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________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 भूतानाम दयार्थ के जैन शिलालेख से यह स्पष्ट प्रमाणित है कि मेवाड़ भूमि अहिंसा की भूमि रही है | महाराणा अल्लट के बाद राणा वीरसिंह के समय में आहाड़ (आयड़) में जैन धर्म के कई समारोह आयोजित हुए और 500 आचार्यो की एक महत्तवपूर्ण बैठक (संगति) आयोजित हुई तथा लाखों लोग जैन धर्म में (अहिंसा की) दीक्षित हुए जिसमें सैकड़ों विदेशी भी सम्मिलित थे। श्री हरिभद्रसूरि ने 1444 ग्रन्थों की रचना की तथा आशाधर श्रावक जो बहुत बड़े विद्धान थे, उन्होने लील्लाक श्रावक से बिजोलियां में उच्च शिखर पुराण खुदवाया। धरणाशाह के जिनाभिगम सुत्रावली औधनियुक्ति, सटीक, सूर्य प्रज्ञप्ति, कल्प भाष्य आदि की टीका करवाई। चित्तौड़ निवासी श्रावक आशा ने कर्मस्वत विणांक लिखा | डूंगरसिंह (श्री करण) ने आयड़ में औद्यनियुक्ति पुस्तक लिखी । वयजल ने आयड़ में पाक्षिक कृति लिखी । जैन लोगों ने इतिहास रचने में भी सहयोग दिया। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्वेता जिनविजय जी महाराज के ऐतिहासिक संग्रह से कई शोधार्थियों के लिए वरदान स्वरूप महान् कार्य किया है। उक्त सभी बिन्दुओं पर गहन मंथन किया जाए तो सिन्धुवासियों ने मेवाड़वासियों से कुछ सीखा है । विष्णु पुराण, स्कन्धपुराण के पाताल खण्ड के कुछ अंश के रूप में संदर्भित “भट्टहर चरित' जिसका रचनाकाल मेवाड़ का प्राचीनतम गांव भटेवर का विकास माना जा सकता है। मेवाड़ के प्राचीनतम का वर्णन "एशियन सोसाइटी कोलकोता के संग्रहालय में विद्यमान है। इसमें भरत खण्ड देश-विदेशों का एक तीर्थो का तीर्थ है । वृहत संहिता में भी मध्यमिका नगरी का उल्लेख आया है। ___अत: इन सभी बिन्दुओं के आधार पर पौराणिक, सामाजिक, भौगौलिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक दृष्टि में मेवाड़ की सभ्यता प्राचीनतम है तथा मेवाड़ पूर्णकाल से अहिंसा का राज्य था । इसके मूल स्वर शौर्य को जैन धर्म ने अहिंसा की व्यावहारिक अभिव्यक्ति की है। क्या आप जानते हैं :आचार्य तुलसी के सदुपदेश एवं प्रेरणा से नोहर (श्रीगंगानगर) में स्थापित जिन मंदिर का जिर्णोद्धार कराकर जैन संस्कृति को सुरक्षित किया । Jain Education International F p10.na)& Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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