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तृतीये आख्याताध्याये सप्तमः इडागमादिपादः ४०९
८०७. यभिरभिलभेर्भात् [३।७।२५] [सूत्रार्थ]
असार्वधातुक प्रत्यय के परे रहते 'यम् - रभ् - लभ' इन तीन भकारान्त धातुओं से उत्तर में इट् का प्रतिषेध होता है।।८०७।
[दु० वृ०] एभ्यस्त्रिभ्योऽनिड् भवति। यब्धा, रब्धा, लब्धा।।८०७। [समीक्षा द्रष्टव्य समीक्षा-सूत्र सं० ७९५। [रूपसिद्धि]
१. यब्धा । यभ् + ता । 'यभ मैथुने' (१।२८२) धातु से श्वस्तनीविभक्तिसंज्ञक प्र० पु० - ए० व० 'ता' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से अनिट्, “घढधभेभ्यस्तथोोऽध:' (३।८।३) से तकार को धकार तथा “धुटां तृतीयश्चतुर्थेषु' (३।८।८) से भकार को बकारादेश ।
२. रब्धा। रभ् + ता। 'रभ राभस्ये' (१।४७१) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।
३. लब्या। लभ् + ता। 'डु लभष् प्राप्तौ' (१।४७२) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।।८०७।
८०८. यमिरमिनमिगमेर्मात् [३।७।२६] [सूत्रार्थ
असार्वधातुक प्रत्यय के परे रहते ‘यम् - रम् - नम् - गम्' इन चार मकारान्त धातुओं से उत्तर में इडागम नहीं होता है।।८०८।
[दु० वृ०] एभ्यश्चतभ्योऽनिड़ भवति। यन्ता, रन्ता, नन्ता, गन्ता।।८०८। [समीक्षा] द्रष्टव्य समीक्षा-सूत्र सं० ७९५। [रूपसिद्धि
१. यन्ता। यम् + ता। 'यम उपरमे' (१।१५८) धातु से श्वस्तीविभक्तिसंज्ञक 'ता' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से इडागम का निषेध, “मनोरनुस्वारो धुटि'' (२।४।४४) से मकार को अनुस्वार तथा “वर्गे वर्गान्तः'' (२।४।४५) से अनुस्वार को नकारादेश।
___२. रन्ता। रम् + ता। 'रमु क्रीडायाम्' (१।५६१) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय तथा शेष प्रक्रिया पूर्ववत् ।
३. नन्ता। नम् + ता। ‘णमु प्रह्वत्वे शब्दे च' (१।१५९) धातु से 'ता' प्रत्यय, “णो नः'' (३।८।२५) से णकार को नकारादेश तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।