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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
सभामण्डपसे बाहर निकलते समय दाई ओर : 1. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की श्वेत
पाषाण की 11" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1825 आसोज सुदि 13
रवीवार का लेख है। सभामण्डपसे बाहर निकलते समय बाई ओर: 2. श्री जिनेश्वर भगवान की श्वेत पाषाण की 11' ऊंची प्रतिमा है। इस पर
अस्पष्ट लेख है। इसको शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा कहा जाता है। मंदिर में प्रवेश करते समय बाई ओर (स्वतन्त्र मंदिर): सिद्धचक्र पट्ट बना हुआ है । इसके दोनों ओर की दीवारों पर आलियों में :
चाँदी का श्री सिद्धचक्र यंत्र, कांच की आलमारी में बंद है। चाँदी का श्री बीस स्थानक यंत्र, कांच की आलमारी में बंद है। परिक्रमा कक्ष में तीनों ओर चौबीस तीर्थंकर के पट्ट बने हुए हैं एवं तीनों ओर आलिओं में चतुर्विशंति श्वेत पाषाण की कांच की आलामारी में लगे हुए हैं। मंदिर के बाहर के बरामदे में दोनों ओर दीवार पर शत्रुजय एवं सम्मेत
शिखर के पट्ट बने हुए हैं। मुख्य मंदिर में प्रवेश करते समय बाई ओर : (स्वतंत्र मंदिर) एक देवरी में :
श्री गौतम स्वामी की चरण पादुकाएं 15"X13" के श्वेत पाषाण का पट्ट पर स्थापित है। इस पर संवत् 1905 माध शु. 5 का लेख है। इसी पट्ट पर आगे की ओर आचार्य नयरत्नसूरि की पादुका बनी हुयी है और इन्हीं के
द्वारा प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हुआ है। पद्मावती देवी का मंदिर (स्वतंत्र मंदिर):
इससे पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 21" ऊंची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1900 ज्येष्ठ सुदि 11 का लेख है। इस पर सुन्दर परिकर बना हुआ
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