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________________ 2. 1. प्रतापगढ़ बसाया जिसको राजधानी बनाई । इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित हैं : श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक ) श्वेत पाषाण की 15" ऊंची प्राचीन प्रतिमा है । इस पर कोई लेख नहीं है। सुंदर धातु का परिकर बना हुआ है। 3. Education International श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, देवगढ़ यह शिखर बंद मंदिर प्रतापगढ़ से धरियावद मार्ग पर 15 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर श्री जीवराज जी हुमड़ ने संवत् 1774 में बनवाया। अतः करीब 300 वर्ष प्राचीन है । यह कस्बा पूर्व में इस राज्य की राजधानी रही है जिसका नाम साहित्य, शिलालेखों में देवलिया, देवदुर्ग, देवल, | देवगिरि और देवगढ़ मिलता है । प्रतापगढ़ स्थिर होने पर इस राज्य को देवलिया प्रतापगढ़ कहते हैं। इसके चारों ओर पहाड़ियां होने से यह स्थान अधिक सुरक्षित होने से इस स्थान को राजधानी के लिये चयन किया यहां पर पुराने राजमहल है। पूर्व में यह यहां के राजा देवलिया राजा कहलाता था । इसके बाद महारावत प्रतापसिंह ने सन् 1765 में चन्द्रप्रभ भगवान की श्री (मूलनायक के दाएं ) श्वेत पाषाण की 12" ऊंची प्रतिमा है। इस पर सं. 1825 माघ सुदि तेरस का लेख है । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 श्री जिनेश्वर भगवान की धातु की 6" ऊंची प्रतिमा है । STREA For Personal & fivate use only 227 CORNEEL www.jewelry.org
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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