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________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्रीपाश्नाथ जैन श्वेताम्बरमन्दिर श्री पाश्वनाथ भगवान का मंदिर, मागरोल यह शिखरबंद मंदिर चित्तौड़गढ़ से 25 किलोमीटर दूर ग्राम के मध्य स्थित है। बताया जाता है कि यह मंदिर 500 वर्ष प्राचीन है, समयकाल के आधार पर क्षतिग्रस्त हो जाने से जिर्णोद्धार होता रहा, जानकार सूत्रों से प्रथम जिर्णोद्धार संवत् 1800 के लगभग, द्वितीय 1986 में व अन्त में 2052 में हुआ।यह मंदिर सुराणा परिवार द्वारा निर्मित है करीब 100 वर्ष पूर्व समाज को सुपुर्द किया। यहां तृतीय श्रेणीका ठिकानारहाहै।यहां के शासकराणावत वंशके थे। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएं स्थापित है: 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1549 वैशाख सुदि प्रतिपदा का लेख है। श्री वासुपूज्य भगवान की (मूलनायक के दाएं) श्वेत पाषाण की 11' ऊँची प्रतिमा है। 3. श्री पद्मप्रभ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 12" ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 1826 का लेख है। उत्थापित धातु की प्रतिमाएंएवं यंत्रः श्री शांतिनाथ भगवान की 8' ऊँची पंचतीर्थी प्रतिमा है। इस पर संवत् 2045 का लेख है। For Pos183)vate Use Only Education International www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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