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________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 भर्तृभट्ट का पुत्र अल्लट आचार्य प्रद्युम्नसूरि का भक्त था । उसने चित्तौड़ के किले पर भगवान महावीर स्वामी का मंदिर बनवाया । अल्लट के कई मंत्री जैन थे। यहां के जैन परिवार अहाड़ा कहलाए । 14 पष्ठ सं. 207 पर वर्णित मंदिर के नाम पर 5 बीघा जमीन होने का उल्लेख है जो पजारी के अधिकार में है। जानकारी करने की आवश्यकता है। 15. पृष्ठ सं. 446 – अनुच्छेद नं. 2 की आठवीं लाइन में एक लाख के स्थान पर 50,000 पढ़ा जावे व लाइन नं. 12 पर 5-7 हजार के स्थान पर 500 पढ़ा जावे तथा लाइन नं. अठारहवीं पर सीधंधर के स्थान पर सीमंधर पढ़ा जावे। 16 पृष्ठ सं. 144 घासा का मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था, दो बार पूर्व में शिखर का जीर्णोद्धार हो चुका है। 17 पृष्ठ सं. 462 के क्र. सं. 53 पर ऋषभदेव के स्थान पर ऋषभानन पढ़ा जावें । 18. पृष्ठ सं. 226 पर मुख्य शीर्षक श्री पार्श्वनाथ भगवान के स्थान पर श्री शांतिनाथ भगवान पढ़ा जावे । मूलनायक श्री शान्तीनाथ भगवान है, परिकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का है । 1. पूर्व में प्रकाशित “णमोकार मंत्र महामंत्र' पुस्तक के संशोधन अनक्रमणिका के पष्ठ संख्या 02 पर अनक्रमांक 6 पर उल्लेखित गणेकार के स्थान पर णमोकार पढ़ा जावे । पृष्ठ संख्या 33 के अन्तिम अनुच्छेद में पदों की संख्या के स्थान पर पदों के श्लोकों की संख्या पढ़ा जावे । 2. उदयपुर नगर एवं उदयपुर जिले में निर्मित नूतन जैन श्वेताम्बर मदिर श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर काया, (उदयपुर) यह शिखरबंद मंदिर 15 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय मार्ग के छोर पर स्थित है। यहां पर भूतल पर आचार्य श्री राजेन्द्र सूरि का श्वेत पाषाण की प्रतिमा स्थापित है। प्रथम मंजिल पर श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) भगवान की श्वेत पाषाण की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा सन् 2010 में श्री जयरत्नविजयजी म.सा. की निश्रा में सम्पन्न हुई। श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, धुलकोट आयड़, (उदयपुर) यह शिखरबंद मंदिर उदयपुर नगर से 2 किलोमीटर व राणा प्रतापनगर रेल्वे स्टेशन से करीब 1 किलोमीटर दूर पुरातत्व संग्रहालय के पास में स्थापित है। यहां पर भूतल पर आचार्य श्री राजेन्द्रसुरि की प्रतिमा व प्रथम मंजिल में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सन् 2010 में आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरीश्वर जी म.स. की निश्रा में सम्पन्न हुई। श्री वासुपुज्य भगवान का मंदिर, चित्रकुट (उदयपुर) यह शिखरबंद मंदिर उदयपुर नगर से 9 किलोमीटर दूर नाथद्वारा मार्ग पर स्थित है। इसकी प्रतिष्ठा सन् 2010 में श्री नित्यानन्दसूरिजी म.सा. की निश्रा में सम्पन्न हुई । In Education International ForPe(191)ate Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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