________________
मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
श्रीवासुपूज्य स्वामी जी
3. श्री जिनकुशलसूरि की श्वेत पाषाण की 29'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं.
2029 का लेख है। बाहर बाई ओर आलिए में तृतीय मंजिल पर-(श्रीवासुपूज्य भगवान का मंदिर): 1. श्री वासुपूज्य भगवान की
(मूलनायक) श्वेत पाषाण की 19" ऊँची प्रतिमा है। इस पर
HAINA 2029 का लेख है। 2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान की
(मूलनायक के दाएं) श्वेत
पाषाण की 15" ऊँची प्रतिमा है। इस पर 2029 का लेख है। ___3. श्री पार्श्वनाथ भगवान की (मूलनायक के बाएं) श्वेत पाषाण की 15" ऊँची
प्रतिमा है। इस पर 2029 का लेख है। प्रथम मंजिल के बाई ओर - श्री नाकोड़ा भैरव का मंदिर स्थापित है। यहाँ पर श्री नाकोड़ा भैरव की पीत पाषाण की 31'' ऊँची प्रतिमा है। इस पर संवत् 2065 चैत्र शुक्ला 13 का लेख है। इसके पास ही श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ का भव्य मंदिर निर्माणाधीन है। वार्षिक ध्वजा माघ सुदि 13 को चढ़ाई जाती है। मंदिर का संचालन श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
इस ट्रस्ट के संस्थापक मुनि श्री जिन विजय जी है। सम्पर्क सूत्र : श्री भगवतीलालजी नाहटा,
___फोन 01472-246149, मो. 9414249118
उक्त प्रतिमाओं के आधार पर टिप्पणी निम्न प्रकार है: 1. श्रीहरिभद्र सूरि जन्म नाम-श्री हरिभद्र जन्म स्थान-चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) माता का नाम – गड्: गाण पिता का नाम – शंकर भट्ट उपनाम – "भव विरह" दीक्षा नाम-मुनि हरिभद्र (आचार्य हरिभद्र सूरि) कुल - अग्निहोत्री ब्राह्मण (पुरोहित परिवार)
Jain Education International
Use Only
www.jainelibrary.org
For Persopare
36