SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाहर निकलते समय बाई ओर आलिए में पद्मावती देवी की पीत पाषाण की 7" ऊँची प्रतिमा है । (बाईं ओर) इस पर सं. 2011 का लेख है। सभामण्डप में दोनों ओर : 1. 2. श्री हरिभद्र सूरि जी की श्वेत पाषाण की 23" ऊँची प्रतिमा है। (बाईं ओर) इस पर संवत् 2011 वै. शु. 7 का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री नीतिसूरि जी म.सा. की श्वेत पाषाण की 25” ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2011 वै.शु. 7 का लेख है। आचार्य नीतिसूरीजी चित्तौड़गढ़ के सभी जिन मंदिरों जिर्णोद्धारक रहे। यह मंदिर सातबीस देवरी जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है तथा सम्पर्क सूत्र व्यवस्था इसी संस्था की है। वार्षिक ध्वजा माह सुदि 2 को चढ़ाई जाती हैं । Ja Education International आचार्य नीतिसूरिजी - ये तपागच्छीय आचार्य थे । इनका जन्म संवत् 1930 पोष सुदि 11 को बाकानेर में हुआ । इनका बचपन का नाम निहालचंद था । इनके माता-पिता का नाम श्रीमती चौथीबाई एवं फूलचंद भाई था । इनकी कम उम्र को देखते हुए व माता-पिता की आज्ञा नहीं मिलने से दीक्षा नहीं दी गई तो इन्होंने स्वयं ने आम के वृक्ष के नीचे संवत् 1949 आषाढ़ सुदि 11 को महरवाड़ में दीक्षा ग्रहण की तब संवत् 1950 कार्तिक वदि 11 को श्री कान्ति विजय जी ने दीक्षा प्रदान की तदुपरान्त संवत् 1996 माह सुदि 11 को आचार्य पदवी से विभूषित हुए और संवत् 1998 में राणकपुर से उदयपुर विहार करते हुए चित्तौड़ में प्रतिष्ठा प्रसंग में विहार करते हुए एकलिंग जी पहुँचे, वहां अचानक स्वास्थ्य खराब होने से माघ वदि 3 को स्वर्ग सिधारे । अग्नि संस्कार उदयपुर में आयड़ में किया गया । बचपन से तपस्या के साथ-साथ एक साधक रहे। आपकी निश्रा में गिरनार तीर्थ का पिछले 100 वर्षो में प्रथम जीर्णोद्धारक हुआ तथा चित्तौड़गढ़ के जिले के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया जिससे वे चित्रकूट जीर्णोद्धारक कहलाये । इनकी चित्तौड़गढ़, उदयपुर (पद्मनाभ मंदिर), अमलावद में मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि उदयपुर में आयम्बिल शाला की स्थापना की उसके बाद श्री हिमाचलसूरिजी ने विकास किया लेकिन उनके नाम का उल्लेख नहीं है । इनके नाम से उदयपुर में जैन नवयुवक नीतिसूरि बैण्ड संचालित है । For Pe 19 vate Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy