Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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क्र० सं० शब्दरूपाणि
१.
अकरिष्यत्
२.
अकरोत्
३.
अकारि
४.
अकार्षीः
अकार्षीत्
अकार्षुः
अकृत
अकृथाः
अकृषाताम्
अकोषीत्
अगात्
अगाताम्
अग्नीयते
५.
६.
७.
८.
१०.
११.
१२.
१३.
१४.
१५.
१६.
अघसत्
१७.
अघाटि
१८. अघानि
१९.
२०.
२१.
223
२२.
२३.
परिशिष्टम् - ३ = शब्दरूपसिद्धिः
पृ० सं० क्र० सं० शब्दरूपाणि
४५२
२४. अचालीत्
१५८, ४५२
२५.
अचीकमत
२४४
२६.
अचीकरत्
३६१ २७.
अचैषीत्
२८.
अचोक्रोट
२९.
अच्छित्त
३०.
अच्योढ्वम्
३९. अजक्षी:
अग्रहीत्
अघटि
अघुक्षत्
अघृढ्वम्
अङ्गाः
अचकात्
अचारीत्
३६०, ४५२
६०
१७१, ३२२
३२२
१७१
३२३ ३३.
१३५, १४९ ३४.
१३५
३५.
३६.
३७.
अजुहवुः
३८. अजूहवत्
अजोघोट्
अञ्जिजिषति
४१. अडुढकत्
३२. अजक्षीत्
अजनि
अजम्भि
अजागरीत्
अजिघ्रपत्
३०१
३९६
११०
१२९ ३९.
११०
४०.
२७८
१६२,३७२
३७२
४७८
४५१
२५२
४२. अताप्सत्
४३.
अतिष्ठिपत्
४४.
अतुत्रौकत्
४५.
४६.
अत्ता
अत्ति
५६५
पृ० सं०
२५२
३०४
२२३,३०४
२४७
३३३
१६९
३१९
३६२
३६२
११२
२००
२५२
२३०
६१,१६०
२८
३७३
३९४
२२७
२४८
२२९
२२७
४०५
१४७

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