SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 कुमारपाल के बनवाने का उल्लेख है। भारतीय पुरातत्व के महान् विद्वान् जेम्स फर्ग्युसन ने अपने ग्रन्थ में लिखा है - श्री अल्लट के स्तम्भ के नाम से प्रसिद्ध कीर्ति स्तम्भ अपनी शैली का अद्वितीय उदाहरण है, एक अन्य उल्लेख के अनुसार इसका निर्माण महाराणा अल्लट के समय में चित्तौड़ की सभा में राजगच्छ के आचार्य प्रद्युम्मनसूरि ने दिगम्बर आचार्य को हरा शिष्य बनाया, इसकी स्मृति में यह जैन-स्तम्भ बनाया, जिसका जिर्णोद्धार कुमारपाल ने कराया। श्री ई.पी. हावेल ने भी अपने ग्रन्थ में इस स्तम्भ को 14वी. शताब्दी का माना है। इसी प्रकार श्री पारसी ब्राउन ने अपने ग्रन्थ में इस स्तम्भ को 14वीं शताब्दी माना है तथा श्री आनंद के कुमार स्वामी व उदयपुर के इतिहासकार श्री गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने चौदहवीं शताब्दी माना है। इस प्रकार श्री वासुदेव अग्रवाल, श्री ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी, माधुरी देसाई, डॉ. उमाकान्त प्रेमचंद शाह, भारत सरकार के टूरिज्म विभाग, श्री सत्यप्रकाश (पुरातत्व विभाग) श्री विजयशंकर श्री वास्तव, श्री जी.एस. आचार्य ने 'राजस्थान परिचय' में श्री कैलाशचन्द्र जैन, श्री अगरचंद नाहटा, मुनि श्री कांतिसागर जी म. आदि की मान्यतानुसार इसका निर्माण काल 12वी. शताब्दी से 15 वी. शताब्दी बताया है तथा बाबू कान्ता प्रसाद जी के अनुसार कीर्तिस्तम्भ को सन् 952 में बघेरवाल जाति व्दारा बनवाया था जिसका लेख कर्नल टॉड को मिला था। इसी प्रकार मुनि ज्ञान विजय जी ने राजा अल्लट द्वारा संवत् 895 में कराया। किसी भी वस्तु का निर्माण काल की प्रमाणिकता का आधार शिलालेख व अभिलेख पर आधारित होता है, इसी आधार पर इसका निर्माण काल 9वीं शताब्दी माना गया इसी सन्दर्भ में जैनाचार्य का वर्णन करे तो भी देवगुप्त सूरि जी विहार करते हुए इस क्षेत्र में संवत् 79 में आये थे तथा संवत् 215 में यज्ञदेव सूरि आये थे। 1. श्री हरिभद्र सूरि - इनका जन्म चित्तौड़ में ही राजपुरोहित परिवार के ब्राह्मण कुल में हुआ। ये प्रखण्ड विद्वान् थे । ये जैन धर्म के विरूद्ध थे लेकिन जैन धर्म का प्रभाव ऐसा पड़ा कि वे जैन धर्म में दीक्षिात हुए और जैन साहित्य की सेवा की। इनके दीक्षित गुरू श्री जिनभद्र सूरि रहे। इनका कार्यकाल 6ठीं शताब्दी माना जाता है। ये प्रमाण शास्त्र के ज्ञाता थे। इन्होने अपने शिष्य हंस व परमहंस को प्रमाण शास्त्र में प्रशिक्षित किया। वे आगम क्षेत्र में प्रमुख टीकाकार थे। इन्होनें Jain Education International For Personif & P5 atese Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy