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________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 शुभाशीर्वाद प.पू. पन्यास प्रवर अपराजितविजय जी महाराज सा. गणिवर्य धर्मप्रेमीणमोकार मंत्रके उपासकश्रीमोहनलालजीबोल्या, धर्मलाभ आशीर्वाद । आपने पूर्व में उदयपुर एवं राजसमन्द जिले के इतिहास एवं समस्त मंदिरों के इतिहास की कलात्मक विवेचना प्रदर्शित की । जिसमें आपका पुरूषार्थ ही प्रमुख है ।आपके स्वास्थ्य की प्रतिकूलता होते हुए भी आपने पूर्व की पुस्तकों का संकलन व प्रकाशन किया ।अब आप मेवाड़ के अछूते क्षेत्र चित्तौड़गढ़ व प्रतापगढ़ जिले के समस्त मंदिरों की विस्तृत जानकारी के साथ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग-2 का प्रकाशन करने जा रहे हैं, इस हेतु आप साधुवाद के पात्र है आपका यह कार्य अनुमोदनीय है । मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक से भी पूर्व की भांति समाज को नई जानकारियां प्राप्त होगी। भविष्य में आपको जैन साहित्यिक इतिहासकार के नाम से पहचाना जाएगा ऐसी मेरी मान्यता है। आपकापुरूषार्थसार्थकवसफल बने, इसी मंगलकामना केसाथ... ६. अपराति मंगलमनीषा प.पू. श्री निपुणरत्न विजय जी महाराज सा., गणिवर्य श्रीमोहनलालजीबोल्या, सादर धर्मलाभ। आपने पूर्व में उदयपुर नगर, देलवाड़ा के प्राचीन तीर्थ व मेवाड़ के उदयपुर-राजसमन्द जिले के समस्त मंदिरों के इतिहास, प्रतीमा जी के बारे में विस्तृत जानकारी देकर समाज को वास्तविकतासे परिचित करवाया है। पुनः अभी आप चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ जिलों के समस्त मंदिरों व प्रतिमाओं के इतिहास सहित समस्त जानकारी का प्रकाशन करने जा रहे हैं । इससे मेवाड़ के प्राचीनतम तीर्थो की समस्त दुर्लभजानकारियों कासंग्रह हो पाएगा। आपका यह कार्य अनुमोदनीय है ।आपकी नवीन पुस्तक जन-जन के हाथों में पहुंचे व आपका परिश्रम सफल हो, यही मंगलमनीषा... किमर ८०२-- शुभ-संदेश अध्यक्ष - श्री जैन श्वेताम्बर महासभा, उदयपुर श्रीमान्मोहनलालजीसा.बोल्या, 5 सादर जय जिनेन्द्र। आपने इस नवीन पुस्तक के माध्यम से लेखन व प्रकाशन की ओर एक और कदम बढ़ाया है। पूर्व लेखन की भांति इस पुस्तक में भी आपने जैन साहित्य का शोधकर इतिहासको ध्यान में रखकर जैन समाज को सत्य का ज्ञान कराया है। पूर्व में भीआपने कई पुस्तकों केमाध्यम से जैन साहित्य के सम्बन्ध में लेखन प्रकाशित किये हैं। आपकी पुस्तकों को पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुआ इससे मुझे काफी जानकारी प्राप्त हुई। इसी के आधार पर मैं पुराने दस्तावेजों की खोज कर रहा हूँ।आपका स्वास्थ्य अनुकुल नहीं रहने पर भी इतना कार्य कर रहे हैं, इसकी अनुमोदना करते हुए आपआत्मकल्याण में आगे बढ़े इसीशुभकामनाओं के साथ... Bad तेजसिंह बोल्या Jain Education International For so w ate Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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