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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
बाहर बरामदा के बाई ओर:
श्री चारभुजा की देवरी बनी है जिसमें श्याम पाषाण की सुन्दर प्रतिमा विराजित है। पछुवाई के स्थान पर कांच की जड़ाई है। मंदिर के पास कुआ (कुई) है जिसके दरवाजे को बंद कर दिया है। प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार गुम्बज के नीचे सभा मण्डप के जमीन के नीचे छतरी बनी हुई है।
संभवतया साधना करने के लिये प्रयुक्त होती हो, ऐसा बताया गया है। इसके अतिरिक्त एक छोटे कमरे के भीतर एक तलघर है जिसमें एक तहखाना (गुफा) है जो करीब आधा किलोमीटर दूर कृषिहर भूमि पर बनी हुई छतरी तक निकलती है, ऐसा बताया गया है। मंदिर के पास मंदिर का उपाश्रय है। मंदिर की 25 बीघा भूमि है, जो वर्तमान में समाज के सदस्य व अन्यों के अधिकार में है। इस पर समाज को सोचना चाहिये।
ग्राम के बीच एक प्राचीन बावड़ी भी है जो पूर्व में पानी से लबालब भरी रहती थी, इससे सारा ग्राम पीने का पानी के लिए प्रयोग आता था तथा सिंचाई के लिये काम में आता था। वर्तमान में उसमें पानी नहीं है। इस बावड़ी की दीवारों पर प्राचीन कलात्मक मूर्तियें उत्कीर्ण हैं।
वार्षिकध्वजावैशाख शुक्ला 3 को चढ़ाई जाती है। समाज की ओर से इसकी देखरेखा श्रीपारसमलजी सांखलाद्वारा की जाती है। सम्पर्क सूत्र: 01476-288202, 288364 मोबाइल: 98283 43426
यह जगत प्रतिक्षण बदलता है। इसमें यदि अभिप्राय रखें तो
यह हमारी ही भूल है।
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