Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 652
________________ ६१४ कातन्त्रव्याकरणम् ४२५ क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ०सं० क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ०सं० ९४६. सार्वधातुकम् ७१,८४, १५३ ९६६. सुखबोधार्थम् ११५ १६३,१७५, १८२,३५३ ९६७. सुखसमासप्रतिपत्त्यर्थः ४७५ ९४७. सार्वधातुकविषयत्वम् १४० ९६८. सुखार्थ एव २०६ ९४८. सावकाशत्वम् २२१९६९. सुखार्थः ७३,७९,१००, ९४९. साहचर्यम् ४४३ १२२,१२४,२७६,२९३,३६५ ९५०. साहचर्यात् ४४२,४४८ ९७०. सुखार्थम् १५,४९,५१,७९, ९५१. साहचर्याभावात् १४६ ८८,१०३,१०४,११५,१६०, ९५२. सिद्धपक्षे ११५,३७६ १६१,१६८,१७२,१७९,१८२, ९५३. सिद्धप्रयोगः ३६० १८३,१८४,१८९,१९७,२१६, ९५४. सिद्धान्तः १५४,१६५.२९२, २२१,२३५,२८६,३००,३२०, ३२१,४५४,४८० ___३२१,३४९,३७१,४००,४२४,४४४ ९५५. सिद्धान्तान्तरम् २०५.३०० ९७१. सुखावबोधार्थम् ९५६. सिद्धिः १११ ९७२. सुखावहम् ३९८ ९५७. सिद्धे सत्यारम्भः ४१६ ९७३. सुखोच्चारणार्थ: ४३७ ९५८. सुखनिर्देशार्थः ३७४,३८६, ९७४. सुगमम् २६३ ४८४ ९७५. सूत्रकारमतम् ११६,३८२ ९५९. सुखपाठप्रतिपत्तिः ४५४ ९७६. सूत्रद्वयं सुखार्थम् १८९ ९६०. सुखपाठप्रतिपत्त्यर्थः १०० ९७७. सूत्रप्रणयनेन ९६१. सुखपाठार्थः ६८.१५७ ९७८. सूत्राणि ४२६ ९६२. सुखपाठार्थम् २९१ ९७९. सेवा ८९,२३९ ९६३. सुखप्रतिपत्तिफलम् ७१,९८०. सोपस्काराणि सूत्राणि ४२५, ९६४. सुखप्रतिपत्त्यर्थः ८०,२९२, ४२६ ३५४.४५५ ९८१. सौत्रो घसि: ९६५. सुखप्रतिपत्त्यर्थम् ३६,४०,७५, ९८२. सौत्रो. धातुः ४१२ ८६,१०३,२२०,२४७, ९८३. सौत्रौ धातृ ४१२ ३३८,३८६,३९५,४४६ ९८४. सौमी ऋक्. ३१ A ३०८

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