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कातन्त्रव्याकरणम्
३. अनिड्ग्रहणं स्वरूपविशेषणं सुखार्थमिति (दु० टी०)। [रूपसिद्धि]
१. अकृत। अट् + कृ + सिच् + त। 'डु कृञ् करणे' (७। ७) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद-प्र० पु०-ए० व० 'त' प्रत्यय, अडागम, “सिजद्यतन्याम्' (३। २। २४) से सिच् प्रत्यय, "ऋतोऽवृवृत्रः' (३। ७।१६) से अनिट् तथा प्रकृत सूत्र से उसका लोप।
२. अकृथाः। अट् + कृ + सिच् + थास्। 'डु कृत्र करणे' (७। ७) धातु से अद्यतनीसंज्ञक म० पु० - ए० व० 'थास्' प्रत्यय, सिच्, अनिट् तथा सिच् का लोप।
३. समस्थित। सम् + अट् + स्था + सिच् + त। ‘सम्' उपसर्गपूर्वक 'ष्ठा गतिनिवृत्तौ' (१ । २६७) धातु से अद्यतनीसंज्ञक 'त' प्रत्यय, अडागम, सिच् प्रत्यय, अनिट, आकार को इकार तथा सिच् का लोप।
४. आहत । आ + हन् + सिच् + त। 'आङ्' उपसर्गपूर्वक 'हन् हिंसागत्योः (२। ४) से अद्यतनीसंज्ञक आत्मनेपद - प्र० पु० – ए० व० 'त' प्रत्यय, अडागम, सिच् प्रत्यय, अनिट्, सिच्–लोप तथा नलोप।। ७३२।
__७३३. इटश्चेटि [३।६। ५३] [सूत्रार्थ] इट् से परवर्ती सिच् प्रत्यय का लोप होता है यदि ईट् पर में हो तो।। ७३३ । [दु० वृ०]
इट: परस्य सिचो लोपो भवति ईटि परे। अरावीत्, अलावीत्, अकोषीत्। इट इति किम् ? अभैत्सीत्। ईटीति किम् ? अकणिषम् ।। ७३३।
[समीक्षा]
'अरावीत्, अलावीत्, अकोषीत्, अमोषीत्' आदि शब्दों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में सिच् प्रत्यय का लोप किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- “इट ईटि" (अ० ८।२। २८)। सिच्–सकार के निर्देशार्थ उक्त सूत्र की समीक्षा द्रष्टव्य है।
[रूपसिद्धि]
१. अरावीत। अट् + रु + अद्यतनी –दि। 'रु शब्दे' (२।१०) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद-प्र० पु० - ए० व० 'दि' प्रत्यय, अडागम, सिच्, इडागम, ईडागम, “सिचि परस्मै स्वरान्तानाम्' (३। ६।६) से धातुघटित उकार को वृद्धि, प्रकृत सूत्र से 'सिच्' का लोप तथा “पदान्ते धुटां प्रथम:' (३। ८।१) से दकार को तकारादेश।
२. अलावीत्। अट् + लू + अद्यतनी + दि। लूञ् छेदने' (८। ९) धातु से