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________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 -प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख – संवत् 1021 का है। इस जिनालय को श्री खीमसिंह शाह द्वारा वि.सं. 86 में बनवाने व प्रतिमा प्रतिष्ठा आचार्य श्री जयनन्दसूरिजी द्वारा कराने का उल्लेख है। इसकी प्राचीनता का उल्लेख निम्न ग्रन्थों में मिलता है - मंदिर में स्थापित प्रतिमा पर संवत् 861 का लेख होने का उल्लेख । 2. श्री जगवल्लभविजयजी द्वारा रचित श्री 108 पार्श्वनाथ तीर्थ दर्शन भाग 1 व 2 3. आचार्य श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा लिखित विविध तीर्थ कल्प श्री रत्न मंदिरगणि द्वारा लिखित उपदेश तरंगिणी, सुक्रतसामर ग्रन्थ । 5. संवत् 1466 में श्री सुन्दरसूरि द्वारा लिखित गुर्णावली ग्रन्थ। संवत् 1466 चैत्र शुक्ला का बाहरी सभामण्डप के मंदिर में प्रवेश करते समय बाईं ओर के स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख- इस प्रकार है – संवत् 1466 , वर्षे चैत्र सुदि 13 सुविहित शिरोरत्न शेखर श्री रत्नशेखर सूरि पट्टा बोधि पूर्णचन्द श्री पूर्णचन्द सूरि गुरुकृपा कमल इसा श्री हेम सूरय बाई ओर आलिये में: श्री संवत् 1334 वर्षे वैशाख सुदि 11 शुक श्री आंचलगच्छ प्रागवाट जातिय मई साजण मंइ तेजा- - - सा. काउणेन निज मांत कपूर देवी श्रेयोर्थ रचनक श्री शांतिनाथ बिम्ब कारापित है। सातारे महं मण्डिलक महं माला मह देवीसिंह मह पुत्र हटीसिंह संवत् 1506 माघ सुदि शुक्र. प्राग्वाट वंशे सा. केवट भा. भानु उधरसेन भार्या सोहिणी पुत्र आल्हा, खीमा, भीमा, साहितेन श्री अचल गच्छेना श्री जय केसरी सूरि सदुपदेशन वासु पूज्य वि. कारितं प्र. श्री संघेन। ____ संवत् 1655 में प्रेमविजयजी कुल 365 श्री पार्श्वकृत जिन नाममाला, संवत् 1655 में श्री कल्याणविजयजी गणि के शिष्य द्वारा रचित द्वारा भटेवा पार्श्वनाथ स्तवन, संवत् 1667 में श्री शांतिकुशले द्वारा रचित गणि पार्श्वनाथ स्तवन, संवत् 1721 में श्री मेघ विजय जी द्वारा रचित पार्श्वनाथ नागमाला, 1746 का स्तवन व संवत् 1881 का उत्तमविजय का स्तवन, संवत् 1926 का बावन जिनालय के एक कोरनी पर - Jain Educat International (137 For Persona le Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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