Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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५३९.
| ५६७.
परिशिष्टम्-६
६०५ क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं० | क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं०
पृथग्योगस्पष्टार्थः १८५/ ५५९. प्रतिपत्तिगौरवात् २६८ ५४०. पृथग्वचनम् १५८ ५६०. प्रतिपत्तिरियं गरीयसी ५४१. पोषणम् १५९,१६३,१७३| ८०,१४८,१५२,१५५,१७३, ५४२. पैशुन्यम् ।
३१५ १७४,२३५,३१५,३९५ ५४३. पौर्वापर्यम्
१३९/५६१. प्रतिपत्तिर्गरीयसी ६२,७५ ५४४. प्रकथनम्
१४३ ५६२. प्रतिपत्त्यर्थः १३३ ५४५. प्रकरणम्
४३४ ५६३. प्रतिपत्त्यर्थम् ७६,२१८, ५४६. प्रकरणात् ३७१
२२४,३७६ ५४७. प्रकृतिः
३३८५६४. प्रतिपदोक्तम् २३२ ५४८. प्रकृतिनियमः ८१,११८,१५५, ५६५. प्रतिषेधः ३४,२१०,३९६
२३७,४३० ५६६. प्रतिषेधबाधनार्थम् ५४९. प्रकृतिनियमनिरासार्थम् ४२०
प्रतिषेधार्थम्
४२४ ५५०. प्रकृतिभावः
३३८
५६८. प्रतियत्न: ५५१. प्रकृत्यन्तरम्
५६९. प्रत्ययकृतम् ३४५,४१९,४०७ ५५२. प्रक्रियागौरवम् ५१,५२,२०९
| ५७०. प्रत्ययलक्षणम् १८१,२८४, ५५३. प्रक्रियालाघव
३१७,३१९,३४५,३७३,४७७ ५५४. प्रक्रियालाघवार्थम्
| ५७१. प्रत्ययलोपलक्षणत्वात् १८९ ५५५. प्रच्छादयः
| ५७२. प्रत्ययलोपलक्षणम् ५९,३७३ ५५६. प्रजनम्
५७३. प्रत्ययविकारागमस्थ: ५५७. प्रतिपत्तिगौरवनिरासार्थम् ३०,
४६९,४७४ १६१,२२७,२४०, २६७,३५५,३७६,३८०
| ५७४. प्रत्युदाहरणम् १८५ ५५८. प्रतिपत्तिगौरवम्
४४२ प्रत्युदाहरणेनैव ४२,९६,
४६९ १३०, १८४, १८६, १८७,२१६, ५७६. प्रपञ्च: २२५,२२८,२६४,२६५,२८२,५७७. प्रपूरणम्
प्रमाणम् २८६.२९९,३४९,३५०.४०१, ५७८..
५७,८०,४८.३ ४१८.४३१
| ५७९. प्रयोगनिरासार्थम् १४०
४२५
५२
३४४
३४०
| ५७५.
३७१

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