Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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५७०
कातन्त्रव्याकरणम्
- 04.
४७४
१०
७, १३२
३४९
१५३
८५, २०७
क्र०सं० शब्दरूपाणि २५५. ईर्त्यति २५६. ईशिषे २५७. उच्यते २५८. उच्यात् २५९. उत्कुटितव्यम् २६०. उत्कुटिता २६१. उत्कुटितुम् २६२. उत्कुटिष्यति २६३. उत्पुटितव्यम् २६४. उत्पुटिता २६५. उत्पुटितुम् २६६. उत्पुटिष्यति २६७. उदगुः २६८. उदपादि २६९. उद्विजिता २७०. उद्विजितुम् २७१. उद्विजिष्यते २७२. उपदाता २७३. उपदापयति २७४. उपदायो वर्तते २७५. उपदिदासते २७६. उपदिदीयाते २७७. उपदिदीयिरे २७८. उपदिदीये २७९. उवयिथ २८०. उवाय
पृ० सं० क्र०सं० शब्दरूपाणि ४१७ २८१. उवोष ३८१ २८२. उशन्ति १० २८३. उष्टः
०२८४. उष्यते १९४ २८५. ऊचतुः १९४ २८६. ऊयतुः १९४| २८७. ऋच्छति १९४/२८८. एता १९४/ २८९. एतायते १९४ २९०. एधि १९४/ २९१. ऐधत
| २९२. ऐधिष्ट ६०, २९१ २९३. ऐधिष्यत
३०६ २९४. ककुब्भासः १९५ २९५. कगयति
| २९६. कति
| २९७. करिष्यति ४२ २९८. करिष्यमाणः
२९९. करोति ३००. करोतु |३०१. कर्ता ३०२. कलिङ्गाः
३०३. कल्पः ५२ ३०४. कल्पयति
१३ ३०५. कल्प्ता १३ १३१| ३०६. कारणा ।
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