित्तौड़गढ़ शहर यह घूमटबंद मंदिर धींगो का कहलाता है। मंदिर किले के नीचे जूना (प्राचीन ) बाजार में स्थित है। कथनानुसार मंदिर 400 वर्ष प्राचीन है।बाहर शिलालेख भी है लेकिन चूनासीमेन्ट लगने से अपठनीय है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: ___ 1. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 13'' ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। श्री ऋषभदेव भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1624 वै.सु. का लेख है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर सं. 1661 वै.सु. 3 का लेख है। 3. 1 उत्थापित धातु की प्रतिमाए व यंत्र: श्री आदिनाथ भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की चतुर्विशंति 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 15.02. 09 का लेख है। श्री महावीर भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2043 का लेख हैं। For Parso 40% private Use Only . Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 4. श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। श्री कुथुनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2038 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर अपठनीय लेख हैं। श्री सिद्धचक्र यंत्र (नवकार मंत्र) 9" गोलाकार है। इस पर कोई लेख नहीं 9. 10. श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" गोलाकार है। इस पर सं. 2040 का लेख है। यंत्र तांबे का 9" ऊँचा है। इस पर मंत्र उत्कीर्ण हैं। अष्टमंगल यंत्र 6"x 3.5" का है। इस पर 2045 वैशाख शुक्ला 5 का लेख दोनो और आलिओं में: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की (बाईं ओर) श्वेत पाषाण की 15" व परिकर सहित 31" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। 2. श्री नवपद का चित्रपट्ट स्थापित है। 3. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1941 पोष वदी का लेख है।। 4. श्री माणिभद्र वीर की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1941 पोष वदी का लेख है। परिक्रमा परिसर में तीनों ओर देव देवियों व अप्सराओं की मूर्तियाँ हैं। मुख्य दरवाजे पर नगारखाना है व सुन्दर कलाकृति व प्राचीन चित्रकारी विद्यमान है। वार्षिकध्वजावैशाख सुदि 6 को चढ़ाईजाती है। Jain a tion International For Personal P. 41 uge Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री चितामणि पार्श्वनाथ का मंदिर मंदिर से बाहर निकलते समय दाई ओर एक कमरा है जिसको चितामणि पार्श्वनाथ का मंदिर कहा जाता है। कहा जाता है ये मंदिर 800 वर्ष प्राचीन है वर्तमान में एक देवरी में प्रतिमाएं विराजित है। इस देवरी में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है - ___ 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1887 का लेख है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है।इस पर सं. 156 अंक स्पष्ट है चौथा अंक अस्पष्ट है संभवतया 1566 है। श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख नहीं है। श्री पद्मप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) पीत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1959 का लेख है। 5. श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 5" ऊँची प्रतिमा है। इस मंदिर की देखरेख समाज द्वारा की जाती है। सं. 1887 वर्ष में जिर्णोद्धार हुआ, अन्त में सं. 1941 पोष वदी 8 का जिर्णोद्धार हुआ। वार्षिकध्वजावैशाखसुदि 6 को चढ़ाई जाती है, ध्वजादण्ड नहीं है। सम्पर्कसूत्र-समाज की ओर से श्री मिट्ठालालजीबोलिया, फोन 01472-246383 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर (यति जी का मंदिर), पुराना बाजार, चित्तौड़गढ़ यह मंदिर श्री आदिनाथ भगवान का है यति जी किसी व्यक्ति को दर्शन के अतिरिक्त सेवा पूजा नहीं करने देते है । वह इनका निजी मंदिर है। For pers 42 Plivate Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 'श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, गिलण्ड यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 20 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है।उल्लेखानुसार यह आदिनाथ भगवान का मंदिर 100 वर्ष प्राचीन है। वर्तमान में पार्श्वनाथ भगवान का है। मंदिर के बाहर शिलालेख है, जिसमें संवत् 1991 का सन्दर्भ है और गाँव के सदस्यों के अनुसार इसका निर्माणसंवत् 1982 में हुआ। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं: ___ 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा ' है। इस पर वि.संवत् 2008 वीर सं. 2478 माघ सुद 6 का लेख है। केवल नीचे का पट्ट 11' x 13" श्याम पाषाण का है। 2. श्री वासुपूज्य भगवान की श्वेत पाषाण की 7' ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। नीचे की वेदी पर आदिनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। पूर्व में यह प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजित थी। उत्थापित प्रतिमाएंव यंत्र धातु की : 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2018 का लेख है। 2. श्री आदिनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1533 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 4. श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5'' गोलाकर है। इस पर संवत् 2018 का लेख है। 5. श्री अष्टमंगल 5" x 3" का है। इस पर संवत् 2018 का लेख है। Ja Education International For Personk 243. Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर1. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। जिन मंदिर (गम्भारा) के बाहर ऊपर श्री गणेश की मूर्ति है। पुजारी द्वारा नियमित पूजा होती है। मंदिर की 2 बीघा जमीन है। वार्षिक ध्वजा भादवा सुदि 5 को अनियमित चढ़ाई जाती है। पोष वदि 10 को चढ़ाने का प्रस्ताव विचाराधीन है। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री डूंगरवाल व श्री अमृतलाल जी चोपड़ा करते हैं। बाहर शिलालेख में संवत् 1991 का सन्दर्भ है। पूर्व में जिर्णोद्धार सं. 2055 (ई. 1998) में समपन्न हुआ। सम्पर्कसूत्रफोन : 01472-280666 'आग्रह' 'अहंकार' का फोटो है। सामनेवाले में कितना अहंकार है, यह उसके आग्रह द्वारा जाना जा सकता है। Forfer 44 Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, घटियावली यह पाटबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 15 किलोमीटर दर ग्राम के मध्य में स्थित है। यह मंदिर 100 वर्ष से अधिक प्राचीन है। यह तृतीय श्रेणी का ठिकाना रहा है। यहां के वंशज शक्तावत रहे हैं। चित्तौड़ पर मुगल आकमण के समय यहां के लोगों ने बलिदान दिये हैं, जिसके लिए इतिहास में यहां का नाम ऊपर हैं। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : 1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1962 पोष वदि 3 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा 3. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1962 पोष वदि 3 वृहस्पतिवार का लेख श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 3.5" ऊँची धातु की प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। J Educaleminton Jelmelilemorymarg Pornemomentiretendeonony (45 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर: श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 9' ऊँची है। श्री पद्मावती देवी की खण्डित प्रतिमा है। ध्वजादण्ड उपलब्ध नहीं होने से वार्षिकध्वजा नहीं चढ़ाई जाती है। मंदिर की 4 बीघा जमीन है, चित्तौड़ शहर में भी दो दुकानें होने की जानकारी है। ऐसी जानकारी है कि दुकानें बेच दी हैं। शोध का विषय है। मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री सोहनलाल जी गांग, शांतिलाल जी गांग करते हैं। इस जगत में कर्ता पुरूषों के लिए 'मेहनत' है और अकर्ता पुरुषों के लिए 'वेभव' है। For Perso46&tivate Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर सेंती, चित्तौड़गढ़ wwwwwww000000 100000000000000 TIMIMOONamod 1000000MM DOMMO यह घुमटबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ रेल्वे स्टेशन से 2 किलोमीटर (उदयपुर सड़क मार्ग पर) दूर स्थित है। यह नूतन 25 वर्षप्राचीन मंदिर है। इसकी भा मि श्री हीरालाल जी दोशी व श्री आनन्दीलाल जी नागौरी ने ने राज्य सरकार से धर्म कार्य के लिए आवंटन कराई जिसके फलस्वरूप यहां पर आस-पास ही शिव, हनुमान, गायत्री मंदिर उपाश्रय, स्थानक भी हैं। इस मंदिर की प्रतिष्ठा संवत् 2041 दिनांक 3.05.1985 को श्री जितेन्द्रविजयजी म.सा.द्वारा सम्पन्न हुई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) पिंक पाषाण की 19' ऊँची प्रतिमा है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा 3. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। Ja Education International For Personaxevate Use Only 47 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इन तीनों प्रतिमाओं पर 2040 पोष कृष्णा 5 का लेख है। वेदी की दीवार के मध्य में प्रासाद देवी की 7' ऊँची प्रतिमा है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएंव यंत्र 1. श्री नेमिनाथ भगवान की चतुर्विशंति 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। 2. श्री महावीर भगवान की 10.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। श्री वासुपूज्य भगवान की 5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2053 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा है। श्री सिद्धचक्र यंत्र ताम्बे का 6.5" x 3.5” का है। इस पर कोई लेख नहीं श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" गोलाकार है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। 7. श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। 8. श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3' का है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। उपाश्रय बना हुआ है। वार्षिक ध्वजा वै. शु. 13 को चढ़ाई जाती है। इसकी देखरेख समाज द्वारा की जाती है जिसके अध्यक्ष श्री हीरालाल जी दोशी है सम्पर्कसूत्र-01472-241018 For Perpong Pyate Use Only www.jainelibrary org Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 भवनसानसीजनरच्यमाथामकावर श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, चित्तौड़गढ़ (रेल्वे स्टेशन) यह उत्थापित देरासर है। इसकी स्थापना जैन गुरूकूल में सन् 1989 में हुई और मंदिर प्रतिमा परिकर आदि सभी धातु केहै। मंदिर में निम्न धातु की प्रतिमाएँ विराजमान है: श्री मुनिसुव्रत भगवान की 10" परिकर सहित 18" व मंदिर तक 37" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् वि.सं 2042 माघ कृष्णा 2 का लेख है। अन्य प्रतिमाएँ: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 5" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर दिनांक 9.1.2002 का लेख हैं। श्री सुविधिनाथ भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 1524 आषाढ़ सुदि 9 का लेख हैं। श्री आदिनाथ भगवान की 6.5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 1466 आषाढ़ सुदि 9 का लेख हैं। श्री जिनेश्वर भगवान की 11" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर कोई लेख नहीं है। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 1.7" ऊँची (परिकर सहित) प्रतिमा हैं। 6. श्री देवी की 2" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर कोई लेख नहीं हैं। LDN Jaducelente Hindee awajalmanorarysorg 49 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 ____7. श्री नमिनाथ भगवान की चर्तुविशति 11' ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 1593 ज्येष्ठ सूदि 3 गुरूवार का लेख हैं। 8. श्री सिद्धचक्र यंत्र 6" का गोलाकार है। इस पर माघ सुदि 5 का लेख है। रेल्वे स्टेशन के पास जैन गुरूकूल है, जैन धर्मशाला है, भोजनशाला है। इसके पीछे जमीन है। इसकी देखरेख गुरूकूल के सदस्य द्वारा की जाती है। गुरूकुल की स्थापना सन् 1945 में आचार्य श्री नीतिसुरीश्वर जी म.सा. के सदुपदेश से की गई। पूर्व में यह गुरूकुल किराये के भवन में संचालित रहा तत्पश्चात् वर्तमान भवन जो सहयोग द्वारा निर्मित है उसमें संचालित है। श्री नीतिसुरीश्वर जी म. सा. चित्तौड़ जिर्णोद्धारक एवं समाज सुधारक थे । समाज की ओर से सम्पर्कसूत्र-श्रीहीरालालजीदोशी, फोन 01472-241018 कुदरत का नियम ऐसा है कि प्रत्येक को अपनी जरूरत के अनुसार सुख मिल ही जाता है। जिसने जो ‘टेन्डर' भरा है, वह पूरा होता ही है। For Personaeropte Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. Jain Edation International श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर - घोसुण्डा उत्थापित धातु की प्रतिमाएं : 1 यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 20 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। यहाँ | रेल्वे स्टेशन है। यह ग्राम 2000 वर्ष प्राचीन है नान और मंदिर 700 वर्ष प्राचीन बतलाते हैं। प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख के आधार पर भी सही प्रतीत होता है। बाहर की ओर स्वागत करते हुए दो हाथी बने हैं । पूर्व में ग्राम में 200 जैन परिवार थे अब केवल तीन परिवार रहते हैं । टेन्ट ह इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1717 शाके 1582 पोष सुदि 13 का लेख महाराजा करणसिंह जी के राज्यकाल का है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा है। यह प्रतिमा पूर्व में उपाश्रय में थी । इसके नीचे संवत् 1335 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1570 का लेख है। 1. For Personer & Private Use Only 51 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 2 3 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सुमतिनाथ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1616 वैशाख सुदि 6 का लेख है। श्री सम्भवनाथ भगवान की 4" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1893 माघ 10 का लेख है। मंदिर के साथ 12 बीघा जमीन है जो पुजारी के पास है तथा दो दुकाने हैं जो समाज के सदस्यों के पास हैं। इससे प्राप्त नकद राशि से ही मंदिर का व्यय होता है। वार्षिक ध्वजा पोष वदि 10 को चढ़ाई जाती है । सम्पर्क सूत्र : श्री मदनलालजी अम्बालालजी सेठ फोन : 01474-227189, श्री दिनेश जी जैन, मोबाइल : 9829566135 'मेरा क्या होगा?' कहा कि बिगड़ गया । इसका अर्थ यह है कि आपकी दृष्टि में 'आत्मा' की गणना ही नहीं है। भीतर अनन्त शक्ति माँगिए न ! For Per 521 ate Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री अजितनाथ भगवान का मंदिर, सावा यह प्राचीन मंदिर चित्तौड़गढ़ से 10 किलोमीटर दूर है। उल्लेखानुसार पूर्व में इस मंदिर का निर्माण संवत् 1700 के लगभग का बताया गया है और प्रतिमा पर भी सं. 1699 उत्कीर्ण है। वि. की 16वीं शताब्दी में गांव में जैन परिवार के 365घर थे।इसलिए सावाका नाम शाहवास था, बाद में अपभ्रंश होकर सावा कहलाने लगा। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है: 1. श्री अजितनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1699 वैशाख शुक्ला 9 का लेख है। श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) धातु की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री ऋषभदेव भगवान की (मूलनायक के बाएं) धातु की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी स्थापित है। दोनों ओर आलिओं में: 1. श्री महायक्ष की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री अजितबाला यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 10' ऊँची प्रतिमा है। Ja Education International For Persyarmale Use Only 53 530Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 उत्थापित धातु की प्रतिमाए व यंत्र : 1. 2. 3. 4. 5. 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री शांतिनाथ भगवान की चतुर्विंशति 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 15.02.09 का लेख है । 6. सभामण्डप में : श्री आदिनाथ भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है । श्री जिनेश्वर भगवान की 3" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1628 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 4" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1662 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। श्री अष्टमंगल यंत्र 5” x 2.5" का है। इस पर संवत् 2065 का लेख है । श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 10 ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2044 ज्येष्ठ शुक्ला 2 का लेख है। श्री माणिभद्र की स्थानीय पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा है। मंदिर का जिर्णोद्धार होकर प्रतिष्ठा 29 मई 1987 को ज्येष्ठ सुदि 2 को सम्पन्न हुई । मंदिर के सामने उपाश्रय बना हुआ है व इसकी 8 बीघा जमीन है । वार्षिक ध्वजा ज्येष्ठ सुदि 2 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से देखरेख श्री कन्हैयालाल जी चावत करते हैं । सम्पर्क सूत्र- 01472-223023 श्री शांतिलाल जी पीतलिया, मोबाइल : 9928050819 For Perso 54 Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. 4. 5. Education International श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, गंगरार यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से (भीलवाड़ा जाने वाली सड़क पर ) 20 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। यह ग्राम बहुत प्राचीन है और कथनानुसार ग्राम के साथ ही आदिनाथ भगवान का मंदिर का निर्माण होना बताया गया। संवत् 1100 का निर्माण होने का उल्लेख है। समय काल के साथ क्षतिग्रस्त हो गया और बाद में पुनः जीर्णोद्धार होकर संवत् 2045 में नूतन रूप से प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: 1. श्री शीतलनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1909 माघ सुदि 5 का उल्लेख है । श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1909 का लेख है । श्री जिनेश्वर भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। भगवान की श्री पार्श्वनाथ (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 9 ऊँची प्रतिमा है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री धर्मनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 10 " ऊँची प्रतिमा है । For Personal 55 te Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 6. 7. उत्थापित धातु की प्रतिमाएं व यंत्र : 1. दोनों ओर : 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. 3. श्री शीतलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी की 4" ऊँची प्रतिमा स्थापित है । श्री नेमिनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 वैशाख शुक्ल 5 का लेख है। श्री क्षेत्रपाल की चार प्रतीक मूर्तियां है। सभामण्डप में चित्रपट्ट बने हैं श्री गौतम स्वामी, पावापुरी, तारंगा जी, श्री घंटाघर महावीर, ऋषभदेव, नाकोड़ा भैरव आदि । श्री गौमुख यक्ष की 10" ऊँची प्रतिमा है। श्री चक्रेश्वरी देवी की 10" ऊँची प्रतिमा है । - उपाश्रय बना है वहाँ पर सभी सम्प्रदाय के साधु भगवंत ठहरते हैं । प्राचीन मंदिर होने की अवस्था में खेती की जमीन भी होगी। ज्ञात करना चाहिये। इस मंदिर की देखरेख समाज द्वारा की जाती है। वार्षिक ध्वजा भादवा सुदि 5 को चढ़ाई जाती है । सम्पर्क सूत्र - श्री मिश्रीलाल जी कोठारी श्री मोतीलाल जी आंचलिया फोन : 01471-220053 56 Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, बेगू (शहर) ____ यह पाटबंद मंदिर चित्तौडगढ़ से 50 किलोमीटर दूर शहर के मध्य में स्थित है। कथनानुसार यह मंदिर 500 वर्ष प्राचीन मानते हैं। उल्लेखानुसार सं. 1781 का निर्मित है। यह यति का मंदिर था, जिसकी यति श्री रतनलाल जी द्वारा देखरेख की जाती थी, 50 वर्षों से समाज को सुपूर्द किया।पूर्व में यति का मकान व उपाश्रय रहा है। बेगूं की जागीरी सत्यव्रत चूण्डा मुख्य वंशधरखेंगार के पुत्र गोविन्ददास की दीगई मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1421 का लेख है। 2. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1860 फाल्गुण सुद का लेख है। 3. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1860 का लेख है। उत्थापितचल प्रतिमाएँव यंत्र धातु की: ___ 1. श्री सम्भवनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2050 का लेख 2-3-4 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.3" , 3" , 2" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 5. श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2048 का लेख Jain E lon International For Personal use only For Person (57) only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 6. 7. 11. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 8. - 9 श्री ताम्रपत्र यंत्र 9 " x 7", 3" x 2" मंत्र युक्त है । 10. 1. 2. श्री धर्मनाथ भगवान की 12" ऊँची चतुर्विंशति प्रतिमा है। इस पर सं. 2038 का लेख है । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 5" का है। इस पर सं. 2048 का लेख है । श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर सं. 2038 का लेख है I वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी स्थापित है । दोनो ओर आलिओं में : श्री जिनेश्वर भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है । इस पर सं. 2051 का लेख है । 1. 2. श्री पद्मावती देवी की श्याम पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2053 का लेख है। बाहर सभामण्डप में : श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। क्षेत्रपाल की दो प्रतीक प्रतिमाएँ 11” ऊँची स्थापित है । मंदिर में सुन्दर कांच की जड़ाई की हुई है। वार्षिक ध्वजा दिनांक 4 दिसम्बर को चढ़ाई जाती है । देखरेख समाज के निम्न प्रतिनिधि करते हैं । श्री पार्श्वयक्ष की श्याम पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । इस पर सं. 2053 का लेख हैं । श्री अभयकुमार पंचोली, मोबाइल : 94607151178 श्री गुलाबसिंह जी पगारिया, मोबाइल : 9468659746 For sc58 Private Use Only . Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री महावीर भगवान का मंदिर, बेंगू (किला) यह शिखरबंद मंदिर चित्तौडगढ़ से 50 किलोमीटर व बेगूंशहर से ऊपर 2 किलोमीटर दूर राजमहल के पास | स्थित है। कहा जाता है कि यह मंदिर 500 वर्ष पुराना है। यह मंदिर यति जी बैंकला का ही रहा है, ऊपर यतिजीका उपाश्रय है। मेवाड़ का यह प्रथम श्रेणी का ठिकाना रहा है तथा यहाँ के शासक मेघावत वंशकहलाते हैं तथा इनका पाग के बंदचूण्डावती है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है। प्रतिमा पर लेपन किया गया है, लेख स्पष्ट नहीं होता। यह प्रतिमा बम्बावड़ागढ़ (जोगणिया माता) से लाई गई है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की | (मूलनायक के दाएं) श्वेत | पाषाण की 11' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1869 का लेख है। 23. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। नीचे की वेदी पर श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर सं. 1662 का लेख है। नैत्र (चक्षु) नहीं हैं। कांच की सुन्दर जड़ाई की हुई है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: श्री शांतिनाथ भगवान की 9' ऊँची चतुर्विंशति प्रतिमा है। इस पर सं. 1468 का लेख हैं। 2. mhila Jain Eucation International For Persona 5 gate Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री जिनेश्वर भगवान की 3.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख 3. ताम्रपत्र यंत्र गोलाकार 6" ऊँची है। इस पर संवत् 1985 का लेख है। बाहर क्षेत्रपाल की प्रतीक प्रतिमा स्थापित है। वार्षिक ध्वजा भाद्रपद सुदि नवमी को चढ़ाई जाती है। मंदिर की व्यवस्था समाज की ओर से श्री विजय जी नागोरी द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र - 9413895707 श्री रत्नप्रभ गुरु मंदिर बेगूं (किला) यह पाटबंद मंदिर बेगू किले की ओर महावीर भगवान का मंदिर जाने के मार्ग पर स्थित है। इसमें श्री रत्नप्रभ सूरि की श्वेत पाषाण की प्रतिमा स्थापित लवंशकेशंसापक प्राचार्यस्नग्रासूरि। मेतिरबैंग संयोग इकट्ठा करने में लोग समय बिगाड़ते हैं जबकि संयोग तो कुदरत ही इकट्ठा कर देती है। For Pyren Private Use Only (60) Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, बस्सी यह घूमटबंदमंदिर चित्तौड़गढ़ से 20 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है।पूर्व में यह यति जी का शांतिनाथ भगवान का मंदिर था।वर्तमान में भी यति जी का उपाश्रय व मंदिर समाज के पास ही हैं। वर्तमान के सम्भवनाथ भगवान का मंदिर की भूमि श्री रोशनसिंह जी दलपति सिंह जीवचन्द्रसिंह जी कोठारीद्वारा भेंट दीव निर्माण कराया गया। पूर्व का मंदिर 500 वर्ष प्राचीन है। जिसकी स्थापित प्रतिमाएँ नूतन मंदिर में स्थापित की गई।यह तृतीय श्रेणी का ठिकाना रहा है।यहां के शासक सांगावत कहलाते हैं। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 1. श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संव् 2054 का लेख हैं। 2. श्री कुंथुनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2052 का लेख है। 3. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2054 का लेख है। नीचे की वेदी पर: _ 1. श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1678 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँवयंत्र: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 4" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई . लेख नहीं है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। Jain ducation International For Personk 26 lat) Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 धातु की: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1593 ज्येष्ठ वदि 3 का लेख है। 3. श्री सम्भवनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 वैशाख सुदि 5 का लेख हैं। 4. श्री नेमिनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। यह आचार्य जितेन्द्रसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित है। 5. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर सं. 2044 का लेख है। 6. श्री अष्टमंगल यंत्र 6'' x 3.5'' का है। इस पर सं. 2045 वैशाख सुदि 5 का लेख है। 7. श्री अष्टमंगल यंत्र 5" x 2.5'' का है। इस पर संवत् 2054 माघ सुदि 13 का लेख है। वेदी की दीवार के बीच प्रासाददेवी स्थापित है। आलिओं में दाहिनी ओर: 1. श्री त्रिमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 10'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2055 का लेख हैं। बाई ओर: 1. श्री दुरितारी यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 10'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2055 का लेख है। ___ आलिए में – गुरू पादुका 12"x 8' के पट्ट पर स्थापित है। इस पर अस्पष्ट लेख है। श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। मंदिर में प्रवेश करते समय बाईं ओर आलिए में – श्री रत्नप्रभ सूरि की श्वेत पाषाण की 13'' ऊँची प्रतिमा है। वार्षिकध्वजामगसर सुदि 10 को चढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्रीचन्द्रसिंह जी कोठारीद्वारा स्थानीय स्तर पर श्रीनरपत जीकोठारीद्वारा की जाती है। For Perfon 69 Pyate Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 कीदास यावाविदयारमाशी श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, पारसोली ___ यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 30 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। पूर्व में यह घूमटबंद श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर उल्लेखानुसार 300 वर्ष प्राचीन है। वर्तमान में नूतन जिनालय बनाकर प्रतिष्ठा सम्पन्न कराई। यहां मेवाड़ का प्रथम श्रेणी का ठिकाना रहा है तथा यहां के शासक श्रीरामचन्द्र चौहान के वंशज हैं तथा पाग के बंद अमरशाही हैं। इनकी राव की उपाधि है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 15 का उल्लेख है। श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2050 चैत्र शुक्ला 4 का लेख हैं। श्री विमलनाथ भगवान की | (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2050 का लेख है। ___ मूल वेदी के नीचे की वेदी पर श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की " ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। Jeducation International For Persona 63 vale Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. श्री पद्मावती देवी की 5” ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1929 का लेख ह । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर संवत् 2052 वैशाख शुक्ला 4 का लेख है । वेदी के दीवार के बीच श्री प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है। 2. सभामण्डप में बाई ओर : 1. 2. 1. दाहिनी ओर : 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. आगे की ओर : 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर संवत् 2052 ज्येष्ठ शुक्ला 11 का लेख हैं । श्री आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 20 " ऊँची प्रतिमा है । श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। श्री सम्भवनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2052 द्वितीय वैशाख शुक्ला 4 का लेख है। ग्राम के सदस्यों के अनुसार ग्राम 125 वर्ष प्राचीन है। इसमें दो प्रतिमाएँ प्राचीन है, शेष नूतन है । 3. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । श्री रत्नप्रभ सूरि की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । 4. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। श्री गौमुख यक्ष की श्याम पाषाण की 10 " ऊँची प्रतिमा है। मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री गौतमकुमार जी पीतलिया द्वारा की जाती है । सम्पर्क सूत्र- 01474-230419 For Personal & Private Use Only 64 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 SIABETABया 2.. श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, बिछोर (भिचोर) यह घूमटबंद मंदिर चित्तौड़ से 30 किलोमीटर दूर है। उल्लेखानुसार यह 300 वर्ष प्राचीन है। पूर्व में शान्तिनाथ भगवान कामंदिर था। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँवयंत्र स्थापित हैं : 1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 11' ऊँची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट घिसा हुआ लेख है, केवल 'उसवाल' पढ़ने में आता है। श्री नमिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की g" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 9' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: ___ श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9' ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की 3' ऊँची प्रतिमा है। श्री सुमतिनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 वैशाख सुदि 5 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" का है। इस पर संवत् 2045 वैशाख सुदि 5 का लेख है। Education International For Pershna65rive Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 5. श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर संवत् 2045 का लेख हैं । श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1511 का लेख है । 7. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2.3" की प्रतिमा है । पूर्व में जीर्णोद्धार सं.2006 में सम्पन्न हुआ। वर्तमान में जीर्णोद्धार की आवश्यकता है । ध्वजा दण्ड टूटा हुआ है । वार्षिक ध्वजा नहीं चढ़ाई जाती है । व्यवस्था संग्रहित धन 2.00 लाख के ब्याज की राशि से की जाती है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 6. समाज की ओर से देखरेख श्री बसन्तीलाल महता व श्री महावीर जी महता करते हैं । सम्पर्क सूत्र - 9799102359, 9982774740 भिरवारी को कुछ देना ही, ऐसा कायदा नहीं है, लेकिन ‘तिरस्कार’तो कभी नहीं करना चाहिए । For Person Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री अरनाथ भगवान का मंदिर, नंदवई यह पाटबंद मंदिर चित्तौड़ से 35 किलोमीटर दूर है। यह 200 वर्ष प्राचीन शांतिनाथ भगवान का मंदिर था।यह जिले में एक ही मंदिर है जहां पर श्वेताम्बर व दिगम्बर प्रतिमाएँ विराजमान है।दोनो समुदाय के सदस्य संयुक्त रूप से मिलकर कार्य करते है, पूजाअर्चना करते हैं। पूर्व में शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा चोरी हो जाने से श्वेताम्बर प्रतिमा श्री अरनाथ भगवान की विराजमान कराई गई। एक प्रतिमा चित्तौड़गढ़ से, एक बिजौलिया से लाकर विराजमान कराई गई। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री अरनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2054 फाल्गुण कृष्णा सुदि 3 का लेख है। (यह दिगम्बर मूर्ति श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2054 का लेख है। (यह दिगम्बर मूर्ति है)। उत्थापित चल प्रतिमाएँव यंत्र: 1. श्री अरनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 3" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री शांतिनाथ भगवान की धातु की 6" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. Jain a tion Interational For Persena 67 ve Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 4-6 तांबे का गोलाकार श्री यंत्र 7" का है। इस पर सं. 1694 माघ सुद 5 का लेख हैं । नवकार मंत्र का ताम्बे का पत्र 3.3" ऊँचा है। माणिभद्र की (क्षेत्रपाल) की 10", 7" व 7" ऊँची प्रतिमा है। ग्राम में 4 श्वेताम्बर व 2 दिगम्बर समाज के सदस्य रहते हैं। मंदिर का खेत है, दुकाने हैं, पीछे खुली जगह है । समाज ओर से व्यवस्था श्री कैलाश कुमार जी करते हैं। चार्ज श्री कैलाश जी जैन के पास है । सम्पर्क सूत्र- 01474-252311 पूरा जगत लक्ष्मी को स्थिर करने की कोशिश में लगा हुआ है लेकिन लक्ष्मी जाने के लिए ही आई है और आने के लिए ही जाती है। For Personal & Private Use Only 68 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सुविधिनाथ भगवान का मंदिर, अणुनगरी रावतभाटा ___ यह शिखारबंद नूतन मंदिर निर्माणाधीन है। चित्तौड़गढ़ से 125 किलोमीटर दूर है। पूर्व में शहर के बाजारनं.2 में स्थापित यति जी का 50 वर्ष प्राचीन मंदिर में स्थापित आदिनाथ भगवान की प्रतिमा भी अणुनगर लाई गई। यह खरतरगच्छीय | मंदिर है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है: 1. श्री सुविधिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इन तीनों प्रतिमाओं पर वि.सं. 2059 फाल्गुण सुदि 7 का लेख है। नीचे की वेदी पर श्री आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। कोई लेख नहीं है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की 7' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। ___ श्री सुमतिनाथ भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1529 आषाढ सुदि 2 का लेख है। Jarducation International For Persone ale Use Only For per ( 69 Yale Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 3. 4. है। 5. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 6. 7. 8. 9. बाहर की ओर : 1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की 6.5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1510 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.5" ऊँची प्रतिमा है । 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 3.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1699 का लेख है । बीस स्थानक यंत्र गोलाकार 10" का है। कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5" का गोलाकार है। कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5" का गोलाकार है । कोई लेख नहीं है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। निम्न प्रतिमाएँ जो एक कमरे में अस्थाई रूप से विराजित हैं, उन्हें स्थायी स्थान पर विराजमान की जावेगी । श्री अजित यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2059 का लेख है। श्री सुतरका यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2059 का लेख है । श्री जिनकुशल सूरि की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है । 2. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । 3. श्री घंटाकर्ण महावीर की श्वेत पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा है। श्री अम्बिका देवी की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। 4. इन सभी प्रतिमाओं पर संवत् 2059 का लेख है। तीन मंगलमूर्तिएँ भी हैं । वार्षिक ध्वजा फाल्गुण शुक्ला 7 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की देखरेख श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ, अणुनगरी रावतभाटा द्वारा की जाती सम्पर्क सूत्र - श्री कमलेश जी गिलानी, मोबाइल : 9414940062 श्री अशोक जी लोढ़ा, मोबाइल : 9413317573 श्री दिनेश वराड़िया, फोन : 01475-233425 For Per 70 vate Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री केसरियानाथ भगवान का मंदिर, भैसरोड़गढ़ यह पाटबन्द मंदिर चित्तौड़ से 75 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि यह मंदिर 350 वर्ष प्राचीन है और यतिजी श्री कृष्णकान्त सौभाग्य का मंदिर कहलाता है। वर्तमान में भी मंदिर में यति परिवार ही रहता है और इसी परिवार द्वारा देखरेख की जाती है। यह नगर प्रथम श्रेणी का ठिकाना रहा है। मेवाड़ शासक ने कृष्णावत वंश को जागीरी सुपुर्द की व पाग के बंद मानशाही रही है। यह एक निजी व घर मंदिर है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: 1. श्री केसरियानाथ भगवान की (मूलनायक) मटिया (स्थानीय) पाषाण की 19' ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 13" ऊँची • प्रतिमा है। इस पर संवत् 1768 फाल्गुण सुदि 2 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर भुवनभानु सूरीश्वर का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 9'' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर वीर सं. . 2511 पोष वदि 6 का लेख है। 2-4 श्री जिनेश्वर भगवान की 3.5", 1.5", 1.5" ऊँची प्रतिमाएँ हैं। 5. श्री जिनेश्वर भगवान की 3.5" ऊँची चतुर्विंशति प्रतिमा है। इस पर सं. 1296 माघ सुदि 6 का लेख है। 6. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर मूल संघ का लेख 2 7. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1656 का लेख 8-9 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.5" (मय स्टेण्ड) व 1.7" ऊँची प्रतिमा है। Jain a tion International For Personale D ale Use Only (71) Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 10. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 4.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1618 मूल संघ का लेख हैं। 11. श्री आदिनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1506 ज्येष्ठ सुदि 4 का लेख है। 12. श्री आदिनाथ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1524 वैशाख सुदि 5 का लेख है। 13. श्री शांतिनाथ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1469 का लेख है। 14. श्री अजितनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1572 फाल्गुण सुदि 8 का लेख है। 15. श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1525 माघ वदि 6 का लेख है। 16. श्री शासन देव चैत्यालय का ताम्बे का यंत्र गोलाकार 7" का है। 17. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर वीर सं. 2511 का लेख है। 18-19 श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर वीर सं. 2511 पोष वदि 6 का लेख है। मंदिर के बाहर भाग के एक आलिए में श्री माणिभद्र जी 24'' ऊँची प्रतीक प्रतिमा है। इसी वर्ष सं. 2066 वैशाख सुदि 3 सोमवार को जीर्णोद्धार कराया गया है। मंदिर की 11 बीघा जमीन है जो यति परिवार के पास है। वार्षिकध्वजावैशाख सुदि 3 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से देखरेख श्रीमुकेशजीजैन द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्रः श्रीमती उषाजैन, फोन 01475-232113, 97846 99312 For Personas Use Only (72) Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जैन श्वे. मन्दिर बस्ती (जब श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, बस्सी (आम्बा) यह शिखरबंद नूतन मंदिर जावद (म.प्र.) से 20 किलोमीटर दूर है, कहा जाता है कि इस ग्राम को बसे हुए करीब 350 वर्ष हुए हैं, तब ये एक कच्चे केलुपोश मकान में ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा विराजित थी, उसका जिर्णोद्धार करा नूतन मंदिर का निर्माण कराया। प्रतिष्ठा सं. 2065 पोष वदि 2 को पद्मभूषण विजयजी व श्री | निपुणरत्न जी की निश्रा में सम्पन्न हुई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं 1. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इन पर कोई लेख नहीं है। 3. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 10' ऊँची प्रतिमा है। नीचे वेदी पर श्याम पाषाण की श्री ऋषभदेव भगवान की श्याम पाषाण की 5" ऊँची श्री पार्श्वनाथ भगवान की 1.7" व महावीर भगवान की 2" ऊँची प्रतिमा है। इन तीनों प्रतिमाओं को यहाँ विराजित कराई जो 400 वर्ष प्राचीन बताई जाती है। वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 5" ऊँची प्रतिमा Janucation International For Person For Person (73) Use Only a ne Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर सभामण्डप में: श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। मंदिर की 1.75 बीघा कृषि भूमि है। यहां एक ही परिवार निवास करता है, वही पूजा व देखरेख करता है। वार्षिकध्वजापौष वदि 2को चढ़ाईजावेगी। समाज की ओर से सम्पर्क सूत्र : श्री कन्हैयालालजी गोखरू, ___ फोन 01475-211649, मो. 9351463794 यदि मतभेद हो जाए तो वहाँ अपने शब्द वापस रवींच लें, यह समझदार पुरुषों की निशानी है। For perso74 rivate Use Only www.jainelibraryorg Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, भदेसर ___ यह घूमटबंद मंदिर मंगलवाड़ चौराहा से 18 किलोमीटर दूर है। उल्लेखानुसार, कथनानुसार यह मंदिर संवत 1800 के लगभग निर्मित है। यह द्वितीय श्रेणी का ठिकाना रहा है।सलूम्बर के रावल भीमसिंह के दूसरे पुत्र भैरवसिंह के वंशज हैं। इनको रावत की उपाधि दी। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । इस पर संवत 2024 चैत्रसुदि 3 का लेख है। श्री आदीश्वर भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । उत्थापित प्रतिमाएँएवं यंत्रधातु की: श्री आदीश्वर भगवान की 7' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत 2051 का लेख है। Jaducahematoma wwwsanellsary.org For Personal private user um (75 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 2 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5 गोलाकार है । इस पर संवत 2051 चैत्रसुदि 13 का लेख है । वार्षिक ध्वजा नहीं चढ़ाई जाती है। मंदिर के भवन की स्थिति व व्यवस्था के बारे में विचार करना चाहिए। मंदिर के पास ही उपाश्रय है । वर्तमान में सकलेचा परिवार रूचि लेता है लेकिन व्यवस्था असंतोष की परिभाषा में आती है। जीर्णोद्धार की आवश्यकता है । प्राचीन प्रतिमा चोरी हो गई थी, उसका वाद न्यायालय में चल रहा है । भदेसर स्थानकवासी आचार्य श्री शांतिमुनि म.सा. की जन्म स्थली है । समाज की ओर से सम्पर्क सूत्र - मोबाइल : 995018088 यदि जगत में 'गेस्ट' की हैसियत से रहना आ गया तो मानो पूरा जगत आपका अपना है। For Personal & Private Use Only 76 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएँ) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची है। इस पर कोई लेख नहीं है I श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, भादसोड़ा यह घूमटबंद मंदिर मंगलवाड़ चौराहा से 15 किलोमीटर व चित्तौड़गढ़ से 30 किलोमीटर दूर, ग्राम के बीच स्थित है। नजदीक का रेल्वे स्टेशन चित्तौड़गढ़ है। कथनानुसार यह मंदिर करीब 200 वर्ष प्राचीन होना बताया गया है, जो प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार सही प्रतीत होता है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है। इस पर या सामन्य विक्रम संवत 1852 वैशाख शुक्ला या अतिसु 5 (राजा केसरीसिंह जी) का लेख तथा सु है। 3. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। 4. श्री महावीर भगवान (मूलनायक के दाएँ) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1886 का लेख है । उत्थापित धातु की प्रतिमाएं एवं यंत्र : 1. 2. 3. की Ja Education International मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 pular rider . 5. श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएँ) श्याम पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । For Pergorevate Use Only 77 य S Us समाधान 12035.0 EROEEDB श्री चतुर्विशति 12” ऊँची प्रतिमा है। इस पर दिनांक 15.02.09 का लेख है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है । इस पर सं. 1521 माघ सुदि 2 का लेख है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की 4" ऊँची प्रतिमा है। (इस पर आरजण लिखा है) Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 4-6 श्री जिनेश्वर भगवान की 2', 2' , 1.5" की ऊँची प्रतिमा हैं। इन पर कोई लेख नहीं है। 7. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2056 माघ कृष्णा 5 का श्री जितेन्द्र सूरि जी म.सा. द्वारा प्रतिष्ठित है। 8. श्री विमलनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2037 का लेख है। 9. श्री जिनेश्वर भगवान की 1.5'' ऊँची पाषाण की प्रतिमा है। इन पर कोई लेख नहीं है। 10. श्री धरणेन्द्र देव की 1.7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 11. श्री सिद्धचक्र यन्त्र 5" गोलाकार है। इस पर सं. 2037 ज्येष्ठ कृष्णा 13 का लेख है। 12. श्री सिद्धचक्र यन्त्र 6.5" का गोलाकार है। इस पर सं. 2023 का लेख है। 13. श्री अष्टमंगल यंत्र 5" x 3" के आकार का है। इस पर सं. 2065 का लेख बाहर निकलते समय दाएँ: __ 1. श्री गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। यह श्री जितेन्द्रसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित है। ___ 2. श्री नाकौड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं.2037 ज्येष्ठ कृष्णा 10 का लेख है। बाहर निकलते समय बाएँ: 1. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 19' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। मंदिर के साथ 4 दुकानें व 12 बीघा जमीन है जो समाज के सदस्यों के अधिकार में है जिसका किराया आता है, उससे मंदिर का दैनिक व्यय होता है। वार्षिकध्वजा ज्येष्ठ कृ.10 को चढ़ाई जाती है। सम्पर्कसूत्र-श्रीराजमलजीभादवियाफोन 01470-245226 For Persoal 78 al Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीवामन 'श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, बानसेन यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 25 किलोमीटर दूर ग्राम के बीच में स्थित है। इसका नजदीक का रेल्वे स्टेशन चित्तौड़गढ़ है। इसका प्राचीन नाम वनोण भी कहा जाता है। उल्लेखानुसार इस मंदिर का निर्माण स. 1100 का है लेकिन प्रत्यक्ष रूप से ऐसा प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ।ग्राम के सदस्य भी 1000 वर्ष प्राचीन बताते हैं। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है। 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1980 शाके 1845 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएँ) श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 3. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएँ) श्याम पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएं व यंत्र 1. श्री महावीर भगवान की 8.5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2043 का लेख है। 2. श्री मुनिसुव्रत भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1513 का लेख है। 3. श्री शीतलनाथ भगवान की 7.5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1513 का लेख है। 4. श्री मुनिसुव्रत भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1562 का लेख है। Education International For Poso/9.)vate Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.5" व 2.5" ऊँची प्रतिमा है। 7. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2040 का लेख है। 8. श्री जिनेश्वर भगवान की 1.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । 9. श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" का गोलाकार है । इस पर 2040 माघ कृष्ण प्रतिपदा का लेख है । 10. श्री अष्टमंगल यंत्र 5 " x 3" का है। इस पर वीर सं. 2511 का लेख है । 11. श्री अजितनाथ भगवान की 1.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। 12. श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" गोलाकार है। इस पर कोई लेख नहीं है। बाहर सभा मण्डप में : श्री आदिनाथ भगवान की पादुका 8" x 8" श्वेत पाषाण के पट्ट पर स्थापित है। (दाएं) 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. 3. 4. श्री गौमुख यक्ष की श्याम पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वि. सं. 2055 का लेख है । (दाएं) श्री चक्रेश्वरी देवी की श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वि. सं. 2055 का लेख है। (बाएं) श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । इस पर वि. सं. 2055 का लेख है। (बाएं) तीन मंगलमूर्ति स्थापित है । वार्षिक ध्वजा पौष कृष्णा 3 को चढ़ाई जाती है । मंदिर के पास उपाश्रय के लिए भूमि उपलब्ध है, कृषि योग्य भूमि भी होना बताई है, ज्ञात नहीं है । ज्ञात करना चाहिये । सम्पर्क सूत्र - श्री मिट्ठालाल जी लोढ़ा, फोन : 01470-245455 For Per 80 ate Use Only .. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, मण्डफिया (सांवलियाँ) यह शिखरबंद मंदिर भादसोड़ा ग्राम से 11, मंगलवाड़ चौराहा से व निम्बाहेड़ा से 20 किलोमीटर दूर सांवलियाँ जी के मंदिर के पास स्थित है, कहा जाता है कि पूर्व में इस गाँव में किन्नर लोग रहा करते थे, बाद में भाटी राजपूत रहने लगे उन्होनें किन्नर लोगो को खादेड़ा उसके बाद अन्य सभी जाति के लोग आकर बसने लगे मंदिर के बारे में कहा जाता है कि 500 वर्ष पूर्व जारोली परिवार ने एक प्रतिमा को विराजमान कराई तदुपरान्त संवत् 1900 के लगभग मंदिर निर्माण करा प्रतिष्ठा कराई। मूर्तिपूजक का एक ही परिवार रहता है। उन्होनें मंदिर की भूमि व 8 बीघा जमीन देकर समाज को सेवा के लिए सुपुर्द किया।इसके पश्चात् संवत् 2040 के लगभग आमूलचूल परिवर्तन कर मंदिर का निर्माण कराया । यह तृतीय श्रेणी का ठिकाना रहा है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : । (भूतल) प्रवेश द्वार के सामने श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 39" व नाग तक 47" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2046 माघ शुक्ल 5 का लेख है। ____1. Jain E ton International For Personal Date Use Only (81) Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 प्रवेश करते समय दाई ओर एक देवरी में : 1. श्री सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की (चार भागो में नाग) 13" व नाग तक 39" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2050 का लेख हैं । 2. 3. 1. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 प्रथम मंजिल पर : 3. 1. श्री धरणेन्द्र देव की (मूलनायक के दाएं ) श्याम पाषाण की 11 " ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। श्री पद्मावती देवी (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 11 " ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 25" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2047 ज्येष्ठ शुक्ला 11 का लेख है । श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2047 का लेख हैं । उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2047 का लेख हैं । श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 का लेख है। For Pers 82 ate Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. ___श्री जिनेश्वर भगवान की 13" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर वीर संवत् 2511 पोषवदि 6 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 4. श्री जिनेश्वर भगवान की 3.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। मंदिर के बाहर आलिओं में: 1. श्री अधिष्ठायक देव की 9' ऊँची प्रतीक मूर्ति है। सिन्दुर का प्रयोग होता है। कोई लेख नहीं है। श्री श्याम पट्ट 10"x 6.5" के आकार पर पादुका स्थापित है। कोई लेख नहीं है। सभामण्डप में दाई ओर भिन्न-भिन्न आलिओं में : 1. , श्री माणिभद्र की श्याम पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2052 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 9" नाग तक 23" व परिकर सहित 33" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 3. श्री कुंथुनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। 4. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। सीढ़ियों पर चढ़ते समय दांई ओर एक आलिए में दो अधिष्ठायक देव की प्रतीक मूर्तियां 17" व 9" ऊँची है। माली पन्ना का प्रयोग होता है। दूसरों को बुरा कहने या बुरा देखने से खुद ही बुरे हो जाते हैं। जब लोग अच्छे दिखेंगे तब खुद अच्छे हो जाएंगे। Education International For Persoove Use Only (83) Usey Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, आसावरा यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से 48, मंगलवाड़ चौराहा से 18 किलोमीटर दूर सड़क के किनारे स्थित है।श्री जितेन्द्र विजय जी की प्रेरणा से यह मंदिर व दो दुकानें श्री रतनलाल जी नवलखा द्वारा निर्मित कर संवत् 2047 वैशाख शुक्ला 6 को प्रतिष्ठासम्पन्न हुई।नजदीकरेल्वे स्टेशन उदयपुर व चित्तौड़गढ़ है, बस कासाधन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 29" ऊँची प्रतिमा हैं इस पर संवत् 2042 मार्ग कृष्णा 12 का लेख है। श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाए) श्वेत । पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 2045 वै.शु. 5 लुणावा का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 2045 वै.शु. 5 का लेख है। उत्थापित प्रतिमाएँवयंत्र धातु की : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 फागुण सुद 6 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 4' का गोलाकार है। इस पर संवत् 2046 ज्येष्ठ शुक्ला 13 का लेख है। For PSAREnvate Use Only . Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर सभामण्डप में: श्री गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 2046 वै.शु. 6 का लेख है। 2. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2046 का लेख है। सभामण्डप में दोनों ओर गिरनार तीर्थ के चित्रपट्ट है। प्रथम मंजिल में शंखेश्वर पार्श्वनाथ का मंदिर स्थापित है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 वै.सु. 5 का लेख है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2041 वै.सु. 5 का लेख है। 3. श्री वासुपूज्य भगवान की की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2041 का लेख है। वेदी के बीच प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा स्थापित है। बाहर: 1. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2041 वै. सु.6 का लेख है। 2. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । चक्षु नहीं है। पीछे उपाश्रय बना है। बाजार में धर्मशाला, भोजनशाला है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्रीरतनलालजीनवलखा करते हैं। वार्षिकध्वजा वैशाख सुदी 6 कोचढ़ाईजाती है। Education International For Personale Use Only (85) Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 1. मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 2. 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, राशमी श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 25" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2011 माघ सुदि 6 का लेख है। श्री संभवनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा उत्थापित प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : है। इस पर संवत् 2011 माघ सुदि 6 का लेख है। यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 25 व कपासन से 20 किलोमीटर दूर है। मंदिर 500 वर्ष प्राचीन बताया जाता है। प्रतिमा पर भी उत्कीर्ण लेख भी 500 वर्ष करीब है। उल्लेखानुसार 1621 का निर्मित है। DGC091 प्रेम Verance तय For Personal & Private Use Only 86 दरान आचार्य ODIOOK श्री पार्श्वनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री जिनेश्वर भगवान की चतुर्विंशति प्रतिमा 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर दिनांक 15.11.08 का लेख है। 3. श्री बीस स्थानक यंत्र गोलाकार मय स्टेण्ड के 24' का है। 4. श्री सुमतिनाथ भगवान की 5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1551 माघ वदि 2 सोमवार का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 7.5" का है। इस पर वीर सं. 2327 का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 5" x 2.5" का है। इस पर संवत् 2065 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 3" (मय स्टेण्ड) व 5" (ऊँचा मंदिर) ऊँची है। इस पर लेख नहीं है। 8-9 श्री तांबा यत्र 3.5" x 3.5" , 3.5" x 3.5" के है। वेदी के बीच प्रासाद देवी स्थापित है। निज मंदिर के बाहर निकलते समय दाएं: ____ 1. श्री पार्श्व यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। बाएं: 'श्री पद्मावती यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इन दोनों प्रतिमाओं पर सं. 2036 वैशाख सुदि 7 का लेख है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय बाएं सभामण्डप में: 1. श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1545 वैशाख सुदि 7 का लेख है। 2. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1545 वैशाख सुदि 3 का लेख है। 3. श्री केशरियानाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। Jain an international For Persona e Use Only (87) Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इसके आगे श्री जिनकुशलसूरि के चरण 12” गोलाई पाषाण पर 7"x 7" की पादुका स्थापित है। इसके किनारे पर संवत् 1924 का लेख है। निकलते समय दाएं: 1. श्री जिनेश्वर भगवान (सुपार्श्वनाथ लिखा हुआ) की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लांछण (चिन्ह) व लेख नहीं है। 2. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। विशेष चमत्कार: 80 वर्ष पूर्व चोर चोरी करने आए थे सामान ले जाते समय उनके पांव चिपक गए थे सामान का नुकसान नहीं हुआ। चोरों को छोड़ दिया। मंदिर में प्राचीन गुफा है, कहा जाता है कि यह भीलवाड़ा (पुर) तक जाती है। द्वार पर दोनों ओर हाथी स्वागत के लिए स्थापित हैं। परिक्रमा कक्ष के तीनों ओर चित्रपट्ट लगाने की योजना है। दीवार पर जिनेश्वर भगवान व अप्सरा की प्रतिमा है। वार्षिकध्वजापोषवदि 10 को चढ़ाई जाती है। देखरेख समाज के प्रतिनिधि श्रीमनोहरलालजीपोखरना करते हैं। सम्पर्कसूत्र-01471-226158 जब तक खुद की भूलें नहीं दिखतीं तब तक भगवान ____ नहीं बन सकते। For Perfon 88gate Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, जाश्मा यह शिखरबंद मंदिर 100 वर्ष प्राचीन है।मंदिर के बाहर संवत् 1972 वैशाख सूदि 10 का शिलालेख है।मंदिर पर तालाहोने से पूर्ण जानकारी प्राप्त नहींहोसकी। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 1. श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। मंदिर में दो चल प्रतिमाएँ है। मंदिर की करीब 3 बीघा जमीन है। वार्षिक ध्वजा संवत्सरी पर्व के दिन चढ़ाई जाती है। इसकी देखरेख समाज की ओर से श्री नाथूलाल जीसंचेतीकरते हैं। सम्पर्कसूत्र-9982506485 ation International For Personal. Prvate Use Only www.jainelorary.org 89 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 शीतलनाथ जैन प्रतिशत ज श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, पहुँना यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़ व कपासन से 25 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर करीब 150 वर्ष प्राचीन है। उल्लेखानुसार संवत् 1900 केलगभग निर्मित है।पूर्व में यह मंदिर श्री आदिनाथ भगवान का रहा है। पहुंना ग्राम संवत् 1224 में पूर्णिया जाट अपने सात परिवार के साथ यहा बसे, उसी के नाम से पूर्णिया गांव बाद में अपभ्रंश पहुंना कहलाने लगा।धीरे-धीरे अन्य जाति के लोग बसने लगे और यह गांव होल्कर सिंधिया के अधीन रहा। वि.सं. 1618 में राणावत को यहां की जागीरी दी।पहले यहां पर यति विराजमान थे। यति जी के पास भूमि, कुआं भी था, बेच दिये गये। यति खेमराजजी, नन्दलाल जी, शिवचंदजी, जगतचंद्र जीथे, वे ही मंदिर के पास रहते थे।पूर्व में मंदिर ग्राम के नीचे की ओर था। यह तृतीय श्रेणी का ठिकाना रहा है। यहां के शासकराणावत कहलाते हैं। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: 1. श्री शीतलनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2035 का लेख है। श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2041 का लेख है। Jair ledsation International For Personal & Private Use Only www.jainelibraong an Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. 3. श्री आदीश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1925 आषाढ़ सुदि 10 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँवयंत्र धातु की: श्री शांतिनाथ भगवान की 6.5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1361 का लेख है। 2. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की चतुर्विंशति प्रतिमा 12' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 5' का है। इस पर संवत् 2026 वैशाख सुदि 5 सोमवार का लेख है। 5. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6” का है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय दाएं: 1. ब्रह्मयक्ष की श्वेत पाषाण की 13'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2042 ज्येष्ठ वदि 7 का लेख है। बाएं: 1. श्री अशोका देवी की श्वेत पाषाण की 13'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2042 का लेख है। सभामण्डप में दाएं: ___ श्री गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2042 का लेख है। 6. ucation International For Personalvae Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 सभामण्डप में बाएं: श्री सरस्वती देवी की श्वेत पाषाण की 8" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2042 का लेख है। उपाश्रय बना हुआ है । प्राचीन मंदिर के स्थान पर नूतन जिनालय बनाया गया। मंदिर की चार दुकाने हैं, दो किराये पर हैं। केसरघर बना हुआ है । वार्षिक ध्वजा ज्येष्ठ वदि 7 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की देखरेख समाज की ओर से निम्न करते हैं: श्री शांतिलाल जी विराणी, मोबाइल : 9785385524 श्री बाबूलाल जी सेठिया, मोबाइल : 9785448848 श्री नाथूलाल जी सेठ, मोबाइल : 99287 95907 हमें तो केवल जगत कल्याण की भावना ही करनी है, बाद में कार्य तो कुदरत करेगी। For Person 92 vate Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा होना शेष है । की 3. श्री वासुपूज्य भगवान (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा होना शेष है । उत्थापित चल प्रतिमाएँ धातु की : 1. 2. श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, आरणी in Education International श्री आदिनाथ भगवान की 8 ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1511 माघ सुदि 5 लेख है । श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 8 ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1556 वैशाख वदि 11 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 यह घूमटबंद मंदिर कपासन से 25 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर करीब 70 वर्ष प्राचीन है। उल्लेखानुसार संवत् 1990 का निर्मित है । मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 11 " ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1984 वैशाख शुक्ला 13 शुक्रवासरे का लेख है। 2. श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दांए) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इसकी For Perfon93male Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 निज मंदिर के ऊपरी भाग दोनों तरफ कांच की जड़ाई की हुई है। बाहर सभामण्डप में: श्री माणिभद्र की श्याम पाषाण की 11' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। मंदिर की जमीन थी, वर्तमान में जानकारी नहीं है, जानकारी करनी चाहिये । उपाश्रय बना हुआ है। वार्षिकध्वजावैशाख सुदि 13 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से देखरेख श्रीशांतिलालजीसांखला करते हैं। सम्पर्कसूत्र : फोन 01471-226228मोबाइल : 99289 24517 प्राप्त तप का समाधान करें, अप्राप्त तप को सामने से बुलाने की जरुरत नहीं है। For Poste rivale Use Only www.jainelibry.org (94) Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. श्री नेमीनाथ जैन श्वे. मंदिर 原 5 से श्री नेमिनाथ भगवान का मंदिर, डिण्डोली स पुण्य बंडगा (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2062 का लेख है । श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 12 " ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2062 का लेख है । नीचे की वेदी पर : श्री शीतलनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। यह घूमटबंद मंदिर कपासन से 15 किलोमीटर दूर है। पूर्व में यह सुराणा परिवार का, ( श्री शीतलनाथ भगवान का ) घर | देरासर 300 वर्ष प्राचीन है, इसी परिवार ने भूमि भेंट दी और मंदिर निर्मित करवाया यह 100 वर्ष प्राचीन मंदिर है । जिसको तोड़कर नूतन जिनालय बनाया। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 1. श्री मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 For P $95 vate Use Only नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2060 का लेख है । भगवान की 2. श्री विमलनाथ . Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाए धातु की: __ श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1520 का लेख हैं। 2. वेदी के बीच दीवार के आलिए में प्रासाद देवी की 6" ऊँची प्रतिमा स्थापित बाहर निकलते समय दाई ओर: श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2062 का लेख है। 2. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2062 का लेख है। बाई ओर श्री सरस्वती देवी की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2062 का लेख है। वार्षिकध्वजा फाल्गुण कृष्णा 13 को चढ़ाई जाती है। देखरेख समाज के निम्न प्रतिनिधि करते हैं - सम्पर्कसूत्र : श्रीमाणकचन्दजी कोठारी, श्रीचांदमलजीलोढ़ा फोन 01471-229318 इस जगत में जो अकड़कर रहे, वे मारे गए और जिनहोंने माफी माँगी, वे छूट गए। For PS rivale Use Only 96 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री भीडभंजन पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, भीमगढ़ यह घूमटबंद मंदिर कपासन से 20 किलोमीटर दूर | है। यह मंदिर करीब 300 वर्ष प्राचीन बताया गया है। उसी स्थान पर 100 वर्ष पूर्व मंदिर बनाया। उसका भी जीर्ण-शीर्ण हो जाने से जिर्णोद्धार आचार्य श्री जितेन्द्रसूरि जी की निश्रा में सम्पन्न हुआ। मंदिर में प्रवेश के समय दोनों ओर स्थापित हाथी द्वारा स्वागत होता है। ग्राम 1000 वर्ष प्राचीन है, पूर्व में इसका नाम सरिस्का था। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2011 माघ सुदि 11 बुधवार का लेख है। श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2011 माघ सुदि 6 का लेख हैं। 3. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की द्रविमकी दवीर (मूलनायक के बाएं) श्वेत पस्थानक पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2028 वैशाख सुदि 6 का लेख है। an Education International For Perfon g ate Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: श्री कुंथुनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2025 वैशाख सुदि 5 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 5" का है। इस पर संवत् 2024 वैशाख सुदि 6 का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर संवत् 2027 माघ सुदि 10 का लेख है। बाहर सभामण्डप में - (आलिओं में): 1. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2024 का लेख है। श्री केसरियानाथ भगवान की श्याम पाषाण की 10'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सवंत् 1959 का लेख है। इस प्रतिमा को पुनः स्थापित किया गया। 3. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1824 का लेख है। बाई ओर: गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2024 का लेख है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 11' ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। इस प्रतिमा को पुनः स्थापित की गई। दो प्रतिमाएँ पूर्व में पंचायती दुकान में स्थापित थीं। मंदिर की काफी जमीन है जो समाज के खाते में हैं, नोहरा व दुकाने हैं। वार्षिक ध्वजा पोष वदि 10 को चढ़ाई जाती है। देखरेख समाज द्वारा की जाती है। वर्तमान में प्रतिनिधि श्री लक्ष्मीलाल जी हिंगड़ हैं। विशेष देखरेख श्री शांतिलाल जी गांधी करते हैं। सम्पर्कसूत्र-फोन 01471-226211, मोबाइल : 9792693131 For Peso: 98 Pale Use Only www.jainelibrary.ord Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह घूमटबंद नूतन मंदिर कपासन से 15 व चित्तौड़गढ़ से 25 किलोमीटर दूर है। इसकी प्रतिष्ठा वि.स. 2062 फाल्गुण कृष्णा 10 को सम्पन्न हुई। यह नूतन मंदिर है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. 2. 3. श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, बारू श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है । इस पर सं. 2062 का लेख है । JEducation International मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 तनावर श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 16” ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2062 का लेख है। श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13” ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2062 का लेख है। उत्थापित चल धातु की प्रतिमा : श्री महावीर भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2063 फाल्गुण कृष्णा 11 का लेख है । वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी की 6" ऊँची प्रतिमा स्थापित है । सभामण्डप में श्री महावीर भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची उत्थापित प्रतिमा है। इस पर सं. 2062 का लेख है । यह प्रतिमा रूद ग्राम के लिये अस्थाई रूप से यहाँ विराजित है । For Persoramate Use Only 99 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर निकलने पर - विभिन्न आलिओं में दाहिनी ओरः श्री वर्द्धमान भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2062 का लेख है। श्री त्रिमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2062 का लेख है। 3. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 16” ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2062 का लेख है। बाई ओर: ____ 1. श्री दुरितारी देवी की श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2062 का लेख है। 2. श्री सरस्वती देवी की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2062 का लेख है। वार्षिकध्वजाफाल्गुणकृष्णा 10 को चढ़ाई जाती है। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्रीकमलेशजीबोहरा द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र :लोकेशजी, मोबाइल 9983451022, 9610004412 श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर, रूद यह शिखरबंदमंदिर कपासन से 20 किलोमीटर दूर है।मंदिर करीब 100 वर्ष प्राचीन है, जीर्ण अवस्था में है।जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है।वर्तमान में आदिनाथ भगवान की एक प्रतिमास्थापित है। इस मंदिर के लिए श्री महावीर भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है, वर्तमान में यह बारू ग्राम के जैन मंदिर में अस्थायी रूप से मेहमान के रूप में विराजमान है। जीर्णोद्धार पूर्ण होने पर विधिवत रूप से विराजमान कराई जाएगी । यह मंदिर पूर्व में संवत् 1915 में श्री पन्नालालजी मोड़ीलाल जी द्वारा निर्मित (100Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, बड़ीसादडी ___ यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के बड़ीसादड़ी नगर में राजमहल के पास है। बड़ीसादड़ी चित्तौड़गढ़ से 80 किलोमीटर व उदयपुर से 95 किलोमीटर दूर स्थित है।यह मावली रेल्वेलाईन का अंतिम रेल्वे स्टेशन है। इस नगर का नाम इतिहास के पन्ने पर अंकित है नगर करीब 1000 वर्ष प्राचीन है, महाराणा रायमल ने वि.की चौदहवीं शताब्दी में हलवद (काठियावाड़)के अज्जाजी जो मेवाड़ में आए, उनकी वीरता से प्रसन्न होकर बड़ीसादड़ी की जागीरी सुपुर्द की, यह प्रथम श्रेणी का ठिकाना रहा है।महाराणा प्रताप जब हल्दीघाटी के युद्ध में कठिनाई में आगये थे, उस समय बड़ीसादड़ी के ही झाला मानसिंह ने अपने प्राण देकर महाराणा प्रताप को बचाया। यह बलिदानकर्ता भीशासन काही अंग था। मंदिर भी करीब सं. 1600 का निर्मित है। समय व प्राकृतिक आपदाओं से क्षति हुई तदुपरान्त 150 वर्ष पूर्व कोठारी परिवार ने मंदिर सम्पूर्ण कर शासक को सुपुर्द किया । शासक ने जैन समाज को बुलाकर सुपुर्द किया । उसी समय 20 (बीसा) व 10 (दशा) ओसवाल दोनों ही परिवार थे। दशा ओसवाल (छोटा साजन) कहा जाने लगा। मंदिर का पट्टा राजराणा द्वारा दिया गया । उपलब्ध नहीं है, तलाश की जानी है। मंदिर एक ही रेखा में तीन भागों में (एक ही परिसर) विभाजित है और तीनों पर अलग-अलग शिखर हैं। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं - केन्द्र में (बीच में): 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 29" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 शाके 1796 का लेख है। Jain E cation International For Personale 101 se Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री जिनेश्वर भगवान की (मल्लीनाथ) (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की (नेमिनाथ) (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। उत्थापित चल प्रतिमाएँवयंत्र (धातुकी): 1. श्री कुंथुनाथ भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1525 वै. सु. 6 का लेख है। श्री मुनिसुव्रत भगवान की 9' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2030 फा. वदि 6 गुरूवार का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर अपठनीय लेख है। श्री आदिनाथ भगवान की 7'' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1536 वै. सु. 2 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 6" का गोलाकार है। इस पर लेख नहीं है। , श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5" का गोलाकार है। इस पर सं. 2048 चैत्रवदि 3 का लेख है। 7. श्री सिद्धचक्र 4.5" का गोलाकार हैं। इस पर लेख नहीं है। 8. बीस स्थानक यंत्र गोलाकार मय स्टेण्ड के 10" ऊँचा है। 9. श्री पद्मावती देवी की 4'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1219 का लेख है। वेदी की दीवार के बीच आलिए में प्रासाद देवी 6" ऊँची प्रतिमा स्थापित है। मूलवेदी के बांई ओर वेदी पर: ___ 1. श्री महावीर भगवान की (मूल नायक) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2056 फाल्गुन सुदि 13 का लेख है। For Pers a le Use Only (102) Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2056 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। श्री जितेन्द्रसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित का लेख है। वेदी की दीवार के बीच आलिए में प्रासाद देवी की 6" ऊँची प्रतिमा स्थापित है। आगे – श्री सुमतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची पूर्वामुखी प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। मूलवेदी के दाई ओरवेदी परः 1. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर श्री जितेन्द्रसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित का लेख है। 2. श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री कुंथुनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2056 का लेख है। वेदी की दीवार के बीच आलिए में प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है। ____ आगे – श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची पश्चिमोंमुखी प्रतिमा स्थापित है। बाहर - सभामण्डप (बरामदा) में अलग-अलग आलिओं में : श्री गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। 3. इसी आलिए में श्री नाकोड़ा भैरव की धातु की 7" ऊँची उत्थापित प्रतिमा Jain on International For Persore 103) Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 4. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। श्री अधिष्ठायक देव, भिन्न-भिन्न नाम से कहे जाने वाले - तापेश माणिभद्र, अम्बाजी, भोमिया जी भैरव की 13", 16", 18", 7", 6" ऊँची प्रतीक मूर्तियाँ स्थापित हैं । दो पाषाणी पट्ट शत्रुजंय व सम्मेद शिखर जी के दीवार पर बने है, रंग होना शेष है। ये दोनो पट्ट सं. 2021 के निर्मित हैं। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 5-9 भण्डार पर दो यंत्र (ताम्बे के ) : 1. 2. श्री पार्श्वनाथ का यंत्र चोकोर 7 " x 7" का है । तीनों शिखर पर पांच मंगल मूर्तियां स्थापित हैं । एक पाषाणीय शिलालेख है, पेन्ट करने से अपठनीय रहा, प्रयास किया जायेगा । मंदिर का जीर्णोद्धार संवत् 1920 में हुआ तदुपरान्त सं. 2056 में जीर्णोद्धार हुआ। वार्षिक ध्वजा वैशाख सुदि 3 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की देखरेख समाज के सदस्य द्वारा की जाती है । सम्पर्क सूत्र श्री ऋषिमण्डल यंत्र गोलाकार 11" का है । Jain Education international : श्री गणेशलाल जी दलाल ( पूर्व मंत्री ) मोबाइल : 9413459559, फोन 01473-264163 श्री देवेन्द्र जी मेहता, (पूर्व कोषाध्यक्ष ) मोबाइल : 9929216124 एक 'भगवान' की पहचान के लिए कितनी सारी पुस्तकें लिखी गई हैं। 'भगवान' तो आपके पास ही हैं। For Personal & Private Use Only 104 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीजेनश्वे. AURARI श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, निकुम्भ यह शिखरबंद मंदिर मंगलवाड़ चौराहा व निम्बाहेड़ा से 20 किलोमीटर दूर है। जानकार सूत्रों के अनुसार ग्राम के बसने के साथ - साथ ही मंदिर की स्थापना हुई। पूर्व में यह मंदिर छोटा था। उल्लेखानुसार मंदिर संवत् 1700 है। प्रतिमाओं के आधार पर भी करीब 350 वर्ष प्राचीन है जो सत्यताकेलगभग प्रतीत होता है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री आदिनाथ भगवान (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 37" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर संवत् ___ 1704 वै.शु. 13 का लेख है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2042 वैशाख शुक्ला 4 का लेख है। 3. श्री चंद्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1811 का लेख है। . वेदी की दीवार के मध्य प्रासाद देवी श्री आदिनाथजी की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। धातु की प्रतिमाएँवयंत्र: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की चतुर्विंशति 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2043 का लेख है। 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र 5.5" x 5.5'' का __है। इस पर संवत् 2000 का लेख है। 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6'' है। इस पर संवत् 2043 का लेख है। 4. श्री अष्टमंगल 4.5" x 2'यंत्र का है। इस पर संवत् 2060 का लेख है। Education International For Pero v ate Use Only (105) Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 5. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6” का है। इस पर संवत् 2043 का लेख है। 6. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 1.5" ऊँची प्रतिमा है। 7. श्री गोमुख यक्ष की (दाई ओर) श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर ___ संवत् 2042 का लेख है। 8. श्री चक्रेश्वरी देवी की (बाई ओर) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2042 का लेख है। 9. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् ___2042 का लेख है। 10. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2042 का लेख है। सभामण्डप में ही निम्न चित्रपट बने हैं : 1. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ 2. ऋषभप्रभु के पारणा का श्री नंदीश्वर श्री सिद्धचक्र श्री गिरनार श्री आगम मंदिर श्री शत्रुजय 8. श्री अष्टापद श्री तारंगा 10. श्री पावापुरी मंदिर के साथ कृषि भूमि है जो पुजारी के पास है। उपाश्रय मंदिर के सामने है । वार्षिकध्वजावैशाख सुदि4को चढ़ाई जाती है। देखरेख समाज की ओर से निम्न सदस्य देख रहे हैं : 1. श्रीसुजानमलजी, नानालालजी, फोन : 01473-242362 2. श्री हिम्मत जी, फोन : 01473-242256 For P-106)vate Use Only . Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, डूंगला यह शिखरबंद मंदिर बड़ीसादड़ी से 20 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। ग्राम 600 वर्ष प्राचीन बताया गया है, ग्राम के साथ ही यह मंदिर निर्मित है।जो प्रतिमा वर्तमान में है वे प्रारम्भ से ही स्थापित है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 2045 वै. सुदि 5 का लेख है। 3. श्री नेमीनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 2045 वै. सुदि 5 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र (धातु की): श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2031 पौष वदि 10 का लेख है। 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र 6" गोलाकार है। इस पर संवत् 2031 का लेख है। 3. श्री अष्टमंगल यंत्र 6"x 3" का है। इस पर संवत् 2031 का लेख है। वेदी की दीवार के बीच आलिए में प्रासाद देवी की श्याम पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है। ucation International Forge1078private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 विभिन्न आलिओं में : 1. गौमुख यक्ष की श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 माघ सुदि 6 का लेख है । 2. 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर चौकी पर : 2. 3. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। श्री नेमिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2055 का लेख है । श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। श्री अधिष्ठायक देव की 7" व 5" ऊँची प्रतीक मूर्तियां हैं, सिन्दूर का प्रयोग होता है । समय समय पर जीर्णोद्धार होता रहा । वर्तमान में मूर्तिपूजक समाज का कोई सदस्य ग्राम में नहीं रहता । वार्षिक ध्वजा माघ सुदि 5 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की देखरेख समाज की ओर से समाज के अध्यक्ष श्री शांतिलाल जी मेहता द्वारा की जाती है । सम्पर्क सूत्र - 9413252666 For Personal Devate Use Only 108 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जैन श्वे. मन्दिर अरनेड श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, अरनेड़ यह घूमटबंद मंदिर ईंगला से मंगलवाड़ रोड़ पर 5 किलोमीटर चलकर भीतर 3 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। यह मंदिर करीब 80 वर्ष प्राचीन है। कोठारी परिवार द्वारा निर्मित है। निर्माणकर्ता का देहान्त हो गया और उनके कोई सन्तान भी नहीं है। निर्माणकर्ता समाज का सुदृढ़ व्यक्तित्व वाला था उन्होनें भूमि का खनन कार्य किया उस समय मंदिर में स्थापित सभी प्रतिमाएँ खनन से प्राप्त हुई और मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठा कराई। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है: । श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 16" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1938 ज्येष्ठ शुक्ला 7 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 15" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। Fd 109 ) Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं हैं। वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। 2. बाहर: 1. अधिष्ठायक देवी की 15" ऊँची प्रतीक मूर्ति है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 12' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। पीछे की ओर - (परिक्रमा परिसर में): ___ श्री आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 17" ऊँची चतुर्विंशति प्रतिमा है। इस पर सं. 1930 का लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी की श्याम पाषाण की 8' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। मंदिर के बाहर एक शिलालेख है संवत् 1982 ज्येष्ठ सुदि 12 का श्री मणिसूरीश्वर द्वारा प्रतिष्ठित कराने का लेख है। वार्षिकध्वजावैशाखसुदि 12 को चढ़ाई जाती है। किसी का अहंकार भग्न करके कोई सुरखी हो ही नहीं सकता। 'अंहकार' तो उसका जीवन है। For Persona l e Use Only l (110) Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, मंगलवाड़ यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़ से 45 किमीव उदयपुर से 65 किमी दूर मंगललाड़ ग्राम के मध्य स्थित है। नजदीक रेल्वे स्टेशन चित्तौड़गढ़ है। कथनानुसार यह मंदिर 150 वर्ष प्राचीन बतलाया है। लगभग यही समय भी प्रतिमा पर अंकित है। पूर्व में मंदिर घूमटबंद था। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। ____ इस पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएँ) श्वेत पाषाण की 10' ऊँची प्रतिमा है। इस पर वि.सं. 1885 का लेख है। 3. श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएँ) श्वेत पाषाण की 9' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1836 का लेख है। 4. नीचे की वेदी पर श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा धातु की प्रतिमाएं व यंत्र: 1. श्री चतुर्विंशति 12" ऊँची है। इस पर सं. 2043 का लेख है। 2. श्री नेमीनाथ भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। 3-4श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2" व 1.5" ऊँची प्रतिमा है। 5. श्री सिद्धचक्र यन्त्र 4.5" x 4.5" के आकार का है। 6. श्री अष्टमंगल यन्त्र 5" x 3" के आकार का है। इस पर सं. 2065 का लेख है। दोनों ओर: श्री माणिभद्रवीर की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। (बाईं ओर) 2. श्री सुमतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर साध्वी श्री महोदया श्री जी के सदुपदेश से कांता लेख है। (दाईं ओर) वार्षिकध्वजाआषाढ़वदि१को चढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेख ओसवाल समाज के मनोहरलाल जी व ललित जी ओस्तवाल करते हैं। सम्पर्कसूत्र:मोबाइल:94605 36013 1. Jale Jucation International For Person 11 te Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 er See श्री आदिनाथ का मंदिर, चिकारड़ा यह शिखारबंद मंदिर मंगलवाड़ चौराहा से असावरा माता की ओर जाने वाली सड़क से 10 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य स्थित है। कथनानुसार व उल्लेखानुसार यह मंदिर 150 वर्ष प्राचीन है। प्रतिमा पर उत्कीर्ण समय के आधार पर भी यहीसमय होता है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1 श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है । 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्वते पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । इस पर संवत 1876 वैशाख सुदि 6 का लेख है । 3 श्री महावीर भगवान की (मूलनायक ले बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । इस पर संवत 1931 माघ वदि 7 का लेख है । उत्थापित धातु की प्रतिमाएँ: 1 श्री संभवनाथ भगवान की 7' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है । इस पर संवत 1511 ___ आषाढ़सुदि 2 गुरूवार का लेख है । 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 11" ऊँची प्रतिमा है । इस पर सं. 2056 का लेख है। 3-4-5 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 1.5", 2', 2.5" ऊँची प्रतिमाएँ हैं । इन पर कोई लेख नहीं है । मंदिर की दो दुकानें है, स्थानकवासी सम्प्रदाय के सदस्यों के अधिकार में है। इसके अतिरिक्त 20 x 60' का प्लॉट है । वार्षिकध्वजापोषसुदि 12 कोचढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेख समाज के सदस्यों द्वारा की जाती है। वर्तमान में श्री बद्रीलालजी सोनी देखरेख करते हैं। लेकिन विशेषरूचि श्रीपूरणमलजीवीरानीद्वाराली जाती है। सम्पर्क सूत्र :मोबाइल : 9929413113 For Perspa 12 ge Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 2. पूर्व में एक छोटे कमरे में वेदी पर प्रतिमाएँ विराजमान थी उसके पास ही मंदिर निर्मित कराया और प्रतिष्ठा सं. 2032 में सम्पन्न कराई। यह तृतीय श्रेणी का ठिकाना रहा है । मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 3. 2. 3. 4. श्री महावीर भगवान का मंदिर, मोरवन उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. Ja Education International मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 यह घूमटबंद मंदिर निम्बाहेड़ा से 20, मंगलवाड़ चौराहा से 5 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। गांव मोखन | मोरध्वज राजा के नाम से मोखन बसा है। तथा 2000 वर्ष प्राचीन है। मंदिर पूर्व में घर देरासर के रूप से आदिनाथ भगवान का मंदिर संवत् 1800 के लगभग का है। वर्तमान में श्री महावीर भगवान का है। श्री महावीर भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1826 का लेख है । श्री मल्लिनाथ भगवान की (गुलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 13 ” ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2032 का लेख है । श्री शांतिनाथ भगवान की ( मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2032 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2032 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2.2" ऊँची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है । श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5" का गोलाकार है। इस पर संवत् 2032 माघ सुदि 3 का लेख हैं । श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर संवत् 2032 माघ सुदि 3 का लेख है । For Persona1a13aje Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. बाहर मंदिर में प्रवेश करते समय दाएं: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1826 का लेख हैं। श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । इस पर संवत् 2032 वै. सुद 6 का लेख है। श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1826 का लेख है। इसके आगे एक आलिए में – श्री सिद्धायिका देवी की श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2032 का लेख है। बाई ओर: श्री मातंग यक्ष की श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2032 का लेख है। 2. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 13'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2032 का लेख है। वार्षिकध्वजामाह वदि 6 को चढ़ाईजाती है। मंदिर की देखरेख श्री रोशनलालजी मेहता अध्यक्ष द्वारा की जाती है तथा विशेष रूचि श्रीमदनलालजीजैन(खेरोदिया)द्वारालीजाती है। सम्पर्कसूत्र : फोन 01470-246609 जहाँ मन-वचन-काया से चोरी नहीं होती वहाँ लक्ष्मीजी की कृपा रहती है। लक्ष्मी का अंतराय चोरी के कारण है। For Pere Private Use Only (114) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जैन श्वे. मन्दिर संग्रेससा' श्री कुंथुनाथ भगवान का मंदिर, संगेसरा यह घूमटबंद मंदिर मंगलवाड चौराहा से | 11 व आकोला से 11 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य स्थित है। ग्राम 1000 वर्ष प्राचीन है, इतिहास के पन्नो पर भी उल्लेख है। यह मंदिर भी 500 वर्ष प्राचीन है कालान्तर में मंदिर घ्वस्त हो गया और पुनः संवत् 1914 के लगभग | निर्मित हुआ। पूर्व में यह मंदिर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर रहा है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : श्री कुंथुनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् | 1545 का लेख है। श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1991 मा.सुदि 13 का लेख 2. 3. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1545 वै0 सुदि 3 का लेख है। नीचे की वेदी पर: श्री जिनेश्वर भगवान की (पार्श्वनाथ) श्याम पाषाण की 5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। यह मूर्ति पूर्व की है। इसके अतिरिक्त एक प्रतिमा और थी वह खण्डित होने से विराजमान नही कराई। Jain E ation International For Personal al Use Only (115) Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापितचल प्रतिमाएँवयंत्र धातु की: श्री संभवनाथ भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1614 वै.सुदि 2 का लेख है। 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र 4"x 4" का है। कोई लेख नहीं है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6"x 3.7' का है। इस पर संवत् 2045 वै.सुदि 5 का लेख है। वेदी की दीवार के बीच में श्री प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख नहीं है। बाहर आलिओं में: __ श्री धरणेन्द्र देव की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वीर संवत् 2478 चैत्र वदि 3 का लेख है। सभामण्डप में एक देवरी में: श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2047 का लेख है। 2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1545 वै0 सु0 3 का लेख है। श्री सुविधिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1545 वै.सुदि 3 का लेख है। एक अन्य आलिए में 13" x 9' के पट्ट पर पादुकाए स्थापित है। कोई लेख नहीं है। संवत् 1999 में हुए जीर्णोद्धार का शिलालेख स्थापित है। वार्षिकध्वजाचैत्रवदि3कोचढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेदख भादसोड़ा के ट्रस्ट केन्यासी श्री भादविया जी करते है वहीं से पूजन सामग्री व अन्य खर्च उन्हीं द्वारा किये जाते हैं। समाज की ओर से स्थानीय स्तर पर श्री रोशनलालजीहीरालाल जी मेहता द्वारादेखरेख की जाती है। सम्पर्कसूत्र:मोबाइल : 92148 30192 Jain Education international Fon Personal Prwale Use Only ale Use Only (116) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, कपासन यह शिखारबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 25 किलोमीटर दूर है व रेल्वे स्टेशन है। यह मंदिर करीब 450 वर्ष प्राचीन बताते है व 1626 का निर्मित होने का उल्लेख हैं तथा प्रतिमा पर भी संवत् 1671 का लेख उत्कीर्ण था लेकिन वह प्रतिमा उपलब्ध नहीं है। अतः 440 वर्ष प्राचीन 2. इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 1719 पोष वदि 12 का लेख है। श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर लेख पीछे की ओर होने से अपठनीय है। श्री नंदसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित है। श्री नमिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर लेख पीछे की ओर है। श्री नंदसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख नहीं हैं। Jalne Toresamaroseromy merely.org (117) Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित प्रतिमाएँवयंत्र धातु की: ___ 1. श्री अभिनंदन भगवान की चतुर्विशति 10" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 1578 ज्येष्ठ सुदि 2 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 2049 वै.सुदि 6 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" x 5" का है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5'' का है। इस पर संवत् 2032 माघ शुक्ला 3 का लेख है। 6. श्री अष्टमंगल यंत्र 6'' x 3' का है। इस पर संवत् 2032 माघ शुक्ला 3 का लेख है। मंदिर से बाहर निकलते समय दोनों आलिओं में : ____ 1. श्री पार्श्वनाथ की श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2506 ज्येष्ठ शुक्ला 5 का लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी की श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2506 ज्येष्ठ शुक्ला 6 का लेख है। सभा मण्डप में: श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 21" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर कोई लेख नहीं है। 3. श्री श्राविका की मूर्ति श्वेत पाषाण की है। संभवतया मंदिर निर्मित कराया हो, नाम की जानकारी नहीं है। सभामण्डप में श्री शत्रुजय तीर्थ, पार्श्वनाथ जी, महावीर भगवान, सम्मेद शिखर जी, के चित्रपट्ट है। मंदिर की 4 दुकाने है जो गिरवी रखी हुई है। उपाश्रय की भूमि सुरक्षित रखी हैं। मंदिर का ताम्रपत्र प्राप्त है। वार्षिकध्वजा ज्येष्ठ शुक्ला 6 कोचढ़ाईजातीहै। मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्रीचम्पालालजी मारवाडीव श्रीपालजी सेठ द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्रः फोन : 01476-230008, मोबाइल : 9414732940 For Pepson Private Use Only www.jainelibrorg (118) Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. ain Education International श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, कपासन इस पर कोई लेख नहीं है । श्री संभवनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर पीछे की ओर लेख वदि .. है । संवत् . पढ़ने में आता है। श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा हैं इस पर संवत् 2025 का लेख है I मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 For Personal & Pavate Use Only 119) COMED यह शिखरबंद मंदिर चित्तौडगढ़ से 25 किलोमीटर व रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। बस का साधन है। यह मंदिर 600 वर्ष प्राचीन बतलाते हैं। उल्लेखानुसार सं. 1720 का निर्मित है, लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। बनावट के आधार पर यह मंदिर 500 वर्ष प्राचीन होना चाहिये । मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्राचीन प्रतिमा हैं । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 उत्थापित प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. 2. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. मंदिर के बाहर दोनों ओर आलिओं में : 1. 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 12 " ऊँची चतुर्विंशति प्रतिमा है। इस पर दिनांक 15.11.08 का लेख है । 2. श्री सिद्धचक्र गोलाकार 6" का है। अष्टमंगल यंत्र 5” x 3" का है । इस पर संवत् 2065 का लेख है । बाहर सभा मण्डप में : श्री वरूण यक्ष की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वीर संवत् 2506 ज्येष्ठ शुक्ला 5 का लेख है। श्री नरदत्ता देवी की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर ज्येष्ठ शुक्ला 5 का लेख है । श्री भैरव की श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर लेख नहीं हैं। श्री क्षेत्रपाल की 7" ऊँची प्रतिमा है, मालीपन्ना का प्रयोग होता है। वार्षिक ध्वजा ज्येष्ठ शुक्ला 5 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री चम्पालाल जी मारवाड़ी व श्री पाल जी सेठ द्वारा की जाती है । सम्पर्क सूत्र : : फोन 01476-230008, 9414732940 'इस जगत में किसी भी जीव ने मोक्ष में जाने तक कोई कार्य जानबूझकर नहीं किया है।' यह एक ही वाक्य समझ लीजिए न ! at Personal & Private Use Only 120 www.jainellary.org Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जैन श्वे. मन्दिर,हथियाना श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, हथियाणा यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 45 व कपासन से 15 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। रेल्वे स्टेशन कपासन है व बस का साधन है।यह मंदिर 600 वर्ष प्राचीन बतलाते हैं तथा प्रतिमा पर कोई प्राचीन लेख प्रतीत नहीं होता लेकिन मंदिर के नाम पर महाराणा जगतसिहं जी ने संवत् 1802 ज्येष्ठ सुदि १ को ताम्रपत्र द्वारा श्री पार्श्वनाथ व चारभुजा जी के मंदिर के लिए 25 बीघा भूमि भेंट की। इस जमीन से प्राप्त आय से मंदिर का कार्य (पूजा, भोग आदि) किया जा सके। इस ग्राम की जागीर महाराणारायमल ने संवत् 1444 में 351 बीघाजमीन दी थी।उसीसमय मंदिर का निर्माण हुआहोगा। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 1569 (स्पष्ट नहीं) का लेख है। ___2. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाए) श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1360 वै.शु.3 का लेख है। Jain ducation International For Personenge Use Only (121) Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2049 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा स्थापित है। कोई लेख नहीं है। उत्थापित प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: ___ 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 2028 वै000 6 का लेख है। 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र 6.5'' का गोलाकार है। इस पर संवत् 2040 माघ कृष्णा प्रतिपदा का लेख है। संवत् 1147 की धातु की प्रतिमा होने का उल्लेख है लेकिन वर्तमान में नहीं है। बाहर आलिओं में (सभामण्डप में): 1. श्री धरणेन्द्र की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2050 का लेख हैं। 2. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2050 का लेख हैं। श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2050 का लेख है। उक्त तीनों प्रतिमाएँ श्री जितेन्द्र सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित 4. श्री चक्रेश्वरी देवी की 9" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। शिखर में तीन मंगल मूर्तियां स्थापित हैं । बाहर: ___ 1. 2. श्री गणेश जी की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। श्री भैरव की श्वेत पाषाण की 13'' ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। For Persona l e Use Only www.jainelibrariorg (122) Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर बरामदा के बाई ओर: श्री चारभुजा की देवरी बनी है जिसमें श्याम पाषाण की सुन्दर प्रतिमा विराजित है। पछुवाई के स्थान पर कांच की जड़ाई है। मंदिर के पास कुआ (कुई) है जिसके दरवाजे को बंद कर दिया है। प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार गुम्बज के नीचे सभा मण्डप के जमीन के नीचे छतरी बनी हुई है। संभवतया साधना करने के लिये प्रयुक्त होती हो, ऐसा बताया गया है। इसके अतिरिक्त एक छोटे कमरे के भीतर एक तलघर है जिसमें एक तहखाना (गुफा) है जो करीब आधा किलोमीटर दूर कृषिहर भूमि पर बनी हुई छतरी तक निकलती है, ऐसा बताया गया है। मंदिर के पास मंदिर का उपाश्रय है। मंदिर की 25 बीघा भूमि है, जो वर्तमान में समाज के सदस्य व अन्यों के अधिकार में है। इस पर समाज को सोचना चाहिये। ग्राम के बीच एक प्राचीन बावड़ी भी है जो पूर्व में पानी से लबालब भरी रहती थी, इससे सारा ग्राम पीने का पानी के लिए प्रयोग आता था तथा सिंचाई के लिये काम में आता था। वर्तमान में उसमें पानी नहीं है। इस बावड़ी की दीवारों पर प्राचीन कलात्मक मूर्तियें उत्कीर्ण हैं। वार्षिकध्वजावैशाख शुक्ला 3 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से इसकी देखरेखा श्रीपारसमलजी सांखलाद्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र: 01476-288202, 288364 मोबाइल: 98283 43426 यह जगत प्रतिक्षण बदलता है। इसमें यदि अभिप्राय रखें तो यह हमारी ही भूल है। ducation International For Pe 123 vate Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 हथियाणा मंदिर के ताम्रपट्ट की प्रति निम्न प्रकार से है: श्री रामो जयति श्री गणेसप्रसादातु श्री एकलिंग प्रसादातु भाला व सही का निशान ।। महाराजा धिराज महाराणा श्री जगत सिंघजी आदेशातु जती सा बलूसागर चेला भागचंद कस्य ग्राम हीथ्याणों पडगने कपासण रे थुवे चावरे जणी माहे थी धरती वीघा 25 पच्चीस गोरमो तथा पीवल देवरों व एक ठाकुर श्री चुत्रभुजजी रो देवरो एक श्री पारसनाथजी रो करायो जणां रे वागा तथा भोग सामगरी सारू अनुष्ठान लागत सरब सुधी ऊदक आधार करे श्री. रामार्पण कीधी स्वदत्तां परदत्तां वाये हरंति वसुधरा षष्ठि वर्ष सहस्त्राणी वीष्ठा वाजाय क्रर्म प्रत दुवे पंचोली देवकरण लिष्तु पंचोली केसो राय लषमणोत संवत् 1802 वर्षे जेठ सुदी 9 सीनु ।। एक से साढा तैरा (1-1311) पंक्तियों में यह ताम्रपत्र उत्कीर्ण है। महाराणा जगत सिंघजी द्वितीय (1790 संवत् 1807) 18 वर्ष राज्य किया। यदि सिर पर बोझ (Tension) रखते हैं तो भगवान रिखसक जाते हैं । For Persaivate Use Only (124) Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. Wym श्री Jain Edation International. श्री वासुपूज्य भगवान का मंदिर, ਰਮਾਨ उत्थापित प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: उमण्ड यह घूमटबंद मंदिर कपासन से 10 किलोमीटर दूर है। रेल्वे स्टेशन कपासन है। बस का साधन है। यह 100 वर्ष प्राचीन शांतिनाथ भगवान का मंदिर कहलाता था, वर्तमान में श्री शांतिनाथ भगवान की कोई प्रतिमा विद्यमान नहीं है । बाद में मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर रहा जो अब मूलनायक के दाएं विराजमान है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1931 माघ शु. 2 का लेख है। संवत् 2041 वैशाख शुक्ला 5 का लेख है। श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 1. श्री कुंथुनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 वै.शु. 5 का लेख है। For Persona &125) use only श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. श्री जिनेश्वर भगवान की 2.3'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" का गोलाकार है। इस पर संवत् 2045 वै.शु. 5 का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5” का है। इस पर संवत् 2045 वै.शु. 5 का लेख 4. वेदी की दीवार के बीच श्री प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 4.5" ऊँची प्रतिमा स्थापित है। दोनों ओर आलिओं में: ___ 1. श्री कुमार यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 का लेख है। 2. श्री चामुण्डा यक्षिणी देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 का लेख है। बाहर: श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 का लेख है। बोली की जमा राशि के ब्याज से दैनिक व्यय किया जाता है। वार्षिकध्वजावैशाख शुक्ला 5 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री भेरूलाल जी रातड़िया (फोन 01476-287300, 9460910959) व श्री मिठूलाल जी लसोड़ (मोबाइल 9001121634) द्वारा की जाती है। किसी भी प्रकार का अभिप्राय देना 'जवाबदारी' है। (126) For Pers a te Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, दांता (नानेश नगर) यह शिखरबंद मंदिर कपासन से 10 किलोमीटर दूर है।रेल्वे स्टेशन कपासन है, बस का साधन है। यह नूतन मंदिर है। यह तृतीय श्रेणी का ठिकाना रहा है यहां के शासक पुरावत कहलाते हैं। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री शीतलनाथ भगवान की (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर अस्प्ष्ट लेख है। श्री जितेन्द्र सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। वेदी की दीवार के बीच श्री प्रासाद देवी की श्याम पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है। बाहर आलिओं में: 1. श्री ब्रह्मा यक्ष की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री अशोका देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। उक्त सभी प्रतिमाओं का लेख पीछे की ओर होने से स्पष्टतया "संवत्" अपठनीय रहा। सभी प्रतिमाएँ एक ही दिन विराजमान की गई हैं। वार्षिकध्वजा चैत्र शुक्ला 4 को चढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेख पोखरना परिवार द्वारा की जाती है। व्यवस्था में कमी है। स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्य श्री नानालाल जी म0सा0 की यह जन्म स्थली है। इसलिए यह ग्राम नानेश नगर के नाम से जाना जाता है। यहां पर स्वाध्याय संस्कार केन्द्र संचालित है। Jain ducation International For Person ale Use Only (127 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, गौराजी का निम्बाहेड़ा ___ यह घूमटबंद मंदिर कपासन से 15 किलोमीटर दूर है। रेल्वे स्टेशन कपासन , चित्तौड़गढ़ है। बस का साधन है। मंदिर 500 वर्ष प्राचीन है। मंदिर के नाम संवत् 1551 माघ सुदि 13 का ताम्रपत्र संवत् 1921 चैत्र सुदि 13 का है। इसके ये दोनों ही ताम्रपत्र श्री सोहन जी नाथूलाल जी पुजारी के पास हैं। ऐसा बतलाया जाता है कि मंदिर श्री रूपचंद जी साबला द्वारा निर्मित है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा हैं। इस पर संवत् 1752 ज्येष्ठ सुदि 13 का लेख हैं। उत्थापित प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: 1. श्री कुंथुनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1818 आषाढ़ सुदि 3 का लेख है। श्री अजितनाथ भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1596 ज्येष्ठ सुदि 2 का लेख है। For Personal Private Use Only (128) Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इसी मंदिर परिसर में ही दाहिनी ओर श्री चारभुजा का मंदिर स्थापित है। वार्षिक ध्वजा नहीं चढ़ाई जाती है, विचाराधीन है। मंदिर की 12 बीघा जमीन है जो पुजारी के पास है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख पुजारी श्री सोहनलाल पाराशर करते हैं। (मोबाइल: 9799132723) समाज की ओर से देखरेख श्रीभेरूलालजीवमांगीलालजीसाबलाद्वारा की जाती है।फोन : 01476-231035 चारभुजा मंदिर के लिए ध्वजादण्ड उपलब्ध नहीं है, उपलब्ध कराना चाहिये। जब इस जगत में 'मैं मूर्ख हूँ', ऐसा समझ में आता है तब 'आत्मज्ञान' के उदय की शुरुआत होती है। Jal l ion International For Personal (199) Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 म श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, लांगच यह घूमटबंद मंदिर कपासन से 20 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर 250 वर्ष प्राचीन है । पूर्व में यह शांतिनाथ भगवान का मंदिर था। निर्माणकर्ता कौन है, जानकारी नहीं है । यह तृतीय श्रेणी का ठिकाना रहा है। यहां के शासक राणावत रहे हैं । मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. 2. 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1826 वैशाख सुदि 6 का लेख है। श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के (दाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2006 मिगसिर सुदि 6 का लेख है । मूलनायक की प्रतिमा पूर्व में श्री मांगीलाल पन्नालाल जी खाब्या के घर पर विराजमान थी। ये तीनों ही प्रतिमाएँ पृथक-पृथक् वेदी पर स्थापित हैं। उत्थापित प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2006 मिगसिर सुदि 6 का लेख है । श्री जिनेश्वर भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है । श्री जिनेश्वर भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है । श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.5 " x 4.5" का है। 3. बाहर आलिए में: श्री क्षेत्रपाल की प्रतीक मूर्ति स्थापित है। समाज के 15 घर हैं वे बारी-बारी से पूजा का सामान देते हैं तथा प्रति परिवार 25 किलो अनाज प्रत्येक फसल पर पुजारी को दैनिक वृति के रूप में देते हैं । For Pes 130 vate Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मेरा श्री आदीश्वर भगवान का मंदिर, आकोला ____ यह शिखरबंद मंदिर भूपालसागर (करेड़ा) से फतहनगर मार्ग पर 7 किलोमीटर दूर जाकर 3 किलोमीटर पीजैनखेताम्बर सुषमदेवभगवानकादिर | भीतर (लिंकरोड़)ग्राम के मध्य में स्थित है। ग्रामवासी के आकोला कथनानुसार यह मंदिर 1000 वर्ष प्राचीन है। श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर कहलाता था, जबकि वर्तमान में श्री | आदीश्वर भगवान का मंदिर है। प्राचीन मंदिर के स्थान पर नूतन निर्माण कराया गया, दो प्राचीन प्रतिमाओं को ही विराजित किया गया। कहा जाता है कि मेवाड़ में 16 शाह हुए हैं जिनमें से एक श्री शुरा शाह भी हुए हैं, उनके द्वारा करीब 450 वर्ष पूर्व यह मंदिर निर्मित हुआ है।शुरा शाह का शीश कटकर गिरा वहां पर एक शिलालेख है वह अस्पष्टता के कारण अपठनीय रहा। केवल पूंजा पढ़ा जाता है। यह शिलालेख श्री भगवती लाल जी हिंगड़ के मकान के बाहर है। यह तृतीय श्रेणी का ठिकानारहा है। यहां के शासक पुरावत कहलाते हैं। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: ___ श्री आदीश्वर भगवान की (मूल नायक) श्याम पाषाण की 33" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री वासुपुज्य भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वि.सं. 2053 वैशाख वदि 11 का लेख है। 3. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2053 का लेख है। 2. Jal a n International For Personal & Postale Use Only (131) Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र: ___ 1. श्री शांतिनाथ भगवान की चतुर्विंशति 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर दिनांक 15.11.08 का लेख है। श्री वासुपूज्य भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1542 वैशाख वदि 11 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 3" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1586 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2.7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर संवत् 2053 माघ सुदि 11 का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 5" x 3' का है। इस पर संवत् 2064 का लेख है। वेदी के बीच प्रासाद देवी स्थापित है। दोनों ओर आलिओं में: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 21" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. 24 तीर्थकर की कृति प्राचीन पट्ट श्वेत पाषाण का है। मंदिर से बाहर निकलने पर आलिओं में : श्री गौमुख यक्ष की श्याम पाषाण की10" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्याम पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री माणिभद्र की श्याम पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। श्री क्षेत्रपाल की 12" ऊँची प्रतिमा है। इन सभी प्रतिमाओं पर संवत् 2053 का लेख है। मंदिर शिखर के तीनों ओर तीन मंगल मूर्ति स्थापित है। वार्षिकध्वजावैशाख वदि 11 को चढ़ाई जाती है। मंदिर की तीन दुकाने हैं जो समाज के सदस्यों के पास किराये पर है। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्रीकन्हैयालालजीपारसमलजीसहलोत करते हैं। For Peo132)ate Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, आकोला (ताणा) I - यह घूमटबंद मंदिर भूपालसागर 21 (करेड़ा ) से 10 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर 425 वर्ष प्राचीन बताया गया। उल्लेखानुसार यह मंदिर पार्श्वनाथ का संवत् 1990 का निर्मित है।वर्तमान में श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर है। पास में लक्ष्मीनाराण जी का व दिगम्बर मंदिर भी है।प्रतिमा पर उत्कीर्ण समय के आधार पर करीब 500 वर्ष प्राचीन है।यह द्वितीय श्रेणी का ठिकानारहाहै और यहां के शासकबड़ीसादड़ी के झालानाथसिंह के वंशज हैं।इनकीराणा की उपाधि है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1931 शाके 1796 माघ शुक्ला 10 चन्द्रवासरें का लेख 3. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1545 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान (सम्भवतया महावीर भगवान) की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1548 का लेख है। Education International FESOR Vale wwajanewrary.org (133) Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. 5. 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. उत्थापित चल प्रतिमाएँ एवं यंत्र : श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1545 माघ सूदि 11 का लेख है । श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर चरिता पढ़ने में आता है । मूलनायक की प्राचीन प्रतिमा को श्री महाराज सा. अपने साथ ले गए। श्री जिनेश्वर भगवान की चतुर्विंशती 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर दिनांक 15.11.08 का लेख है । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" का है। इस पर संवत् 2043 कार्तिक कृष्णा 5 का लेख है। बाहर सभा मण्डप के आलिए में: क्षेत्रपाल की 10 व 6" की प्रतीक मूर्तिएं हैं। मंदिर की तीन दुकाने हैं । वार्षिक ध्वजा संवत्सरी पर्व के दिन चढ़ाई जाती है । समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री छगनलाल जी चोराड़िया करते हैं । सम्पर्क सूत्र- 01476-283558 सात्विक आहार हो तो सात्विक गुण में रहा जा सकता है। For I $134vate Use Only . Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री करेड़ा (करहेडक) पार्श्वनाथ भगवान,भूपालसागर (चित्तौड़गढ़) यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले का प्राचीन तीर्थ है। उदयपुर से 70 किलोमीटर व चितौड़ से 40 किलोमीटर दूर स्थित है। यह उदयपुर-दिल्ली रेलवे मार्ग पर रेलवे स्टेशन है। इस नगर का प्राचीन नाम केशपुरपट्टण करहेटक नगरी था। आज करेड़ा है और आधुनिक नाम भूपालसागर है। शिलालेखों के आधार पर करेडा का नाम करहेडा, करहेडक, करहकर नाम का उल्लेख आता है। प्राचीन केशपुर पट्टण व्यावसायिक केन्द्र रहा है। यहाँ तक यह भी पाया गया है कि मंदिर 2000 वर्ष प्राचीन है। जैसा कि मंदिर के एक स्तम्भ पर संवत् 55 का लेख होने का उल्लेख है । (वर्तमान में नहीं है) समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा । वर्तमान में संवत् 1021 का लेख प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस प्राचीन व्यावसायिक नगर में प्राचीनकाल में बंजारा लोग अपने बैल लेकर व्यापार करने आते-जाते थे। संवत् 1014 में लखी नाम का बंजारा अपनी पत्नी साहू के साथ मालवा की ओर से यहाँ आया। उसके साथ एक लाख बैल थे। अपनी सम्पत्ति के बारे में पति-पत्नी में वाद-विवाद हो गया। अपने-अपने भाग्य व परिश्रम के बारे में कहते रहे। पत्नी साहू ने कहा कि जब वह विवाह कर आई थी, उसके पास केवल 5-7 हजार बैल थे। उसने अपने भाग्य का खेल बताया, इस पर पति लखी को क्रोध आया और क्रोध में उसको त्याग करने की बात CO SARY J u cation International For Persone135)se Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 कह दी। संयोगवंश उस समय सीमंधर नाम का ब्राह्मण उधर से निकला । वह मिठाई बेचने का कार्य करता था और वह पालीतांणा का रहने वाला था, लखी ने अपनी पत्नी को उस ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिया और वह सीमंधर के घर रहने लगी। वास्तव में साहू का भाग्य काम आया और सीमंधर के घर में लक्ष्मी प्रवेश करने लगी। सीमंधर मकान को लीपने के लिए पीली मिट्टी लाया। साहू के हाथ लगाने पर वह सोने में परिवर्तित हो गई। सीमंधर के पास इतना धन हो गया कि उसको वह कैसे और कहाँ खर्च करे। वह धन को लेकर महाराणा के पास धन को भेंट करने गया। महाराणा ने उसे अस्वीकार कर दिया। इसके बाद वह सण्डेरगच्छ के शांतिसरि जी के शिष्य श्री यशोभद्रसरिजी के पास गया और उनको धन अर्पण किया, आचार्यश्री ने उसे मंदिर निमाण करने का उपदेश दिया। सीमन्धर ने ऐसा ही किया और पांच मंदिर, सातबीस मंदिर चित्तौड़, करेडा, खाखड़, बागोल, पलाणा में बनाये और निर्माण कार्य करते समय सोमपुरा (कारीगर) ने नींव में चार हजार मन तेल डालने को कहा तो लखी ने हजारों मन तेल नींव में डाल दिया और 15 वर्षों में मंदिर के निर्माण कार्य पुरा हो जाने पर पांचों मंदिरों की प्रतिष्ठा आचार्य श्री यशोभद्रसुरिजी ने संवत् 1029 वैशाखसुद प्रतिपदा को एक ही दिन में प्रतिष्ठा कराई और सीमंधर को जैन कुल में सम्मिलित किया गया। नींव में तेल डालने से तिलसरा गौत्र रखी गई और तिलसरा ही तलेसरा कहलाने लगे। इसका प्रमाण यह है - बावन जिनालय के पाट पर लेख था, जो इस प्रकार है - संवत् 1039 वर्षे श्री संडेरकगच्छ, श्री यशोभद्रसूरि श्री पार्श्वनाथ बिंब प्रतिष्ठितं - -- पूर्व चंदेण कारितं मांडवगढ के महामंत्री पेथडकुमार के पुत्र झाझडकुमार ने संवत् 1321 में इस तीर्थस्थल का जीर्णोद्धार करवाया। यह मंदिर सात मंजिला होना बताया गया है लेकिन वर्तमान में नहीं है। इसका शिखर विशाल व कलाकृतियों से बना हुआ है। मंदिर में दो शिखर है। सभामण्डप भी दर्शनीय है, ऐसी कलाकृति अन्य मंदिरों में कम ही दिखाई देती है। उक्त प्रकरण से यह आशय है कि मंदिर प्राचीन है लेकिन प्रमाणिकता का आधार, कोई शिलालेख नहीं मिलता है और प्रतिमाओं व स्तम्भों पर उत्कीर्ण लेख दसवीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है For e 136 Private Use Only www.jainelibrary org Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 -प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख – संवत् 1021 का है। इस जिनालय को श्री खीमसिंह शाह द्वारा वि.सं. 86 में बनवाने व प्रतिमा प्रतिष्ठा आचार्य श्री जयनन्दसूरिजी द्वारा कराने का उल्लेख है। इसकी प्राचीनता का उल्लेख निम्न ग्रन्थों में मिलता है - मंदिर में स्थापित प्रतिमा पर संवत् 861 का लेख होने का उल्लेख । 2. श्री जगवल्लभविजयजी द्वारा रचित श्री 108 पार्श्वनाथ तीर्थ दर्शन भाग 1 व 2 3. आचार्य श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा लिखित विविध तीर्थ कल्प श्री रत्न मंदिरगणि द्वारा लिखित उपदेश तरंगिणी, सुक्रतसामर ग्रन्थ । 5. संवत् 1466 में श्री सुन्दरसूरि द्वारा लिखित गुर्णावली ग्रन्थ। संवत् 1466 चैत्र शुक्ला का बाहरी सभामण्डप के मंदिर में प्रवेश करते समय बाईं ओर के स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख- इस प्रकार है – संवत् 1466 , वर्षे चैत्र सुदि 13 सुविहित शिरोरत्न शेखर श्री रत्नशेखर सूरि पट्टा बोधि पूर्णचन्द श्री पूर्णचन्द सूरि गुरुकृपा कमल इसा श्री हेम सूरय बाई ओर आलिये में: श्री संवत् 1334 वर्षे वैशाख सुदि 11 शुक श्री आंचलगच्छ प्रागवाट जातिय मई साजण मंइ तेजा- - - सा. काउणेन निज मांत कपूर देवी श्रेयोर्थ रचनक श्री शांतिनाथ बिम्ब कारापित है। सातारे महं मण्डिलक महं माला मह देवीसिंह मह पुत्र हटीसिंह संवत् 1506 माघ सुदि शुक्र. प्राग्वाट वंशे सा. केवट भा. भानु उधरसेन भार्या सोहिणी पुत्र आल्हा, खीमा, भीमा, साहितेन श्री अचल गच्छेना श्री जय केसरी सूरि सदुपदेशन वासु पूज्य वि. कारितं प्र. श्री संघेन। ____ संवत् 1655 में प्रेमविजयजी कुल 365 श्री पार्श्वकृत जिन नाममाला, संवत् 1655 में श्री कल्याणविजयजी गणि के शिष्य द्वारा रचित द्वारा भटेवा पार्श्वनाथ स्तवन, संवत् 1667 में श्री शांतिकुशले द्वारा रचित गणि पार्श्वनाथ स्तवन, संवत् 1721 में श्री मेघ विजय जी द्वारा रचित पार्श्वनाथ नागमाला, 1746 का स्तवन व संवत् 1881 का उत्तमविजय का स्तवन, संवत् 1926 का बावन जिनालय के एक कोरनी पर - Jain Educat International (137 For Persona le Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1190 संवत् 1946 वर्षे ज्येष्ठ शुद 3 बुधवासरे उपकेश वंशें नाहट शाखायां - मातण (1) पुत्र सा. कर्णवटी सा. भीम वीसल - - पौत्र प्रमुख गौत्रदि परिवार साईतेन श्री करहटेक कासपिता। प्रतिष्ठिता श्री खरतगच्छे श्री सूरिभाःनु क्रो श्री मंजिलनसागरसूरिभिः शिवमस्तुः --- ____ मंदिर कितना प्राचीन है, शोध का विषय है लेकिन वर्णित संवत् 1039 में खण्डेरगच्छ के आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी के सदुपदेश से जीर्णोद्धार होकर नूतन जिनालय बनाया और प्रतिष्ठा कराई जिसका उल्लेख बावन जिनालय के एक पाट पर अंकित है संवत् 1039 वर्षे श्री संडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि संतान श्री श्यामाचार्य - - प्र. भ. श्री यशोभद्रसूरिः श्री पार्श्वनाथ बिंब प्रतिष्ठित - - पूर्णचन्द्रेण कारितं इसी प्रकार संवत् 1303, 1339 व 1494 का शिलालेख पर चेत्यगच्छ, धर्मधोषसूरि गच्छ, खण्डेरगच्छ, खरतरगच्छ आदि आचार्य के नामों का उल्लेख मिलता है। और अंतिम रूप से संवत् 2033 को जीर्णोद्धार कराया जिसका उल्लेख निम्न प्रकार से अधिकतर प्रतिमाओं पर है । यद्यपि लेख प्रतिमा के पीछे की ओर होने से सम्पूर्ण नहीं पढ़ा जा सका। वि. सं. 2033 माघशुक्ला 13 को तपागच्छाधिपति श्री नेमीसूरीश्वर शिष्य श्री लावण्यसूरिजी शिष्य श्री दक्षसूरिजी, शिष्य सुशील सूरिजी, शिष्य वाचक श्री विनोद विजयजी की निश्रा में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : ___श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 35" नाग के छत्र तक 41" व परिकर तक 57" ऊँची प्रतिमा है। इस पर अपठनीय लेख है। लेकिन संवत् 1659 (?) पढ़ने में आता है। यह प्रतिमा मनोहर, सुन्दर, मनमोहक, आकर्षक व चमत्कारिक है। इस प्रतिमा को उबसग्ग पार्श्वनाथ विघ्रहरण पार्श्वनाथ के नाम से भी पुकारा जाता है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र (धातु की): श्री अष्टमंगल यंत्र 6" ग 3.5" का है। जिन मंदिर के बाहर खेलामण्डप (सभामण्डप) में कोई प्रतिमा नहीं है। For P 138 wale Use Only www.jainelibran forg Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 खेलामण्डप से बाहर निकलते समय बाई ओर आलिए में: श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान की धातु की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – करेड़ा तीर्थ श्री उदयपुर निवासी प्राग्वाट श्रेष्ठि श्री शोभालाल, नन्दलालजी सुपुत्र भंवरलालजी पत्नी वक्तियाबाई गोरवाड़ा पोरवाड़ ------- खोलामण्डप से बाहर निकलते समय दाईं ओर आलिए में: ___ श्री विध्नहरण पार्श्वनाथ भगवान की धातु की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर यह लेख है करेडा तीर्थ श्री उदयपुर निवासी प्रागवाट श्रेष्ठि श्री फतहलाल धर्मपत्नी स्व. रोशनबाई तत्पुत्र नरेन्द्रकुमार, शांतिलाल, मदनसिंह पौत्र श्री श्रेणिक मनावत - - - यह बावन जिनालय मंदिर कहलाता है। बावन जिनालय क्षेत्र से मंदिर में प्रवेश करते समय बाईं ओर - श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19'' ऊँची प्रतिमा है । इसके नीचे यह लेख है – संवत् 2033 माघशुद 13 श्री करेड़ा तीर्थ उदयपुर श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संधेन – – श्री नेमीसुरीश्वर पट्टधर आचार्य श्री दक्षसूरि आ. श्री सुशीलसूरीश्वर --- श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है- श्री आदिनाथ इस प्रतिमा की पूर्व में श्री रोशनलालजी चतुर ने प्रतिष्ठित कराई। ___ श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11' ऊँची है । इस पर कोई लाछंण व लेख नहीं है। नीचे- इस प्रतिमा की पूर्व में फतहलालजी चतुर ने प्रतिष्ठा कराई, उसको पुनः उनके पुत्र रणजीतलाल चतुर ने विराजमान कराई। श्री श्यामला पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - श्री करेड़ा तीर्थ शिवगंज निवासी प्रागवाट श्री बच्छराज श्रेष्ठि का सकुटुम्ब - - - यह प्रतिमा मद्रास निवासी मेघराज साकलचन्द द्वारा विराजमान कराई। For F 139 )rivate Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 __5. 8. श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख व लाछंण नहीं है । यह प्रतिमा उदयपुर निवासी श्री तख्तसिंहजी चौधरी द्वारा विराजमान कराई। श्री जिनेश्वर भगवान (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । इस पर स्पष्ट लाछंण नहीं है और लेख भी घिसा हुआ है, अपठनीय है। इस प्रतिमा को बालोतरा निवासी लाखाजी-दौलाजी ने पुनः प्रतिष्ठा कराई। श्री अरिछत्रा पार्श्वनाथ की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा, . है। इस पर लेख है – सायरा निवासी खूमचन्द नगा नामक श्रेष्ठिना पुत्र-पौत्रों परिवारेण - - - श्री तपा. आचार्य श्री नेमी लावण्य सूरि पट्टधर आचार्य विजय दक्षसूरि - - इस प्रतिमा को शेरमल खुमानसिंह पोरवाल ने विराजमान कराई। श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची अति प्राचीन प्रतिमा है। इस पर घिसा हुआ लेख है। इस प्रतिमा को श्री वीरचन्द सिरोया ने पुनः बिराजमान कराई। श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची अति प्राचीन प्रतिमा है। इस पर घिसा हुआ अपठनीय लेख है। इस प्रतिमा को मण्डार निवासी श्री प्रतापचन्दजी मकानी ने पुनः विराजमान कराई। श्री मनरंजन पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – श्री मूर्तिपूजक श्री संघेन उदयपुर निवासी श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघेन - - - - यह प्रतिमा नाथद्वारा निवासी स्व. फूलीबाई पत्नी बंशीलालजी श्रेयार्थ अमरचन्द हेमन्त, प्रदीप द्वारा विराजमान कराई। श्री मन वांछित पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है-भानपुरा निवासी पोरवाल प्रेमचन्द, उम्मेदमल, जितेन्द्र द्वारा विराजमान की। 9. 10. 11 For Persen 140 te Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 12 श्री कूलपाक पार्श्वनाथ भगवान (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – साण्डेराव निवासी श्रेष्ठि श्री साकलचन्द, गोपीलाल श्रेयसे - - - । इस प्रतिमा को साकलचन्द, बाबूलाल, सोहनलाल गोडीदास ने विराजमान की। 13 श्री नेमीनाथ भगवान (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। 14 श्री श्रेयांसनाथ भगवान (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इसके नीचे यह लेख है – संवत् 1892 वै.शु. 10 सा. खेडा गोमा श्री श्रेयांसनाथ बिंब --- 15 श्री दूधिया पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – भाणपुरा निवासी भंवरलाल देवीलाल सरेमल -- दूधिया पार्श्वनाथ 16 - श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 18" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – उदयपुर निवासी ओसवाल बापना श्रेष्ठि श्री सोहनलाल श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इसके नीचे यह लेख है - श्री उदयपुर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघेन श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ - - श्री ऋषभदेव भगवान (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - संवत् 1972 वै. शु. 10 – श्री ऋषभदेव बिंब कारित श्री 1008 श्री शांतिसूरीश्वर ---- 19. श्री अजितनाथ भगवान (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। 20 श्री गम्भीरा पार्श्वनाथ (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर यह लेख है – श्री उदयपुर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघेन श्री गम्भीरा पार्श्वनाथ --- श्री चन्द्रप्रभ भगवान (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 9' ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। ___17 18 hy 21 For Person For Pers (141) a le Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 22 श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – वि.सं. 1989 फाल्गुन सुद 2 सोमे - - - श्री पार्श्वनाथ बिंब प्र. सौराष्ट्र श्री कदमाल -- बडी देवरी-कमरानुमा में : 23 श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 25" ऊँची प्रतिमा है। इस पर यह लेख हैवीर संवत् 2503 वि.सं. 2033 नेमि सं. 28 वर्ष माघ शुक्ला 13 बुधवार मेदपाट करहेट करेडा तीर्थ श्री उदयपुर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघ श्री दक्ष सुरीश्वर सदुपदेशन श्री ऋषभदेव जिनेन्द्र बिंब कारापिंत प्रतिष्ठित तपा. आ. तपागच्छाधिपति शासन सम्राट --- श्री रस्तु। 24 श्री जिनेश्वर भगवान (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लाछंण व लेख नहीं हैं। 25 श्री जिनेश्वर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लाछंण व लेख नहीं है। जिन मंदिर से बाहर निकलते समय बाएं- कारनिस पर (सभामण्डप में): 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची धातु की प्रतिमा है। इसके पीछे संवत् 1912 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की चतुर्विशंति 9" ऊँची धातु की प्रतिमा है। इस पर संवत् 2031 पोष कृष्णा 10 का लेख है। श्री आदिनाथ भगवान की 9" ऊँची धातु की प्रतिमा है। श्री पदम्प्रभ भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – संवत् 185 --- श्री श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 8" ऊँची प्रतिमा है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की ऊँची प्रतिमा है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की ऊँची प्रतिमा है। इस पर - शुदि 13 पढने में आता है। Jin Education International For Personal & Private Use Only www.jainelprary prg Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न् र र 9. 13. 10-12 श्री जिनेश्वर भगवान की 4, 5, 4" ऊँची धातु की प्रतिमा है। ये प्रतिमा सीमेन्ट से स्थापित है। लेख पीछे की ओर होने से अपठनीय है। 14. 15 16. 30. 31. श्री जिनेश्वर भगवान की 3" ऊँची धातु की प्रतिमा है। 17. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 4.5 ऊँची धातु की प्रतिमा है। 18-19 श्री जिनेश्वर भगवान की 5 व 6" ऊँची धातु की प्रतिमा है। 20-28 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 7, 9, 7", 7", 6", 5", 5", 6" व 5.5 ऊँची धातु की प्रतिमाएँ है । 29 देवी की 4.5" ऊँची धातु की प्रतिमा है। जिन मंदिर से बाहर निकलते समय दाईं ओर कारनिस पर सभामण्डप में : - 32. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख व लाछंण नहीं है । 33. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री नेमीनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। लाछंण स्पष्ट है व लेख नहीं है । श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है। इसके नीचे लेख है – संवत् 1081 आषाढ शुदि-5 श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 14" सर्प के छत्र तक 19" परिकर सहित 25" ऊँची प्रतिमा है। श्री जिनेश्वर भगवान की 4.5 ऊँची धातु की प्रतिमा है। सीमेन्ट से स्थापित है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4" का है। 96 प्रतिमा पट्ट श्वेत पाषाण का है। इस पर कोई लेख नहीं है। संभवतयावर्तमान, भूत- भविष्य की चौबीस तीर्थंकर (72), विरहमान (20) व जिनेश्वरदेव (4) 96 प्रतिमाओं का पट्ट है। श्री आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - संवत् 1916 मिती वैशाख सुदि 11 For Personal & 143 Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 34. श्री पार्श्वनाथ भगवान की पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - संवत् 1910 --- संतोष --- 35. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख व लाछंण नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 5.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख व लाछंण नहीं है। इस प्रतिमा के बारे में कहा गया है कि कुछ वर्षों पूर्व यह प्रतिमा एक तेली के खेत से मिली। ऐसा कहा जाता है कि उस तेली को स्वप्न आया कि उसको बाहर निकाले । खुदाई करने पर सर्प के दर्शन हुए। तेली घबराया और बाद में खुदाई का विचार छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद पुनः स्वप्न आया कि सर्प से न डरे, वह हट जायेगा। पुनः खुदाई की, सर्प दूर चला गया। मूर्ति निकाली। मूर्ति की सेवा न होने पर घर में परेशानी होने लगी तो यह प्रतिमा करेड़ा के श्री को सुपुर्द कर दी। वहाँ पर भी सेवा नहीं हुई। उनके घर में भी परेशानी होने लगी उन्होंने मंदिर को लिखित में देकर सुपुर्द की । अब नियमित पूजा हो रही है। 37 श्री सिद्धचक्र यंत्र ताम्बे का गोलाकार 23' का है। 38. श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 20” ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री शांतिनाथ भगवान की चतुर्विशंति 11" ऊँची धातु की प्रतिमा है। इसके पीछे 2043 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 7' गोलाकार मयस्टेण्ड व नालीदार धातु का है। 41. श्री शांतिनाथ भगवान की पंचतीर्थी धातु की प्रतिमा है। 42. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6” का है। इस पर संवत् 2053 माघसुदि 11 का लेख है। श्री आदिनाथ भगवान की पीत पाषाण की 11' ऊँची है। इस पर लेख है - संवत् 1021 मिती माह सु -- __ श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लाछण व लेख नहीं है। 45. श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 11.5" ऊँची प्रतिमा है। 40. श्री 43. For P r ivate Use Only www.jainelibrpy.org. International Fo (144) ate Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46. बाहर निकलते समय बाईं ओर : 47. 48. Ja Education International 49. 50. 51. 52. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 चरण-पादुका पट्ट (चार पादुकाएँ जोड़ी) श्वेत पाषाण का 18 " x 16” का है। इसके किनारे लेख है जो पढ़ने में आता है, वह है - संवत् 08 वर्षे मार्गशीर्ष सुदि श्री चंचलेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - कुँवारिया निवासी ओसवाल श्रेष्ठि श्री केसरी मलेन सुत मी लावण्य सूरीश्वरस्य श्री दक्ष सूरीश्वरैः आ. श्री सुशीलसूरीश्वरे बालक विनोद - लहर नवलखा पार्श्वनाथ की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – स्वस्ति वीर सं. 2503 वि.सं. 2033 नेमी सं. 28 माधसुदि 13 बुधवासरे भानपुरा निवासी प्राग्वाट श्रेष्ठि श्री सरेमल खींमराज श्रेयसे तद् धर्मपत्नी बादामबाई श्राविकाया भंवरलाल, सागरमल नवलखा पार्श्वनाथ जिन बिंब कारितं प्रतिष्ठितं च तपा. आचार्य श्री विजय नेमीलावण्य सुरीश्वर पट्टधराचार्य श्री विजयदक्ष सुरीश्वर आचार्य विजय सुशीलसुरीश्वर वाचक श्री विनोद विजय --- श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - 'श्री करेड़ा तीर्थ चण्डीगढ निवासी श्रेष्ठि श्री परसराम जैन श्रेयसे स्व. श्रीमती द्रोपदीदेवी सोमनाथ कृष्णारानी नेमनाथ - श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ जिन बिंब करापिंत प्रतिष्ठितं च श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - सादड़ी निवासी ओसवाल श्री केसरीमल, सागरमल भण्डारी श्रेष्ठिका स्वकुटुम्ब श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ जिन बिंब कारापिंत प्रतिष्ठित च तपा. गांगाड़ी पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - श्री करेड़ा तीर्थ सादड़ी निवासी प्रागवाट श्री शेषमल पण्ड्या नामक श्रेष्ठिना स्व. धर्मपत्नी श्रीमती शकुन्तला सहितेन श्री गांगाडी पार्श्वनाथ बिंब करापिंत प्रतिष्ठितं श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 29" ऊँची प्रतिमा है । इसके नीचे यह लेख है - मेदपाट श्री करहेटक करेड़ा तीर्थ श्री उदयपुर For Personal P145 se Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55 53. 54. 55. 56. 57. 58. 59. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघेन स्व. श्रेयसे - श्री दक्षसूरीश्वर आचार्य सुशीलसुरीश्वर सदुपदेशन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिन बिंब करापिंत प्रतिष्ठितं श्री मनमोहन पार्श्वनाथ की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - सादड़ी निवासी गुर्जर गौत्री प्रागवाट श्री धनराज पार्श्वनाथ जिन मिंद मुनि भूषण श्री वल्लभदत्त विजय सदुपदेशन करापिंत प्रतिष्ठित च तपा. श्री अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है करेड़ा तीर्थ उदयपुर निवासी ओसवाल श्रेष्ठि श्री भंवरलाल मेहत्ता श्रेयसे तद् धर्मपत्नी सुन्दरबाई श्राविकया पुत्र एवन्तीलाल पौत्र सुरेन्द्रसिंह, गिरिशकुमार अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - करेड़ा तीर्थ श्रेष्ठिना श्री रामचन्दजी द्वारा श्री चन्द्रप्रभ जैन भक्ति मण्डलेन श्री अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ जिन मिंद कारापिंत प्रतिष्ठित श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है- करेड़ा तीर्थ कवराल निवासी श्री प्रागवाट संघवी श्रेष्ठि श्री चुन्नीलाल मनरूपेण तद्धर्म पल्या श्रीमति शांताबाई - सहिबेन स्वश्रेयसे साध्वी श्री सिद्ध शिवश्री सदुपदेशन कारापिंत प्रतिष्ठित श्री कापरड़ा पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है करेड़ा तीर्थ सादड़ी निवासी प्रागवाट श्रेष्ठि श्री मांगीलालजी सुपुत्र अशोककुमार सहितेन स्थापित श्री सागरमल वरदीचन्द - - कापरड़ा पार्श्वनाथ - श्री सविना पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - करेड़ा तीर्थ उदयपुर निवासी श्रेष्ठि श्री अम्बालाल दोशी श्रेयसे तद् धर्मपत्नी जीतबाई स्वसुत तेजसिंह तद्धर्म पत्नी श्रीमती कैलाश- - सविन पार्श्वनाथ श्री कल्याण पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है उदयपुर निवासी ओसवाल जातीय स्वजनक श्री मोतीलाल स्वबन्धु सोहनलालस्य च श्रेयसे श्री किशनलाल, मनोहरलालस्य For ar 146 Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60. 61. 62. 63. 64 65 66. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 पुत्र श्री कल्याण पार्श्वनाथ कारापिंत प्रतिष्ठितं श्री वरकाणा पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है – मेदपाटे करहेटक करेड़ा तीर्थ उदयपुर निवासी प्राग्वाट श्री चतरसिंह गोरवाडा धर्मपत्नि गुलाबबाई श्राविकया साध्वी श्री विमला श्री सदुपदेशन श्री वरकाणा पार्श्वनाथ जिन बिंब मिंद श्रेयसे कारापिंत प्रतिष्ठित तपा. श्री सम्मेदशिखरजी पार्श्वनाथ की श्याम पाषाण की 31" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है- सादडी निवासी ओसवाल श्रेष्ठि श्री गुलाबचन्द, माणकचन्द सुपुत्र सोहनलाल सहितेन श्री मुनि भूषण श्री वल्लभदत्त विजय सदुपदेशन कारापिंत श्री श्री मक्षी पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इसके नीचे यह लेख है - सादड़ी निवासी प्राग्वाट श्रेष्ठि श्री देवीलाल पुत्र श्री शेषमल स्वपुत्र कपूरचन्द राजमल दिलीप, महेन्द्र, प्रवीण, प्रदीप, भरत, सहितेन श्री मक्षी पार्श्वनाथ जिन बिंब मिदं कारापिंत प्रतिष्ठित श्री नागेन्द्र पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है करेडा तीर्थ उदयपुर निवासी प्राग्वाट श्रेष्ठि श्री कालूलालजी मारवाड़ी सद्भार्या भूरबाई पुत्र रिखबलाल पुत्र प्रतापसिंह, मनोहरसिंह, भगवतीलाल, जसवन्तसिंह, सुखलाल भार्या तीजबाई श्री नागेन्द्र पार्श्वनाथ कारापिंत प्रतिष्ठितं । श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - प्रागवाट श्री मगनलाल बनोलिया श्रेष्ठिना धर्मपत्नि श्रीमती भूरबाई श्राविकया स्वश्रेयसे साध्वी श्री कीर्ति - • सदुपदेशन श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ कारापिंत प्रतिष्ठितं श्री स्तम्भन पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - सुमेरपुर निवासी प्राग्वाट श्रेष्ठि श्री हीराचन्दजी धर्मपत्नि श्रीमती भागवन्ती श्राविकया स्वश्रेयसे श्री स्तम्भन पार्श्वनाथ For Personal & 147s only. Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 67. 68. श्री अजहरा पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23' ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – करेडा तीर्थ पादरली निवासी श्रेष्ठि श्री टीकमचन्द, हीराचन्द सकुटुम्ब स्वश्रेयसे श्री अजहरा पार्श्वनाथ साध्वी श्री रंजन श्री सदुपदेशन कारापिंत --- फलवृद्धि पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – मण्डार निवासी श्रेष्ठि श्री मायाचन्द, केसरीचन्दस्य सुपुत्र पुखराज, बाबूलाल – ज्वालादि पौत्र अश्विनी शैलेस, जयेश स्वकुटुम्ब श्रेयसे श्री फलवृद्धि पार्श्वनाथ कारापिंत प्रतिष्ठितं श्री सूरजमण्डल पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है- बैंगलोर निवासी संधवी श्रेष्ठि श्री भानमल राजा सिंघ श्रीमती ना स्वकुटुम्ब श्रेयसे श्री सूरजमंडन पार्श्वनाथ कारापिंत प्रतिष्ठितं 69. ____70. ___71. श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 29'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - मेदपाटे श्री करहेटक करेडा तीर्थ श्री उदयपूर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संधेन स्वश्रेयसे वाचक श्री विनोद विजय गणिवरस्य सदुपदेशन श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जिन बिंब कारापिंत प्रतिष्ठित श्री जयवर्धन पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है- उदयपुर निवासी श्रेष्ठि श्री सुन्दरलाल, मोहनसिंह, चन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, इन्द्रसिंह, वरादि स्व. ख्यालीलाल दलाल स्वश्रेयसे श्री जयवर्द्धन पार्श्वनाथ बिंब - - - श्री गोड़ी पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – मद्रास निवासी श्रेष्ठि श्री जेठमल, पुखराज, शुकनराज प्रमुखै स्वकुटुम्ब श्रेयसे श्री गोडी पार्श्वनाथ -- श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - बैंगलोर निवासी श्रेष्ठि श्री देवीचन्द, मिश्रीलालेन स्वकुटुम्ब श्रेयसे श्री पंचासरा पार्श्वनाथ जिन बिंब साध्वी श्री रत्नमाला श्री सदुपदेशन कारापिंत प्रतिष्ठित 73. or PNB wwwajanendrary.drg Private Use Only (148) Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74. 75. 77. बड़ी देवरी (मंदिर में): 76. 78. 79. 80. 81. 82. 83. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री भटेवा पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है मद्रास निवासी श्रेष्ठि श्री केवलचन्द खटोलस्य धर्मपत्नि श्रीमती टमुबाई श्राविकया स्वश्रेयसे श्री भटेवा पार्श्वनाथ जिन बिंब साध्वी श्री रवीन्द्रप्रभा श्री सदुपदेशन कारापिंत प्रतिष्ठितं Ja Education International श्री चमत्कारी पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है – करेड़ा तीर्थ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघेन उदयपुर निवासी स्व. मोतीलालजी सुराणा पुत्र दोलतसिंह, सोहनलाल, भंवरसिंह, मदनसिंह, पौत्र प्रतापसिंह, गोवर्धनसिंह सुरेश - श्री महावीर भगवान की की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 25" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है- श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघेन स्वश्रेयसे आ. श्री सुशीलसुरीश्वर सदुपदेश श्री महावीर जिन बिंब कारापिंत प्रतिष्ठित गच्छाधिपति श्री संकटहरण पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 19 ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - श्री करेड़ा तीर्थ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघेन श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - 'सांतीनाथ ' श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । श्री लोढण पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - सादड़ी निवासी श्री धर्मनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 9 ऊँची प्रतिमा है। श्री सुविधिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 9 ऊँची प्रतिमा है। श्री मुहरी पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख नहीं है। For Personal 149athe Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 84. श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है। 85. श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – स्वस्ति श्री वि.सं. 1989 वर्ष फागुन शुक्ला 12 खौ मेदपाट उदयपुर निवासी दीवानसिंह -- 86. श्री नवपल्लम पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – सादड़ी निवासी हीराचन्द --- 87. श्री भद्रावती पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - शांताकुज तपागच्छ जैन संघेन -- 88. श्री महिमा पार्श्वनाथ की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है- उदयपुर निवासी श्रेष्ठि श्री मोहनलालजी नलवाया 89. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – संवत् 1989 फा.शु. 12 खौ मेदपाटेवती उदयपुरस्य श्री संघ श्रेयर्स श्री शांतिनाथ बिंब प्रतिष्ठित। 90. श्री चन्द्रप्रभु भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - संवत् 1130 - - श्री भाभा पार्श्वनाथ की (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। 92. श्री अजितनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। श्री दादा पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है – उदयपुर निवासी श्रेष्ठि श्री-- ___ श्री चन्द्रप्रभ भगवान (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है। 01 95. For FertEOrivate Use Only . Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96. 97. 98. 99. श्री शांतिनाथ भगवान ( मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की प्राचीन प्रतिमा है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सेसली पार्श्वनाथ की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - लखडवास निवासी श्री संभवनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएँ) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर धिसा हुआ अपठनीय लेख है । श्री अरनाथ भगवान की ( मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख है - संवत् 1992 वै. शु. 10 खौ प्रा श्री अरनाथ - 100. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 29" ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख हैं - मदनराज, कुशलराजजी पुत्र राजेन्द्र, अशोक 101. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 9" व परिकर तक 19" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - स्व. सज्जनलालजी गुजाल मंदिर के प्रथम द्वार में प्रवेश करते समय दाई ओर आलिए में - श्री गौरा भैरव की श्वेत पाषाण की 39" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - मोतीलालजी - मांगीलालजी, अहमदाबाद प्रवेश करते समय बाईं ओर आलिए में - . श्री मणिभद्रजी की श्वेत पाषाण की 27" ऊँची प्रतिमा है । इस पर लेख है - श्री फतहलालजी रोशनबाई सुपुत्र जहाँ गोरा भैरवजी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है । परम्परा, मान्यता व अनुभव यह है कि जहाँ। शब्द 'गोरा' भैरव आता है तो काला (श्याम) भैरव की प्रतिमा भी होनी चाहिए। जानकारी करने पर ज्ञात हुआ कि काला भैरव की प्रतिमा हटा दी गई और नीचे सुरक्षित रखी है। मेरी मान्यता है कि इसके अभाव के कारण मंदिर का विकास नहीं हो रहा है। इस पर ट्रस्टीगण को विचार करना चाहिए और जिस ट्रस्टी की सहमति रही है, वे भी किसी न किसी रूप में तनाव में होंगे। कहाँ तक सही है, नहीं कहा जा सकता, यह मेरी निजी मान्यता है । मंदिर निर्माण की कला इतनी सूक्ष्म रही है कि भगवान के जन्म कल्याण के दिन अर्थात् पोषवदि 10 को सूर्य की पहली किरण भगवान के मस्तक पर पड़ती थी, आज For Persona (&151euse Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 सामने विशाल भवन बन गये हैं, संभव नहीं है। प्रतिवर्ष पोषवदि 10 को मेला लगता है, हजारों श्रद्वालु आते हैं एवं पूजा पाठ करते हैं। वार्षिकध्वजापोष कृष्णा 10 को चढ़ाई जाती है। इस मंदिर की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बना है व कार्य को देखने कर्मचारी नियुक्त है। __ भोजनशाला व्यवस्थित संचालित है। धर्मशाला को आधुनिक बनाने के लिए क्षतिग्रस्त कर दी है। कुछ कमरे विद्यमान है शेष निर्माणाधीन है। पेढ़ी का कार्यालय है। सम्पर्कसूत्र :-श्रीजैन श्वेताम्बर करेड़ा तीर्थ, भूपालसागर फोन(01474)224233 प्राचीन बावन जिनालय की देहरियों के पाट पर निम्न लेखों का उल्लेख हैं। (1) संवत् 2034 (व) र्षे श्री संकेरक गच्छे श्री यशोभ्रद सूरि संताने श्री स्यामा चार्या (2) प्र. म. श्री यशोभद्र सूरिभिः श्री पार्श्वनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं । ।न ।। पूर्व चंद्रेण कारितं (1) ऊँ संवत् 1303 वर्षे चैत्र वदि 4 सोमदिने श्री चित्र गच्छे श्री भद्रेश्वर संताने राटनरीय वंशे। (2) श्रे. भीम अर्जुन कमवट श्रे. बूआ पुत्र श्रे. धयजा धांधल पासम ऊदादिली कुटुंब समेतेः। य प्रतिमा कारिता । प्रति. श्री जिनेश्वर सूरि शिष्यैः श्री जिनदेव सूरिभिः ।। (1) ऊँ संवत् 1329 वर्षे ज्येष्ठ वदि 11 बुधे श्री कोरंटक गच्छे श्री नन्नाचार्य संताने (2) सा. भीमा पुत्र जिसदेव रतन श्ररयमदन कुंता महणराव मातृ लाबी श्रेयार्थ विंबं (कारि) (3) (ता) । प्रतिष्ठितं । श्री सर्वदेव सूरिभिः ।। (1) ।। (संवत् 1329) ज्येष्ठ वदि 11 बुधे श्री षंमेरक गऐ प्रतिबद चैत्यालये श्री For a Private Use Only F (152) atelse only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (श्रे) योर्थ श्री संभवनाथ बिंबं देवकुलिका सहितं कारितं प्रतिष्ठितं श्री शांति सूरि शिष्यैः ईश्वर सूरिभिः । । ब | | | | | | यशोदभद्र सूरि संताने श्रे. साढ देव पुत्र मह सांमत मह त्रासपालेन पु. धांधल सा. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 (2) बाहड पौत्र जिणदेव दिवधर प्रभृतिनिः देवकुलिका सहितं श्री सुमति नाथ बिंबं का. प्र. वादीड श्री धर्म्मघोष सूरि गऐ श्री मुनिचंद सूरि शिष्यैः श्री गुणचंद सूरिभिः ।। ।। ॐ ।। संवत् 1338 वर्षे फागुण सुदि 8 शनौ नां देवान्वये स पदमदेव सुत संघपति साधु श्री पासदेव भार्या पेढ़ी पुत्राश्रत्वारः सा. देहड सा. काजल रजल (1) ।। ॐ ।। संवत् 1330 फागुण सुदि 8 शनौ श्री राज गऐ साधु नेमा सुतधार सत तनुज साधु नाहड तत्पुत्रास्त्रयों यथा सा. काकढ़ भार्या नान्ही पुत्र पाल्हा ।। (2) मा. धर्मरिरि देपाल भार्या देवश्री तथा सा. नरपति पत्नी ललतु हि. पत्नी नायक देवी पुत्राः सहदेव सा. हरिपाल भार्या हीरा देवी हि. हरिसिणि पुत्र महीपाल ।। (1) ( 3 ) देव तृ. हिमश्री सा कुमरसिह तथा सा. तेजा भार्या लीलु पुत्र धरिणंग पून सीह एमस्मिनजुक्रमें पितृ सा. नरपति श्रेयसे सा. हरिपालेन श्री षमें ।। (4) र गऐ प्रतिवद श्री पार्श्वनाथ चैत्य देवकुलिका सहित श्री शांतिनाथ बिंबं का. प्र. वादीड श्री धर्मघोष सूरि पट्टक्रमें श्री आनंद सूरि शिष्यैः श्री अमरप्रभ सूरिभिः ।। ।। ॐ ।। सं. 1338 वर्षे फा. सुदि शनौ श्री राज गऐ सा. नेम सुत सा. धार लत सुत सा. धार सत सुत सा. बाहड़ तत्पुत्रास्त्रयों यथा सा. काकड भार्या नाही पुत्र पाल्हा मा. । । (2) धर्मसिरि देपाल भार्या देवश्री पुत्र तथा सा. नरपति भार्या ललतु हि. नायक देर्व। पुत्राः सा. सहदेव सा. हरिपाल पत्नी हीरादेवी हि. हरिसिणि पुत्र महीपा For Personal 153 Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 (4) षंडेर गऐ श्री पार्श्वनाथ चैत्ये देवकुलिका श्री आदिनाथश्च कारितं प्र. वादींउ श्री धर्म्मघोष सूरि पट्टाक्रमें श्री आनंद सूरि शिष्य अमलप्रभ सूरिभिः ।। (2) (1) संवत् 1362 वर्षे पौष सुदि रवौ श्री चित्रकूट स्थाने महाराजाधिराज पृथ्वी चंद्र (1) (2) मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 (1) (2) ल देव तृ हेमश्री कुमारसिह तथा सा. तेजा भार्या लीलु पुत्र धरणिग पूनसीह पुत्रादि धर्म्म कुटंब समुदये पितृ सा. काढ श्रेयसे सा. पाल्हाकेन श्री श्री मालदेव पुत्र श्री वणवीर सरकं सिलहदार महमदेव सुहड सींह मबंकरा सत्कं पुत्र दिवं गतं तस्य सत्कं गोमट कारापितं । । ।। ॐ ।। स्वस्ति ।। संवत् वर्षे ।। माघ मासे शुक्र पक्षे पंचम्यां तिथौ बुध वारे श्रीमाल ज्ञातीय मडलिया गोत्रे सा. बाहरू सा. धाना मा. इल्हा पु. सं. हेमराज स. थिरराज सं. लोलू सं. सं. गइपाल कु दे पुत्र सा. हेमराज पुत्र समुद्रपाल भार्या श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंचं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनप्रभ सूरि अन्वये । श्री जिनसर्व सूरि पट्टे श्री जिनचंद सूरिभिः । । ।। ॐ ।। स वर्षे ज्येष्ठ सुदि 3 बुधवारे श्री ऊकेश वंशे नाहट शाखायां । सा. माजण पुत्र सा. व णवरी पुत्र सा. भीमा । वीसल रणपाल प्रमुख पौत्रादि परिवार सहितेन श्री करटक स्थान श्री पार्श्व नाथ भुवने श्री विमलनाथ देवस्य देवकुलिका कारापिता । । प्रतिष्ठिता श्री खरतर गच्छे श्री जिनवर्द्धन सू (4) रीणामुनक्रमें श्री जिनचंद्र सूरि पट्ट कमलमार्तड मंडलिः श्रीभद्रिन सागर सूरिभिः “शिवमस्तु” (5) वरसंग देवराज पुन्यार्थ।। For Personal& 154 Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, सिंहपुर यह शिखरबंद मंदिर चितौड़गढ़ से 10 किलोमीटर व कपासन से 17 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। यह झामड़ परिवार द्वारा सं. 1626 में (440 वर्ष पूर्व) निर्माण कराया। प्रतिमा पर सं. 1626 उत्कीर्ण है। अतः यह मंदिर 40 वर्ष प्राचीन है। श्री सेलिर, Imपूर इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की 80 (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1626 का लेख है। श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत 2045 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । इस पर सं. 2038 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु श्री कुंथुनाथ भगवान की चतुर्विशंति 12" ऊंची है। इस पर सं. 2045 वै. शु. 5 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 8.5" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2066 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" का है। इस पर सं. 2065 वै. शु. 5 का लेख है। 3. Education International tional (155)vale Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 4. श्री अष्टमंगल यंत्र 5"x2.7" का है। इस पर सं. 2065 का लेख है। 5. अजितनाथ भगवान की आकृति 2"x2" का पट्ट है। कोई लेख नहीं है। बाहर - आलियों में: 1. श्री शालिभद्र की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची है। इस पर कोई लेख व नाम नहीं है लेकिन शालिभद्र जी कहते है। 2. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 11"6 की प्रतिमा है। इस पर कोई लेख व नाम नहीं है, माणिभद्र कहा जाता है। सभामण्डप में आलियों में: 1. श्री धरणेन्द्र देव की श्याम पाषाण की 5.5" ऊंची प्रतिमा है। कोई लेख नही है। बनावट के आधार पर नाम लिखा है। 2. श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 16" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2038 का लेख है। सभा मण्डप के एक स्तम्भ पर वि. सं. 1678 वै. सुदि 7 का शिलालेख है। मंदिर की 5 दुकाने व 5 बीघा भूमि है। पुजारी को अनाज क्रमानुसार परिवार देता है। समाज कीओर से इसकी देखरेख श्रीनाथूलालजीझामड़करते है। मोबाइल: 96942 53247 'मतभेद' से साथ में रहने से अच्छा है, 'प्रेम' से अलग रहना । (156) For Pelectie vate Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 •श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बरमन्दिर निम्बाहेड़ा श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) भगवान का मंदिर, निम्बाहेड़ा यह पाटबंद(शिखरबंद )मंदिर चित्तौड़गढ़ से 30 किलोमीटर व निम्बाहेड़ा रेल्वे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर नगर के माहेश्वरी मोहल्ला, पीपल चौक में स्थित है। यह मंदिर विजयगच्छ के यतिश्री के नाम से विख्यात है, कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण भी यतिश्रीने ही 400 वर्ष पूर्व में | कराया। पूर्व में प्रतिमा उपाश्रय में विराजमान थी, अब उपाश्रय के ऊपर ही मंदिर (नवीन रूप से) का निर्माण करा प्रतिमाएँ विराजमान कराई गई। यह नगर मेवाड़ का द्वितीय श्रेणी का ठिकाना रहा है।यहां के शासकराठौड़ कहलाते हैं। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। 3. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। वेदी की दीवार के मध्य प्रासाद देवी की 7" ऊँची प्रतिमा है। Jain Eden international For Person(157)use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्त्थापित धातु की प्रतिमाएँ एवं यंत्र: श्री पद्मप्रभ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। श्री शीतलनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख हैं। ___ श्री वासुपूज्य भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1556 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 12" ऊँची चतुर्विंशति प्रतिमा है। श्री कुंथुनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख श्री आदिनाथ भगवान की 9'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। 8. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। 9. श्री जिनेश्वर भगवान की 13'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1789 का लेख है। 10. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। 11. श्री अष्टमंगल यंत्र 5" x 2.5" है। इस पर संवत् 2065 का लेख है। मंदिर की दीवार के आलिओं में: 1. श्री वासुपूज्य भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2065 का लेख है। ____2. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। For Personenvale Use Only www.jainelibrary.g (158) Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथक्-पृथक् देवरी में : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है । इस पर संवत् 2056 का लेख है । 2. 3. 4. 5. 6. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 Ja Education International श्री गौमुख यक्ष की श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2056 का लेख है । श्री गोमुख यक्ष की धातु की 5" ऊँची प्रतिमा है। श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। श्री रत्नप्रभ सूरि की 18" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है । श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। श्री सिद्धचक्र यंत्र पाषाण का स्थापित है। 7. नीचे उपाश्रय में : श्री माणिभद्र की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का आमूलचूल जीर्णोद्धार (नवीन मंदिर) करा संवत् 2056 में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । वार्षिक ध्वजा कार्तिक सुदि 15 को चढ़ाई जाती है । समाज की ओर से देखरेख श्री समरथमल जी सिघंवी करते हैं। मंदिर के साथ धर्मशाला भी है। अरिहंत के साथ एक होने में मेहनत नहीं है, अरिहंत से अलग होने में मेहनत है । For Perfor1 59yate Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, पीपली चौक, निम्बाहेड़ा । यह पाटबंद मंदिर निम्बाहेड़ा नगर के माहेश्वरी मोहल्ला में स्थित है। यह मंदिर 200 वर्ष प्राचीन पारख समाज का होना बताया गया है। पारख समाज श्री राजेन्द्रसूरिजी के अनुयायी हैं। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है: श्री आदीश्वर भगवान की। (मूलनायक) स्थानीय पाषाण की 25" ऊँची प्रतिमा है। इस | पर संवत् 1851 का लेख है। श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 12' ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री धर्मनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। 4. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। ___5. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 9' ऊँची प्रतिमा है। देवरी श्याम पाषाण द्वारा निर्मित है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएँ व यंत्र: 1. श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1518 का लेख है। 160 Private Use Only aronal (160) EURO Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. श्री जिनेश्वर भगवान की 2.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1158 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 5.5" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1273 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान 2" ऊँची प्रतिमा है। इसके पीछे जसोदा लिखा है। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान 4.5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1580 का लेख है। 6. त्रिकोण यंत्र ताम्बे का 6" ऊँचा है। इस पर मंत्र लिखे हुए हैं। बाहर आलिए में: श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1946 का लेख है। 2. ' श्री चक्रेश्वरी देवी की श्याम पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1946 का लेख है। 3. श्री नाकौड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। 4-5. क्षेत्रपाल की 6 व 21" ऊँची प्रतिमा है। मंदिर कीवार्षिकध्वजामाघवदि6 को चढ़ाई जाती है। मंदिर का उपाश्रय है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री रतनसिंह जी पारख द्वारा की जाती है। फोन : 01472-220071 यदि कठोर भाव ही न रहें तो पूरे जगत का वैभव मिल सकता है। For Persopal 69 Use Only Jalucation International Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, पीपली चौक, निम्बाहेड़ा यह शिखरबंद मंदिर नगर के माहेश्वरी मोहल्ला में स्थित है। यह मंदिर धनराज जी हजारीलाल जी पारख परिवार द्वारा 150 वर्ष पूर्व निर्मित है।मंदिर आज भी पारख परिवार की देखरेख कर रहा है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 35" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1946 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान (मूलनायक के दाएं) की श्वेत (कथई) पाषाण की 18" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1948 का लेख हैं। 3. श्री ऋषभदेव भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इसके नीचे संवत् 1948 का लेख है। 4. श्री शांतिनाथ भगवान श्याम पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएँ व यंत्र: ___ 1. श्री अजितनाथ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1512 का लेख है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 4.5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इसके पीछे जलाना लिखा है। For Pe(s162ivate Use Only www.jainelibra og Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री चन्द्रप्रभ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1503 का लेख है। श्री सिद्धचक्र ताम्बे का गोलाकर 7' का है। श्री पार्श्वनाथ भगवान का यंत्र 4.4" x 5' का है। उसी पर कलिकुण्ड पार्श्वनाथ लिखा हुआ है। 6-7 मांत्रिक यंत्र ताम्बे का 8" x 7.5", 9" x 9' का है। 8-9 श्री पार्श्वनाथ भगवान का ताम्बे के पतरे का बिंब 9" x 9", 10" x 10' का 10. चतुर्विंशति ताम्बे की 9' गोलाकार है। इस पर सं. 1946 का लेख है। 11. बीस स्थानक यंत्र गोलाकार 15” का है। बाहर देवरी के आलिओं में: 1. श्री पद्मावती की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 16" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 16" ऊँची प्रतिमा है। श्री जिनेश्वर भगवान की चरण पादुका श्वेत पाषाण की पट्ट पर स्थापित TLC 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। .. 6. श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। 7. श्री राजेन्द्र सूरि जी श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। 8. देवी – देवता का पट्ट स्थापित है। 9-12 क्षेत्रपाल की 19" ऊँची तीन प्रतिमाएं स्थापित है व एक 31" ऊँची प्रतिमा हैं। वार्षिकध्वजा ज्येष्ठ सुदि2 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से इसकी देखरेख श्रीरतनसिंह जी पारख एवं परिवार द्वारा की जाती सम्पर्कसूत्र-01472-220071 Person Jain E ton International Use Only (163) Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पादुका मंदिर पीपली चौक, निम्बाहेड़ा एक प्राचीन देवरी (छतरी) बनी हुई है मान्यता यह है कि यह छतरी 1000 वर्ष प्राचीन है।छतरी पक्की व जाली के दरवाजा लगा है।देवरी में 29"x10"ऊँचे स्तम्भ के बीच पादुका स्थापित है। यहाँ बच्चे बीमार होने पर मन्नतें मांगी जाती हैं, स्वस्थ होते हैं, विवाह होने पर नवदम्पति यहाँ नमन करने आते हैं। पादुका किसकी है। ऋषभदेव भगवान की पादुका कहलाती है और एक स्थान पर अस्पष्ट ऋषभदेवपढ़ने में आता है। श्री जिनकुशलसूरि दादा वाड़ी मंदिर, निम्बाहेड़ा यह मंदिर निम्बाहेड़ा नगर के मध्य में स्थित है। श्री जिनकुशल सूरि खरतरगच्छ के तृतीय दादा की छतरी के नाम से विख्यात है और इस छतरी में 12" x 12" के श्वेत पाषाणी पट्ट पर श्री जिनकुशल सूरि की पादुका स्थापित है। यह छतरी श्री पुनमचंद पारख ने संवत् 1240 में बनाने का लेख है। जो सर्वथा अविश्वसनीय है। संभवत उत्कीर्ण करने वाले ने भूल कर दी जानकारी करने पर यह भी स्पष्ट हुआ कि निर्माणकर्ता पारख परिवार के अभी से तीसरी पीढ़ी के पूर्व के है अर्थात् संवत् 1240 के स्थान पर संवत् 1840 या 1940 संभव हो सकता है। इसकी देखरेख खरतरगच्छ ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री गजेन्द्र भंसाली व मंत्री श्री सोहनलाल बोथरा द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र-मोबाइल : 9414166391 ational For Person 164 Use Only . Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सुमतिनाथ भगवान का मंदिर, निम्बाहेड़ा यह पाटबंद मंदिर निम्बाहेड़ा नगर की रत्नराज जयंत सेन कोलोनी में स्थित है। यह नवीन मंदिर है। संवत् 2003 में श्री जयचन्दसेन सूरि महाराज के सदुपदेश से मंदिर का निर्माण करा संवत् 2059 माघशुक्ला 12 को प्रतिष्ठासम्पन्न हुई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है: 1. श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15' ऊँची प्रतिमा 3. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा इन तीनों प्रतिमाओं पर संवत् 2059 माघ शुक्ला 2 का लेख है। उत्थापित धातु की प्रतिमा व यंत्र: 1. श्री सुमतिनाथ भगवान की 6" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1524 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का लेख है। सभामण्डप में विभिन्न आलिओं में : 1. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री राजेन्द्र सूरि महाराज की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री तुबरू यक्ष की श्वेत पाषाण की 11'' ऊँची प्रतिमा है। ucation International For Persone165te Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 4. श्री महाकाली यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। 5. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। उक्त सभी प्रतिमाओं के नीचे संवत् 2059 का लेख है। सभामण्डप बहुत बड़ा है, इसी में शत्रुजंय, सिद्धचक्र, गिरनार सम्मेत शिखर जी के पट्ट बने हुए हैं। मंदिर के बाहर रिक्त जमीन है। वार्षिकध्वजामाघसुदि 13 को चढ़ाईजाती है। देखरेख पारीख परिवार द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र : श्री रत्नसिंह पारख, फोन : 01472-220071 श्री श्रेयासनाथ भगवान का मंदिर, निम्बाहेड़ा। यह शिखरबंद मंदिर निर्माणाधीन है जिसमें श्रेयांसनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की प्रतिमा विराजमान कराई जावेगी।प्रतिमाएँ मेहमान के रूप में अन्यत्र विराजमान हैं। इस मंदिर के लिए श्री राजेन्द्र सूरि नाम का ट्रस्ट बना हुआ है। इसकी देखरेख इस ट्रस्ट द्वारा की जाती है। जिसमें श्रीरत्नसिंह जीपारीख प्रमुख है। सम्पर्कसूत्र-01472-220071 For Perfo166 ale Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुंथुनाथ भगवान का मंदिर, कचरिया खेड़ी यह विशाल शिखरबंद मंदिर निम्बाहेड़ा से 15 किलोमीटर मुख्य सड़क के किनारे स्थित है। यह श्री सोभागमल जी नायक ने स्वयं की भूमि भेंट की और सम्पूर्ण व्यय स्वयं ने किया। मंदिर के बाहर बहुत बड़ी जमीन है। यह निजी मंदिर है। जिसकी प्रतिष्ठा संवत् 2063 में सम्पन्न हुई अर्थात् 2 वर्ष ही प्राचीन है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 1. 2. 3. 2. श्री कुंथुनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2059 माघ वदि 5 का लेख है । श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाए ) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । उत्थापित धातु की प्रतिमाएँ व यंत्रः 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र की गोलाकार 4" का है। वेदी की दीवार पर प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है । इस पर संवत् 2063 का लेख है । Education International श्री सीमन्धर भगवान की (मूलनायक के दाए) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 For Personal & Private Use Only (167) Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 सभामण्डप में विभिन्न आलिओं में : 1. श्री गंधर्व यक्ष की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री शासन देवी की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री राजेन्द्र सूरि की श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। 4. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। दीवार पर श्री शत्रुजंय, गिरनार जी, सम्मेत शिखर जी व सिद्धचक्र यंत्र के पट्ट बने हैं। वार्षिकध्वजा माघसुदि 10 को चढ़ाईजाती है। इसकी देखरेख नायकपरिवार द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र श्री सुपार्श्वनाथ का मंदिर, रेल्वे फाटक के पास, निम्बाहेड़ा यह शिखरबंद मंदिर निम्बाहेड़ा के अंतिम छोर पर बस्सी रोड़ पर स्थित है ।यह घर देरासर के रूप में माना जाता है जो यतिन्द्र गुड्स कम्पनी परिसर के भीतर स्थित है For 168 Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़ से 40 किलोमीटर व निम्बाहेड़ा से 25 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। कहा जाता है कि मंदिर 400 वर्ष प्राचीन छाजेड़ परिवार द्वारा निर्मित है । उल्लेखानुसार पूर्व में यह शांतिनाथ भगवान का मंदिर था । मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 1. 2. 3. 2. श्री महावीर भगवान का मंदिर, कानेरा (घाटा) Jain Eucation International उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. श्री मुनिसुव्रत भगवान (पार्श्वनाथ भगवान) की श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1864 का लेख है। की श्री महावीर भगवान · (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 16" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1903 माघ सुदि 5 का लेख है । श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 10 ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1548 माघ सुदि 5 का लेख है। पूर्व में यह प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजित थी । शांतिनाथ भगवान की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 वैशाख सुदि 5 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सम्भवनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2044 का लेख है। For Personal 1699 Use Only श्री जैन श्वेताम्बर मन्दिर Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. श्री सुमतिनाथ भगवान की 6'' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1499 माघ सुदि 6 का लेख है। श्री सिद्धचक्र गोलाकार 6" का है। इस पर सं. 2045 का लेख है। श्री सिद्धचक्र श्वेत गिलट का 6" गोलाकार है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 2" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 7. श्री यक्षदेव की श्याम पाषाण की 2" ऊँची प्रतिमा है। सभामण्डप में: 1. श्री पद्मावती देवी की श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री रत्नप्रभ सूरि जी की श्वेत पाषाण की प्रतिमा है। दीवार पर निम्न चित्रपट्ट बने हैं – राजगिरी तीर्थ, पावापुरी, हस्तिनापुर, नंदीश्वर द्वीप, अष्टापद तीर्थ, सम्मेद शिखर जी, नेमिनाथ भगवान की बारात का दृश्य, शत्रुजंय तीर्थ, नारकीय जीवों का उल्लेखित चित्र, भोमिया जी, नाकोड़ा भैरव जी मंदिर की 0.75 बीघा जमीन व दो दुकाने हैं। वार्षिकध्वजा नहीं चढ़ाईजाती है, विचार विमर्श चल रहा है। समाज की ओर से व्यवस्था श्रीनाथूलाल जीछाजेड़ द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र-01477-241646,9351971314 जो मार डालने का विचार करता है, वह भगवान का गुनहगार है और जो मार डालता है, वह जगत का गुनाहगार है। For STAN Private Use Only , (170) Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, मेलाना ___ यह मंदिर 500 वर्ष प्राचीन बताया गया है। उल्लेखानुसार श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर श्री पन्नालाल मोडीराम जी के परिवार ने बनाया । मंदिर की स्थिति अत्यन्त खराब होने से प्राचीन मंदिर को उतार कर नूतन बनाया जा रहा है। प्रतिमाएँ जो विराजमान की जाने वाली है , अस्थायी विराजमान की गई है।अभीप्रतिष्ठा होनीशष है। वर्तमान में मुनिसुव्रत भगवान की श्याम पाषाण की 6" ऊंची प्रतिमा है तथा अन्य एक प्रतिमा श्री आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 6" ऊंची प्रतिमा है। समाज की ओर से इस मंदिर की देखरेख श्रीनाथूलालजी छाजेड़ नि.कनेराद्वारा की जारही है । फोन : 01477-241646 Jain Eucation International For Persoreillause only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, केली (निम्बाहेड़ा) यह शिखरबंद मंदिर निम्बाहेड़ा से 5 किलोमीटर दूर है। यह करीब 200 वर्ष प्राचीन बताया जाता है। उल्लेखानुसार पूर्व में यह आदिनाथ भगवान का मंदिर था प्राचीन प्रतिमा को वर्तमान में मूलनायक के पास विराजमान कराईहै। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: 1. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की ऊँची प्रतिमा है। इस पर लेख अपठनीय हैं। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सीमेन्ट लगने से लेख अपठनीय है। 3. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर सीमेन्ट लगने से लेख अपठनीय है। इन प्रतिमाओं पर "श्री अमरसेन अजितसेन विजय के सदुपदेश से प्रतिमाएँ " उल्लेखित है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ: ___ 1. श्री महावीर भगवान की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2047 का लेख N 2. 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊँची प्रतिमा है। श्री जिनेश्वर भगवान की पाषाण की 4" ऊँची प्रतिमा है। वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी स्थापित है। For Perso i vate Use Only (172)vate Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 बाहर आलिए में दाएं: 1. श्री गौमुख यक्ष की श्याम पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री माणिभद्र की स्थानीय पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। बाएं: __1. श्री यक्षदेव (माणिभद्र) की श्याम पाषाण की 13'' ऊँची प्रतिमा है। सिन्दूर का प्रयोग किया जाता है। 2. पद्मावती देवी की श्याम पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2052 माघ शुक्ला 7 का लेख है। मंदिर की तीन दुकान किराए पर चल रही हैं। इसी से दैनिक व्यय होता है वार्षिकध्वजामाघशुक्ला 7 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से व्यवस्था श्री लक्ष्मीलालजी कांटेड़ द्वारा की जाती है, फोन : 01477-240205 नोट – पानी गिरता है, जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। इस दुनिया में 'नम्र बनिए लेकिन 'दीन' तो कभी भी मत बनिए। Jas o n International For Persorpi733 Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, बांगरड़ा (मामादेव) यह शिखरबंद मंदिर निम्बाहेड़ा से 10 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। मंदिर निर्माण करने के लिये श्री सुजानमल जी जयसिंह जी जारोली ने भूमि भेंट की और मंदिर का कार्य प्रारम्भ कर संवत् 2055 में मंदिर की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई अर्थात् यह नूतन मंदिर है जिसकी प्रतिष्ठा सं. 2055 पोष वदि 8 को सम्पन्न हुई । मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : 1. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 21" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2054 माघ शुक्ला 13 का लेख है। 2. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2052 का लेख हैं। 3. श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । इस पर सं. 205 ... का लेख है । उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर श्री जितेन्द्र सूरि की प्रतिष्ठा का लेख है । 2. श्री विमलनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 वैशाख 5 का लेख है। 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 5" का है। इस पर सं. 2045 वैशाख सुदि 3 का लेख है। 4. श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। इस पर सं. 2045 वैशाख सुदि 5 का लेख है। वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी 7" ऊँची प्रतिमा है। निज मंदिर के बाहर दोनों ओर आलिओं में : 1. श्री षष्टमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2055 का लेख है। 2. श्री विजया देवी की श्वेत पाषाण की 13" प्रतिमा है। इस पर सं. 2055 का लेख है। मंदिर के पास उपाश्रय की भूमि उपलब्ध है वहां निर्माण कराया जाना है। वार्षिक ध्वजा पोष वदि 8 को चढ़ाई जाती है । व्यवस्था श्री अशोक कुमार जी जारोली द्वारा की जाती है। मोबाइल : 9829954227 For Per 174 vate Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, रानीखेड़ा (निम्बाहेड़ा) यह शिखरबंदमंदिर निम्बाहेड़ासे 5 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर 500 वर्ष पूर्व श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर था।देवजी मनजी द्वारा निर्मित होने का उल्लेख है। उल्लेखानुसार बाद में श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर रहा और वर्तमान में सुपार्श्वनाथ भगवान का है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : __1. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2041 वैशाख सुदि 5 रविवार का लेख है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर "सं. अपठनीय वैशाख सुदि 3 काष्टासंघ का लेख है। श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) की श्वेत पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1545 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2041 फाल्गुण सुदि 3 का लेख हैं। Jain International For Person 175 Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. बीस स्थानक यंत्र 10' का गोलाकार है। इस पर सं. 2064 का लेख है। 4. श्री समोसरण मंदिर गोलाकर 4.5" का है। इस पर सं. 2041 वैशाख सुदि 5 का लेख है। 5. श्री सिद्धचक्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर 2041 का लेख हैं। 6. श्री देवी की 3' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1542 भादवा सुदि 7 का लेख है। बाहर आलिए में: 1. मांतग यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। चक्षु नहीं है। 2. श्री शान्ता यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। सभामण्डप में श्री माणिभद्र की स्थानीय पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। मंदिर का जीर्णोद्धार सं. 2046 माघ शुक्ला 14 को जयंतसूरि जी की निश्रा में सम्पन्न हुआ। मंदिर की जमीन होना बतलाया गया लेकिन जानकारी नहीं है। मंदिर परिसर प्राचीन है। शेष नूतन है। पास में उपाश्रय व तीन कमरें, प्रवचन हाल चौक है। वार्षिकध्वजा माघशुक्ला 14को चढ़ाई जाती है। समाजकी ओर से व्यवस्था श्रीसुरेन्द्र जीडुंगरवालवपरिवार द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र-01477-220318 अनुकूलता में जिसे धीरज है उसे प्रतिकूलता में धीरज रहता ही है। For Per v ale Use Only 176 www.jainelibraorg Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री विमलनाथ भगवान का मंदिर, विनोता (निम्बाहेड़ा) गा। यह घूमटबंद मंदिर निम्बाहेड़ा से 15 किलोमीटर दूर ग्राम के आखिरी छोर पर स्थित है। उल्लेखानुसार पूर्व में चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर 1800 के लगभग का निर्मित है व वि.स. 1828 में प्रतिमा को स्थापित की। वर्तमान में श्री विमलनाथ भगवान कामंदिर है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा 2. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1938 कार्तिक मास .... आगे सीमेन्ट में दबा है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाए)श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1828 का लेख 4. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1938 ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी का लख है। श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। Jaint For Persona(177)se Only ion international Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. श्री महावीर भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2035 वैशाख शुक्ल 3 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 5" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर अपठनीय लेख है। 2. 3. 4. 5. 6. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. 7. बाहर सभामण्डप में : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2.7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 1660 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 2.5" ऊँची पाषाण की प्रतिमा है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर संवत् 2059 का लेख है। 2038 माघ कृष्णा 6 श्री सिद्धचक्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर संवत् का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र 6" x 5" का है । इस पर कोई लेख नहीं है। श्री क्षेत्रपाल की 15" व 15" ऊँची दो प्रतिमाएँ हैं । श्री माणिभद्र की 20” ऊँची प्रतिमा है। इस पर सिन्दूर का प्रयोग किया जाता है। दीवार पर निम्न चित्रपट्ट बने हुए हैं पांच पहाड़, (राजगृही) सम्मेद शिखर जी, पावापुरी, गिरनार जी, नेमिनाथ जी, 14 स्वप्न । 1. श्री षष्टमुख यक्ष देव की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2034 ज्येष्ठ शुक्ला 5 का लेख है। 2. श्री राजेन्द्र सूरि जी की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। मदिर का जीर्णोद्धार संवत् 2006 में सम्पन्न हुआ । प्रतिष्ठा 2034 में सम्पन्न हुई। मंदिर की 5 बीघा जमीन थी, उसको श्री औंकार जी कुमावत को बेचने की जानकारी है, जानकारी करनी चाहिये। मंदिर की एक दुकान किराए पर है जिसकी राशि से दैनिक व्यय किया जाता है। वार्षिक ध्वजा ज्येष्ठ शुक्ला 5 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री भंवरलाल जी सिंघवी व श्री अमरसिंहजी मुनोत करते हैं । सम्पर्क सूत्र - 01477-248307 178 For Personal Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 य ख ETRI E 16 श्री कुंथुनाथ भगवान का मंदिर, सतखण्डा यह प्राचीन शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 15 किलोमीटर दूर है। ग्राम के जैन सदस्यों के द्वारा ज्ञात हुआ कि इसी स्थान पर जैन मंदिर के खाण्डहर थे, जिसको पुरातत्व विभाग के अधिकारी को आमंत्रण कर जांच कराई, उन्होंने बताया कि उसका पाषाण 12वीं शताब्दी का है और जैन आचार्य द्वारा भी पुराना बताया, इसलिए मंदिर का निर्माण पुराने स्थान पर ही बनाने का निर्णय किया और संवत् 2039 को प्रतिष्ठा कराई। निम्न प्रतिमाए स्थापित की गई: श्री कुंथुनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2035 वैशाख शुक्ल 3 रविवार का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2035 वैशाख शुक्त 3 का लेख है। श्री महावीर भगवान की | (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2035 वैशाख शुक्त 3 का लेख है। ESS (179 For Personal Use Only Jain Educa t ional Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित धातु की प्रतिमाएंव यंत्र: श्री शांतिनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2063 का लेख है। 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6” का है। इस पर वीर सं. 2498 वैशाख शुक्ल 3 का लेख है। श्री ताम्बे का पट्ट चौकड़ीनुमा 3" का है। बाहर सभामण्डप में: 1. श्री गंधर्व यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2035 का लेख है। 2. श्री बला यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2035 का लेख है। शिखर की परिक्रमा के तीनों ओर तीन मंगल मूर्ति स्थापित है। मंदिर की भूमि व उपाश्रय है जो कन्हैयालाल जी सिंघवी के नाम पर ही है। वार्षिकध्वजावैशाख शुक्ला 3 कोचढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेख समाज के अध्यक्ष श्री कन्हैयालाल जी सिंघवी व रूपलाल जी बोल्या द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र-01472-220042, 01472-220892 भय किसे होता है? जिसे लोभ होता है। pe 180 Drivate Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, सतखण्डा यह घूमटबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 15 किलोमीटर दू ग्राम के मध्य स्थित है। यह मंदिर 200 वर्षप्राचीन बतलायागयाहै। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं। 1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत | पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है।। इस पर कोई लेख नहीं है। उत्थापित धातु की प्रतिमा व यंत्र: 1. श्री संभवनाथ भगवान की 8' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2049 का लेख है। 2. श्री सुमतिनाथ भगवान की 8" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1519 का लेख है। 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर संवत् 2061 का लेख है। 4. श्री अष्टमंगल यंत्र 6" x 3.5" का है। • "श्री अधिष्ठाता देव की 23'' ऊँची प्रतिमा है। मारी पन्ना का प्रयोग होता है। वार्षिक ध्वजा वैशाख सुदि 5 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से देखरेख श्री रूपलाल जी बोल्या करते हैं। सम्पर्कसूत्र-01472-220892 जैन मंदिर सतखण्डा प्राचीन खण्डहर मंदिर है जिसका शिखर अफसरावमंगलमूर्ति दिखाई देती है। (181) For Personarenate Use Only Jain International Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, मेवासा यह घूमटबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 25 किलोमीटर व निम्बाहेड़ा से 20 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। यह निजी मंदिर श्री मुणोत कोठारी का होना बताया है। यहाँ पर कोई जैन नहीं रहता। श्री ललित कोठारी ग्राम से बाहर रहते हैं। ऐसा बतलाया जाता है। कि 300 वर्ष प्राचीन मंदिर है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : 1. 2. 3. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री माणिभद्र की प्रतिमा है जिस पर मारी पन्ना लगे हैं । क्षेत्रपाल की छोटी चार प्रतिमा है । वार्षिक ध्वजा नहीं चढ़ाई जाती है । देखरेख श्री ललित जी कोठारी द्वरा की जाती है । सम्पर्क सूत्र - 9460082705 घर में शांति हो जाए, यही सबसे बड़ी 'शिक्षा' है। For Personal & Private Use Only (182) www.jainelibrary org Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीपाश्नाथ जैन श्वेताम्बरमन्दिर श्री पाश्वनाथ भगवान का मंदिर, मागरोल यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 25 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य स्थित है। बताया जाता है कि यह मंदिर 500 वर्ष प्राचीन है, समयकाल के आधार पर क्षतिग्रस्त हो जाने से जिर्णोद्धार होता रहा, जानकार सूत्रों से प्रथम जिर्णोद्धार संवत् 1800 के लगभग, द्वितीय 1986 में व अन्त में 2052 में हुआ।यह मंदिर सुराणा परिवार द्वारा निर्मित है करीब 100 वर्ष पूर्व समाज को सुपुर्द किया। यहां तृतीय श्रेणीका ठिकानारहाहै।यहां के शासकराणावत वंशके थे। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1549 वैशाख सुदि प्रतिपदा का लेख है। श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11' ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री पद्मप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1826 का लेख है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएंएवं यंत्रः श्री शांतिनाथ भगवान की 8' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 का लेख है। For Pos183)vate Use Only Education International Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. Jain Exeter 4. मंदिर से बाहर निकलते समय दोनों ओर : 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री शांतिनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2051 का लेख है। इस पर लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर संवत् 2045 का लेख है । श्री अष्टमंगल यंत्र 5” x 3.5" का है। इस पर संवत् 2045 का लेख है। बाहर सभामण्डप में 1. श्री धरणेन्द्र देव की बाहर ( दाईं ओर) श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । श्री पद्मावती देवी (बाईं ओर) की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है । - श्री माणिभद्र की श्याम पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। श्री चक्रेश्वरी देवी की श्याम पाषाण की 10 " ऊँची प्रतिमा है । 2. मंदिर के सामने उपाश्रय तथा जमीन भी है । वार्षिक ध्वजा माघ शुक्ला 2 को चढ़ाई जाती है । देखरेख समाज द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र - श्री भैरूलाल जी संचेती श्री विजयजी - मोबाईल : 9602603939 श्री बगड़ीराज जी बापना फोन 01477-246117 पैसे से भिखारी होने पर पैसे तो वापिस मिल जाते हैं लेकिन मन का भिखारी कभी धनवान नहीं होता। For Personal & Private Use Only 184 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह घूमटबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 20 व निम्बाहेड़ा से 12 किलोमीटर दूर है। चित्तौड़ व निम्बाहेड़ा रेल्वे स्टेशन है। ग्राम बसे हुए 500 वर्ष हो गए हैं ग्राम के साथ ही इस मंदिर को धींग परिवार ने बनवाया और 150 वर्ष पूर्व इसको समाज को सुपूर्द किया। जिर्णोद्धार करा प्रतिष्ठा संवत् 2001 मार्ग शुक्ला 6 को सम्पन्न हुई। पूर्व की प्रतिमा खण्डित होने से नवीन प्रतिमा को विराजमान राई । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ विराजमान कराई : 1. श्री वासुपूज्य भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है । उत्थापित धातु की प्रतिमाएँ व यंत्र - 1. 2. 3. श्री वासुपूज्य भगवान का मंदिर, अरनोदा 4. Jainucation International श्री शांतिनाथ भगवान की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1578 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3 ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1359 का लेख है। यह प्रतिमा खनन से प्राप्त हुई है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6' ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.2" का है। इस पर कोई लेख नहीं है । For Person 85 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 ate Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 5. 6. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। श्री क्षेत्रपाल की 10 " ऊँची प्रतिमा है। वार्षिक ध्वजा ज्येष्ठ वदि 6 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की देखरेख श्री वासुपूज्य सेवा समिति द्वारा की जाती है । सम्पर्क सूत्र श्री भंवरलाल जी मुणेत 01477-249221 खुदा होने के लिए हथियारों की जरूरत नहीं है। खुद को पहचान ले, वह 'खुदा'। For Pers 186 vate Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मन्दिर नरव श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, लसड़ावन यह शिखरबंद मंदिर निम्बाहेड़ा से 15 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। मंदिर 500 वर्ष प्राचीन बतलाया गया लेकिन ऐसा कोई प्रमाणिक साहित्य नहीं मिला । उल्लेखानुसार मंदिर से 1900 के लगभग का है लेकिन व्यवस्था के अभाव में क्षतिग्रस्त हो गया।मंदिर की बनावट के आधार पर मंदिर 200 वर्ष प्राचीन श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर था।प्राचीन प्रतिमा को ही स्थापित किया गया ।पुनः जीर्णोद्धार करा संवत् 2038 में पुनः प्रतिमा को स्थापित कराया।यह तृतीय श्रेणीका ठिकाना रहा है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2038 माघ कृश्णा 6 का लेख है। 2. श्री श्रेयासनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा | है। इस पर संवत् 2038 का | लेख है। 3. श्री संभवनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण | की 13" ऊँची प्रतिमा है। दोनो ओर आलिओं में: श्री गरूड़ यक्ष की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा है। 2. श्री निर्वाणी देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊँची प्रतिमा 1. है। Jain Education nternational For Persona (187 use only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापितचल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: श्री शांतिनाथ भगवान की 8' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2035 वै0 सुदि 3 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। श्री अष्टामंगल यंत्र 5"x 3" के आकार का है। कोई लेख नहीं है। श्री आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। वेदी की दीवार के बीच प्रासाद देवी की श्वेत पाषाण की 6" ऊँची प्रतिमा' है। इस पर संवत् 2040 का लेख है। बाहर सभामण्डप में: 1. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2040 ज्येष्ठ वदि 5 का लेख है। 2. श्री अधिष्ठायक देव की 8" ऊँची प्रतीक मूर्ति है। मंदिर की देखरेख सुव्यवस्थित नहीं है। कोई मूर्तिपूजक परिवार नहीं रहता है, गाँव के सदस्य सहयोग करते है। पानी टपकता है, जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। वार्षिकध्वजाज्येष्ठ वदि5 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से देखरेख श्रीफतहलालपारसमलजीकरते हैं। सम्पर्कसूत्र-01470-243372 अपनी भूलों को देखे, वह 'परमात्मा' बन सकता है। For PersonaggUse Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री 'वासुपूज्य भगवान का मंदिर, बाड़ी (निम्बाहेड़ा) यह घूमटबंद मंदिर निम्बाहेड़ा से 18 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर करीब 150 वर्ष प्राचीन है उल्लेख भी संवत् 1900 के लगभग का निर्मित है। पूर्व में श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर रहा है, वर्तमान में श्री वासुपूज्य भगवान का है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: 1. 2. 3. 4. 5. श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है । इस पर वि. सं. 1646 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्याम पाषाण की 19 " ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2056 का लेख है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 13” ऊंची प्रतिमा हे। इस पर संवत् 2019 वै. शु. 6 का लेख है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 23 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1548 का लेख है। श्री महावीर भगवान की श्याम पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है । बाहर श्री क्षेत्रपाल की 11" ऊंची प्रतिमा है, माली पन्ना का उपयोग होता है। मंदिर पर टाइल्स व रंगाई की हुई है। मंदिर का गर्भगृह, सभामण्डल, खेलामण्डप व बाहर खुला चौक है। यहां उपाश्रय व भोजनशाला है। समाज की ओर से इस मंदिर की देखरेख श्री शांतिलाल जी छाजेड़ (अध्यक्ष) मोबाइल : 9928199040 एवं श्री भँवरलाल जी चपलोत (मंत्री द्वारा की जाती है। फोन : 01477-2452152 For Perso 189 vate Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 पूर्व में प्रकाशित " मेवाड़ के जैन तीर्थ” भाग -1 पुस्तक के संशोधन 1. पृष्ठ सं. 94 पर वर्णित राजपुरा में स्थापित मंदिर के नाम पर 81 बीघा जमीन होने का उल्लेख है लेकिन किसके अधिकार में है, स्पष्ट नहीं है। ऐसी भी जानकारी है कि यति जी ने बेच दी। 2. पृष्ठ सं. 231 में वर्णित देवरी में स्थापित प्रतिमाओं को दीवार में चुनी गई वे पार्श्वनाथ आदिनाथ व विमलनाथ भगवान की प्रतिमाओं का उल्लेख मिलता है। 3. पृष्ठ सं. 236 पर अंकित कड़िया ग्राम के जैन मंदिर की 1 बीघा जमीन श्री भेरूलाल जी खेमराज के पास है - 1. 1 बीघा जमीन श्री धनरूप जी किशोर जी के पास है । 2.5 बीघा जमीन पुजारी के पास है। इस जमीन से प्राप्त आय से मंदिर का दैनिक खर्च में किया जाता है । पृष्ठ सं. 299 में वर्णित झीलवाड़ा में दो मंदिर श्री आदिनाथ व शांतिनाथ भगवान का होने का उल्लेख है। जबकि वर्तमान में एक ही मंदिर है जो निर्माणाधीन है । व प्रतिमाएं न्याति न्यौरा में स्थापित है । 4. 5. पृष्ठ सं. 301 में वर्णित मंदिर के नाम 35 बीघा जमीन है जो पूर्व के पुजारी जी खेमराज भोलाराम चुन्नीलाल के अधिकार में है। इस सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही की जानी चाहिए । 6. पृष्ठ सं. 311 पर वर्णित मंदिर के नाम 1.5 बीघा जमीन होने का उल्लेख है, वर्तमान में किसके पास है, क्या उपयोग हो रहा है, जानकारी करनी चाहिए। 7. पृष्ठ सं. 336 पर वर्णित मंदिर के नाम 1.5 बीघा जमीन होने का उल्लेख है, वर्तमान में किसके पास है, क्या उपयोग हो रहा है, जानकारी करनी चाहिए । 8. पृष्ठ सं. 341 पर वर्णित मंदिर के नाम 1.25 बीघा पुजारी के अधिकार में है । क्या स्थिति है ? जानकारी करनी चाहिए। 9. पृष्ठ सं. 351 पर वर्णित मंदिर के नाम 4.5 बीघा व 2 बीघा जमीन है जिसका वार्षिक लगान 5. 50 है। वर्तमान में किसके अधिकार में है ? जानकारी करनी चाहिए । 10. पृष्ठ सं. 421 पर वर्णित मंदिर के नाम पर 19 बीघा सींचित जमीन है जिसका वार्षिक लगान 90/- आता है वर्तमान में किसके कब्जे में है, क्या उपयोग हो रहा है ? जानकारी करनी चाहिए । 11. पृष्ठ सं. 428 पर वर्णित मंदिर के नाम पर 3 बीघा जमीन व एक कुआं है, वर्तमान में किसके अधिकार में है, क्या उपयोग हो रहा है ? जानकारी करनी चाहिए। 12. पृष्ठ सं. 405 पर वर्णित मंदिर के नाम पर 1.75 बीघा जमीन है जिसका वार्षिक लगान 11.80 रुपये आते है। वर्तमान में क्या स्थिति है ? जानकारी करनी चाहिए। 13. पृष्ठ सं. 116 भटेवर ग्राम की प्राचीनता के बारे में उल्लेख है कि मेवाड़ के गुहिल (गहलोत) वंशीय शासक भर्तृभट्ट ने सं. 1000 में भर्तृपुर (भटेवर ) ग्राम बसाया एवं आदिनाथ भगवान के चैल का निर्माण कराया । उसका नाम 'गुहिल विहार' रखा। उस विहार से जैनों के भटेवर गच्छ का अभिर्भाव हुआ । राजा के वंशजों ने जैन धर्म स्वीकार किया । उनका भटेवरा गौत्र बना । For Perserate Use Only 190 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 भर्तृभट्ट का पुत्र अल्लट आचार्य प्रद्युम्नसूरि का भक्त था । उसने चित्तौड़ के किले पर भगवान महावीर स्वामी का मंदिर बनवाया । अल्लट के कई मंत्री जैन थे। यहां के जैन परिवार अहाड़ा कहलाए । 14 पष्ठ सं. 207 पर वर्णित मंदिर के नाम पर 5 बीघा जमीन होने का उल्लेख है जो पजारी के अधिकार में है। जानकारी करने की आवश्यकता है। 15. पृष्ठ सं. 446 – अनुच्छेद नं. 2 की आठवीं लाइन में एक लाख के स्थान पर 50,000 पढ़ा जावे व लाइन नं. 12 पर 5-7 हजार के स्थान पर 500 पढ़ा जावे तथा लाइन नं. अठारहवीं पर सीधंधर के स्थान पर सीमंधर पढ़ा जावे। 16 पृष्ठ सं. 144 घासा का मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था, दो बार पूर्व में शिखर का जीर्णोद्धार हो चुका है। 17 पृष्ठ सं. 462 के क्र. सं. 53 पर ऋषभदेव के स्थान पर ऋषभानन पढ़ा जावें । 18. पृष्ठ सं. 226 पर मुख्य शीर्षक श्री पार्श्वनाथ भगवान के स्थान पर श्री शांतिनाथ भगवान पढ़ा जावे । मूलनायक श्री शान्तीनाथ भगवान है, परिकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का है । 1. पूर्व में प्रकाशित “णमोकार मंत्र महामंत्र' पुस्तक के संशोधन अनक्रमणिका के पष्ठ संख्या 02 पर अनक्रमांक 6 पर उल्लेखित गणेकार के स्थान पर णमोकार पढ़ा जावे । पृष्ठ संख्या 33 के अन्तिम अनुच्छेद में पदों की संख्या के स्थान पर पदों के श्लोकों की संख्या पढ़ा जावे । 2. उदयपुर नगर एवं उदयपुर जिले में निर्मित नूतन जैन श्वेताम्बर मदिर श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर काया, (उदयपुर) यह शिखरबंद मंदिर 15 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय मार्ग के छोर पर स्थित है। यहां पर भूतल पर आचार्य श्री राजेन्द्र सूरि का श्वेत पाषाण की प्रतिमा स्थापित है। प्रथम मंजिल पर श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) भगवान की श्वेत पाषाण की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा सन् 2010 में श्री जयरत्नविजयजी म.सा. की निश्रा में सम्पन्न हुई। श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, धुलकोट आयड़, (उदयपुर) यह शिखरबंद मंदिर उदयपुर नगर से 2 किलोमीटर व राणा प्रतापनगर रेल्वे स्टेशन से करीब 1 किलोमीटर दूर पुरातत्व संग्रहालय के पास में स्थापित है। यहां पर भूतल पर आचार्य श्री राजेन्द्रसुरि की प्रतिमा व प्रथम मंजिल में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सन् 2010 में आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरीश्वर जी म.स. की निश्रा में सम्पन्न हुई। श्री वासुपुज्य भगवान का मंदिर, चित्रकुट (उदयपुर) यह शिखरबंद मंदिर उदयपुर नगर से 9 किलोमीटर दूर नाथद्वारा मार्ग पर स्थित है। इसकी प्रतिष्ठा सन् 2010 में श्री नित्यानन्दसूरिजी म.सा. की निश्रा में सम्पन्न हुई । In Education International ForPe(191)ate Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 शास्त्रोक्त जैन प्रतीक चिन्ह 卐3 www परस्परोग्रहो जीवानाम् अनेको बार जैन समाज /संस्थाओं द्वारा जिस जैन प्रतीक चिन्ह को अंकित / प्रकाशित किया जाता है, वह शास्त्रीय व्याख्या के अनुरूप नहीं होता है । यह देखकर अतीव मानसिक पीड़ा की अनुभूति होती है । इसका संभावित व मुख्य कारण है शास्त्रोक्त सही अनुपात से अनभिज्ञता जो कि जैन तीर्थंकर व केवली भगवंतों की वाणी पर आधारित है। वर्तमान में प्रचलित जैन प्रतीक चिन्ह सम्पूर्ण जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों की सर्वमान्य मान्यताओं पर आधारित विश्वलोक का आकार है । भगवान महावीर ने लोकाकाश का आकार यह बताया है : 1. आकार की व्याख्या - ऊपर से छोटा, नीचे से क्रमशः फैलता हुआ फिर चौथाई भाग के बाद मध्य तक (ऊपरी मध्य में) वापस सिकुड़ता हुआ तथा मध्य भाग से निरंतर फैलता हुआ है । उदाहरण के लिए नर्तकी अपने कमर पर हाथ रखे पावों को पूरी तरह फैला कर खड़ी हो जैसा । दूसरा उदाहरण त्रिशिराव सम्पुताकार यानि तीन सकोरों (कुल्हड़ ) से बनी आकृति जिसमें नीचे एक सको उल्टा रखा हो, उस पर दूसरा सकोरा सीधा रख कर उस पर तीसरा सकोरा उल्टा रख दें । 2. माप का अनुपात - इसे दो भागों में बाँटते हैं एक उर्ध्व लोकाकाश जो सात रज्जु ऊंचा व दूसरा अधोलोकाकाश वो भी सात रज्जु ऊँचा है । ऊर्ध्वाकाश ऊपर चौड़ाई में एक रज्जु, निरन्तर बढ़ते हुए मध्य में पांच रज्जु फिर निरन्तर वापस घटते हुए नीचे एक रज्जू हो जाता है । तत्पश्चात अधोआकाश एक रज्जु से निरन्तर बढ़ते हुए नीचे सात रज्जु हो जाता है । ऊर्ध्वाकाश को स्वर्ग व अधोआकाश को नरक की संज्ञा भी दे सकते हैं । इन दोनों की गहराई भी सात रज्जु मानी गई है जिसका घन - फल 343 रज्जु भगवान ने बताया है । आयतन ऊर्ध्वलोक का घनफल 147 व अधोलोक का 196 कुल 343 घन रज्जु । आज की वैज्ञानिक गणना के आधार पर ब्रह्माण्ड के आयतन से जैन प्रतीक जो लोकाकाश की आकृति का दिग्दर्शक है, का आयतन काफी साम्य रखता है । 3. प्रतीक का विवरण - लोकाकाश के ऊपर चन्द्राकार आकृति है वह सिद्ध शिला दर्शाती है, जहाँ मुक्त आत्माओं का वास है। उसके नीचे तीन बिन्दु ज्ञान दर्शन और चारित्र का निर्देशन करते हैं । स्वस्तिक आत्माओं की निरन्तर प्रगति व शुभत्व का सूचक है । । 4. पृथ्वी की स्थिति - हमारी पृथ्वी तिर्यक लोक में स्थित है जो कि पूरे लोकाकाश के मध्य में स्थित है (अर्थात ऊर्ध्वलोकाकाश के नीचे व अधोलोकाकाश के ऊपर) । इस क्षेत्र को समय क्षेत्र कहा जाता है जिसमें चाँद, सूर्य व सितारों द्वारा समय का निर्धारण होता है । आप श्रीमन्त से हमारा आग्रह भरा निवेदन है कि हमारे जैन प्रतीक को सही रूप व अनुपात में प्रस्तुत करें, प्रयोग में लायें । For Persona192 Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतापगढ़ का इतिहास प्रतापगढ़ राजस्थान के दक्षिणी भाग में 23.22 और 24.18 उत्तर अंक्षाश तथा 74. 29 व 75. पूर्व देशान्तर के बीच में स्थित है। पूर्व में यह राज्य मालवा क्षेत्र में आता था, इसलिए यहां पर पूर्व में मौर्य मालव, गुप्त व हुणो का राज्य रहा होगा। इसके पश्चात यशोवर्धन और वैस वंशी राजा हर्ष ने इस पर अधिकार किया इसलिए प्रतापगढ़ राज्य भी इसके अधिकार में रहा होगा लेकिन ऐसा कोई उल्लेख व शिलालेख उपलब्ध नहीं है । हर्ष के बाद राज्य में अव्यवस्था फैलगई और भीनमाल के रघुवंशी प्रतिहार ने इस पर अधिकार किया। प्रतापगढ़ के धोटा सी (धोटा वर्णिका) नाम में गांव के उपलब्ध शिलालेख जो संवत् 1003 का है जिसमें प्रतिहार राजा महेन्द्रपाल (दूसरा) का उल्लेख है इससे यह स्पष्ट है कि प्रतापगढ़ की स्थापना सं. 1003 से हुई । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इस राज्य की राजधानी देवलिया (देवगिरी, देवगढ़) रही है, वहाँ पर वर्तमान में प्राचीन महल (हवेली) विद्यमान है। पूर्व में देवलिया राज्य के नाम से प्रसिद्ध था । देवलिया पहाड़ी क्षेत्र रहा है और स्वास्थ्य के आधार पर महारावल प्रतापसिंह को अनुकूल नहीं रहा और वह मैदानी क्षेत्र चाहता था। समतल मैदान का क्षेत्र धोधरिया खेड़ा (डोडारिया का खेड़ा) के स्थान पर प्रतापगढ़ कस्बा बसाया। यहां पर राजधानी स्थिर होने से प्रतापगढ़ राज्य कहलाया। मालवा क्षेत्र पर सर्व प्रथम दिल्ली के सुल्तान शम्सुदीन अल्तमस ने वि. सं. 1283 में आक्रमण किया तदनुपरांत नसिरुदीन ने उज्जैन व अन्य स्थानों को अपने अधिकार में लिये। इसके बाद अलाउदीन फिरोजशाह खिलजी ने वि. सं. 1361, (अल्लाउदीन खिलजी) में, मुहम्मद तुगलक ने वि. सं. 1400 में, मुहम्मद शाह तुगलक ने सं. 1446 में मालवा के कुछ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिए। तुगलक वंश के कमजोर होने पर दिलावर खाँ को स्वतन्त्र रूप से मालवा का सुल्तान सं. 1458 में घोषित किया। इधर मेवाड़ पर महाराणा कुम्भा के राज्य सम्भालने के बाद विभाजित की गई जागीरी से उनका सोतेला भाई सेरसिंह (क्षोमकर्ण) विरोध स्वरूप मेवाड़ छोड़कर मालवा की ओर आकर गुजरात के सुल्तान के साथ मिलकर मेवाड़ के कुछ क्षेत्र पर आक्रमण किये लेकिन सफलता नहीं मिली। इधर महाराणा कुम्भा (मेवाड़) के पुत्र उदा ने अपने पिता की हत्या कर स्वयं ने राज्यभार सम्भाला। ऐसे समय में से क्षोमकर्ण ने उदा से मिलकर मेवाड़ के क्षेत्र पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में क्षोमकर्ण की मृत्यु हो गई । इस प्रकार से प्रतापगढ़ में प्रथम सिसोदिया वंश का झण्डा लगाया। इसके बाद सिसोदिया वंश के ही शासक बने रहे। Education International For Pe Co193hate Use Only . Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 प्रतापगढ़ जिले के जैन मंदिरों का मानचित्र बम्बोरी बसेडा नीमच कारूण्डा चि सौ इगई बड़ीसादड़ी। केसुन्दा जलोदा सेमरथली छोटीसादड़ी •गोमांना बलीचा कोली भीत साठाला मोहनपुरा लाम्बा - मैंवर माता जी मानपुरा म ध्य। अम्बावली सीतामाता अभयारण्य दयपुर कन्टला बालापानी सीयाखेडी रणापाल मदुरा तालाब बारावरदा पटियापाल बरहिया खोरिया रठाजना •लालपुरा पानमोड़ी कनारा गादोला घमोतर माराड .सोढावाल पाल केसरियावाद ग्यासपुरपहाड़ा परियावाला पीपलीयाचिकलाई नलवा. देवगढ़ माडवी. देवलिया वरमंडल. हथुनिया -व्रता बसाड़ मानपुर *सोनपा 'देवला प्रतापगढ़ नगरी राजपुरिया अवलेश्वर रॉकडिया मानड़िया हनुमाजी . खोरोट झासड़ी देवाक माता जी दातलाकुण्ड लाहगढ -नार कोतवाल आर. पारसोला - मुंगाना और पण्डावा - सुहागपुरो दतियार अरनोद लालगनौगांवों कुशालपुरा चूपना बागथेल. साखथली पीपलखूट घाटोल मानगढ़ मोहेड़ा कोटड़ीप्रतापपुरा। अचनेरा भचूण्डला सालमगढ़ •सेवना घंटाली ..बखतोर ( देवड़ा भालिया । बोरी पालीलदा. वीरपुरा बाँ स वा ड़ा | दलोट रायपुर निनोर पूनीयाखेड़ी बड़ी साखथली अमरपुरा अम्बीरामा तलवाड़ा 10 किमी. बाँसवाड़ा. पैमाना For Fer194drivate Use only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री महावीर भगवान का मंदिर (दादावाड़ी), प्रतापगढ़ यह शिखर बंद मंदिर शहर के तालाब के पास ही स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 20 वर्ष पूर्व ही समाज द्वारा ही कुछ भूखण्ड भेंट स्वरूप प्राप्त कर व करीब 4 बीघा जमीन क्रय कर निर्माण कराया गया। यह मंदिर श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ पंचान श्री गुमान जी का मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : श्री महावीर भगवान (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 19' ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 वै. शु. 3 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 वै. शु. 3 का लेख है। श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 वै. शु. 3 का लेख है। 1. JAEucation international For Persen 195 te Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएँवयंत्र धातु की: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की चतुर्विशंति 13" ऊंची है। इस पर दिनांक 15-02-2009 का लेख है। श्री महावीर भगवान की 4.5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2046 का लेख है। 3. श्री धर्मनाथ भगवान की 6" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 1529 वै. वदि 5 का लेख है। 4. श्री सिद्धचक्र यंत्र 4.7" गोलाकार है। इस पर कोई लेख नहीं है। 5. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 3.5" का है। इस पर कोई लेख नहीं है। ___6. श्री अष्टमंगल यंत्र 5"x2.5" का है। इस पर संवत् 2062 का लेख है। बाहर: __1. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। __ श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। सभामण्डप में: 1. श्री मांतग यक्ष की श्वेत पाषाण की 10 " ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री सिद्धायिका देवी की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। श्री सिद्धचक्र महायंत्र, पावापुरी, शत्रुजय, सम्मेदशिखर जी, आबू पहाड़ के पट्ट बने हुए है। इसके आगे दूसरा (स्वतंत्र मंदिर) मंदिर शत्रुजय महातीर्थ का पट्ट मंदिर है। तीसरा गुरू मंदिर (स्वतंत्र मंदिर) (दादावाड़ी) के नाम से जाना जाता है। इसमें निम्न प्रतिमाएं स्थापित है :1. श्री जिनदत्तसूरि की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 का लेख है। For Pepeng Rivale Use Only www.jainelibra.org (196) Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है इस पर सं.0 2045 का लेख है। श्री जिनकुशलसूरि की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं0 2045 जयेष्ठ शु0 10 का लेख है। श्री गुरू पादुका 6"X6" चौकी पर स्थापित है। इस पर सं. 2057 पौष वदि 4 का लेख है। 2. श्री जिनकुशल सूरि की पादुका 6"X6" चौकी पर स्थापित है। इस पर संवतृ 2057 का लेख है। निकलते समय बाहर - दाई ओर : 1. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। *2. श्री काला भैरव की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। बाई ओर : गौरा भैरव की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। श्री घंटाकर्ण महावीर की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। मंदिर में प्रवेश करते समय मुख्य दरवाजे के दाईं ओर कमरे निर्मित है जो उपाश्रय के लिए उपयोग में आते हैं। वार्षिकध्वजा-वैशाख सुदि 6 को चढ़ाई जाती है। मंदिर के बाहर विशाल भूखण्ड है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री इन्द्रमल जी दलाल अध्यक्ष, गुमान जी का मंदिर व श्रीसंजय सालगिया द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्रः फोन 01478-222112, 222412 संस्था का संपूर्ण नाम श्री सिद्धाचल तीर्थ मण्डल जैन श्वैताम्बर मंदिर दादावाड़ी प्रतापगढ़ है। 1. calon International For Person 1979e Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सुमतिनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ म यह शिखरबंद मंदिर नगर के झण्डा वाली गली, पुलिया के पास स्थित है। इस मंदिर को भगवान दास लक्ष्मीचंद जी ने सं. 1931 में बनवाया। अतः यह मंदिर 130 वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित ____ 1. श्री सुमतिनाथ भगवान की ___ (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 25" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 का लेख है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1931 का लेख है। 3. श्री शांतिनाथ भगवान की । श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 का लेख है। 4. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 27" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1931 का लेख है। 5. श्री जिनेश्वर भगवान की 16" ऊंची प्रतिमा है। For Person a le Use Only (198) Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इस मंदिर में उत्थापित चल चार प्रतिमाएँ है जो विभिन्न नाप की है : सभामण्डप में : (दांई ओर) 1. श्री माणिभद्र यक्ष की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री गोतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 3. श्री सरस्वती देवी की श्वेत पाषाण की 6" ऊंची प्रतिमा है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय दोनों ओर आलिओं में -: 1. श्री तुबरू यक्ष की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री महाकाली पाक्षिणी की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। मूल मंदिर के बाई ओर मंदिर में :1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 माध शुक्ला 10 का लेख है। 2. श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक के दाएं) पीत पाषाण की 14" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 शाके 1796 माध शुक्ला 10 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) पीत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र श्याम पाषाण का गोलाकार 31" का है। मूलमंदिर के दाहिनी ओर मंदिर में :1. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 का लेख है। 2. श्री ऋषभदेव भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 का लेख है। 3. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1931 का लेख है। Eucation International For Pes 199 vate Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 wat she मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की : 1. प्रतिमाएं 2. चतुर्विशंति 3. सिद्धचक्र यंत्र 4. अष्टमंगल यंत्र 9 विभिन्न नाप की 1 3 1 सभामण्डप : 1. श्री यंत्र श्याम पाषाण की 14 "X11" का है। इस पर सं. 1945 वै वदि 3 का लेख है । 2. श्री चतुर्विशंति मयपादुका 25X25" श्वेत पाषाण की का है। इस पर सं. 1945 का लेख है । इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से अनिल भाई देवड़ा करते हैं । मंदिर के स्तम्भ पर रंग रोगन, चित्रकारी है कलात्मक द्वार, बारीक खुदाई, गोखड़े बने हैं । इसकी वार्षिक ध्वजा कार्तिक सूदी पूर्णिमा को चढ़ाई जाती है । मंदिर परिसर में उपाश्रय बना हुआ है। मंदिर के पीछे सामाजिक भूखण्ड है जो सामाजिक कार्यों में काम आता है। मंदिर की 5 बीघा जमीन है, पुजारी के पास है । हमारे भीतर अहंकार है या नहीं, यह तो कोई अपमान करे तभी पता चले। For Pers 200 ate Use Only www.jainelibrary org Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ ___ यह शिखरबंद मंदिर नगर के सालमपुरा, मोहल्ले बोहरा की गली में स्थित है। यह मंदिर 500 वर्ष प्राचीन है। इसको सेठ श्रवण जी कोदर जी ने लगभग सं. 1600 में बनवाया। इसको साढ़ा बारह मंदिर कहते हैं। इस मंदिर के प्रथम मंजिल में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं 1. श्री पार्श्वनाथ भाग वान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 44" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1552 का लेख हे। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 25" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं 3. श्री शीतलनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्राचीन प्रतिमा है। कोई लेख नहीं है। श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 27" ऊंची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट अपठनीय लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। 5. है। Education International For Pernoivate Use Only For (201) ale Use Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 दाई ओर : 1. 2. 3. बाई ओर : 1. 2. 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. 2. श्री जिनेश्वर भगवान की 15" ऊँची प्रतिमा है । इस प सं. 1932 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 9" ऊँची प्रतिमा है । श्री जिनेश्वर भगवान की 7" ऊंची प्रतिमा है । उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की : 1. प्रतिमाएं सिद्धचक्र यंत्र सिद्धचक्र यंत्र ताम्बेका श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊँची प्रतिमा है । श्री नमिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है । वंदी पर आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है । इस पर सं. 1934 का लेख है । 2. 3. 4. अष्टमंगल यंत्र निज मंदिर से निकलते समय बाहर आलिओं में 1-2. श्री धरणेन्द्र देव की श्वेत पाषाण की 9" व 7" ऊंची प्रतिमा है । 3. श्री माणिभद्र वीर की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है । सभामण्डप के दोनों ओर : - अलग- अलग देवरियों में : 1. 14 — 6 1 1 श्री सिद्धचक्र यंत्र श्वेत पाषाण का 21" का है । श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 25" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं० 2022 वै. शु. 3 का लेख है । For Person 202vate Use Only www.jainelibrary.o Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है इस पर सं. 2028 श्रावण शु. 3 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 28" ऊंची खड़ी प्रतिमा है। इस पर सं. 2022 का लेख है। श्री आदीश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 27" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री पार्श्वनाथ (अमीझरा) की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2051 का लेख है। श्री जगवल्लभ – पार्श्वनाथ की श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् अस्पष्ट है। श्री शत्रुजय व नेमिनाथ भगवान की बारात के पट्ट है। सीढ़ीये चढ़ते समय आलिए में : 1. श्री घंटाकर्ण महावीर की श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। क्षेत्रपाल की प्रतिक मूर्ति 15", 9" की स्थापित है। मंदिर में प्रवेश द्वार के सम्मुख (भूतल पर) श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 27" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2028 का लेख है। मंदिर के साथ प्रवचन हॉल उपाश्रय है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्रीधनपाल जी हड़पावत्व मानमलजी माण्डावत द्वाराकीजातीहै। सम्पर्कसूत्र-01478-222275 सामने वाले को संतोष देना ही 'व्यवहार' कहलाता है। J E cation.international For Personal Poivate Use Only ate Use Only (203) Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ यह शिखारबंद मंदिर प्रतापगढ़ मुख्यालय के तालाब के किनारे स्थित है। उल्लेखानुसार यह मंदिर संवत् 1850 के लगभग यति श्री गोतम विजय जी ने बनवाया इसी परिसर में यति जी के मंदिर को संदर्भित प्रतिमाओं पर सं. 1832 का लेख उत्कीर्ण है। बाद में धीरे-धीरे मंदिर का विस्तार होना सम्भव है। मंदिर का निर्माण कभी भी हो, स्थापित प्रतिमाएं प्राचीन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 16" व परिकर तक 31" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1843 का लेख है। 2-3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं व बाएं दोनों ओर) श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। इन दोनों पर संवत् 1523 का लेख ___1. उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: __ श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9' ऊँची प्रतिमा है। इस पर हड़पावत परिवार द्वारा भेंट अंकित है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2063 का लेख है। 3. श्री शांतिनाथ की 8" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2063 का लेख For PS A Private Use Only (204) vale Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर सं. 2063 का लेख है । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर सं. 2065 का लेख है । मूलनायक के दाई ओर आलिए में: 5. 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. बाई ओर : निज (गर्भगृह) मंदिर से बाहर निकलते समय दाई ओर : 2. 3. बाई ओर आलिए में: 1-2 श्री पद्मावती माता की स्थानीय पाषाण पर उत्कीर्ण 13", 13 ऊंची खड़ी प्रतिमा है। मूलनायक के मंदिर के दांई ओर : (स्वतन्त्र मंदिर) 1. बाहर : 1. I श्री महावीर भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है । 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 6" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1540 का लेख है । Education International श्री क्षेत्रपाल की 13", 5", 5", 4" 4" ऊंची प्रतिमा है । श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 19 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2055 का लेख ह । भाप मण्डल बना है । श्री पद्मप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएँ) श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2503 का लेख है । श्री अभिनन्दन भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2503 का लेख है । श्री माणिभद्र वीर की श्वेत पाषाण की इस पर वीर सं. 2503 का लेख है । क्षेत्रपाल की 14 ", 11 व 7 -- ऊंची प्रतिमा है । For Pals 205 vate Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 दाहिनी ओर: श्री धरनेन्द्र देव की श्वेत पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2022 का लेख है। बाई ओर: श्री पदमावती देवी की श्वेत पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा है। इस पर लेख स्पष्ट नहीं है। परिक्रमा क्षेत्र में मंगल मूर्तियां स्थापित है। मूलनायक के बाई ओर मंदिर में : (स्वतन्त्र मंदिर) ___ 1. श्री सहस्त्रफणां पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 41" ऊंची प्रतिमा है । इस पर कोई स्पष्ट लेख नहीं है। 2. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2049 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2049 का लेख है। बाहर : (दांई ओर) श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2049 का लेख है। बाई ओर: 1. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2049 का लेख है। 2. स्थानीय पाषाण 11"X10" की चौकी पर एक पादुका जोड़ी स्थापित है। सभामण्डप में: __ 1. सम्मेद शिखर, गिरनार, शत्रुजय तीर्थ व सिद्धचक्र यंत्र के पट्ट है। बाहर परिसर क्षोत्र में : चतुर्थमुखी (चौमुखाजी) मंदिर सफेद पाषाण का स्थापित है। इस मंदिर के लिए ऐसा कहा जाता है कि यह आकाश मार्ग से जा रहा था, इसी स्थान पर निवासी यति अपने मंत्र प्रयोग से यहाँ पर स्थापित कर दिया। For Persone 206 Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उल्लेखानुसार यह मंदिर यति श्री गौतम विजय जी ने सं. 1850 में बनवाया चारों प्रतिमाएं श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1838 शाके 1704 का लेख है। मूलनायक के मंदिर के पीछे की ओर 19"X19" के चौकी पर श्वेत पाषाण की गुरू पादुकाएं स्थापित है। मंदिर के बाहर विशाल भूखण्ड है जहाँ पर धर्मशाला, भोजनशाला बनी हुई लेकिन व्यवस्था सुव्यवस्थित नहीं है । ध्यान देना चाहिए। मंदिर के शिखर का जिर्णोद्धार होने से ध्वजा चढ़ने की तिथी स्पष्ट ज्ञात नहीं हो सकी। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख धनपालजीहड़पावत परिवार द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र-01478-222275 हमारी खुद की प्रकृति तो सुधरती नहीं, फिर दूसरों की प्रकृति को कैसे सुधारेंगे? Education International For Pep 07 Private Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 HHI MIL.CENI श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ यह पाटबंद मंदिर नगर के सालमपुरा मोहल्ले की मोदी की गली में स्थित है ।यह घर देरासर रहा है। यह मंदिर समाज द्वारा 1900 के लगभग निर्मित है।अतः 160 वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँस्थापित हैं : श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 14" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1900 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की। श्याम पाषाण की 11" ऊंची । प्रतिमा है। 3. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 3" ऊंची प्रतिमा है। उत्थापित चल प्रतिमाएँव यंत्र धातु कीः । 1. प्रतिमाएँ – 3, (एक प्रतिमा शेर | राय की सवारी पर है।) 2. सिद्धचक्र यंत्र पीतल -1 सिद्धचक्र यंत्र चांदी -2 समाज की ओर से मंदिर की व्यवस्था श्री अजित कुमार जी मोदी द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र-9414395942 For Pepo vale Use Only www.jainelibrity.org For (208ae use only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 MIR श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर (गुमान जी का मंदिर), प्रतापगढ़ यह विशाल शिखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ शहर के निचल बाजार के मध्य में स्थित है। यह मंदिर वि.सं. 1831 में शाह जी गुमान जी पुत्र कुशल जी चांपावत (हुमड़) जो प्रतापगढ़ राज्य के प्रमुख सदस्य थे और उन्होनें धर्म भावना से प्रेरित होकर इसका निर्माण वि. सं. 1831 में करा सवत् 1838 फाल्गुन सुदि 3 का प्रतिष्ठा तपागच्छ के आचार्य श्री शांतिसूरि के शिष्य उपाध्याय श्री कान्तिसागर जी म. सा. की निश्रा में सम्पन्न करा हूमड़ समाज को सुपुर्द किया।यह मंदिर गुमान जी चाम्पावत द्वारा निर्मित होने से गुमान जी का मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।मंदिर 230 वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं: श्री चन्द्र प्रभ भगवान (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 31"ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1838 शाके 1703 का लेख है। श्री वर्धमान भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1838 का लेख है। 3. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा cation International For Fe209ivate Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएं वयंत्र धातु की :1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की 10" ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर संवत् 1569 वै. वदि 11 का लेख है। 2. श्री कुथुनाथ भगवान की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1567 वै. सुदि. 10 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊंची प्रतिमा है। 4-5 श्री यंत्र ताम्बे का 4",8",10" गोलाकार है। (पार्श्व पद्मावती का व अन्य) 6. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2.2" ऊंची प्रतिमा है। 7. श्री जिनेश्वर भगवान की 1.5" ऊंची प्रतिमा है। 8. श्री नवकार पट्ट 4"X4" का है। 9. श्री सिद्धचक्र गोलाकार 6” का है। 10. श्री सुमतिनाथ भगवान की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवतृ मिति लिखा 11. श्री पद्मप्रभ भगवान की 5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1453 (अस्पष्ट) फाल्गुन शु. 6 का लेख है। 12. श्री सिद्धचक्र यंत्र 4" गोलाकार है। 13. श्री मुनिसुव्रत भगवान की 10" ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है, इस पर संवत् 1547 वै. शु. 3 का लेख है। 14. श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1464 का लेख है। निज मंदिर बाहर आलिओं में :1. श्री गणधाराय गौतम की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमाहै। इस पर अपठनीय लेख है। 2. श्री सरस्वती देवी की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर अपठनीय लेख है। For Per a le Use Only (210)AIR USE Only www.jainelibrarforg Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त् t. बा ट) त् 54 र र बाहर सभामण्डप में निकलते समय बाएं से दाएं :- (कारनिस पर) 1. 2. Jain Educnternational 3. 4. 5. 7. 9. 10. 8. बड़ी देवरी में : 11. 12. 13. 14. 15. 16. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। श्री चतुर्विशंति प्रतिमाएं 13 "X13 " श्वेत पाषाण के पट्ट पर है। श्री सम्भवनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2183 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। सं. 1630 का लेख है। श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सुदि 3 पढ़ने में आता है । पादुका पट्ट श्वेत पाषाण का 3 ऊंचा है। इस पर सं. 1988 का लेख है । श्री नेमिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। श्री अजितनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 17 ऊंची प्रतिमा है । इस पर सं. 1618 का लेख है। श्री पद्मप्रभ की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 86 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1638 का लेख है। श्री मल्लिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 8” ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1854 का लेख है। श्री गणपति देव की श्याम पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस प अस्पष्ट लेख है। श्री पार्श्वनाथ यक्ष की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है । कोई लेख नहीं है । श्री क्षेत्रपाल 5”,4,3“11,9" पांच प्रतीक के रूप में स्थापित मूर्तिया हैं । श्री सिद्धचक्र यंत्र 30 X17" पाषाण का है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 14 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1738 का लेख है। For Persona 211 Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 19. 17. श्री सुमतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। 18. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। श्री अजितनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। 20. श्री धर्मनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 21. श्री नमिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। 22. श्री संभवनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। 23. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। 24. श्री नन्दीश्वर द्वीप श्याम पाषाण का 27"X25" के आकार का है। कारनिस पर - धातु की :1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.5" व 3' की श्री पार्श्वनाथ भगवान की ऊंची प्रतिमाएं है। इन पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री महावीर भगवान की 2.5" ऊंची प्रतिमा है। 3. देवी प्रतिमा 5" ऊंची है। इस पर सं. 1733 फागुन वदि 7 का लेख है। 4. श्री सिद्धचक्र यंत्र 4" गोलाकार है। 5-6 दो पादुका पट्ट 2" के है। 7. श्री देवी मूर्ति 3" ऊंची है। इस पर सं. 1536 का लेख है। 8. श्री जिनेश्वर भगवान की 3" प्रतिमा है। इस पर सं. 1631 का लेख है। 9-10 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3", 3" ऊंची प्रतिमा है। 11-13श्री जिनेश्वर भगवन की 2", 4" व 2.8" ऊंची प्रतिमा है। 14. श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" गोलाकार है। इस पर सं. 2045 का लेख है। 15. श्री अष्टमंगल यंत्र 6"x3" का है। 16. ताम्बे का गोलाकार यंत्र 15” का है। इस पर सं. 1945 वै. शु. 3 का लेख 17. ___ गोलाकार यंत्र चांदी का 4" का है। बीच में अरहं लिखा है। 18. ताम्बे का 9" का यंत्र है। इस पर संवत् 1770 का लेख है। 19. ऋषिमण्डल यंत्र ताम्बे का 9" गोलाकार है। इस पर सं. 1829 का लेख है। For Per (212ale Use Only For Perom 13 Yale Use Only www.jainelibrity.org. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 कारनिस में नीचे आलिए में : (मंदिर से निकलते समय दाई ओर) 38 धातु की प्रतिमाएं विभिन्न नाप, नाम व समय की है जिसका विवरण अपरिहार्य कारण से नहीं हो सका। बाहर के सभा मण्डप के खेलामण्डप बीच में वेदी पर : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की धातु की 37" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1828 फा. शु. 3 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 15.6" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1828 फा. शु. 3 का लेख है। वेदी पर ही सिद्धचक्र यंत्र श्याम पाषाण 23"x23" का है। इसके किनारे सं. 1828 फा. शु. 3 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की धातु | की 14" ऊंची प्रतिमा है। श्री मुनिसुव्रत भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1825 का लेख श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1825 का लेख है। 7. पट्ट श्वेत पाषाण का 10"X10" पर एक पादुका जोड़ी स्थापित है। ____ पट्ट श्वेत पाषाण का 10"X10" पर 5 जोड़ी पादुका स्थापित है। J e rnational For Persha 13 de Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 सभामण्डपसे बाहर निकलते समय दाई ओर : 1. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1825 आसोज सुदि 13 रवीवार का लेख है। सभामण्डपसे बाहर निकलते समय बाई ओर: 2. श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 11' ऊंची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है। इसको शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा कहा जाता है। मंदिर में प्रवेश करते समय बाई ओर (स्वतन्त्र मंदिर): सिद्धचक्र पट्ट बना हुआ है । इसके दोनों ओर की दीवारों पर आलियों में : चाँदी का श्री सिद्धचक्र यंत्र, कांच की आलमारी में बंद है। चाँदी का श्री बीस स्थानक यंत्र, कांच की आलमारी में बंद है। परिक्रमा कक्ष में तीनों ओर चौबीस तीर्थंकर के पट्ट बने हुए हैं एवं तीनों ओर आलिओं में चतुर्विशंति श्वेत पाषाण की कांच की आलामारी में लगे हुए हैं। मंदिर के बाहर के बरामदे में दोनों ओर दीवार पर शत्रुजय एवं सम्मेत शिखर के पट्ट बने हुए हैं। मुख्य मंदिर में प्रवेश करते समय बाई ओर : (स्वतंत्र मंदिर) एक देवरी में : श्री गौतम स्वामी की चरण पादुकाएं 15"X13" के श्वेत पाषाण का पट्ट पर स्थापित है। इस पर संवत् 1905 माध शु. 5 का लेख है। इसी पट्ट पर आगे की ओर आचार्य नयरत्नसूरि की पादुका बनी हुयी है और इन्हीं के द्वारा प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हुआ है। पद्मावती देवी का मंदिर (स्वतंत्र मंदिर): इससे पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1900 ज्येष्ठ सुदि 11 का लेख है। इस पर सुन्दर परिकर बना हुआ For Perspic ate Use Only www.jainelibre.org Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद्मावती प्रतिमा के दाई ओर : TO 1. 2. बाई ओर : 1. 2. Jajntion International 1. श्री ऋषभदेव भगवान की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है 1 श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा है । इस पर सं. 1905 माघ शु. 5 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1905 माध शु. 5 का लेख है। I श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 8” ऊंची प्रतिमा है । कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 4" ऊंची प्रतिमा है। कोई लेख नही है। उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की : : 1. सिद्धचक्र यंत्र 1 व 5 प्रतिमाएं विभिन्न नाप व समय की है। पट्ट मंदिर में : मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 ROCCOL श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है। सिद्धचक्र पट्ट स्थापित है। इसके बाहर - शत्रुन्जय तीर्थ, चम्पापुरी तीर्थ, पावापुरी तीर्थ सम्मेद शिखर जी तीर्थ के पट्ट है। For Persone यहां पर मुख्य मंदिर के बाईं ओर दो मंजिला उपाश्रय, ज्ञान भण्डार, आयंबिल शाला, साधु भगवंतो के विश्राम गृह के कमरे निर्मित है। इसके साथ साथ विशाल प्रांगण है। मंदिर के साथ बाग व कुआ भी निर्मित है । वार्षिक ध्वजा चढ़ाई जाती है । इस मंदिर की देखरेख हुमड़ समाज द्वारा की जाती है। श्री इन्द्रमल जी दलाल अध्यक्ष है । सम्पर्क सूत्र : 01477-222081, 222681 215 Ne Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ यह शिखरबंद मंदिर नगर में मोची की गली में स्थित है। इस मंदिर को यति श्री जीवण चंद जी संवत् 1880 में बनवाया। अतः यह मंदिर 180 वर्ष प्राचीन है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: 1. 2. 3. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. निचली वेदी पर : 1. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1487 वै. शु. 3 का लेख है । उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. प्रतिमाएं – 13 सिद्धचक्र यंत्र - 8 अष्टमंगल यंत्र 2. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2016 वै. शु. 6 का लेख है । श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2016 वै. शु. 6 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 6" ऊंची है। कोई चिन्ह व लेख नहीं है । 4. त्रिकोण यंत्र ताम्बे का निज मंदिर के बाहर आलिओ मे : - 1 - 1 शांतिना श्री गरूड़ पक्ष की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। श्री निर्वाणी यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है । For Fer216 Private Use Only 613 www.jainelllery.org. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 सभामण्डप में, विभिन्न आलिओं में : 1. श्री माणिभद्र यक्ष की लाल पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2049 का लेख है। श्री क्षेत्रपाल की 10" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री विजयानंद सूरि की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। ____ श्री नीति सूरि की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। मंदिर की वार्षिकध्वजा कार्तिक शुक्ला 15 कोचढ़ाई जाती है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री बाबूलाल जी बोरदिया व हंसमुखलालजी भण्डारीद्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र : 01478-223 512, 222 512 इस मंदिर की पांच दुकाने जो किराये पर दी हुई है। मृत्यु का समय आने पर भी भय न रहे तो समझना चाहिए कि मोक्ष के लिए 'वीजा' मिल गया है। ducation International For Pe217-jivate Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 2. 3. वेदी पर -: 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, भगवान श्री आदिनाथ (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 29" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1940 माघ सुदि पांचम का लेख है। श्री अभिनन्दन भगवान (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा । इस पर सं. 1931 शाके 1796 का लेख है। चन्द्र प्रभ भगवान श्री (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1940 शाके 1805 का लेख है। प्रतापगढ़ यह शिखरबंद मंदिर नगर के सदर बाजार में स्थित है। मंदिर को समाज द्वारा सं. 1940 में बनवाया। अतः मंदिर 125 वर्ष प्राचीन है। वर्तमान में इसका जिर्णोद्धार कार्य चल रहा है। यह मंदिर पोरवाल समाज से सम्बन्धित है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : For Pery Romant BARAMAJUM " श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11 ऊंची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 3.5" ऊंची प्रतिमा है। 218 ANARKO www. vate Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. Jain cation International श्री पार्श्वनाथ भगवान की 9 ऊंची प्रतिमा है । श्री आदिनाथ भगवान की 10" ऊंची प्रतिमा है । श्री ऋषिमण्डल यंत्र ताम्बे का - 1 श्री सिद्धचक्र यंत्र - 1 श्री सिद्धचक्र यंत्र ताम्बे का - 1 श्री त्रिकोण यंत्र ताम्बे का - 2 श्री अष्टमंगल यंत्र - 1 श्री प्रतिमाएं - 2 8. निज मंदिर के बाहर : 1. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री माणिभद्र यक्ष की 16 " ऊंची (हाथी पर सवार) प्रतिमा है । श्री महालक्ष्मी देवी की श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। वार्षिक ध्वजा कार्तिक शुक्ला 15 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की 9 दुकानें है, किराये पर दी हुई है। समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री जगदीश कुमार दाणी व बसन्ती लाल जी राजमल जी जैन, धानमण्डी, प्रतापगढ़ द्वारा की जाती है । सम्पर्क सूत्र : 01478-223223 मोबाइल 9414396832 'पर पुरूष' और 'पर स्त्री' तो नर्क में ले जाने के प्रत्यक्ष कारण है। For Perso219yale Use Only ROCED Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मा 2. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ __यह शिखारबंद मंदिर नगर के गोपालगंज मोहल्ले में स्थित है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : __1. श्री आदिनाथ भगवान (मूलनायक) श्याम पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1851 का लेख है। श्री सम्भवनाथ भगवान (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2515 वै. शु. 3 का लेख है। श्री सुमतिनाथ भगवान (मूलनायक के बाएं) श्वेत । पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2515 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान (दाएं) श्याम पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2042 श्रा. वि 13 का लेख 3. है। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (बाएं) श्याम पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर अपठनीय लेख है। वेदी पर : ___ 1. श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 6" ऊंची प्रतिमा है। Jain Education international For Personal Date Use Only www.jainelibrary.or (220) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की प्रतिमाएं – 10 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र (पीतल ताम्बे का) - 2 3. श्री त्रिकोणयंत्र ताम्बे का - 1 4. अष्टमंगल यंत्र -1 निज मंदिर के बाहर: 1. श्री गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा 2. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेतपाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। सभामण्डप में अष्टापद तीर्थ व सम्मेत शिखर जी तीर्थ के पट्ट लगे है। परिक्रमा परिसर में शिखर पर तीन मंगल मूर्ति में है। वार्षिकध्वजाचढ़ाई जाती है। समाज की ओर से इस मंदिर की देखरेख श्रीराजमलजीपोरवाल करते हैं। सम्पर्क सूत्र : 01478-223 556 मोबाइल 94143 96832 जो भगवान के पास कभी भी, किसी भी प्रकार की माँग न करे, वह 'सच्चा भक्त' है। Jain bucation International For Personal (221) use my Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ यह शिखरबंदमंदिर नगरकेटकसालगली में स्थित है। यह मंदिर यति श्री वस्तुपाल ने संवत् 1875 में बनवाया था अतः 150 वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री शीतलनाथ भगवान (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 23" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2 5 20 माघ शु. 10 का लखा है ।परि कर बना हुआ है। 2. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2520 माध शु. 10 का लेख है। ___3. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2520 माध शु. 10 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की 1. प्रतिमाएं - 20 2. सिद्धचक्र यंत्र चाँदी-2 3. सिद्धचक्र यंत्र पीतल के - 1 सिद्धचक्र यंत्र ताम्बे का – 1 5. ऋषिमण्डल यन्त्र ताम्बे का - For Per a le Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 6. ऋषिमण्डल यंत्र चांदी का -1 7. बीस स्थानक यंत्र पीतल - 1 8. पद्मावती देवी की मूर्ति ताम्बे की-1 9. अष्टमंगल यंत्र -1 10. पादुका पट्ट चांदी का -1 निज मंदिर के बाहर: ___ 1. श्री ब्रह्मदेव यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। __2. श्री अशोका देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। 3. श्री क्षेत्रपाल की मूर्ति 8" व 6" की है। मंदिर में प्रवेश करते समय बाई ओर: प्राचीन मंदिर 300 वर्ष से स्थापित है, जिसको दादावाड़ी के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर एक छतरी है जो श्री जिनकुशल सूरि जी की छतरी बनी है इसमें : 1. श्री चरण पादुका 11"X11" के पट्ट पर स्थापित है। यह चरण पादुका 275 वर्ष प्राचीन है। विभिन्न देवरियों में : 1. श्री नाकोड़ा भैरव पीत की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री घंटाकर्ण महावीर की श्वेत पाषाण की 146 ऊंची प्रतिमा है। 3. पादुका वस्तीमल जी की 5"X5" के चौकी पर स्थापित है। 4. पादुका श्री जिनदत्त सूरि जी की 6"X5" की चौकी पर स्थापित है। प्रथम मंजिल पर: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1872 शाके 1736 का लेख है। 2. श्री शीतलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2512 का लेख है। 3. श्री शांतिनाथ भगवान की (दाएँ) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1701 का लेख है। Education International For Fe223rivate Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 4. 5. 1. निज मंदिर के बाहरउत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : प्रतिमाएँ पंचतीर्थी - 5 श्री सिद्धचक्र यंत्र (दो चांदी, एक ताम्बे ) - 3 1. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. निज मंदिर के बाहर : श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 14 ऊंची प्रतिमा है । 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (बाएँ) श्वेत पाषाण की 14 ऊंची प्रतिमा है । इस पर सं. 1701 का लेख है । 3. सभामण्डप में : 1. श्री गरूड़ यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है । इस पर वीर सं. 2510 का लेख है। श्री निर्वाणी देवी की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2510 का लेख है। पृथक पृथक आलिओं में : 1. श्री सिद्धचक्र यंत्र श्वेत पाषाण में निर्मित है। इसकी निरन्तर प्रत्येक दिन पूजा होती है। श्री अम्बिका देवी का श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2064 का लेख है। श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2064 का लेख है। श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है । श्री सम्मेद शिखर व शत्रुंजय, गिरनारजी तीर्थ के पट्ट बने है। मंदिर की वार्षिक ध्वजा माह सुदि 15 को चढ़ाई जाती है । समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री कान्तिलालजी सागरमलजी दोशी व श्री चाँदमल जी चिपड़ द्वारा की जाती है । सम्पर्क सूत्र : 01478-222836, 222636 For Pe S224iyale Use Only . Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह शिखरबंद मंदिर नगर के गोपालगंज मोहल्ले में स्थित है। यह मंदिर यति श्री भीमजी ने सं. 1837 से बनवाया। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : चर्तुमुखी प्रतिमाएं 1. (क) श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत " पाषाण की 29 ऊंची प्रतिमा है । इस अस्पष्ट लेख है । श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर, प्रतापगढ़ उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. (ख) श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 29 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2056 माघ शु. 14 का लेख है। (ग) श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 29 ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 माघ शु. 14 का लेख है । (घ) श्री नमिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 29 ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2056 का लेख है। 2. 3. सभामण्डप में : प्रतिमाएं – 22 सिद्धचक्र - 2 सिद्धचक्र यंत्र ताम्बा 2 ये सभी प्राचीन प्रतिमाएं है जो पूर्व में भी इसी मंदिर में स्थापित थी । पृथक-पृथक आलिओं में स्थापित है :1. श्री ऋषभनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1862 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 For P 225 Private Use Only श्री चन्द्रस्वामी Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री शासन देवी की श्याम पाषाण की 18" ऊंची प्रतिमा है। 3. श्री महालक्ष्मी देवी की श्याम पाषाण की 14" ऊंची प्रतिमा है।' 4. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 5. श्री पद्मावती देवी की 10" ऊंची प्रतिमा है। बड़ी देवरी में : 1. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 29" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2038 का लेख है। 2. श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ (मूलनायक के दाएं) की श्याम पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2047 का लेख है। श्री जीरावला पार्श्वनाथ की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। पृथक आलिओं में: ___1. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री घंटाकर्ण महावीर की श्वेत पाषाण की 22" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2049 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की पीत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री क्षेत्रपाल की 18" व दो छोटी आकार की मूर्तिया स्थापित है। नीचे भूतल पर : ___ महाकाल भैरव की श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। समाज की ओर से इस मंदिर की देखरेख श्री अशोककुमार जी कांकरेचा द्वारा कीजाती है सम्पर्कसूत्र: 98873 52143 चिंता होने लगे तो समझ लीजिए की कार्य बिगड़ने वाला है। For Persor 226 Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 1. प्रतापगढ़ बसाया जिसको राजधानी बनाई । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। सुंदर धातु का परिकर बना हुआ है। 3. Education International श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, देवगढ़ यह शिखर बंद मंदिर प्रतापगढ़ से धरियावद मार्ग पर 15 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर श्री जीवराज जी हुमड़ ने संवत् 1774 में बनवाया। अतः करीब 300 वर्ष प्राचीन है । यह कस्बा पूर्व में इस राज्य की राजधानी रही है जिसका नाम साहित्य, शिलालेखों में देवलिया, देवदुर्ग, देवल, | देवगिरि और देवगढ़ मिलता है । प्रतापगढ़ स्थिर होने पर इस राज्य को देवलिया प्रतापगढ़ कहते हैं। इसके चारों ओर पहाड़ियां होने से यह स्थान अधिक सुरक्षित होने से इस स्थान को राजधानी के लिये चयन किया यहां पर पुराने राजमहल है। पूर्व में यह यहां के राजा देवलिया राजा कहलाता था । इसके बाद महारावत प्रतापसिंह ने सन् 1765 में चन्द्रप्रभ भगवान की श्री (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1825 माघ सुदि तेरस का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जिनेश्वर भगवान की धातु की 6" ऊंची प्रतिमा है । STREA For Personal & fivate use only 227 CORNEEL www.jewelry.org Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. 2. 3. 5. उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. 4. 5. 6. 7. 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. नमिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 12 ऊंची प्रतिमा है। इस पर संत्र 1825 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की धातु की 8 ऊंची प्रतिमा है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर दिनांक 03.05.06 का लेख है। श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 7" ऊंची प्रतिमा ह । इस पर स. 1563 का लेख है । श्री ऋषिमण्डल यंत्र 8 "X6" का है। 8. चौकोर यंत्र ताम्बे का 6"X6" का है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय बांई ओर (स्वतन्त्र मंदिर ) : श्री विमलनाथ भगवान की 8 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1508 का देवकुल पारद का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की 6" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1394 चैत्र वदि 7 का लेख है । श्री शीतलनाथ भगवान की 6" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है । इस पर सं. 1595 माध वदि 2 का लेख है । श्री मुनिसुव्रत भगवान की 8" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1513 का लेख है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की धातु की 25" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1774 का लेख है। " श्री पार्श्वनाथ भगवान की धातु की 8' ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1409 का लेख है। For Perso 228 ate Use Only . Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएं: श्री पार्श्वनाथ भगवान की धातु की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1409 का लेख | 2. श्री सम्भवनाथ भगवान की पीत पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1523 का लेख है। 3. श्री महावीर भगवान की 12" ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर सं. 1774 का लेख है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय दाई ओर स्वतंत्र मंदिर: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 25" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1774 माध सुदि 13 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएं: 1. श्री आदिनाथ भगवान की 8" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर संव. 1485 का लेख है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की 10" ऊंची चतुर्विशंति प्राचीन प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है। 3. श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 11" ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर सं. 1588 का लेख है। सभामण्डप में एक वेदी पर: श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 25" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1774 का लेख है। 2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। ____ पाषाण की 15"X15" की चौकी पर 9 पादुका जोड़ी स्थापित ह। किनारे पर लेख उत्कीर्ण है। 5. ताम्बे का यंत्र 6"X3" का है। allon International For P 229 vate Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 6. पीतल पट्ट 6"x2" पर पादुका स्थापित है। इस पर जिन कुशल सूरि भैरू नन्दन सरि पढ़ने से आता है। उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की:1. श्री शासन देवी की श्याम पाषाण की 18" ऊंची प्रतिमा है। श्री महालक्ष्मी देवी की श्याम पाषाण की 14" ऊंची प्रतिमा है। 3. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री पद्मावती देवी की 10" ऊंची प्रतिमा है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय:-कारनिस पर: 1. देवी प्रतिमा श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 2–3. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 6", 6" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 6", 6" ऊंची प्रतिमा है। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1659 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 8" ऊंची प्रतिमा है। 7. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 7" ऊंची प्रतिमा है। दीवार के ऊपरी भाग में: 1. श्याम पाषाण के पट्ट पर मंदिर निर्माता के नाम व महारावत पृथ्वीराज राजा का, आचार्य श्री तेज रत्न सूरि एवं शिष्यों के नाम का उल्लेख है। इसके किनारे पर संवत 1774 का लेख है। श्याम पाषाण के पट्ट पर नंदीश्वर द्वीप की रचना बनी हुई है। इसके किनारे पर प्रतिष्ठा का लेख जिस पर उपाध्याय श्री वनसुन्दर, रत्नसुंदर, कांतिसुंदर का उल्लेख है। इस मंदिर की देखरेख श्री पंचान जैन श्वेताम्बर मंदिर तीर्थ देवगढ़ द्वारा की जाती है। दोनों ओर क्षेत्रपाल 11" का 14" व 6" ऊंची प्रतिमा है। मंदिर कीध्वजामाधसुदि 13 को चढ़ाई जाती है। सम्पर्क सूत्र : 01478-222812, 222552, व्यवस्थापक - श्री भरत कन्हैयालाल जी सालगिया, फोन : 01478-222512 श्री बहादुर जीतमल जी सालगिया, फोन 01478-222812 2. For Perskn230 Ve Use Only . Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. . श्री श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, अमलावद यह शिखरबंद विशाल मंदिर प्रतापगढ़ से 7 किलोमीटर दूर है। समाज के सदस्यों के कथानुसार यह मंदिर 600-700 वर्ष प्राचीन है।प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख से भी इसकी पुष्टि होती है।उल्लेखनुसार इसका निर्माणसं.1995 का बतायागया है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस संवत् 1913 फा. शु. 2 गुरूवार का लेख है। श्री . पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 18" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2003 माध शुद 7 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँवयंत्र धातु की: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 15" ऊंची है। इस पर सं. 2055 ज्येष्ठ शुक्ला 12 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1590 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की तीन प्रतिमाएं काउसग्ग मुद्रा की 3" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1535 का लेख है। (एक ही स्टेण्ड पर) श्री संभवनाथ भगवान की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर अचलगच्छीय लेख दिनांक 15.02.2009 का है। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1511 का लेख Jan Education International For Pe 231 Wate Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 6. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1476 का लेख 7. 8-9 श्री जिनेश्वर भगवान की 4" ऊंची प्रतिमा है। इस पर घिसा हुआ सं. 1699 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 1.7", 1.7" ऊंची प्रतिमा है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1713 का लेख 10. है। 11. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4" का हैं इस पर सं. 2049 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार ताम्बा का चांदी का पॉलिश किया हुआ 2.7" का है। श्री जिनेश्वर भगवान की 3.7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1636 का लेख 13. बाहर: ___1. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11'' ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। ___ 2. श्री नाकोड़ा भैरव पीत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय दाई ओर स्वतंत्र मंदिर में : ___ 1. श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 13 " ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाईं ओर)श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1363 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान श्वेत पाषाण की (मूलनायक के दाईं ओर) 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1336 का लेख है। निज मंदिर से बाहर निकलते समय बाई ओर स्वतंत्र मंदिर में : महावीर भगवान की श्वेत पाषाण की (मूलनायक) 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2055 का लेख है। 2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं)11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1548 का लेख है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं) 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1545 का लेख है। For Personal Private Use Only (232) Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभामण्डप में दोनों ओर आलिओं में : 1. 2. 3. Education International श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है । इस पर सं. 2055 ज्येष्ठ शुक्ल 3 का लेख है। नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। श्री नीतिसूरि जी म.सा. की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1999 का लेख है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 शत्रुंजय, सम्मेद शिखर जी के पट्ट है T चित्रकारी की गई है। परिक्रमा परिसर में तीन मंगल मूर्तियां है। मंदिर की भोजनशाला, धर्मशाला व उपाश्रय है। मंदिर की 3.5 " बीघा जमीन है दो सदस्यों के अधिकार में है । वार्षिक ध्वजा कार्तिक शुक्ला 15 का लेख है । इसकी व्यवस्था प्रतापगढ़ ट्रस्ट द्वारा की जाती है। जिसके अध्यक्ष मंत्री श्री नाथूलाल जी चोरिया, श्री अजीत कुमार मोदी हैं । सम्पर्क सूत्र : 9414395942 श्री जिनेश्वर भगवान कर मंदिर, खेरोट यह मंदिर अमलावद से 6 किलोमीटर दूरी पर है। मंदिर बंद होने की वजह से कोई जानकारी नहीं मिली । For Pe 233 Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 2. 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 1. श्री ऋषभदेव (आदिनाथ) भगवान का मंदिर, बरड़िया ढांई ओर आलिए में: यह शिखर बंद विशाल मंदिर प्रतापगढ़ से 12 किलोमीटर दूर है। समाज के सदस्यों के कथानुसार व उल्लेखानुसार यह मंदिर समाज द्वारा सं. 1925 में बनाया गया अतः 140 वर्ष प्राचीन है। प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख से भी इसकी पुष्टि होती है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के (दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2496 ज्यैष्ठ शुक्ला 3 का लेख है। बाई ओर आलिए में: श्री ऋषभदेव भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. श्री महावीर भगवान की 13" (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2051 ज्यैष्ठ शुक्ला 3 का लेख है । 1925 का लेख है । श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची है। इस पर कोई लेख नहीं है । उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है । For Personal & Private Use Only 234) Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जिनेश्वर भगवान की 12' ऊँची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2497 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान (अजितनाथ) की 6" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. अस्पष्ट लेख है। 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4" का है। इस पर अस्पष्ट लेख है। 4. देवी की घोड़े पर सवार 4" ऊंची प्रतिमा है। बाहर आलिओं में : 1-2 श्री क्षेत्रपाल (माणिभद्र) की 13" व 8“ ऊंची मूर्ति है। 3. चक्रेश्वरी देवी की (घोड़े पर सवार) 11" ऊंची प्रतिमा है। सभामण्डप में: 1. क्षेत्रपाल की 11" ऊंची मूर्ति है। मंदिर का उपाश्रय दो पोषधशाला है। 14 बीघा जमीन है जो लीज पर दी जाती है। जिसकी वार्षिक 29000/रु. आते है। दरवाजा बहुत छोटा है। वार्षिकध्वजा कार्तिक शुक्ला 15 कोचढ़ाई जाती है। कांच की जड़ाई की हुई है, बाहर चित्रकारी की हुई है। नीचे टाइल्स लगी परिक्रमा कक्ष में तीन खण्डित मूर्तियां है। मंदिर की व्यवस्था समाज की ओर से निम्न सदस्यों द्वारा की जाती है श्री संतोषकुमार जीपोरवाल, मो.: 93015 33565 श्रीरतनलालजीमोगरा, मो.: 90090 80106 जो आग्रह छोड़ दे, वह 'अक्लमंद' है। Education International (235) For Rea Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 d. PORTANTANTRA 10000000000000000000 HOODCODCOLORDER 000000000000 1100000000000000000000 0000000TRiedo 111118HHIA 00RONTARIODOI HOOCLCMOMORE श्रीआदिनाथ भगवान का मंदिर, कनोरा यह घूमटबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 15 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर श्री आदिनाथजैन श्वेताम्वर मन्दिर (सदस्यों के कथनानुसार) 200 वर्ष करीब प्राचीन है। प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख के आधार पर भी लगभग सही प्रतीत होता है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : ___1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1931 माध सुदि 10 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 13" ऊँची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर सं. 1870 का लेख है। 3. श्री जिनेश्वर भगवान (सुमतिनाथ) की श्याम पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। उत्थापित चल प्रतिमाएंव यंत्र धातु की: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1752 का लेख है। 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र ताम्बे का। गोलाकार 3" का है। बाहर: श्री गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 10” ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। For Persyar ate Use Only (236) Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री क्षेत्रपाल (माणिभद्र) की 9" ऊंची मूर्ति है। मंदिर की प्रतिष्ठा श्री राजेन्द्र सूरि औंकार सूरि, अरविन्द सूरि, यशोभद्र विजय जी के द्वारा सं. 2055 फागुन शुदि 10 (दिनांक 28.02.1996) को जिर्णोद्वारा करा कर सम्पन्न हुई। ग्राम में जैन समाज का कोई सदस्य नहीं रहता है। मंदिर की 9 बीघा जमीन है जो पुजारी के पास है तथा मंदिर का उपाश्रय है। वार्षिकध्वजा फाल्गुन सुदि 10 को चढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेख समाज की ओर से प्रतापगढ़ के श्रीमोतीलालजी बोहरा द्वारा कीजातीहै। सम्पर्क सूत्र-93519 60797 स्थानीय स्तर पर श्रीगोपाल जीशर्मा (पुजारी)द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र-9414736266 खुद का सुख दूसरों को देने का मन होता है, वह 'सत्संग' है। e ducation International For Persone vale Use Only (237 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री महावीर भगवान का मंदिर, पीलू ____ यह शिखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 18 किलोमीटर दूर है। यह नूतन मंदिर है।अभी 8 वर्ष पूर्व ही बना है। मंदिर की प्रतिष्ठा श्रीमद राजतिलक सूरीश्वर जी व हर्ष तिलक विजय जी महाराज ने दिनांक 14. 12.08 को कराई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: 1. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2057 का लेख है। 2. श्री शीतलनाथ भगवान की। (मूलनायक के दाएँ) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर वि.सं. 2057 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएँ) श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2057 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएं धातु की : 1. श्री सम्भवनाथ भगवान 5.5'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 1529 वै. शु. 13 का लेख है। For Parsogo Private Use Only www.jainelibran ang Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" चाँदी का है। इस पर माध शु. 5 का लेख है। 3. श्री अष्टमंगल यंत्र 6"X3.5" का है। इस पर सं. 2061 माध सुदि 5 का लेख है। सभामण्डप में: __ श्री मातंग यक्ष की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री सिद्धायिका देवी की श्वेता पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। वार्षिकध्वजापोषवदि 2 कोचढ़ाई जाती है। मंदिर की व्यवस्था समाज की ओर से श्री पारसमल जी कटारिया द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र : 9799274225 जिसे किंचित्मात्र भी मेरापन नहीं, वह 'संन्यासी' है। Education International For Pe So r wale Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री श्रेयांसनाथ भगवान का मंदिर, रठांजना इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री श्रेयांसनाथ भगवान श्वेत की (मूलनायक ) पाषाण की सं. 1815 पोष सुदि 11 का लेख है। 2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है । 3. श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 2.5" ऊँची प्रतिमा है । यह शिखखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 16 किलोमीटर नीमच रोड़ पर स्थित है। उल्लेखानुसार यह पूर्व में विमलनाथ भगवान का मंदिर वि. सं. 1800 के लगभग का निर्मित है जो पूर्ण रूप से जीर्ण शीर्ण होजाने नूतन रूप से निर्माण कराया गया। 4. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 6 " ऊंची है। उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की : S 1. श्री महावीर भगवान की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1514 वै. शु. 13 का लेख है । 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार उभरा हुआ 7" का है। इस पर सं. 1838 फा. शु. 3 का लेख है । For Personal & Private Use Only 240 www.jaihelibrary.org Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 तना जिनालय रठाजना सभामण्डप में: 1. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 माध शुदि 9 रविवार 07.12.2008 का लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 13 व 19" ऊंची प्रतिमा है। मंदिर की प्रतिष्ठा प्रशस्तिलिखी हुई हैं मंदिर के पीछे बड़ा भूखण्ड है। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से | श्रीसंजयजीमेहता द्वाराकीजाती है। POS सम्पर्कसूत्र-8107936262 इस संसार में कोई हमारा 'ऊपरी' (Boss) नहीं, हमारी भूलें ही हमारी ऊपरी हैं । in Education International For Per2410ivate Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, बोरी यह शिखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 15 किलोमीटर दूर है। उल्लेखानुसार इस मंदिर का निर्माण समाज द्वारा सं. 1800 के लगभग में हुआ। पूर्व में यह चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर था, वर्तमान में श्री सुपार्श्वनाथ का है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1999 का लेख है। 2. श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक के बाएं) की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1999 का लेख 3. 4. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1999 का लेख है। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची है। इस पर सं. 1993 का लेख है। उक्त प्रतिमाओं में से एक चन्द्रप्रभ भगवान की प्रतिमा पूर्व की है, दो खण्डित होनेसे नूतन प्रतिमाएं विराजमान कराई। इनकी प्रतिष्ठा श्री प्रकाश विजय जी की निश्रा में सम्पन्न For Private Use Only (242) Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 1. 1. 2. 3. श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 7" ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर वि. 1462 ज्येष्ठ वदि 4 का लेख है । निज मंदिर के बाहर : Education International श्री पार्श्वनाथ भगवान की 5" ऊँची प्रतिमा है । इस सम्बन्ध में सं. 1651 माध सुदि 10 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 4" ऊंची है। इस पर सं. 1578 माह वदि 8 का लेख है । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" ऊंची है। इस सं. 2033 का लेख है । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" का है। इस सम्बन्ध में सं. 2045 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4" का ताम्बा का है। इस पर कोई लेख नहीं है । श्री अष्टमंगल यंत्र 6X3.5" का है । इस पर सं. 2045 का लेख है । 2. सभामण्डप में : महालक्ष्मी यंत्र 2.5 " X3.5" का है । श्री जिनेश्वर भगवान की 12 ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 वै. शु. 3 का है। श्री बीस स्थानक यंत्र 10" का गोलाकार है । इस पर सं. 2049 वै. शु. 2 का लेख है । श्री मांतग यक्ष की श्वेत पाषाण की 7 " ऊंची प्रतिमा है । श्री शांता यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है। श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 10 '6 ऊंची प्रतिमा है । श्री क्षेत्रपाल की 11 ” ऊंची प्रतिमा है। श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है, इस पर सं. 2002 (सन् 2005) का लेख है । 243 For Personar &vate Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 पादुकाएं: __ श्री मणिधारी जिनचन्द्र सूरि जी की पाषाण पर स्थापित है, इस पर सं. 1988 का लेख है। 2. श्री नीतिसूरि जी की चरण पादुका स्थापित है। मंदिर के साथ 7 बीघा जमीन है जो पुजारी के पास है। उपाश्रय है। वार्षिकध्वजावैशाखसुदि 11को चढ़ाई जाती है। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री नन्दलाल जी बोहरा द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र - मोबाइल 9783297239 नोट : गर्भगृह सभामण्डप में वर्षा का पानी टिपकता है। जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। इस संसार में झगड़े किस बाते के हैं ? "मैं बड़ा और तू छोटा !" Jain Education international For Personal Private Use Only 244 Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, धमोतर यह शिखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। उल्लेखानुसार यह आदिनाथ का मदिर सं. 1800 के लगभग का बना है। वर्तमान में श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर है। अतः 250 वर्ष प्राचीन है जो यहां के शासक (सरदार ) महारावत सूरजमल के छोटे पुत्रशेषमलके वंशज है। मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री शीतलनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2028 का लेख है। 2. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2038 मा.शु. 10 का लेख है। श्री शीतलनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री अरनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2059 का लेख 3. 4. 5. श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। in Education International (2450 For Perssalavate Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की: ___1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 4" व मंदिर तक 11" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री जिनेश्वर भगवान की 8" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2044 का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 12” ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की 3" ऊंची प्रतिमा है। कोई लेख नहीं है। 5. श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 6. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.7" का है। इस पर सं. 2038 का लेख है। 7. श्री अष्टमंगल यंत्र 6"X3.7" का है। इस पर सं. 2038 का लेख है। 8-9 आचार्य भगवत की दो मूर्तियां 2.7"x2.7" की है। इन पर कोई लेख नहीं 10. श्री पार्श्व पट्ट 4' का है। 11. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4" का है। निज मंदिर के बाहर आलिओ में: ___ 1. श्री ब्रहम् यक्ष श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री अशोका देवी की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची है। सभामण्डप में : पृथक-पृथक आलिओं में : श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची है। इस पर सं. 1826 का लेख है। श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान (श्री चन्द्रप्रभ) की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1826 वै. शु. 3 का लेख है। लांछण स्पष्ट नहीं है। 4. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 5. सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 25" ताम्बे का है। For Perso246 Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 6. श्री माणिभद्र वीर की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2014 का लेख है। क्षेत्रपाल की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची मूर्ति है। मंगल मूर्तिया स्थापित है। पीछे की ओर: (एक देवरी में) श्री जिनकुशल सूरि जी की चरण पादुका जोड़ी श्वेत पाषाण की 4' की 10"x10" चौकी पर स्थापित है। इसकी प्रतिष्ठा वि. सं. 2052 फा. वदि 11 (सन् 1996) में प्रतिष्ठा हुई। पुरानी प्रतिमाएं श्री शीतलनाथ, आदिनाथ, की है तथा नूतन शीतलनाथ विमलनाथ व अरनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री कन्हैयालाल जी द्वारा की जाती सम्पर्क सूत्र :मोबाइल: 96362 97027 'सभ्यता' 'समकित' की निशानी है और 'एटीकेट' 'मिथ्यात्व' की निशानी है। (247) For Personal Private Use Only ain Education International Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सम्भवनाथ भगवान का मंदिर, बारावरदा। यह शिखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 20 किलो मीटर दूर है। यह 20 वर्ष पूर्व ही नूतन रूप से निर्मित है। मंदिर निर्माण हेतु भूखण्ड श्री जेनमल जी हीरालाल जी हड़पावत द्वारा भेंट दिया गया। आराधना भवन की भूमि समाज द्वारा क्रय की गई। बारावरबा इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : श्री सम्भवनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। श्री महावीर भगवान (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा मामिलामा भीती म.सा. आता समापन नाम के लगातार तथाला.चन्द्रकर वाकवावपाल पत्रचन्दारखा द(राज.) प्रणा पू तुम 2 माहवास सवलरल 3. श्री विमलनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा इन तीनों प्रतिमाओं पर वि.सं. 2048 द्वि. वै. शु. 6 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएँवयंत्र धातु की: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 8" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2048 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2048 का लेख For Pe 248 ate Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4" का है। इस पर सं. 2048 का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6"x3", 6"X3" का है। इन पर कोई लेख नहीं है। बाहर आलिओं में:1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2048 द्वि. वै. शु. 6 का लेख है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2048 द्वि. वै. शु. 6 का लेख है। परिक्रमा कक्षा में :1. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 14" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 वै. वदि 10 का लेख है। श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 11' ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 का लेख है। 3. ___ श्री पद्मावती देवी की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 का लेख है। पीछे: श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 20 ऊंची प्रतिमा है। मंदिर के साथ आराधना भवन, उपाश्रय, हाल बना हुआ है। मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री अरविन्द कुमार जी मांगीलाल जी वया द्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र-01478-251730 सुख सभी प्रशंसनीय नहीं हैं तो दुःख सभी निंदनीय भी कहाँ हैं? For Person 249 e Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, अरनोद यह शिखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 15 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। इस मंदिर का जिर्णोद्धार चल रहा है। वर्तमान में प्रतिमाएँ उपाश्रय में बिराजमान कराई हुई है। यह मंदिर समस्त पोरवाल समाज ने संवत् 1893 शाके 1758 वैशाख शु.4बुधवार को निर्मित कराया।इसका महाराजा अर्जुन सिंह जी ने पट्टा प्रदान किया तथा इसी पट्टे के माध्यम से 20 बीघा भूमि मंदिर के नाम पर चढ़ाने की पुष्टि की। प्रतापगढ़ राज्य का दूसरा सबसे बड़ा कस्बा है, यह महारावत (शासक)के नजदीकी बन्धुओंकोजागीरी दी गई। महारावत सालिम सिंह के छोटे पुत्र के वंशज का शासन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 25" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1893 का लेख है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 3. श्री महावीर भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2504 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। उत्थापितचल प्रतिमाएँवयंत्र धातु की श्री श्रेयांसनाथ भगवान की 7.5" ऊंची पंततिर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1533 माह वदि 6 का लेख है। For PE250)vate Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2-3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 5" व 3" ऊंची प्रतिमा है। इन पर कोई लेख नहीं है। 4. श्री वासुपूज्य भगवान की 2.5" ऊंची प्रतिमा है। इन पर कोई लेख नहीं है। 5. श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा है। इस पर सं. 2023 का लेख है। श्री महावीर भगवान की 2.5 ऊंची प्रतिमा है। इन पर कोई लेख नहीं है। श्री जिनेश्वर भगवान की 4.5" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर 2045 का लेख है। 8. श्री आदिनाथ भगवान की 3" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2024 का लेख है। 9. श्री शांतिनाथ भगवान की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 का लेख है। 10-11 श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 3" व 5.6" का है। 12. श्री अष्टमंगल यंत्र 8"x4" का है। इस पर लेख नहीं है, चांदी की पॉलिश है। 13-14 ताम्बे का यंत्र 6"X6" व 5.5" का है। इन पर कोई लेख नहीं है। बाहर: श्री मणिभद्र की श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री शासन देवी की श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। नव निर्माण (नव मंदिर) हो रहा है। मंदिर संचालन के लिए एक ट्रस्ट है जिसका पंजीयन कराया जा चुका है। मंदिर की एक दुकान है, किराये पर है। वार्षिक ध्वजा कार्तिक शुक्ला 15 को चढ़ाई जाती थी, भविष्य की तिथी निश्चित नहीं है। नोट – श्री पार्श्वनाथ भगवान (श्वेताम्बर) की अति प्राचीन व कलात्मक प्रतिमां बाँध के पास वाली बावड़ी में लगी हुई होने का उल्लेख है। मंदिर की देखरेख ट्रस्ट द्वारा की जाती है। a ducation International For Personal. Drwale Use Only Use Only (251) Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, अरनोद यह पाटबंद मंदिर श्री लखमचन्द जी पोरवाल ने निर्माण करा 2001 चैत्र सुदी 2 को समाज को सुपुर्द किया। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. 1. उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 5" का है। " श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 11 ” ऊंची प्रतिमा है। इस पर यशोभद्र विजय द्वारा प्रतिष्ठित होने का लेख है । शत्रुंजय तीर्थ का पट्ट बना है । यदि आपके घर कोई सलाह लेने आए तो समझिए कि आप सलाह देने के लायक हैं। For Pers 252 ate Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह शिखरबंद मंदिर अरनोद से 20 किलोमीटर दूर ग्राम के एक छोर पर स्थित है। रायपुर नाम का कस्बा जो 15 किलोमीटर दूर है, नष्ट हो गया, वहां पर आज भी खण्डहर विद्यमान है। किसी भी प्रकार मंदिर की तीन प्रतिमाएं सुरक्षित रह गई जिसको दलोट के समाज वाले ले जाने चाहते थे जिसको स्थानीय समाज ने नही ले जाने दिया जिसमें स्थानीय जागीरदार ने भी सहयोग किया मंदिर के लिए भूखण्ड क्रय किया गया ओर मंदिर निर्माण करा प्रतिमाओं को विराजमान कराया। इस मंदिर का निर्माण 20 वर्ष पूर्व हुआ है । यहाँ के शासक महाराव विक्रमसिंह के पुत्र सुर्जनदास के पुत्र रामदास के वंशधर है, सं. 1665 में सरदार रामदास ने राठौड़ को परास्त कर रायपुर बसाया। प्राचीन रायपुर में मंदिर सं. 1750 में बनने का उल्लेख है 1 इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. 2. श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, रायपुर (अरनोद) n Education International श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1883 वै. शु. 13 बुधवार का लेख है । श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 है। इस पर सं. 1883 वै. शु. 13 बुधवार का लेख है । For Pers253Pivate Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. 2. उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की : 1. 1. 2. 3. निज मंदिर के बाहर : 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1883 वै. शु. 3 बुधवार का लेख है । सभामण्डप में : 3. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 13 ऊंची प्रतिमा है। श्री क्षेत्रपाल की 9 ऊंची प्रतिमा है। श्री सरस्वती देवी की श्वेत पाषाण की 6" ऊंची प्रतिमा है। श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। बाहर छत्री में : 1. सिद्धचक्र यंत्र स्थापित है। यहां पर शत्रुंजय, गिरनार, सम्मेद शिखर आबू, अष्टापद तीर्थ के पट्ट है। मंदिर के साथ 25 बीघा जमीन है। जिसे प्रत्येक वर्ष (एक वर्ष के लिए) लीज पर दी जाती है । 4. श्री वासुपूज्य भगवान की 8.5 ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2049 माध शीर्ष 5 का लेख है । श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4.5" का है। इस पर सं. 2049 का लेख है। श्री अष्टमंगल यंत्र 6X3.5" का है। श्री गौमुख यक्ष की श्वेत पाषाण की 10 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2049 का लेख है। श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। मंदिर के पास उपाश्रय है पुजारी नहीं है, स्थानीय समाज के सदस्य ही बारी बारी से ही पूजा, सफाई करते हैं। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री प्रभुलाल जी मुणेत द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र - 01479-241076 For Pels.254Pivate Use Only www.jaineliterary.org Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. 2. उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: 1. श्री आदीश्वर भगवान का मंदिर, सांखथली थाना श्री शांतिनाथ भगवान की 8 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2035 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3 ऊंची प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है । यह शिखरबंद मंदिर अरनोद से 10 किलोमीटर दूर है। प्राचीन मंदिर रहा है जो पूर्व में केलूपोस था, उसी स्थान पर नूतन बनवाया गया। प्राचीन प्रतिमाएं ही बिराजमान कराई। यह मंदिर करीब 200 वर्ष प्राचीन है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: 1. पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1848 का लेख है। भगवान श्री जिनेश्वर (मुनिसुव्रत भगवान) की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है । इस पर वीर सं. 1745 वै. शु. 3 का लेख है। 2. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्याम पाषाण की 17” ऊंची (परिकर सहित) है। इस पर सं. 1876 का लेख है । श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत For Fer255 Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 3. निज मंदिर के बाहर : 2. 1. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 4" का है। इस पर कोई लेख नहीं है। सभामण्डप में : श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2053 वै. शु. 13 का लेख है। श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची है। इसकी प्रतिष्ठा श्री नवरत्न सागरसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। क्षेत्रपाल (माणिभद्र) की प्रतीक मूर्ति 21" ऊंची है। क्षेत्रपाल (माणिभद्र) की प्रतीक मूर्ति 21 ऊंची है। मंदिर की 11 बीघा जमीन है जो प्रत्येक वर्ष लीज पर दी जाती है । मंदिर का उपाश्रय है । मंदिर की देखरेख अरनोद ट्रस्ट द्वारा की जाती है। श्री राजेशकुमार केसरीमल जी जैन, मो. : 9414858665 श्री केशव जी अरनोद फोन 01479-242432 खाते समय नुक्स (दोष) निकालना भयंकर गुनाह है। For Personal & Private Use Only 256 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्था भाग 2 श्री शीतलनाथ भगवान का मंदिर, दलोट यह शिखारबंद मंदिर 200 वर्ष प्राचीन है लेकिन अपरिहार्य कारणों से नष्ट हो जाने से इसी स्थान पर नूतन जिनालय बनवा कर और नूतन रूप से प्रतिष्ठा कराई गई।गुरू प्रेरणा से श्री उमराव सिंह मूलचन्द जी चौधरी व मूलचंद जी कचरमलजी ओस्तवाल ने भूमि दान में दी और मंदिर बनवाया। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री शीतलनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2044 चैत्र वदि 7 दिनांक 10.3.88 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2044 का लेख श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2044 का लेख है Jan Education International For Persona 57ae Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र धातु की: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 8" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 चेत्र वदि 5 का लेख है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" का है। इस पर सं. 2064 का लेख है। 4. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 3" का है। इस पर कोई लेख नहीं है। निज मंदिर के बाहर: 1. श्री बह्म यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री अशोका देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। सभामण्डप में :1. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इन दोनों प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सं. 2061 पोष सुदि 6 को सम्पन्न हुई। 3. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। बाहर बड़ी देवरी में: 1. श्री जितेन्द्रसूरिजी म.सा. प्रतिमा स्थापित है। इसकी प्रतिष्ठा सं. 2065 वैशाख वदी 13 को कराई। श्री जितेन्द्रसूरिजी की आचार्य पदवी इसी ग्राम में प्रदान की थी, अतः अब भविष्य में बड़ी प्रतिमा बनवा कर स्थापित कराने का प्रस्ताव है। मंदिर के साथ उपाश्रय, दो भोजनशाला, प्रवचन हॉल बना हुआ है। मंदिर की व्यवस्था समाज की ओर से श्रीझमकलाल जी मेहता व सुनिल जी व श्रीउमराव सिंहजीचौधरीदेखते हैं। सम्पर्क सूत्र : 01478-240019, 240064,94138 946200 For PSP (558 Private Use Only www.jainelibra y org Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. 4. 5. श्रीपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, सालमगढ़ 3334 wwwwwwww श्री आदिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 20" ऊंची प्रतिमा है। श्री मल्लिनाथ भगवान की ( मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1543 का लेख है। श्री शांतिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 20" ऊंची प्रतिमा है। For Per यह शिखरबंद मंदिर अरनोद से 15 किलोमीटर दूर है । यह बड़ा कस्बा है जहां आज भी जैन बस्ती की बहुतायत है । इस मंदिर के भी जवेरचन्द गाँधी के बनवाने का उल्लेख है । यहाँ की जागीरी महारावत हरीसिंह के छोटे पुत्र मोहकम सिंह के वंशधर है। इनकी उपाधि ठाकुर है। यह मंदिर करीब 150 वर्ष प्राचीन है । 2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1929 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. 259 श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है । vate Use Only Cocc Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की 8" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1501 माध सुदि 5 का लेख है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की 9" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2050 का लेख है । का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2050 का लेख 6. श्री अष्टमंगल यंत्र 6"X3.5" का है। कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकर 6" का है। कोई लेख नहीं है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 5.5" का है। कोई लेख नहीं है। श्री ताम्बे का यंत्र 9"x9" का है। इस पर इंद नमस्कार यंत्र पढ़ने में आता है। श्री ताम्बे का यंत्र 8x8" का है। इस पर सं. 1889 माध सुदि 5 का लेख 8. निज मंदिर के बाहर: श्री धरणेन्द्र देव की श्वेत पाषाण की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत 2028 ज्येष्ठ वदि 2 बुधवार का लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस प संवत् 2028 ज्येष्ठ वदि 2 बुधवार का लेख है। सभामण्डप में: 1. श्री माणिभद्र की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा एक अनुपम निराली है, अन्य स्थान पर दिखाई नहीं देती। 2. श्री क्षेत्रपाल की 21" ऊंची प्रतीक मूर्ति है। विशेषता: पूजा पढ़ाते समय सम्पूर्ण गर्भगृह में अमीझरा की वर्षा हुई उसी दिन से अमीझरा पार्श्वनाथ नाम से जाना जाता है। For Perspaalavate Use Only l (260) Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 मंदिर की पीछे : श्री सिद्धचक्र यंत्र मंदिर स्थापित है, पूजनीय है। मंदिर का उपाश्रय साधु व साध्वी के लिये नोहरा है जो समाज के लिये उपयोग में लाया जाता है। उपाश्रय में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री शासनदेवी की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। मंदिर के सामने -नाकोड़ा भैरव मंदिर : (सड़क पार करने पर) ____ 1. श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस मंदिर के साथ सटा हुआ उपाश्रय व नाकोड़ा भैरव मंदिर का निर्माण भी मगनलाल जी गांधी द्वारा कराया गया, उपाश्रय में तीर्थकर महावीर भगवान के 27 भव चित्र है। करीब 100 सदस्य द्वारा प्रतिदिन पूजा की जाती है। पूजा के लिए कोई पुजारी नहीं है। मंदिर की वार्षिक ध्वजा ज्येष्ठ वदि 2 को चढ़ाई जाती है। मंदिर की देखरेख बसन्त लाल जी गांधी (अध्यक्ष) मो. 96361 52472 श्रीअशोकजीगांधी(मंत्री)80036 26806 द्वारा की जाती है। आगे नोहरे में पृथक से श्री सिद्धाचल (शत्रुजय) पट्ट का स्थान है जहां कार्तिक पूर्णिमा को भावयात्रा की जाती है। इसमें एक छतरी (देवरी) स्थापित है। जिसमें निम्न प्रतिमाएं स्थापित है : श्री सागरानन्द सूरि जी म. सा. की पिंक पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री गच्छाधिपति सूर्योदयसागरसूरि जी म.सा. की पिंक पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। उपाध्याय श्री धर्मसागर जी म.स. की पिंक पाषाण क 15" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री अभय सागर जी म.सा. की पादुका पिंक पाषाण की 11" वृताकार चौकी पर स्थापित है। इसकी देखरेख समाज की ओर से शैतान सिंह जीगांधीद्वारा कीजातीहै। 1. For per ( 261 ate Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीआदिनाथ भगवान का मंदिर, निनोर यह शिखारबंद मंदिर अरनोद से 15 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। उल्लेखानुसार यह मंदिर सं. 1700 के लगभग का बना है। अत:350 वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : ___ 1. श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। पाषाण का सुंदर परिकार बना हुआ है। इस पर सं. 1890 वै. शु. 12 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएंव यंत्र धातु की : श्री पार्श्वनाथ भगवान की 14"ऊंची पंच तिर्थी प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2050 निगसर वदि एकम का लेख है। 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊंची पंच तिर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 1525 का लेख है। 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 3. 2" का है। इस पर अस्पष्ट लेख है। 4. श्री अष्टमंगल यंत्र 5"X2.5 का है। इस पर कोई लेख नहीं है। दिवार For Pep e rivate Use Only (262) Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 निज मंदिर के बाहर दाहिने आलिए में ___1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। बाई ओर: ___ 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 8" ऊंची प्रतिमा है। सभामण्डप में पृथक-पृथक आलिओं में :दाई ओर : 1. श्री सुमतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2035 वै. शु. 3 का लेख है। 2. श्री मणिभद्र यक्ष की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं.0 2063 फा. शु. 13 का लेख है। बाई ओर 1. श्री कुंथुनाथ की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची है। इस पर सं. 2035 का लेख श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं 2063 फा. शु. 13 का लेख है। पीछे – श्री सिद्धचक्र यंत्र स्थापित है। वार्षिकध्वजा ज्येष्ठ सुदि2 को चढ़ाई जाती है। इस मंदिर की व्यवस्था समाज की ओर से श्री बाबूलाल जी छाजेड़ व श्री भेरूलालजीमुणेतद्वाराकीजाती है। मोबाइल : 9414672958 तप करते समय कषाय करने से अच्छा है कि तप ही न करें। For Pers,263gte Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीमुनिसुव्रत भगवान का मंदिर, निनोर यह शिखारबंद मंदिर श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर के पास ही अर्थात जुड़ा हुआ ही है। ऐसा कहा जाता है कि पूर्व में मूलनायक के रूप में श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान थी, किन्ही कारणों से मूलनायक श्री आदिनाथ को अपने | स्थान से हटा कर मुनिसुव्रत भगवान की प्रतिमा विराजमान कराई। जिसके फलस्वरूप समाज में अशांति होने लगी तो अन्य आचार्य से पूछने पर ज्ञात हुआ कि मुनिसुव्रत भगवान का विराजनाउपयुक्त नहीं है, अतः आदिनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप मे पुनः विराजमान कराई और मुनिसुव्रत भगवान का मंदिर पास ही बनवाकर श्री मुनिसुव्रत भगवान की प्रतिमा को भी मूलनायक के रूप में विराजमान कराई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : ___1. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2035 वै. शु. 3 का लेख है। श्री श्रेयांसनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2050 ज्येष्ठ शु. 15 का लेख है। 2 For Private Use Only (264) Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. सभामण्डप में : 1. 2. बाई ओर : 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2050 ज्येष्ठ शु. 15 का लेख है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2063 फा. शु. 15 का लेख है। श्री वरूण यक्ष की श्याम पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2063 फा. शु. 13 का लेख है । श्री नरदत्ता देवी की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2063 फा. शु. 13 का लेख है। मंदिर की करीब 50 करीब जमीन है। वार्षिक ध्वजा ज्येष्ठ सुदि 5 को चढ़ाई जाती है । मंदिर की व्यवस्था समाज की ओर से श्री बाबूलाल जी छाजेड़ श्री अजपाल जी महता व भेरूलाल जी मुणेत द्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र - 9414672958 पदमावती देवी का मंदिर, निनोर निनोर एक प्रमुख कस्बा रहा है। गाँव के बाहर छोटा शिव मंदिर व पद्मावती देवी का मंदिर बना हुआ है पद्मावती देवी के कई चमत्कार प्रचलित है। इन मंदिरो को नागर ब्राह्मणों ने बनाया था । अब पद्मावती का विशाल मंदिर निर्माण कराने का प्रस्ताव है, भूमि प्राप्त कर ली गई है । सम्भवतया सर्वेक्षण कार्य समाप्ति के बाद मुहर्रत भी हो गया होगा । For Personal & 265se Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीकुंथुनाथ भगवान का मंदिर, बड़ी सांखली यह शिखरबंद मंदिर पूर्व में कच्चा केलूपोस मंदिर था और न ही सभामण्डप और न ही स्तम्भ था, उस स्थान पर चूने का व बाद में पक्का मंदिर सन् 2005 में कराया और प्रतिष्ठा श्री हर्ष तिलक सूरि जी की निश्रा में सम्पन्न हुई। यह नूतन मंदिर केवल 5 वर्ष के पूर्वकाहै।पूर्वकी(प्राचीन )प्रतिमा बाहर बिराजमान कराई है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित हैं : 1. श्री कुंथुनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2061 का लेख है। 2. श्री सुमतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2061 ज्येष्ठ | शु. 15 का लेख है। 3. श्री नेमिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 5" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2061 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की 8.5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 2. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 3.5" का है। इस पर संवत् 2051 वै. शु. 5 का लेख है। SIN/ &Private Use Only (266) Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निज मंदिर के बाहर आलिए में: 1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1907 का लेख है। 2. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है । सभामण्डप में : 1. श्री गन्धर्व यक्ष की श्वेत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। श्री बला यक्षिणी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है । मंदिर की 80 बीघा जमीन है जो प्रत्येक वर्ष लीज पर दी जाती है। इसी राशि से मंदिर का दैनिक खर्च होता है। मंदिर का उपाश्रय बना है, वार्षिक ध्वजा पोष वदि 14 को चढ़ाई जाती है । समाज की ओर से मंदिर की देखरेख श्री बाबूलाल जी जैन करते हैं । सम्पर्क सूत्र : 9799112813 2. ain Education International मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 जहाँ तनिक भी पॉलिश है वहाँ खड़े मत रहिएगा अन्यथा फँस जाएँगे । For Pers on 267vde Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीमहावीर भगवान का मंदिर, मोहेड़ा ___यह घूमटबंद मंदिर अरनोद से 15 किलोमीटर दूर है।इस मंदिर निर्माण करने के लिये जमीन श्रीमती शांताबाई पिता स्व.श्री फकीरचन्द जी व माता श्रीमती चंचल बाई ने भेंट में दिनांक 28 नवम्बर 1982 को दी। इसी स्थान पर नूतन मंदिर निर्माण कराया और प्रतिष्ठा कराई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: । 1. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। श्रावधमान जनउतनाव- मन्दिर माइंडा राज. 2. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा 3. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा इन तीनों प्रतिमाओं पर सं. 2053 माघ शुदि 13 का लेख For 268 Private Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएंव यंत्र धातु की: 1. श्री शांतिनाथ भगवान की 12" ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर सं. 2003 वै. शु. 13 का लेख है। 2. श्री शांतिनाथ भगवान की 5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2045 वै. शु. 3 का लेख है। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 6" ऊंची प्रतिमा है। (यह मन्दसोर से प्राप्त) 4. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6” का है। इस पर वै. शु. 3 पढ़ा जाता है। 5. श्री महावीर भगवान का रेखांकित पट्ट 3" ऊँचा है। 6. श्री अष्टमंगल यंत्र 5"X2.5" का है। इस पर सं. 2003 वै. शु. 3 का लेख है। निज मंदिर के बाहर : (आलिओं में) ___ 1. श्री मातंग यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री सिद्धायिका देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। सभामण्डप में: ___ 1. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा हैं 2. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। बाहर : (मंदिर के प्रवेश द्वार के पूर्व) 1. श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। मंदिर का उपाश्रय बना हुआ है। वार्षिकध्वजापोष सुदि 15 को चढ़ाई जाती है। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री रोशनलाल जी सेठिया द्वारा की जातीहै। सम्पर्कसूत्रःफोन : 01479-261254, 9680197319 lain Education International For P r ivate Use Only (269) TRUE ON Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, रमावली (छोटीसादड़ी) यह शिखरबंद मंदिर छोटी सादड़ी से 15 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ मार्ग पर ग्राम के मध्य में स्थित है। यह मंदिर करीब 100 वर्ष प्राचीन है। जीर्ण शीर्ण हो जाने से नूतन मंदिर 15 वर्ष पूर्व बनाया गया। इसका एक गर्भगृह, दो सभामण्डप है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 17" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2413 का लेख है । 1. 2. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. श्री सहस्त्राफणा पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दांए) श्याम पाषाण की 23" परिकर सहित । ऊंची प्रतिमा है। इस पर स. 2053 मा. शु. 3 शुक्रवार का लेख है। श्री सहस्त्राफणा पार्श्वनाथ की (मूलनायक के बाएं) श्याम पाषाण की 21' (परिकर सहित) ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2042 का लेख है। "मावली पालना भग For Perene & Private Use Only 270 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 उत्थापित चल प्रतिमाएंव यंत्र धातु की: 1. श्री जिनेश्वर भगवान की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर दिनांक 25.03.2009 का लेख है। श्री मुनिसुव्रत भगवान की 8" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर सं. 2030 फा. वि. 6 का लेख है। 3. श्री आदिनाथ भगवान की 9" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2038 मा. शु. 3 का लेख है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की 7" ऊंची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर 1563 वै. शु. 3 का लेख है। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 6. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6.5" का है। इस पर वीर सं. 2492 फा. शु. 3 • का लेख है। 7. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6.5" का है। इस पर कोई लेख नहीं है। 8. श्री सिद्धचक्र गोलाकार 6" का है। इस पर सं. 2038 मा. शु. 3 का लेख है। 9. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6.5" का है। कोई लेख नहीं है। 10. स्वास्तिक पट्ट चांदी का 2.7" का है। कोई लेख नहीं है। 11. श्री नवकार मंत्र पट्ट 3" का है। कोई लेख नहीं है। 12. श्री पार्श्वनाथ भगवान की 2" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। 13. श्री अष्टमंगल यंत्र 6"X3.5" का है। इस पर लेख नहीं है। दाई ओर: श्री शांतिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2413 का लेख है। बाई ओरः 1. श्री महावीर भगवान की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2495 का लेख है। Jain a tion International For Perso271) Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 3. निजमादर के बाहर: आलिओं में : ____ 1. श्री धरणेन्द्र देव की श्वेत पाषाण की 14" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. ___2501 का लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। सभामण्डप में: 1. श्री माणिभद्र की श्वेत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं.. 2051 का लेख है। 2. श्री गौतम स्वामी की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। श्री नाकोड़ा भैरव की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2041 का लेख है। श्री विजय जयदेवसूरि म. सा. की श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस सं. 2044 का लेख है। श्री सुरेन्द्र सूरि म.सा. की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। परिक्रमा क्षेत्र में तीन मंगल मूर्तिये हैं, सिद्धचक्र यंत्र, बीस स्थानक यंत्र स्थापित है। दीवार पर श्री पार्श्वनाथ भगवान के विभिन्न 34 पट्ट लगे है। मंदिर के साथ आराधना भवन है। मंदिर का उपाश्रय बना हुआ है। वार्षिकध्वजापोष सुदि 15 को चढ़ाई जाती है। सम्पर्कसूत्र: 9680197319,01479-261254 मंदिर की व्यवस्था समाज की ओर से निम्न सदस्यों द्वारा की जाती है1.श्रीमथुरालाल जी मेहता, 2.श्रीप्रेमकुमारजीमेहता, 3.श्रीसुन्दरजीमेहता (मो.90013 38409) मंदिर के पास महावीर गौशाला संचालित है। For PC 272 vate Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर - छोटी सादड़ी श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है । इस पर श्री निपुणरत्न विजय जी द्वारा प्रतिष्ठित का लेख है । 4. श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्राचीन प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है। मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 यह घूमटबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 40 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि कस्बे के समीप ही, गोमाना गाँव के कुएं से प्रतिमा प्राप्त हुई। इस प्रतिमा को कस्बे में लाए तो इसी स्थान पर सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर है, यंहा पर आकर स्थिर हो गई, इसलिए महादेव के मंदिर परिसर में ही मंदिर का निर्माण करा स्थापित की। उल्लेखानुसार यह मंदिर सं. 1800 के लगभग निर्मित है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं: 1. For Personal Use Only 273 श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक) हलके हरे पाषाण की 23 ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1911 का लेख है । Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 5. श्री शांतिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2028 वै. शु. 10 का लेख है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2020 चैत्र शु. 3 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की: ___ 1. श्री जिनेश्वर भगवान की 12" ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर दिनांक 15.02.2009 का लेख है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की 8.5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2041 फा. वदि 13 का लेख है। 3. श्री सिद्धचक्र यंत्र 5.5"X5" का है। 4. श्री अष्टमंगल यंत्र 6"X3" का है। यहां पर भेंट गढ़ सिवाना लिखा है। ___5. श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 6" का है। कोई लेख नहीं है। सभामण्डप में1. श्री गरूड़ यक्ष की श्वेत पाषाणा की 14" ऊंची प्रतिमा है। श्री निर्वाणी देवी की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2031 ज्येष्ठ वि 2 का लेख है। श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषण की 13" ऊंची प्रतिमा है। श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 11' ऊंची प्रतिमा है। इस पर 30 जून, 2010 का लेख है। क्षेत्रपाल (माणिभद्र) की चार 17", 14", 14", 9" ऊंची प्रतीक मूर्तियां है। मंदिर के बाहर ही शिव मंदिर (सिद्धेश्वर महादेव) का मंदिर है। इस मंदिर की देखरेख समाज की ओर से श्री गुणवंतलाल केशरीमलजी बण्डी द्वाराकीजातीहै। सम्पर्कसूत्र: 9413895200 2. For P6274jvate Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. 4. 5. 6. বশ श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर, छोटी सादड़ी यह शिखरबंद मंदिर प्रतापगढ़ से 40 व चित्तौड़गढ़ से 40 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य में स्थित है। यह मंदिर समाज द्वारा सं. 1901 में निर्माण कराया । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. For P श्री जिनेश्वर भगवान की श्याम पाषाण की 3 ऊंची प्रतिमा है । श्री नेमिनाथ भगवान की (मुनिसुव्रत भगवान) मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 9 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1545 का लेख है। लांछण व लेख स्पष्ट नहीं है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 21 " ऊंची प्रतिमा है । इस पर सं. 1901 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 2. है। श्री चन्द्रप्रभ भगवान की श्वेत पाषाण की 7" ऊंची प्रतिमा है। यह प्रतिमा श्री केशरीमल जी मांगी बाई ने पदराई । 275 श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 18* ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1901 शाके 1766 पौष शुदि 15 का लेख है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्याम पाषाण की 22 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1901 पौष सुदि 15 का लेख rivate Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 7 उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की: ___ 1. श्री अनन्तनाथ भगवान की 11“ऊंची चतुर्विशंति प्रतिमा है। इस पर स. 1565 वै. शु. 8 शनि का लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 8.5": पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट अपठनीय लेख है। श्री जिनेश्वर भगवान की 8" ऊंची पंचतिर्थी प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट अपठनीय लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 10 का है। इस पर संवत् 1901 का लेख है। श्री सिद्धचक्र यंत्र गोलाकार 9" जर्मन सिल्वर का है। इस पर सं. 2006 चैत्र शुदि 5 का लेख है। निज मंदिर के बाहर आलिओं में: ___ 1. श्री क्षेत्रपाल की 15" ऊंची प्रतीक मूर्ति है। 2. क्षेत्रपाल की 11" ऊंची प्रतीक मूर्ति है। सभामण्डप में श्रीगौमुख यक्ष की श्वेत पाषाणा की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर शिवलाल जी भेरूलाल जी नागोरी पढ़ने में आता है। 2. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर जंयत विजय जी पढ़ने में आता है। सभामण्डप में निम्न पट्ट है : सम्मेत शिखर जी, शत्रुजय, श्रेयांसकुमार द्वारा पारणा कराते हुए, नागेश्वर पार्श्वनाथ केसरिया जी, अष्टापद, गौतमस्वामी, महावीर भगवान का जीवन, महावीर का उत्सर्ग सिद्धचक्र यंत्र बने हैं। निज मंदिर में कांच की जड़ाई की गई है। सभामण्डप में नीचे टाइल्स व ऊपर चित्रकारी का कार्य किया हुआ है। प्रथम मंजिल पर:- चतुर्थमुखी मंदिर (चौमुखा जी) 1. श्री आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। श्री शांतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। 3. श्री शीतलनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री महावीर भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इन चारों प्रतिमाओं पर संवत् 1914 का लेख है। For P (276 Private Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्था भाग 2 निज मंदिर के बाह आलिओं में: 1. श्री माणिभद्र यक्ष की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2011 का लेख है। 2. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2014 का लेख है। 3. श्री महालक्ष्मी की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। 4. श्री सरस्वती देवी की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। दूसरी दिशा में ऊपर: 1. श्री अजितनाथ भगवान की पीत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2018 वै. कृ. 7 का लेख है। सभामण्डपमें: अष्टापद, पालीताणा, सम्मेतशिखरजी, पावापुरी, श्री सिद्धचक्र यंत्र, श्री नन्दीश्वर द्वीप तीर्थ के पट्ट बने हुए है। मंदिर का आराधना भवन, आयाबिलशाला, पाठशाला, सभाभवन बना हुआ है। मंदिर की 14 बीघा जमीन है उसमें से 1.5 बीघा जमीन समाज के पास है शेष विवाद में है। 12 दुकानें है। मंदिर की देखरेख जैन ट्रस्ट द्वारा की जाती है। वर्तमान में अध्यक्ष श्री गुणवंतलालकेशरीमलजीबण्डी है। सम्पर्कसूत्र:01473 - 262462, 262562, 9413895200 मंत्री श्रीसमरथनाथजीनागोरी,फोन 01473-262437 श्री आदिनाथ भगवान का (घर देरासर) का मंदिर छोटीसादडी यह मंदिर ग्राम के मध्य में स्थित है, यहां आदिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर नागौरी परिवार कारहा है। For Persen277) Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री आदिनाथ भगवान का मदिर, कारूण्डा यह घूमटबंद मंदिर छोटी सादड़ी से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। उल्लेखानुसार इस मंदिर को बछराज जी देवजी बाफणा ने संवत 1900 के लगभग में बनवाया।अतः यह मंदिर करीब 160 वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है :1. श्री आदिनाथ भगवान की (मूलनायक) श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1926 का लेख है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 19" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 का (श्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. द्वारा प्रतिष्ठित) लेख है। श्री नमिनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची है। इस पर सं. 2065 का लेख है। (श्री निपुर्णरत्न विजय जी म.सा. द्वारा प्रतिष्ठित) वेदी की दीवार के बीच आलिए में प्रासाद देवी श्याम पाषाण की 7' की प्रतिमा है बाहर आलिओं में: 1. श्री गोमुख यक्ष की श्याम पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं0 2065 का लेख है। 2. श्री चक्रेश्वरी देवी की श्याम पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं० 2065 का लेख है। वर्तमान का यह नूतन मंदिर है। इसके पीछे ही प्राचीन मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में है व उसके साथ काफी खुला भूखण्ड है। इस मंदिर की देखरेख श्री जैन संघ, छोटी सादड़ी द्वारा की जाती है। स्थानीय स्तर पर समाज की ओर से श्री मदन जी बापणा द्वारा की जाती है। मोबाइल : 96942 76812 Jain Education international Personenvae use only wajanelarary.org 278) Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री नेमिनाथ भगवान का मंदिर, जालोदा जागीर यह शिखरबंद मंदिर छोटीसादड़ी से 25 किलोमीटर दूर है। मंदिर की नींव पूर्व में भरी हुई थी, किस परिवार ने भरवाई ज्ञात नहीं। सन 1990 में आ. जितेन्द्र सूरि जी ने इस मंदिर को निर्माण करने का उपदेश देकर समाज द्वारा निर्मित हुआ । मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर हाथी स्वागत करते हुए है। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री नेमिनाथ भगवान की (मूलनायक) की श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्रतिमा है। इस पर वीर सं. 2512 का लेख है। लेख पीछे की ओर होने से अपठनीय है। 2. श्री महावीर भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2024 वै. शु. 6 का लेख है। 3. श्री सुविधिनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2024 वै. शु. 6 का लेख है। उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु | की: WORC902 1. AR SHRIRRBARSAWAIMAHARHARAMINET श्री जिनेश्वर भगवान की चतुर्विशंति 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सन् 2009 का लेख है। श्री सम्भवनाथ भगवान की पंचतीर्थी 8.5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2055 का लेख है। N For Person For Person (279)-sery 70 Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री सिद्धचक्र यंत्र8”X5" का है। इस पर नरपतसिंह राजा के समय की प्रतिष्ठा का लेख है । श्री अष्टमंगल यंत्र 5X2.5" का है। इस पर सं. 2065 का लेख है । 4. मंदिर के बाहर : 1. 2. श्री नाकोडा भैरव की श्वेत पाषाण की 13" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 का लेख है। श्री चक्रेश्वरी देवी (अम्बिकादेवी) की श्याम पाषाण की 11 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 2065 का लेख है । इस मंदिर की ध्वजा ज्येष्ठ कृष्णा 8 को चढ़ाई जाती है । इस मंदिर की देखरेख श्री जैन श्वेताम्बर संघ, छोटी सादड़ी द्वारा की जाती है । स्थानीय स्तर पर समाज की ओर से श्री भंवरलाल जी नवलखा द्वारा की जाती है | सम्पर्क सूत्र - 9929810340 श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर, चान्दोली यह पाटबंद मंदिर छोटी सादड़ी से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। इसमें पंचधातु की 6 इंच की ऊंची प्रतिमा स्थापित है जो एक कांच के बॉक्स में रखी हुई उसकी पूजा नहीं होती है। For P& Private Use Only 280 Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. 1. 2. उत्थापित चल प्रतिमाएं व यंत्र धातु की: 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, केसुन्दा श्री अजीतनाथ भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11” ऊंची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है। श्री विमलनाथ भगवान की 7" ऊंची पंचतीर्थी यह घुमटबंद मंदिर छोटी सादड़ी से 18 व नीमच से 6 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य स्थित है। उल्लेखानुसार यह मंदिर 1925 का समाज द्वारा निर्मित है। अतः करीब 140 वर्ष प्राचीन है । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : 1. श्री मुनिसुव्रत भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 10" ऊंची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है । प्रतिमा है। इस पर संवत् 1518 माघ शुदि 10 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री पार्श्वनाथ भगवान की 3.5" ऊंची प्रतिमा है। इस पर कोई लेख नहीं है । श्री नेमिनाथ भगवान की चतुर्विशंति 5 ऊंची प्रतिमा है। इस पर सन् 2049 का लेख है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) की श्वेत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1745 का लेख है। For Personal 281 Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 4. श्री सिद्धचक्र यंत्र 5" ऊंचा है। इस पर सं. 2044 का लेख है। माघ सुदि 5 __ का लेख है। 5. श्री अष्टमंगल यंत्र 5"X2.5" का है। इस पर सं. 2045 का लेख है। निज मंदिर के बाहर निकलते समय दोनो ओर: 1. श्री क्षेत्रपाल (माणिभद्र) की 9" ऊंची प्रतिमा है। 2. श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर अस्पष्ट लेख है। मंदिर के बाहरी भाग में सभी तीर्थकर, देवियों व 14 स्वप्न के चित्र सुशोभित है। बाहर टाइल्स जड़ी हुई है। मंदिर की 24 बीघा जमीन है । जिर्णोद्धार अभी 3-4 वर्ष पूर्व ही हुआ है। वार्षिकध्वजामाघसुदि 15 को चढ़ाईजाती है। मंदिर कीव्यवस्था समाज की ओर से श्रीज्ञानचन्द्र जीदकद्वारा की जाती है। सम्पर्कसूत्र-01473-252336 'मोक्षमार्ग' स्वयं के दोष देखने के लिए है और 'संसार मार्ग' दूसरों के दोष देखने से है। Jain OFTETSUTSTVOSE www.janelibrary.org (282) Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 भावी चोबीसी के तीर्थकर चिन्ह वर्तमान चोबीसी के तीर्थकर चिन्ह तीर्थकर का नाम किसका जीव कहाँ से आया चिन्ह चित्र तीर्थकर का नाम चिन्ह चित्र 1. श्री पद्मनाभजी श्रेणिकराजा नरक आदिनाथ जी स्वर्ग अजितनाथ जी स्वर्ग संभवनाथजी स्वर्ग अभिनन्दनजी 2. श्री सुरदेवजी | महावीरजी के काका | श्री सूपार्श्वजी | कोणिक पुत्र उदय 4. श्री स्वयंप्रभ.जी पोटिल राजा 5. श्री सुर्वानुभूतिजी | मल्ली, काका 6. श्री देवश्रूतजी | कार्तिक सेठ 7. श्री उदय जी - शंखा श्रावक स्वर्ग सुमतिनाथजी स्वर्ग पद्मप्रभजी स्वर्ग सुपार्श्वनाथजी अगत मूनि (आ) स्वर्ग चन्द्रप्रभजी 8. श्री पेढाल जी 9. श्री पोटिल जी | सुनन्द मूनि स्वर्ग सुविधिनाथजी 10. श्री सतकिर्तिजी । शतक श्रावक स्वर्ग GOO शीतलनाथजी देवकी श्रेयांसनाथजी 11, श्री सुव्रतजी सुअर 12, श्री अमम जी कृष्णवासुदेव 13, श्री निकषायजी सत्यकीविद्याधर नरक वासुपूज्य जी नरक विमलनाथ जी स्वर्ग अनंतनाथ जी 14, श्री निणपुलाकजी | बलदेव कृ.भाई | 15, श्री निर्मल जी सुलसा श्राविका | 18, श्री चित्रगुप्त जी | रोहिणी बलदेव की मां । स्वर्ग धर्मनाथ जी स्वर्ग शांतिनाथ जी | 17, श्री समाधिजी रेवती श्राविका स्वर्ग कुंथुनाथ जी | 18, श्री सम्वरजी । शतानिक स्वर्ग अरनाथ जी 19 श्री यशोधर जी द्वैपायन स्वर्ग मल्लिनाथ जी मुनि सुव्रत जी 20, श्री विजयजी कर्ण स्वर्ग श्रीमल्लजी नारद स्वर्ग नमिनाथ जी 22, श्री श्री देवजी अम्बड श्रावक स्वर्ग नेमीनाथ जी 23, श्री अनन्तविर्यजी अमर स्वर्ग पार्श्वनाथ जी 24, श्री भद्रकृतजी सदबुद्धि स्वर्ग श्री वर्धमान स्वामी (283 For Persona l e Use Only Ja Education International Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 संदर्भित पुस्तकों की सूची पुस्तक का नाम 1. श्री उदयपुर राज्य का इतिहास 2. वीर विनोद 3. पट्टावली पराग समूह 4. स्मारिका - युग युगीन चितौडगढ़ एवं चितौड़ क्षेत्र में जैन धर्म 5. प्राचीन भारतीय मूर्तिकला में मेवाड़ की देन श्री रतनचंद अग्रवाल 6. भारतीय इतिहास का उन्नीयन श्री जयचंद्र विद्याशंकर 7. जैन रामायण 8. त्रिषष्टि श्लाका पुरूष चरित्र 9. जैनदर्शन 10. सर्व जैन संग्रह 11. प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास 12. राजस्थान के दुर्ग 13. मझिझमिका 14. श्री करेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ स्मारिका एवं दिग्दर्शिका 15. महाराणा उदयसिंह लेखक/प्रकाशक का नाम श्री गौरीशंकर ओझा कविराज श्यामलदास श्री कल्याणविजयजी म.सा. श्री के. एस. गुप्त व अन्य श्री विजयभद्रगुप्तसूरिजी म.सा. अनुवादक श्री गणेश ललवानी संपादक श्री जैन श्वे. संघ, चैन्नई आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, पालीताणा श्री गौरीशंकर ओझा श्री दीनानाथ दुबे श्री धर्मपाल शर्मा श्री करेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ कमेटी श्री नारायणलाल शर्मा 284 For Paren & Private Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक का परिचय नाम मोहनलाल बोल्या माता-पिता स्व. श्रीमती गुलाब कुँवर स्व. श्री रोशनलाल जी बोल्या जन्म स्थल उदयपुर जन्म दिनांक 15 जून, 1936 शिक्षा एम. ए. (समाजशास्त्र) व्यवसाय राज्य सेवा से सेवानिवृत अधिकारी धर्म, सम्प्रदाय जैन धर्म, श्री मूर्तिपूजक समाज प्रकाशित-सम्पादित पुस्तकों की सूची 1. श्री उदयपुर नगर के जैन श्वेताम्बर मंदिर एवं मेवाड़ के जैन तीर्थ 2. मेवाड़ का प्राचीन तीर्थ देलवाड़ा के जैन मंदिर 3. श्री जैन श्वेताम्बर तीर्थ श्री केसरिया जी 4. णमोकार महामंत्र-स्मारिका (सह संपादन) 5. मेवाड़ के जैन तीर्थ 6. णमोकार मंत्र महामंत्र (मौन साधना मंत्र) For Personal & Private Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीर्ति स्तम्भ, किला, चित्तौड़गढ़, (राज.) For Personal & Private Use Only