________________
मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
वेदी की दीवार के बीच में एक शिलालेख लगा हुआ है वह इस प्रकार है -
"श्री || 28 || श्री चित्रकुट स्था श्री बिंब प्रवेश प्रशस्ति। अजितवीर विभुं सुमति सदा भविक पद्य विकास दिवाकरणं प्रबल मोह विनाशक मर्हताम्
त्रितयमादिकर प्रणतो अस्मय हम एत्रासिम्ब त्रयमध्ये श्री मूलनायक महावीर बिम्बम् विक्रम संवत् 1555 श्री जिनदत्त प्रतिष्ठितम् । वाय पार्श्वस्थ सुमतिनाथ बिम्बम् 1198 वर्षे कनकसुंदर सूरि प्रतिष्ठितम् । दहिन पार्श्व स्थमाजितनाथ बिम्बतु 1110 वर्षे भट्टारक श्री गुणसुंदर सूरि प्रतिष्ठितम् वर्तने । बिम्ब त्रय स्थिरिकण विधिः । श्री विवेकसेन श्रीमदे पराधिपति भारत मार्धन्य छत्रपति महाराणा श्री 108 श्री फतेहसिंह जी विजयराजे श्री चित्रकूट नगरस्थ न्यायाधिकारी जिनयापालक महेता श्री जीवनसिंह जी तस्यादि मेदपाट शिल्पाकाराधिकारी जिन धर्म कर्मठ मुरडिया श्री हिरालाल जी तस्य पुत्र सहायेन ओसवंशे शाखायां चपलोत गौत्रे मात्राभ्याम नंदलाल चिमनलाल नाम्यो 1500 श्रावक हम सहायेन करापिते नविन जिन प्रासादे संवत् 1971 वर्षे माघशुक्ला त्रयादेशी शुक्रवासरे कृत । श्री जिन दायक जिनेश्वर राजे प्रणभ्यस्द्रत्या। श्री नित्य विनय सुगुरू स्मरणय विलेकितो लेखः । इति संवत् 1972 उदयपुर चर्तुमास निवासी श्री मत्यस्य पाट प्रमाण विजयगणि लिखित प्रशस्तिः
उदयपुर निवासी शाह मोतीलाल नंदलाल चिमनलाल ने इसको पूर्ण कराया। इस मंदिर की देखरेख श्रीसातबीसजैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट द्वाराकीजाती है। मंदिर की वार्षिकध्वजामाह सुदी 13 कोचढ़ाई जाती है।
संवत् की 12वीं शताब्दी के यतियों की प्रभुत्व था और राजाओं द्वारा उनको बहुत सम्मान दिया जाता था। इसका जिनवल्लभसूरि ने विरोध किया और उनके सदुपदेश से श्रेष्ठीगण ने संवत् 1167 में महावीर भगवान का मंदिर बनवाया जहां पर उन्होंने (जिनवल्लभसूरि) ने अष्टसप्तिका, संघ पट्टक, धर्म शिक्षा आदि ग्रन्थों की रचना की। संभवतया यही मंदिर रहा होगा।
For Person
Jain Education International
www.jainelibrary.org
private Use Only
(28)