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________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 चित्रकूटीय महावीर प्रासाद प्रशस्ति : श्री चारित्ररत्न गणि द्वारा रचित जो रायल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में सर भण्डारकर ने स. 1908 में प्रगट की। उक्त सूची सं. 1526 में पं. जयहेम ने रचना की और सं. 1573 में श्री हर्षप्रमोद के शिष्य श्री गायंदी ने रचना की । बड़ीपोल के पास जिन मंदिर के कई अवशेष थे उसमें से कई मूर्तियों के परिकर थे उसमें से एक परिकर मिला जिसमें संवत् तो नहीं मिला लेकिन चेत्रवाल गच्छ के प्रतापी आचार्य भुवनचन्द्रसूरि के शिष्य का वर्णन है जिसे जैनी श्रेष्ठी का सम्मान किया, उनके उपदेश से सीमंधर स्वामी युगमधर स्वामी की प्रतिष्ठा कराई। ऐसा उल्लेख हैं । संवत् 1419, 1505, 1510, 1513, 1531 के लेख आते हैं जिसमें तपागच्छीय आचार्य ने प्रतिष्ठा करने का उल्लेख है । मीरा बाई के मंदिर का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कभी वह जैन मंदिर रहा होगा । शिखर भाग में एक मंगल चैत्य दिखाई देता है। बाईं और व दाई और ऊपर की तरफ तोरण के यहां जिन मूर्तियें दिखाई देती हैं। दाईं और पिछली दीवार में पंचतीर्थी है। अतः वह जैन मंदिर है या जैन मंदिर का पत्थर लगा हो। इसके आगे मोकल राणा के मंदिर हैं जो समधेश्वर मंदिर है । भोजराज द्वारा निर्मित त्रिभुवन नारायण का मंदिर है। मंदिर का जिर्णोद्धार हुआ तब संवत् 1207 का कुमारपाल का लेख है, इस मंदिर के पिछले भाग में जैन मूर्तिओं की कोरणी है। इसके एक के हाथ में मुंहपति है। मंदिर के बाहर बाईं ओर एक दीवार में तीर्थकर भगवान के अभिषेक करते हुए इन्द्र देवता व उनके हाथ में कलश और जिन मूर्ति है, दूसरी दीवार के ऊपर एक जैनाचार्य की मूर्ति है, जिनके हाथ में मुंहपति व दूसरे हाथ में पुस्तक हैं, इनके सामने श्रावक, श्राविका बैठे हैं अर्थात् प्रवचन सुन रहे हैं। इसी प्रकार अन्य जैनाचार्य की मूर्ति भी हैं । Jain Education International 32 For Personal Date Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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