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वि.सं. 1335 वैशाख सुदि 5 गुरूवार का लेख श्याम पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर के द्वार के छबड़े का है जो उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है। इस लेख में भर्तपरीय गच्छ के जैनाचार्य के उपदेश से राजा तेजसिंह की पत्नी जयतल्ल देवी ने श्याम पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर बनवाया, ऐसा उल्लेख है लेकिन वर्तमान में विद्यमान नहीं है ।
एक लेख चित्तौड़गढ़ से प्राप्त हुआ था, वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। उसकी एक प्रति अहमदाबाद के भारतीय मंदिर में संग्रहित है। लेख में 78 श्लोक है, इसमें महाराणा भोज व उसके वशंज का वर्णन है । इसी वंश में नरवर्मा का वर्णन है जिसका अधिकार चित्तौड़ पर प्रशस्ति के अनुसार महावीर भगवान के मंदिर का निर्माण व श्रेष्ठिवर्य के नाम का उल्लेख है तथा नरवर्मा ने भी जिनालय के लिए दो पारूथ मुद्रा देने का वर्णन है। महाराणा समरसिंह के समय में संवत् 1353 के फाल्गुन वदि 5 को चित्तौड़ के चौरासी मोहल्ला में 11 जैन मंदिरों की स्थापना की। शोध का विषय है ।
इसी प्रकार संवत् 1506 का एक शिलालेख है जिसके महाराणा लाखा, मोकल, कुम्भा का वर्णन है तथा वेला के पिता कोला ने मंदिर की प्रतिष्ठा जिनसागर सूरि के शिष्य जिनसमुद्र सूरि से कराने का उल्लेख है।
किले पर निम्न मंदिर स्थापित थे :
संवत् 16 वीं शताब्दी तक किले पर तपा खरतर, आचल, चित्रवाल पूर्णिमा मलधार गच्छ के 34 मंदिर स्थापित थे ।
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श्री श्रेयांसनाथ भगवान का मंदिर
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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
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श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर - श्री ईश्वर श्रेष्ठी द्वारा निर्मित
श्री सोम चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर
श्री चौमुख चन्द्रप्रभ भगवान का मंदिर
श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर
श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर
श्री सुमतिनाथ भगवान का मंदिर
60 सीढ़ियों युक्त निर्मित चित्रकूटीय महावीर भगवान के मंदिर में दो मंदिर श्री कुमारपाल व क्षेत्रपाल के पुत्र ने बनाया ।
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