Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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५८३
पृ०सं० ४१०, ४११ ४१३, ४३८
९३१.
२२.
३८४
३८४
३८३
२९२
२१२
९३७.
विविधतुः
२११
२९२
४५७
१०८
४०६
परिशिष्टम्-३ क्र०सं० शब्दरूपाणि पृ० सं० क्र०सं० शब्दरूपाणि ९३०. विदाञ्चकार १९२ ९५६. वेष्टा विद्वस्यति
३१३ ९५७. वोढा विद्वस्यते ३०१,३१३ ९५८. व्यतिजज्ञिध्वम् ३३. विध्यति
७/९५९. व्यतिजज्ञिध्वे ९३४. विध्यते
७, ३३, ९६०. व्यतिजज्ञिषे ९३५. विवक्षति
९६१. व्यतिरे ९३६. विविदिषति
| ९६२. व्यतिलाताम्
| ९६३. व्यतिलाते ९३८. विविधुः ___३३ ९६४. व्यतिले ९३९. विव्यतुः ९७, १४५,१८६ ९६५. व्यत्यास्त ९४०. विव्यथाते
| ९६६. व्यथयति ९४१. विव्यथिरे
१४ ९६७. व्यद्धा ९४२. विव्यथे १४, ३३ ९६८. व्यरंसिष्टाम् ९४३. विव्युः ९७,१४५,१८६/ ९६९. व्यरंसीत्
विशशरतुः ९२, २५९ ९७०. व्याययति ९४५. विशशरिथ
९२ ९७१. व्रक्ष्यति ९४६. विशशरु:
२५९ ९७२. व्रष्टा २४७. विशशसतुः ९२ ९७३. शक्ता ९४८. विशशसिथ
| ९७४. शक्नुवन्ति ९४९. विस्मापयते
| ९७५. शनुवन्तु ९५०. वीत:
१४५ ९७६. शक्ष्यति ९५१. वीतवान्
१४६ ९७७. शत्ता ९५२. वेक्ता
४०४/९७८. शप्ता ९५३. वेत्ता
४०५/९७९. शमयति ९५४. वेविध्यते
३३ ९८० शयीत ९५५. वेवीयते
१८/९८१ शय्यते
३९१
९४४.
१९९
३९१
२६६ २८९,३११ २८९, ३११
४००
९६
४००,४७२
४०५
४०८
१०८
२६२
२६३

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