________________
मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
सातबीस मंदिर व अन्य मंदिर के सम्बन्ध में उपलब्ध लेख
विक्रम की 5वीं शताब्दी से 16 वीं शताब्दी तक जैनी श्रेष्ठि का प्रभुत्व था, गौरवशाली इतिहास रहा है, अनेक मंदिर बनाए।महाराणा के प्रधान व मुख्य पदों पर जैन श्रेष्ठी थे।संवत् 1495 के लेख में 104 श्लोक हैं। इसमें सरस्वती, ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर
की स्तुति है तथा मेवाड़ के शासकों व मंदिर निर्माण कराने वाले साधुगणराजकी वंशावलीका वर्णन है।
यह मंदिर कहाँ व कौनसा है ? ज्ञात नहीं, 15वीं शताब्दी में महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में प्रधान रामदेव की ससुर वीसल ने यहाँ श्रेयासनाथ भगवान का मंदिर बनवाने का उल्लेख है । कहाँ है ? ज्ञात नहीं।
माण्डवगढ़ के महामंत्री पेथड़शाह द्वारा भी यहाँ मंदिर बनवाने का उल्लेख है। यहाँ पर जैन कीर्तिस्तम्भ स्थापित है जो अपनी वास्तुकला की दृष्टि से जैन इतिहास के गौरव गाथा की याद दिलाता है । यद्यपि इसके निर्माण काल के बारे में भिन्न-भिन्न विचार हैं जिसका वर्णन इसी पुस्तक में "मेवाड़ - चित्तौड़ व जैन धर्म' नामक शीर्षक में किया है।
चित्तौड़ के प्रधान श्री कर्माशाह दोशी ने शत्रुजय तीर्थ का 16वाँ उद्धार संवत् 1587 में करवाया था।
चित्तौड़ कला व सौन्दर्य की दृष्टि में एक अनुपम उदाहरण है। गौमुखी कुण्ड के यहाँ पर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर पाटबंद व शांतिनाथ भगवान का मंदिर होने का उल्लेख है। जिसमें से श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर संवत् 1100 में बनवाने का उल्लेख है तथा प्रत्यक्षदर्शी का कथन है कि सं. 1347 का शिलालेख था।
___ वि.सं. 1324 (1267 ई.) का गम्भीरी नदी के पुल का लेख है जिसमें चैत्र गच्छ के आचार्य रत्नप्रभ का लेख है जिसमें चैत्र गच्छ के आचार्य रत्न प्रभ सूरि के उपदेश से तेजसिंह के आदेश से राजपुत्र कांगा के पुत्र ने किसी भवन का निर्माण कराया था जो एक राजपूत था।
Janucation International
For Person
a l Use Only
www.jainelibrary.org