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तृतीये आख्याताध्याये सप्तमः इडागमादिपादः
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[समीक्षा)
'ईडिषे, ईडिध्वे, जनिषे, जनिध्वे' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों व्याकरणों में इडागम का विधान किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- “ईड्जनोचे च" (अ०७।२।७८)।
आचार्य बिल्वेश्वर के अनुसार 'ईशिष्व' आदि में इडागम का साधुत्व उमापतिसेन मानते हैं, उसे यहाँ टीकाकार के विरोध से साधु नहीं माना गया है। 'ईडीशिजनां सेध्वयोः' ऐसा एक सूत्र बनाना चाहिए था । दो पृथक् सूत्रों का औचित्य सिद्ध नहीं होता, फिर भी पाणिनि तथा कातन्त्रकार ने जो दो सूत्र बनाए हैं, उससे उनकी रचना को विचित्र कहकर आक्षेप किया जाता है।
[विशेष वचन] १. सध्वे चेति पठितत्वाच्चकारेण ईशिरनुकृष्यते (दु० वृ०)। २. सूत्रकारमतं वर्णयन्ति- नियमार्थो योगविभागः (दु० टी०)। ३. वाक्यकारस्तु प्रमाणभूतः ---- इत्येकयोग एव कर्तव्यः (दु० टी०)। ४. योगविभागस्तु वैचित्र्यार्थः (दु० टी०)। ५. ईशीड्जनां सध्वे चेत्येकयोगे सिध्यति भिन्नयोगो नियमार्थः (बि० टी०)। ६. यत् पुनर्वृत्तौ 'ईशिष्व' इति, तत् परमतमाश्रित्योक्तमित्याह उमापतिसेनः
(बि० टी०)। [रूपसिद्धि]
१. ईडिये। ईड् + इट् + से। 'ईड् स्तुतौ' (२।४३) धातु से वर्तमानासंज्ञक 'से' प्रत्यय, अन्लुक्, प्रकृत सूत्र से इडागम तथा सकार को षकारादेश।
२. इंडिष्व। ईड् + इट् + स्व। 'ईड् स्तुतौ' (२०४३) धातु से पञ्चमीविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद-म० पु०-ए० व० 'स्व' प्रत्यय, अन्लुक्, इडागम तथा 'स्' को ''।
३. ईडिध्वे। ईड्+इट्+ध्वे। 'ईड् स्तुतौ' (२।४३) धातु से वर्तमानासंज्ञक 'ध्वे प्रत्यय, अन्लुक्, तथा इडागमा
४. ईडिध्वम्। ईड् + इट् + ध्वम् । 'ईड् स्तुतौ' (२।४३) से पञ्चमीसंज्ञक म० पु०-ब० व० 'ध्वम्' प्रत्यय, अन्लुक् तथा इडागम।।
५. व्यतिजज्ञिये। वि + अति + जन् + इट् + से। 'वि-अति' उपसर्गपूर्वक 'जन जनने' (२८०) से “अनियमे चागतिहिंसाशब्दार्थहसः" (३।२।४२-६६) के नियमानुसार वर्तमानासंज्ञक आत्मनेपद मध्यमपुरुष- ए० व० 'से' प्रत्यय, अन्लुक, इडागम, "जुहोत्यादीनां सार्वधातुके" (३।३।८) से 'जन्' धातु को द्वित्व, अभ्याससंज्ञा, न् - लोप, “सर्वेषामात्मने सार्वधातुकेऽनुत्तमे पञ्चम्या:' (३।५।१८) से अगुण, "गमहनजनखनघसामुपधायाः स्वरादावनण्यगुणे" (३।६।४३) से 'जन्' धातु की उपधा अकार का लोप, “तवर्गश्चटवर्गयोगे चटवौँ' (२।४।४६) से नकार को अकार, ‘ज्-ञ्' संयोग से ज् तथा सकार को षकारादेश ।