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________________ मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 लेखक की कलम से भारत की संस्कृति विश्वविख्यात है, भारत में जैन संस्कृति भी बहुत प्राचीन है, संस्कृति के साथ जैन धर्म आदिकालीन है। जहाँ लोग श्रद्धा से ओत-प्रोत हैं, श्रद्धा भारत की आत्मा है। इसी कारण भारत में स्थान-स्थान पर मंदिरों का निर्माण हुआ है। अनेक ऐसे मंदिर हैं जो भूमिगत या खण्डहर हो गये हैं लेकिन उस पर अंकित शिल्प व शिलालेख आज भी अतीत की गाथा बतलाते हैं। भगवान श्री आदिनाथ ने समाजीकरण, भगवान महावीर की अंहिसा, राम की मर्यादा, बुद्ध का मध्यम मार्ग व कृष्ण का कर्मयोग राष्ट्र की आधार शिला के रूप में समाहित की । जैन धर्म का मुख्य प्रभाव स्थल भारत ही है इसी कारण भारत पवित्रतम्य भूमि कहलाई है। इसी भूमि पर सभी तीर्थकर, चक्रवती, बलदेव, वासुदेव व प्रतिवासुदेव उत्पन्न हुए, जिनके प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए तीर्थ, मंदिर व शास्त्रों के निर्माण हुए। मेवाड़ की यह भूमि पूजनीय व पावन है, जहाँ पर जैन धर्म के अतिरिक्त भी मीरा का ध्यान, महाराणा प्रताप की शौर्यता, पद्मनि का जौहर, श्री हरिभद्रसूरि जी के शास्त्र व टीकाएं कर्माशाह दोशी की कर्तव्य परायणता देखने को मिलती है। मेवाड़ के मंदिरों की वास्तुकला जो दिखाई देती है उससे उसकी प्राचीनता की पहचान होती है। जिससे प्राचीनता को सुरक्षित रख सकें। पूर्व में प्रकाशित पुस्तकें उदयपुर के जैन श्वेताम्बर मंदिर, मेवाड़ का प्राचीन तीर्थ देलवाड़ा जैन मंदिर, मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग-1 में उदयपुर, राजसमन्द जिले के सभी मंदिरों को इतिहास के पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है, तथा इन प्रकाशित पुस्तकों में अपने विचार व्यक्त किये हैं उनको स्थाई रखते हुए अब इन विचारों को भी समावेश करता हूँ। परमात्मा का नाम, परमात्मा की मूर्ति व परमात्मा के मंदिर ये सब परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करने के माध्यम हैं। यह सम्बन्ध अन्तर प्रीति से होता है। यदि यह सम्बन्ध हो जाता है तो दुनिया के सारे सम्बन्ध नीरस हो जाते हैं और समग्र जीव-सृष्टि से मैत्री भाव का सम्बन्ध स्थापित होगा। सभी चिन्ताएं समाप्त होगी, सारे भय मिट जाएंगे, मन प्रफुल्लित होगा, प्रसन्नता कभी नष्ट नहीं होगी । लेकिन कभी-कभी मुनष्य यह सोचता है कि वह प्रतिदिन मंदिर जाता है इसलिए ईश्वर से परिचित हो गया है मंदिर तो केवल परमात्मा की दृष्टि में प्रवेश करने का मात्र द्वार है इसलिए वहाँ भक्ति में होना ही परमात्मा की दृष्टि में प्रवेश हो सकते हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक मेवाड़ के जैन तीर्थ (चित्तौड़, प्रतापगढ़ जिलों) के सभी मंदिरों का इतिहास, प्रतिमा का आकार - प्रकार व लेखों का संकलन कर प्रस्तुत किया जा रहा है। मेरी यह भावना है कि मेवाड़ के जैन धर्म की प्राचीनता जन-जन तक पहुँचे व शोधकर्ता इस कार्य को आगे बढ़ाए। अब मेवाड़ के जिला भीलवाड़ा के मंदिर का For Personal & Private Use Only VILL Jain Education International www.jalnelibrary.org.
SR No.004220
Book TitleMewar ke Jain Tirth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Bolya
PublisherAthwa Lines Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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