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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
1190 संवत् 1946 वर्षे ज्येष्ठ शुद 3 बुधवासरे उपकेश वंशें नाहट शाखायां - मातण (1) पुत्र सा. कर्णवटी सा. भीम वीसल - - पौत्र प्रमुख गौत्रदि परिवार साईतेन श्री करहटेक कासपिता। प्रतिष्ठिता श्री खरतगच्छे श्री सूरिभाःनु क्रो श्री मंजिलनसागरसूरिभिः शिवमस्तुः --- ____ मंदिर कितना प्राचीन है, शोध का विषय है लेकिन वर्णित संवत् 1039 में खण्डेरगच्छ के आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी के सदुपदेश से जीर्णोद्धार होकर नूतन जिनालय बनाया और प्रतिष्ठा कराई जिसका उल्लेख बावन जिनालय के एक पाट पर अंकित है
संवत् 1039 वर्षे श्री संडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि संतान श्री श्यामाचार्य - - प्र. भ. श्री यशोभद्रसूरिः श्री पार्श्वनाथ बिंब प्रतिष्ठित - - पूर्णचन्द्रेण कारितं
इसी प्रकार संवत् 1303, 1339 व 1494 का शिलालेख पर चेत्यगच्छ, धर्मधोषसूरि गच्छ, खण्डेरगच्छ, खरतरगच्छ आदि आचार्य के नामों का उल्लेख मिलता है। और अंतिम रूप से संवत् 2033 को जीर्णोद्धार कराया जिसका उल्लेख निम्न प्रकार से अधिकतर प्रतिमाओं पर है । यद्यपि लेख प्रतिमा के पीछे की ओर होने से सम्पूर्ण नहीं पढ़ा जा सका। वि. सं. 2033 माघशुक्ला 13 को तपागच्छाधिपति श्री नेमीसूरीश्वर शिष्य श्री लावण्यसूरिजी शिष्य श्री दक्षसूरिजी, शिष्य सुशील सूरिजी, शिष्य वाचक श्री विनोद विजयजी की निश्रा में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है : ___श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक) श्याम पाषाण की 35" नाग के छत्र तक 41" व परिकर तक 57" ऊँची प्रतिमा है। इस पर अपठनीय लेख है। लेकिन संवत् 1659 (?) पढ़ने में आता है। यह प्रतिमा मनोहर, सुन्दर, मनमोहक, आकर्षक व चमत्कारिक है। इस प्रतिमा को उबसग्ग पार्श्वनाथ विघ्रहरण पार्श्वनाथ के नाम से भी पुकारा जाता है। उत्थापित चल प्रतिमाएँ व यंत्र (धातु की):
श्री अष्टमंगल यंत्र 6" ग 3.5" का है। जिन मंदिर के बाहर खेलामण्डप (सभामण्डप) में कोई प्रतिमा नहीं है।
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