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कातन्त्रव्याकरणम् ३. निन्यतुः। नी + परोक्षा–अतुस्। ‘णी प्रापणे' (१६००) धातु से परोक्षासंज्ञक 'अतुस्' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्।
४. निन्युः। नी + परोक्षा-उस्। ‘णीञ् प्रापणे' (१६००) धातु से परोक्षासंज्ञक 'उस' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्।
५. दिग्यिरे। देङ् + परोक्षा-इरे। 'देङ् त्रैङ् पालने' (१।४६३) धातु से परोक्षासंज्ञक आत्मनेपद प्रथमपुरुष-बहुवचन इरे' प्रत्यय, “दिगि दयते: परोक्षायाम्' (३।३।४२) से 'देङ्' को 'दिगि' आदेश, द्वित्व, अभ्यासलोप तथा प्रकृत सूत्र से इकार को यकारादेश।
६.निन्यिरे। नी + परोक्षा-इरे। ‘णीज् प्रापणे' (१।६००) धातु से परोक्षाविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद-प्रथम पुरुष-बहुवचन 'इरे' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।। ५९७ ।
५९८. इणश्च [३४५८] [सूत्रार्थ] अगुण स्वरादि प्रत्यय के परे रहते 'इण्' धातु को यकारादेश होता है।। ५९८। [दु० वृ०]
इणो धातोरगुणे स्वरादौ यकारो भवति। यन्ति, यन्तु। चकारोऽनुक्तसमुच्चयार्थः, तेन इकोऽपि स्यात्-अधियन्ति, अधियन्तु ।। ५९८ ।
[दु० टी०]
इणश्च । अयमपीयादेशापवाद: । एकाक्षरार्थ आरम्भः। इणग्रहणम् इझे निवृत्त्यर्थम्अधीयते।। ५९८॥
[समीक्षा
'यन्ति, यन्तु, अधियन्ति, अधियन्तु' आदि शब्दरूपों के साधनार्थ इकार को यकारादेश की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति दोनों व्याकरणों में की गई है। पाणिनि का सूत्र है - "इणो यण्” (अ०६।४। ८१)। वृत्तिकार दुर्गसिंह की व्याख्या के अनुसार सूत्र में चकार का पाठ अनुक्तसमुच्चयार्थ है। अत: 'इक् स्मरणे' (२ । १२) से भी यह कार्य उपपन्न होता है, तदनुसार 'अधियन्ति, अधियन्तु' आदि प्रयोग भी सिद्ध होते हैं, परन्तु इङ् अध्ययने' (२। ५६) धातु का इसमें समावेश न होने से 'अधीयते' में यकारादेश प्रवृत्त नहीं होगा।
[विशेष वचन] १. चकारोऽनुक्तसमुच्चयार्थः (दु० वृ०)। २. इण्ग्रहणम् इङो निवृत्त्यर्थम् (दु० टी०)। [रूपसिद्धिः]
१. यन्ति। इण् + वर्तमाना-अन्ति। 'इण् गतौ' (२।१३) धातु से वर्तमानासंज्ञक प्रथमपुरुष-बहुवचन 'अन्ति' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से इकार को यकारादेश।