Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 650
________________ ६१२ कातन्त्रव्याकरणम् ८५८. २४५ ८८४. २१६ ३८६.८८७. श्रुतिसुखार्थ: क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं० क्र० सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं० ८५३. व्याकरणे १३९ ८७७. शास्त्राणि ४८८ ८५४. व्याख्यानत: १७० ८७८. शिलपुत्रकस्य शरीरम् ६७ ८५५. व्याख्यानम् १२६ ८७९. शिष्टप्रयोगः २७१,२७२ ८५६. व्याख्येयम् ३६६,४६६ ८८०. शिष्टप्रयोगादर्शनात् २७२ ८५७. व्याजीकरणम् ८८१. शिष्टप्रयोगानुसारेण ४७१ व्यापक: १६८ ८८२. शिष्टसंमतः पक्षः । ८५९. व्याप्ति: १७४,४२०.४३९ शोषणम् १४८,२६६,३४४ ८६०. व्याप्तिन्यायात् श्रवणम् २६७ ८६१. व्याप्तिपक्षे श्रुतसम्बन्धः ८६२. व्याप्य: ८८६. श्रुतिः २८८ १२२,१३२ ८६३. व्याप्यार्थम ८८८. श्रौतसम्बन्धः ११७,३९५ ८६४. व्यावृत्तिः ४१,११५.१ श्लेषणम् १६८,४१६,४३४,४३८ श्लोके ४२२ ८६५. व्युत्पत्तिपक्ष: श्व शुर: ३३४ ८६६. व्युत्पत्त्यर्थम् ८९२. षोपदेशा धातवः ४६५ ८६७. शङ्कानिरासार्थम् ८९३. संग्रहः ८६८. शब्दलाघव ८९४. संचल्यो दुर्जनः ८६९. शब्दसंज्ञा ८९५. संचूर्णनम् ४३३ ८७०. शब्दालम्बनम् ८९६. संज्ञापूर्वकत्वात् २३०,४३६ ८७१. शमादिः ३४० ८९७. संज्ञापूर्वकत्वादनित्यत्वम् ४६२ ८७२. शरीरविकार: २३२ ८९८. संज्ञापूर्वकत्वाद- २४२,३५४ ८७३. शर्ववर्मणस्तु नोपलक्षणं १५७ नित्यार्थमेव ८९९. संज्ञापूर्वकत्वाद् ८७४. शाठ्यम् वृद्धिरनित्या ८७५. शातनम् २७४ ५००. संवरणम् १०३,१०५, ८७६. शास्त्रम् २६५,३७१.४२२ ८८९. २७१ ८९०. ८९१. १३६ १४२ सम्मतम् २४१

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