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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
शास्त्रोक्त जैन प्रतीक चिन्ह
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परस्परोग्रहो जीवानाम्
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अनेको बार जैन समाज /संस्थाओं द्वारा जिस जैन प्रतीक चिन्ह को अंकित / प्रकाशित किया जाता है, वह शास्त्रीय व्याख्या के अनुरूप नहीं होता है । यह देखकर अतीव मानसिक पीड़ा की अनुभूति होती है । इसका संभावित व मुख्य कारण है शास्त्रोक्त सही अनुपात से अनभिज्ञता जो कि जैन तीर्थंकर व केवली भगवंतों की वाणी पर आधारित है। वर्तमान में प्रचलित जैन प्रतीक चिन्ह सम्पूर्ण जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों की सर्वमान्य मान्यताओं पर आधारित विश्वलोक का आकार है ।
भगवान महावीर ने लोकाकाश का आकार यह बताया है :
1. आकार की व्याख्या - ऊपर से छोटा, नीचे से क्रमशः फैलता हुआ फिर चौथाई भाग के बाद मध्य तक (ऊपरी मध्य में) वापस सिकुड़ता हुआ तथा मध्य भाग से निरंतर फैलता हुआ है । उदाहरण के लिए नर्तकी अपने कमर पर हाथ रखे पावों को पूरी तरह फैला कर खड़ी हो जैसा । दूसरा उदाहरण त्रिशिराव सम्पुताकार यानि तीन सकोरों (कुल्हड़ ) से बनी आकृति जिसमें नीचे एक सको उल्टा रखा हो, उस पर दूसरा सकोरा सीधा रख कर उस पर तीसरा सकोरा उल्टा रख दें ।
2. माप का अनुपात - इसे दो भागों में बाँटते हैं एक उर्ध्व लोकाकाश जो सात रज्जु ऊंचा व दूसरा अधोलोकाकाश वो भी सात रज्जु ऊँचा है । ऊर्ध्वाकाश ऊपर चौड़ाई में एक रज्जु, निरन्तर बढ़ते हुए मध्य में पांच रज्जु फिर निरन्तर वापस घटते हुए नीचे एक रज्जू हो जाता है । तत्पश्चात अधोआकाश एक रज्जु से निरन्तर बढ़ते हुए नीचे सात रज्जु हो जाता है । ऊर्ध्वाकाश को स्वर्ग व अधोआकाश को नरक की संज्ञा भी दे सकते हैं । इन दोनों की गहराई भी सात रज्जु मानी गई है जिसका घन - फल 343 रज्जु भगवान ने बताया है । आयतन ऊर्ध्वलोक का घनफल 147 व अधोलोक का 196 कुल 343 घन रज्जु । आज की वैज्ञानिक गणना के आधार पर ब्रह्माण्ड के आयतन से जैन प्रतीक जो लोकाकाश की आकृति का दिग्दर्शक है, का आयतन काफी साम्य रखता है । 3. प्रतीक का विवरण - लोकाकाश के ऊपर चन्द्राकार आकृति है वह सिद्ध शिला दर्शाती है, जहाँ मुक्त आत्माओं का वास है। उसके नीचे तीन बिन्दु ज्ञान दर्शन और चारित्र का निर्देशन करते हैं । स्वस्तिक आत्माओं की निरन्तर प्रगति व शुभत्व का सूचक है ।
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4. पृथ्वी की स्थिति - हमारी पृथ्वी तिर्यक लोक में स्थित है जो कि पूरे लोकाकाश के मध्य में स्थित है (अर्थात ऊर्ध्वलोकाकाश के नीचे व अधोलोकाकाश के ऊपर) । इस क्षेत्र को समय क्षेत्र कहा जाता है जिसमें चाँद, सूर्य व सितारों द्वारा समय का निर्धारण होता है ।
आप श्रीमन्त से हमारा आग्रह भरा निवेदन है कि हमारे जैन प्रतीक को सही रूप व अनुपात में प्रस्तुत करें, प्रयोग में लायें ।
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