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तृतीये आख्याताध्याये सप्तमः इडागमादिपादः ३७९ सिध्यतीत्याह-कथमिति । येषु सत्स्वात्मनेपदं क्रमेर्विहितं तवृत्तिः क्रमिरात्मनेपदविषय एवेष्यते। 'प्रक्रन्ता, उपक्रन्ता' इति। "प्रोपाभ्यामारम्भे" (३।२।४२-३७) इत्यात्मनेपदविषयता। तदेतन वक्तव्यम्-अभिधानलक्षणा हि कृत्तद्धितसमासा इति । प्रस्नवितेत्यादि। एवं क्रमितेवाचरति प्रक्रमित्रीयते, आयिरयमात्मनेपदीति न स्नुक्रमाविति। तेनान्तरङ्गत्वादिटि कृते बहिरङ्गत्वादात्मनेपदं पश्चादित्यर्थः। यद्येवं कथं 'प्रचिक्रंसते' इति सन् प्रत्ययस्यात्मनेपदविषयत्वात् । तदयुक्तम्, क्रमिरेवात्मनेपदविषयः इति, कथमन्यथा "पूर्ववत् सनन्तात्" (३।२।४६) इत्यतिदेश: प्रवर्तते ॥७८४।
[समीक्षा)
'प्रस्नविता, प्रस्नविष्यति, क्रमिता, क्रमिष्यति' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में इडागम किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- "स्नुक्रमोरनात्मनेपदनिमित्ते" (अ० ७।२।३६)। परस्मैपद में ही इडागम प्रवृत्त हो - इसलिए ही यह सूत्र कातन्त्रकार ने बनाया है। अत: 'व्यतिस्नोष्यते' इत्यादि स्थलों में इडागम नहीं होता। इसका स्पष्ट निर्देश ‘परस्मै' पद से कातन्त्र में किया गया है, जबकि पाणिनि में 'अनात्मनेपदनिमित्ते' शब्द का प्रयोग किया है। व्याख्याकारों ने कहा है कि कृत्, तद्धित तथा समास अभिधानलक्षण होते हैं, अत: 'प्रक्रन्ता' आदि में इडागम के निषेधार्थ “प्रोपाभ्यामारम्भे" आदि सूत्रवचन बनाने की आवश्यकता नहीं है।
[विशेष वचन] १. आयिरयमात्मनेपदीति (दु० वृ०)। २. तत्र स्नुक्रमिभ्यामेवेति न विपरीतनियमः (दु० टी०)। ३. प्रादयश्चोपसर्गा विशेषका भवन्ति (दु० टी०)। ४. अभिधानलक्षणा हि कृत्तद्धितसमासा इति (दु० टी०; वि० प०)। ५. सादृश्यादात्मनेपदमेवनियमेन व्यावृत्यते (वि० प०)। [रूपसिद्धि]
१. प्रस्नविता। प्र + ष्णु + इट् + ता। 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'ष्णु प्रस्रवणे' (२।९) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक प्र० पु०-ए० व० 'ता' प्रत्यय, “धात्वादेः षः सः' (३।८।२४) से षकार को सकार, “निमित्तापाये नैमित्तिकस्याप्यपायः' से णकार को नकार, प्रकृत सूत्र से इडागम, गुण तथा अवादेश।
२. प्रस्नविष्यति। प्र+ष्णु + इट् + स्यति। 'प्र' उपसर्गपूर्वक ‘ष्णु प्रस्रवणे' (२।९) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक परस्मैपद-प्र० पु०-ए० व० ‘स्यति' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से इडागम, गुण, अवादेश तथा सकार को षकारादेश।
३. क्रमिता। क्रम+ इट् + ता। 'क्रम पादविक्षेपे' (१।१५७) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से इडागम।
४. क्रमिष्यति। क्रम् इट्+स्यति। ‘क्रमु पादविक्षेपे' (१।१५७) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक परस्मैपद-प्र० पु० -ए० व० ‘स्यति' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से इडागम तथा सकार को षकारादेश ।