Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 640
________________ ६०२ कातन्त्रव्याकरणम् ३३२ क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं० क्र० सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं० ४०३. तुल्यप्रतियोगी __ ४४२६. द्विरुच्चारणम् ४०४. तुष्यतु दुर्जनः ६७/४२७. द्विर्भाव: ४०५. तृप्तिः ४२८. द्विर्वचननिमित्तम् ४७८ ४०६. तृष्णा १२६ ४२९. द्विवचननिमित्ते २१४ ४०७. त्याद्यन्तप्रतिरूपका ४३०. द्विवचनम् ३२,७४, निपाताः ___३४० १५९,४५१ ४०८. त्रिपदो बहुव्रीहिः १ ४३१. धातवः १२६, ३१५ ४०९. त्वं तु राजन् चटकमपि ४३२. धातुनिर्देश: २४ न जङ्घन्यसे | ४३३. धातुसंज्ञाश्रितम् ३७६ ४१०. दण्डको धातुः ४३४. धातुस्वरूपपरिग्रहार्थः ---? ४११. दशरथेन ४५९ ४३५. धातूनामनेकार्थत्वात् २५८ ४१२. दानम् दानम् ९१,१५९,१६४ ४३६. धात्वधिकार: ३६,१५३,३७५ १६५,१७२ ४३७. धात्वर्थः २५,४५,२७१ ४१३. दाहः ४११ ४३८. धारणम् १५९,१७३ ४१४. दीप्ति: १०५,२०४,२३७,४५० ४३९. धुडादिपादः ४२८,४८४, ४१५. दीर्घः २४० ४८७,४८८ ४१६. दुर्गवाक्ये १४६ ४४०. न काचित् क्षतिः ४०७ ४१७. दुर्गवाक्येन ३४६ ४४१. नकारागमः १९८,२०२,२८८ ४१८. दुर्गोक्तिः ३३४/ ४४२. नत्रा निर्दिष्टस्यानित्यत्वात् दुर्घटनीयम् १६१ २३०,२५.०,२५१,३३० ४२०. दूषणम् १६१,२२३,२९६ ४४३. न ह्येकमुदाहरणम् १७९ ४२१. दृष्टपरिकल्पना ३९०/ ४४४. नातिपेशलम् ४३८ ४२२. द्रवीकरणम् २७० ४४५. नाभिधानम् २७० ४२३. द्रव्यविनिमयः ४४|४४६ नामिग्रहणम् १६३ ४२४. द्रोणशब्द: ३३४ ४४७. नाव्यवधानम् ___२२१ ३२५. द्विधा नित्यता १४० ४४८. नि:सन्देहार्थम् ७१, १७४.२०२ ४१९.

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