Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 641
________________ ८९ ४६ २६५ ३२१ ४५३ १७५ परिशिष्टम्-६ ६०३ क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ०सं० | क्र० सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं० ४४९.. निगरणम् १२० ४७४. निवृत्तिः १७२,१७३ ४५०. नित्यार्थं वचनम् ३८७/४७५. निशामनम्। २१,१८०, ४५१. नित्यार्थम् १७७,३८८ २३१,२३३ ४५२. नित्यत्वम् १४७६. निष्पत्तिः ४५३. नित्यविधिः २६०/४७७. नैमित्तिक: १५४ ४५४. नित्यार्थ एव पृथग्योगः १११/४७८. न्यायः २९५ ४५५. नित्यार्थम् ३५५, ४७९. न्यायसिद्धत्वात् ४५६. निदर्शनम् ४७,३३३ ४८०. पकारागमापवादः ४५७. निद्राक्षयः २५२, ४८१. पक्षद्वयम् ४५८. निन्दार्थे ३७६ ४८२. पक्षद्वयान्वयार्थः ३२० ४५९. निपात: ३३४ ४८३. पक्षान्तरम् २६०, ४६०. निपातनस्येष्टविषयत्वात् ३२९/ ४८४. पञ्चमी निपाता: ३३९ ४८५. पञ्जीपङ्क्तिः ९४ ४६२. निमित्तसप्तमी ४३ ४८६. पदं प्रधानमुच्यते ४५३ ४६३. निमित्ताभावे ४७७/४८७. परदर्शनम् १२६ ४६४. निमिषितेन ३१/४८८. परनिमित्तादेशः १९७,२११, निमेषणम् २२५/ २३९ ४६६. नियमप्रतिपत्त्यर्थम् १५५/४८९. परपक्ष: २४२, ३४६ ४६७. नियमार्थः १५५.३८२ ४९०. परमतम् १९०,३८२,४६५ ४६८. नियमार्थम् ११७,१५५,१५६, | परमार्थनित्यता १४० १६१,३५५,३७८,४३४.४४०/४९२. परयोगलक्षणा पञ्चमी १९७ ४६९. निरनुबन्धः १४६ ४९३. पररूपम् ४२८ ४७०. निरासार्थम् ४१६ ४९४. परलोक जन्मान्तरे ४६ ४७१. निर्देशसुखप्रतिपत्त्यर्थम् ३३८ ४९५. परसप्तमी १३३, २४१, ४७२. निर्देशसुखार्थः ४५१ ३१७,४७५ ४७३. निर्देशसुखार्थम् ७०/४९६. परसप्तापक्षे १२८ کند کد کت کا ک ک ک کیا

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