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________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 करना चाहते थे । हरिभद्र जी के न चाहते हुए उनकी हठ से विवश होकर स्वीकृति प्रदान की और वे बौद्ध के मठ में भिक्षु बन कर प्रवेश कर गये । एक दिन वास्तविकता का ज्ञान होने पर वे भागे लेकिन अन्त में (कहानी लम्बी होने से नहीं लिखी जा रही है) अपने - अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। इस पर क्रोधवश हरिभद्रसूरि ने बदला लेने का प्रण कर लिया। ऐसी परिस्थिति विद्यादाता गुरू ने जैन दर्शन का बोध कराया और बदले में कुछ प्रतिशत ही सफलता प्राप्त कर छोड़ दिया। लेकिन उनके दोनों शिष्यों के अतिरिक्त कोई और शिष्य नहीं था इसी विचारों में तल्लीन रहने लगे। ऐसे समय अम्बिका देवी ने भी हरिभद्र सूरि को कहा कि गुरूकुल वृद्धि का पुण्य तुम्हारे भाग्य में नहीं है, लेकिन सैकड़ों शास्त्र ही तुम्हारे शिष्य बनकर तुम्हें याद करेगा। इस प्रकार उन्होंने 1444 ग्रन्थों की रचना की और यह रचना ही इनके शिष्य माने जा सकते हैं। श्री जिनभद्र - इनका जन्म वीर सं. 1011, दीक्षा सं. 1025 में युग प्रधान पद सं. 1055 में व सं. 1115 में स्वर्गवास हुआ। इन्होंने विशेषाश्यक भाग्य टीका अपूर्ण गाथा 4500, जीतकल्प, सभाष्य विशेषण ग्रन्थ 400, वृहदसंग्रहणी, बृहत क्षेत्रसमास, ध्यान शतक निशीथ भाग्य आदि ग्रन्थों का निर्माण किया। श्री वीरभद्र - ये आठवीं शताब्दी के आचार्य थे। इनके उपदेश से जालोर में भगवान ऋषभदेव का विशाल, मनोहर शिखरबंद मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य उद्योतन सूरि ने की। ये आचार्य तत्वाचार्य के शिष्य थे। उद्योतन सूरि - आचार्य श्री बटेश्वरसूरि श्रमा श्रमण ने इनको चन्द्रकुलीन आचार्य बताया है। इन्होंने "कुवलयमाला' की रचना की यह पहला ग्रन्थ है जिसे जैन अजैन कवियों को स्मरण किया है। इनका नाम भावमयी भाषा में वर्णन किया गया है। जिन वल्लभसूरि - ये चैत्यपरिपाटी के आचार्य थे तथा श्री जिनदत्तसूरि (प्रथम दादा) के गुरू थे। इनकी विस्तृत जानकारी ‘मेवाड़-चित्तौड़ व जैन धर्म' में है। श्री सिद्धसेन दिवाकर - यह महान् विद्वान् थे, इन्होंने चित्तौड़ में रहकर 10. Jain Education International For Perfon 38 niyale Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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