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से क्रियातिपत्तिसंज्ञक प० प०
सूत्र से ह् को घ्, द् को ध्,
वर्ण ।
[रूपसिद्धि]
१. अधोक्ष्यत् । अट् + दुह् + क्रियातिपत्ति-स्यत् । 'दुह प्रपूरणे' (२ । ६१) धातु
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कातन्त्रव्याकरणम्
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प्र० पु० ए० व० 'स्यत्' प्रत्यय, अडागम, प्रकृत घ् को क्, उपधागुण, स् को ष्, 'क-ष्' संयाग से क्ष्
प्र० पु०
२. अघोक्। अट् + दुह् + ह्यस्तनी - दि । 'दुह प्रपूरणे' (२ । ६१) से ह्यस्तनी - संज्ञक प०प० ए० व॰ 'दि' प्रत्यय, अडागम, ह् को घ्, द् को ध्, उपधागुण, घ् को क् तथा 'दि' प्रत्यय का लोप ।। ७३७ । ७३८. नहेर्धः [३ । ६ । ५८ ]
[ सूत्रार्थ ]
धुट् तथा विराम के परे रहते 'नह' धातु के हकार को धकारादेश होता है ।। ७३८।
[दु० वृ० ]
नहेर्हकारस्य धो भवति धुट्यन्ते च । नद्धा, नत्स्यति, अनानत्।। ७३८।
[दु० टी०]
नहे: । अयमपि ढस्यापवादः ।। ७३८ ।
t
[वि० प० ]
नहेः। अनानदिति पूर्ववच्चेक्रीवितलुगिति मतान्तरेणोदाहृतम् ।। ७३८ ।
[समीक्षा]
'नद्धम्, नद्धुम्, नद्धा, नत्स्यति, उपानत्' आदि शब्दों के सिद्ध्यर्थ 'नह' धातु के हकार को धकारादेश दोनों ही शाब्दिक आचार्यों ने किया है। पाणिनि का सूत्र है “नहो ध:' (अ० ८।२।३४ ) | धातुओं के निर्देश यत: इक्-अ- शितप्प्रत्ययान्त करने की आचार्यपरम्परा है, तदनुसार कातन्त्रकार ने इक्प्रत्ययान्त तथा पाणिनि ने अप्रत्ययान्त पाठ किया है।
[रूपसिद्धि]
१. नद्धा। नह् + ता। 'नह बन्धने' (३ । १२०) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' “दहिदिहिदुहिमिहिरिहिरुहिलिहिलुहिनहिवहेर्हात्” (३। ७।३०) से अनिट् प्रकृत सूत्र से ह को ध्, त् को ध् तथा "धुटां तृतीयश्चतुर्थेषु" (३।८।८) से पूर्ववर्ती ध् को द्।
प्रत्यय,
२ . नत्स्यति । नह् + स्यति । 'नह बन्धने' (३ । १२०) से भविष्यन्तीसंज्ञक 'स्यति' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से हकार को धकार तथा "अघोषेष्वशिटां प्रथमः " (३ । ८ । ९) से धकार को तकारादेश ।