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तृतीये आख्याताध्याये षष्ठोऽनुषङ्गलोपादिपादः
२८५ स्यादिति चेत्, न। सग्निमित्तको बहुत्वस्वरोऽद्यतन्या: प्रथपुरुषस्य बहुवचनम् अन्,
आत्मनेपदस्य प्रथमपुरुषस्य बहुवचनम्- 'अन्त'। तत्रानेन प्रयोजनाभाव:, असन्ध्यक्षरविषयत्वादेव न भविष्यति, किन्तेन प्रयोजनमस्ति। कृतेऽनेनाकारलोपे “आत्मने चानकारात्" (३। ५। ३९) इति लोप: स्यात्। असन्ध्यक्षरविधौ नकारलोपाभावः। तदा 'अन्ते' इति विदध्यात्, कि बहुत्वे इति व्याप्तिवचनेन तस्माद् बहुवचनेन बोधयति-अबहुत्वे इति। तस्मान्निमित्तसाहचर्यादित्यर्थ:। साहचर्याद् वाऽलोप इति प्रश्लेषः।। ७१३।
[समीक्षा
'अधुक्षाताम्, अधुक्षाथाम्' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ अद्यतनीविभक्ति के प्रत्यय 'स' में अकार का लोप दोनों व्याकरणों में किया गया है। पाणिनि का सूत्र है“क्सस्याचि' (अ० ७।३। ७२)। यह ज्ञातव्य है कि पाणिनीय 'अच्' के लिए कातन्त्र में 'स्वर' संज्ञा का तथा पाणिनीय ‘क्स' प्रत्यय के लिए कातन्त्र में 'सण' प्रत्यय का व्यवहार उपलब्ध है। ‘क्स' और 'सण्' में क्-ण अनुबन्धों की योजना अपने अपने व्याकरण में निर्धारित नियम के अनुसार है। पाणिनि 'क्' अनुबन्ध में गुण-वृद्धि का निषेध करते हैं तो कातन्त्रकार को 'ण' अनुबन्ध में उक्त कार्य अभीष्ट है। अस्तु ‘क्स' तथा 'सण' में क्–ण अनुबन्धों के अतिरिक्त जो स + अ = 'स' शेष रह जाता है, उसी के अकार का लोप होता है।
[विशेष वचन १. अकारान्नत्वान्तलोपो न स्यात् (दु० वृ०)। २. प्रत्ययस्य सर्वापहारी लोप: (दु० टी०) ३. णकारानुबन्धत्वाद् गुणो न भवति (दु० टी०)। [रूपसिद्धि]
१. अधुक्षाताम्। अट् + दुह् + सण + आताम्। 'दुह प्रपूरणे' (२। ६१) इस धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद-प्र० पु०-द्विव० 'आताम्' प्रत्यय, 'अड् धात्वादिहस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु' (३। ८। १६) से धातुपूर्व अडागम, “सणनिट: शिडन्तान्नाम्युपधाददृशः” (३। २। २५) से 'सण्' प्रत्यय, णकार अनुबन्ध का प्रयोगाभाव, “न णकारानुबन्धचेक्रीयितयोः” (३। ५। ७) से अगुण, “दहिदिहिदुहिमिहिरिहिरुहिलिहिलुहिनहिवहेर्हात्" (३। ७। ३०) से अनिट्, प्रकृत सूत्र से अकारलोप, “दादेर्घः' (३।६।५७) से दुधातुघटित हकार को घकार, “तृतीयादेर्घ- ढधभान्तस्य धातोरादिचतुर्थत्वं सध्वोः ' (३।६।१००) से द् को ध्, "अघोषेष्वाशटां प्रथमः" (३। ८।९) से घ् को क्, “नामिकरपरः प्रत्ययविकारागमस्थ: सि: षं नुविसर्जनीयषान्तरोऽपि" (२। ४। ४७) से स् को ष्, 'क् + प्' वर्गों के संयोग से 'क्ष्' वर्ण।
२. अधुक्षाथाम्। अट् + दुह + सण् + आथाम्। 'दुह प्रपूरणे' (२। ६१) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक 'आथाम्' प्रत्यय, तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्।