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________________ 2. 3. 4. मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 अलग-अलग सूत्रों में आवश्यक ( 22000 श्लोक ) दशवैकालिक, जीवामिगम, प्रज्ञापना नंदी ( 2336 श्लोक) और अनुयोग द्वार ( 84000 श्लोक) में संस्कृत टीकाओं की रचना की। इन्होंने जैन शास्त्र की नहीं वरन् बौद्ध दर्शन पर भी टीकाऍ लिखी। इनकी प्रमुख रचना शास्त्रवार्ता समुच्चय, योगदृष्टि समुच्चय, विंशतिविंशका, दंसण सुद्धि (दर्शन शुद्धि), सावंग धम्म प्रकरण (श्रावक धर्म), सावंग धम्म समास (श्रावक धर्म समास ) अनेकान्त जय पताका की रचना की। इसके अतिरिक्त समराइच्चकहा प्राकृत रचना है। इन्होंने 1444 ग्रन्थों की रचना की । श्री सिद्धसेनसूरि - पाँचवी शताब्दी के महान साहित्यकार, प्रवचनकार, चमत्कारी थे। इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ। जैन दर्शन से प्रभावित होकर जैन धर्म में दीक्षित हुए, इनके पास कई प्रकार की विद्या थी, यहाँ तक सरसों के दानों के माध्यम से सेना पैदा करना तथा किसी भी धातु को स्वर्ण में परिवर्तन की विद्या थी। इनकी प्रमुख संरचना बत्तीस दात्रिशिकाओं है। इनकी "कल्याण मंदिर स्त्रोत" नामक पद्य की रचना भी है जिसमें श्री पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति है। आचार्य वीरसेन - ये नवमीं शताब्दी के दिगम्बर विद्वान् टीकाकार आचार्य थे। ये चन्द्रसेन आर्यनन्दी के शिष्य थे। ये भी चित्तौड़ के रहने वाले थे। इन्होंने एकल सिद्धान्तों का अध्ययन किया और साहित्य रचना का कार्य किया। उन्हें सिद्धान्त, ज्योतिष, व्याकरण, न्याय व प्रमाण शास्त्र का गहन ज्ञान था । इनकी प्रमुख रचना धवला व जय धवला है। जिन वल्लभसूरि- ये चैत्यवासी परम्परा के आचार्य थे । इस समय में शिथिलाचार काफी बढ़ गया, इसलिए इन्होंने श्री अभयदेव सूरि से दीक्षित हुए पुनः और शिथिलाचार का विरोध किया। कई शहरों में इस परम्परा के मठ थे और चित्तौड़ में भी मठ था। जिनेश्वरसूरि इस शाखा के अध्यक्ष थे। इन्हीं से दीक्षा ग्रहण कर उनसे व्याकरण, काव्य, न्याय, दर्शन आदि में प्रशिक्षित हुए। इनकी प्रमुख रचना श्रृंगार शतक, चित्रकाव्य, प्रश्नोत्तर शतक, प्रश्नपष्टि शतक, पिण्डविशुद्धि, धर्म शिक्षा आदि जिन स्त्रोत हैं। उस समय यतिगणों का प्रभुत्व Jain Education International For Person6& Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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