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________________ 5 मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 महाभारत काल से गुप्तकाल पर्यन्त मध्यमिका के नाम से प्रसिद्ध रही है। प्राकृत भाषा में इसको मझमिका कहा गया है इस अवधि में नगरी में सभी जातियां जैसे जैन, बौद्ध, ब्राह्मण आदि रहती थी और सभी की संस्कृति पल्लवित थी । मेवाड़ का नाम स्कन्द पुराण में भी उल्लेख है। युग पुराण में मेवाड़ की सभ्यता की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। जिसका उल्लेख गम्भीरी नदी व आहाड़ के पास से प्राप्त पाषाण से, इसवाल क्षेत्र को लोहा उत्पादन केन्द्र माना है। चित्तौड़ मेवाड़ का प्रमुख क्षेत्र रहा है। चित्तौड़ के निर्माण काल अनुश्रुति के अनुसार भीम (पाण्डव) कुकड़ेश्वर ने कराया है। जैन धर्म के अनुसार महाराजा सम्प्रति द्वारा हुआ है। सिद्धसेन दिवाकर की दीक्षा नगरी के बाहर एक विशाल मंदिर में हुई। इसकी शिला ई. पू. के दूसरी शताब्दी की है जो ब्राहमी लिपि में है (शिलालेख उदयपुर के संग्रहालय में देखा जा सकता है) और इसी शिला पर बैठकर श्री सूरिजी ने अध्ययन किया तथा वर्तमान में इस स्थान को नारायण - वाटिका कहा गया है। बौद्ध के वैसंतर जातक में मध्यमिका के शिवि राजा संजय के द्वारा अपने दानपत्र वैसंतर के मंत्रियों व प्रजा को एक पहाड़ पर रहने का उल्लेख आया है। इस पहाड़ी को बाद में बीका की पहाड़ी कहा जाता रहा है। वैदिक धर्म के अनुसार इसे महाभारत कालीन बताया है। यह संस्कृति ईसा पूर्व 200 वर्ष तक जीवित थी, बाद में शनै: शनै: इसका ह्रास हुआ। मझमिका ध्वस्त होने से पूर्व ही चित्तौड़ दुर्ग की स्थापना हो चुकी थी। चित्तौड़ दुर्ग का निर्माण चित्रागंन मौर्य द्वारा चौथी शताब्दी में कराया जाने का उल्लेख है। उक्त प्रकार से यह स्पष्ट होता है कि यह दुर्ग चौथी शताब्दी में निर्मित है। जैन धर्म के आधार पर भी प्रमाणिकता निम्न प्रकार है। जैन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण करवाने के बारे में विभिन्न विद्वानों के मतभेद रहे हैं। भारतीय पुरातत्व के जनरल मे. ए. कर्निघम ने लिखा है कि यह जैन स्तम्भ जिसका आकार 75.6' ऊँचा व 30 फीट घेरा व 15' जमीन से ऊपर है, तथा इसके पास एक खण्डहर शिलालेख प्राप्त हुआ जिस पर लेख था - "संवत् 952 वैशाख 30 गुरुवार इसके आधार पर 10वी. शताब्दी का है, इसके आगे यह भी लिखा संभवतया से 1100 का अनुमान है। कई अभिलेखों के आधार पर स्तम्भ का निर्माण बघेरवाल महाजन जीजा या जीजक द्वारा कराया जाने का उल्लेख है। यहाँ तक कि एक अभिलेख में राजा Jain Education International For Personal 84 4 riva Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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