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तृतीये आख्याताध्याये सप्तमः इडागमादिपादः
३९७ [वि० प०]
अनिट्०। अनात्मने इत्यादिः वृतादेरात्मनेपदिनोऽपि यजादेराकृतिगणत्वात् स्यसनोर्विषये उभयपदं ज्ञेयम् । आत्मनेपदस्याभावोऽनात्मनेपदम्, तत्स्थाद् इति । तेन विवृत्सितुम्, विवृत्सितव्यम् इत्यादावपि । 'वृतु, वृधु, शृधु, स्यन्दू कृपू' इति वृतादिः। कृपेरधिकार्थमाहश्वस्तन्यां च कृपेरिति। चकारात् स्ये सनि चेत्यर्थः। अनात्मनेपदस्थादित्येव च-वर्तिष्यते, विवर्तिष्यते इत्यादि। स्यन्दू-कृप्वोश्च ऊदनुबन्धत्वादात्मनेपदे विकल्प एव। स्यन्त्स्यते, स्यन्दिष्यते, सिस्यन्त्सते, सिस्यन्दिषते, कल्प्स्यते, कल्पिष्यते, चिक्लप्सते, चिकल्पिषते, कल्प्तासे, कल्पितासे।।७९५।
[समीक्षा
'दाता, दास्यति' आदि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों व्याकरणों में इडागम का प्रतिषेध किया गया है। पाणिनि का सूत्र है-“एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्' (अ० ७।२।१०)। उपदेश में कौन सी धातुएँ अनुदात्त हैं - इसके परिज्ञानार्थ पाणिनीय सम्प्रदाय में ११-१२ अनिट्कारिकाएँ पढ़ी जाती हैं। कातन्त्रकार ने सूत्रों में ही अनिट् धातुओं को दिखाया है। दो प्रकार की धातुएँ बताई गई हैं - स्वरान्त तथा व्यञ्जनान्त धातुओं में ह्रस्व अकारान्त धातुएँ उदात्त होती हैं। फलत: आकारान्त, इवान्त, उवर्णान्त, तथा ऋवर्णान्त धातुएँ अनुदात्त मानी जाती हैं, उनमें यहाँ इडागम का प्रतिषेध किया गया है। पाणिनि के अनुसार इन धातुओं का समावेश 'अनुदात्त' शब्द में हो जाता है, परन्तु कातन्त्रकार ने आकारान्त, इवर्णान्त, उकारान्त तथा ऋकारान्त धातुओं में इडागम के प्रतिषेधार्थ पृथक् सूत्र बनाए हैं।
[विशेष वचन १. वृतादेः स्यसनोर्विषये उभयपदम्, यजादेराकृतिगणत्वात् (दु० टी०;
वि० प०)। २. वृतादयः पञ्चैव, अन्ते वृत्करणात् (दु० टी०)। ३. अपिशब्दोऽत्र पादपूरणे (दु० टी०)। [रूपसिद्धि
१. दाता। दा+ता। 'डु दाञ् दाने' (२।८४) धातु से श्वस्तनीविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद-प्र० पु०- ए० व० 'ता' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से अनिट।
२. दास्यति। दा+स्यति। 'डु दाञ् दाने' (२।८४) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक ‘स्यति' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से इडागम का प्रतिषेधा।
३. दातव्यम्। दा+तव्य+सि। 'डु दाञ् दाने' (२।८४) धातु से “तव्यानीयौ” (४।२।९) सूत्र से 'तव्य' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से अनिट्, “धातुविभक्तिवर्जमर्थवल्लिङ्गम्" (२।१।१) से 'दातव्य' की लिङ्गसंज्ञा, प्रथमाविभक्ति-एकवचन में 'सि' प्रत्यय तथा “अकारादसम्बुद्धौ मुश्च'' (२।२।७) से मु-आगम-सिलोप।।७९५।